सबले बढिया छत्तीसगढिया - प्रो.अश्विनी केशरवानी

सबले बढिया छत्‍तीसगढिया - प्रो.अश्विनी केशरवानी

रामेश्‍वर वैष्‍णव


मैं कभी कभी सोंचता हूं कि मनुष्‍य निमंत्रण देने वाले की प्रसंशा करते हैं, निमंत्रण के खाने की प्रसंशा करते हैं, खाना बनाने वाले की प्रसंशा करते हैं किन्‍तु खाना परोसने वाले की प्रसंशा क्‍यूं नहीं करते । जबकि यदि वह नहीं परोसता तो खाने वाला किसको खाता । ऐसे ही लेखक की तारीफ होती है, संपादक की तारीफ होती है, प्रकाशक की तारीफ होती है किन्‍तु लेखकों के उपर लिखने वाले की तारीफ क्‍यों नहीं होती । आज मैं ऐसे ही लेखक के उपर लिख रहा हूं जो छत्‍तीसगढ के भूले बिसरे लेखक, कवि, साहित्‍यकारों पर, खोज-खोज कर लिखते हैं । छत्‍तीसगढ के दर्शनीय स्‍थल और पुरातत्‍व के उपर लिखते हैं और प्रकाशित पुस्‍तकों की समीक्षा लिखते हैं । छत्‍तीसगढ को राष्‍ट्रीय स्‍तर पर चर्चित करने वाले लेखक का नाम है प्रो.अश्विनी केशरवानी । चांपा के महाविद्यालय में प्राणीशास्‍त्र के प्राध्‍यापक हैं और छत्‍तीसगढ के संबंध में लिख-लिख कर संपूर्ण भारत में प्रसारित कर रहे हैं ।

उनसे मेरी एक बार मुलाकात हुई थी, फिर छत्‍तीसगढ में कोई भी समाचार-पत्र ऐसा नहीं है जिसमें उनका नाम और काम आये दिन नहीं छपता होगा । दूसरे की प्रसंशा करने के लिए बहुत बडे हृदय की आवश्‍यकता होती है और समाज के गौरवों की प्रसंशा करने के लिए हृदय के साथ ही अच्‍छे दिमाग की भी आवश्‍यकता होती है । केशरवानी जी को दोनों भरपूर मिला है, इसीलिये वे अपने क्षेत्र को देशभर में चर्चित करने में कामयाब हुए हैं ।


दैनिक नवभारत रायपुर के महानदी घाटी के साहित्‍यकार नाम से लेखमाला में केशरवानी जी नें ठाकुर जगमोहन सिंह, मालिक राम भोगहा, पं.मेदिनी प्रसाद पाण्‍डेय, राजा चक्रधर सिंह, हीरालाल सत्‍योपाध्‍याय, सुन्‍दरलाल जी शर्मा, रामदयाल तिवारी, पं.मुकुटधर पाण्‍डेय जैसे सोलह साहित्‍यकारों के उपर सरल भाषा में लिखा । आजकल ये रायगढ जिले के साहित्‍यकार लेखमाला दैनिक जनकर्म में लिख रहे हैं जिसमें अभी तक प्रहलाद दुबे (सारंगढ), पं.अनंतराम पाण्‍डेय (रायगढ), पं.शुकलाल प्रसाद पाण्‍डेय (सरसीवां), पं.किशोरी मोहन पाण्‍डेय (रायगढ), भवानी शंकर षडंगी, मुस्‍तफा हुसैन मुश्फिल, डा.रामकुमार बेहार, प्रो.दिनेश कुमार पाण्‍डेय, वेदमणि सिंह ठाकुर जैसे 28 साहित्‍यकारों के उपर लिख चुके हैं और 38 लोगों के उपर लिखने की तैयारी कर चुके हैं । देखने में यह आता है कि जैसे ही आंख बंद होती है वैसे ही नाम भी बुझ जाता है । पर अश्विनी केशरवानी जैसे लेखक का नाम टिमटिमाते रहता है । यह कोई छोटी बात नहीं है । इसके लिये बहुत मेहनत, ज्ञान और गांवगांव, गली-गली में घूमना पडता है । महानगर के लेखक लोग मोटर कार के बिना एक पग भी आगे नहीं बढाते इसीलिये वे अपनी ही प्रसंशा करते हुए उनकी जिन्‍दगी खत्‍म करते हैं । दूसरे तरफ देखने की उन्‍हें फुरसत नहीं मिलती ।


केशरवानी जी का जन्‍म 18 अगस्‍त 1958 को शिवरीनारायण के मालगुजार परिवार में हुआ । इनकी पढाई लिखाई शिवरीनारायण, बिलासपुर और रायपुर में हुई । एम. एस सी (प्राणी शास्‍त्र) पढते पढते ही इन्‍हें लिखने की इच्‍छा जागी । उस समय ये रायपुर के कालेज की पत्रिका मनीषा के न सिर्फ ये संम्‍पादन किये बल्कि मेरिट में तीसरे नम्‍बर से पास भी हुए और सोने का मेडल पाया । केशरवानी जी की रचना धर्मयुग, नवनीत, कादंम्बिनी, दैनिक हिन्‍दुस्‍तान, अमर उजाला, दैनिक जागरण, ट्रिव्‍यून जैसे महत्‍वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं में भी छपे ।


छत्‍तीसगढ की ऐतिहासिक, पुरातात्विक और साहित्तिक परिवेश का इन्‍हें अत्‍यधिक ज्ञान है । अपना देश, अपनी माटी अपन धरती का जो सम्‍मान बढाते हैं उनका सम्‍मान कैसे नहीं होगा । कितनों ऐसे लेखक हैं जो छत्‍तीसगढ में दो चार साल क्‍या रह गये आज दिल्‍ली भोपाल में छत्‍तीसगढ के एक्‍सपर्ट बने बैठे हैं । वे लिख अवश्‍य रहे हैं पर सम्‍मान दिलाने के लिए नहीं बल्कि सम्‍मान पाने के लिए लिखते हैं । उनके लेख अंधे के हांथी से मुठभेड हो जाने की बात है । प्रो. अश्विनी केशरवानी जी चांपा में रह कर छत्‍तीसगढ का सम्‍मान बढा रहे हैं वे कहीं दिल्‍ली, भोपाल चले गये रहते तो सारी दुनिया में छत्‍तीसगढ की माटी की महक फैल जाती । मुझे विश्‍वास है एक दिन ऐसा होकर रहेगा ।


रामेश्‍वर वैष्‍णव

(लेखक छत्‍तीसगढ के शीर्ष साहित्‍यकार एवं जनकवि हैं)

छत्‍तीसगढी से हिन्‍दी भाषा अनुवाद : संजीव तिवारी

मूल लेख : छत्‍तीसगढी भाषा में यहां पढें गुरतुर गोठ (मेकराजाला म मोर छत्‍तीसगढी परचा)

प्रो.अश्विनी केशरवानी जी का ब्‍लाग अश्विन उनकी अंतरजाल में उपलब्‍ध पुस्‍तक शिवरीनारायण देवालय एवं परंपरायें

संपूर्ण लेख की फोटो इमेज यहां उपलब्ध है

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4 टिप्‍पणियां:

  1. मुझे भी विश्वास हैं
    ये सपना एक दिन साकार होगा

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  2. इस बात में कोई दो राय नही कि छत्तीसगढ़ के बारे में और यहां के व्यक्तित्व के बारे में जानकारी का खजाना है केशरवानी जी, इनके लेखों को पढ़ते रहने से ही हमें बहुत सी नई जानकारियां मिलती हैं!

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  3. सच है,परदे के पीछे कोई नहीं देखता,
    पर आयेंगे वो दिन
    विश्वास की रास हम भी थामे रहेंगे

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  4. वाकई में केशरवानी जी का व्यक्तित्व बहूत ही प्रभावशाली है और हमें तो पत्रिकाओं और अखबारों में आपका नाम प्रायः मिलते ही रहते है.....

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