दुर्लभ दर्शन
दिखता नहीं अब
चाँद पूरा साफ-साफ
आँखें हो चलीं बूढ़ीं
अपने मन से बह रही हो
हवा ऐसी दिखती नहीं अब
खुश़बू हो गई लापता
बातें हो चलीं झूठीं
कहाँ है अब कोई जो चल रहा हो
कारवाँ ऐसा दिखता नहीं अब
मंज़िल हो गये किस्से तिलस्मी
रातें हो चलीं जूठीं
सदी की सदी / सरक रही है
व्यग्रता ऐसी
प्रयासों की दिखती नहीं अब
साक्षात्कार सूरज का कहाँ नसीब
साँसें लग रहीं रूठीं
मौन सम्वाद
तुमने कहा मुझसे
मत टोको मुझे, मत रोको मुझे
कह-कह कर ऐसा
की अपनी मनमानी
मेरे हिस्से आया मौन
कल तक बँधी थी पट्टी आँखों पर
अब ताला है मुँह पर
कुछ सुन लेतीं मेरी भी
नहीं, कुछ खास नहीं है कहने को
तुमको ही टाल नहीं पाता कभी
तुम्हारा कहना जरा सा
बड़ा भारी लगता है
जैसे हो बारिश सीने पर दिसम्बर के
कम भासती है लू, मई के महीने में
मत कहो, कम से कम
तुम तो मत ही कहो
अँगुली उठाती हो
हवा की इस थिरकन से
मैं लगता हूँ समाने धरा की कोख में
गिर जाता हूँ उस नज़र से
देखता हूँ खुद को जिस नज़र से
प्रेम ने ही बाँधी थी कभी आँखों पर
सम्बन्धों में भी कुछ शर्त होती है
कितनी भी ठोस क्यों न हो जिन्दगी
सिद्धान्त, विचार, आदर्श और अनुभूतियाँ
सब में पर्त होती है
खुशी से दिन बीता
बीती शाम कहकहों में
सुबह नज़र आते ओस, कहते
रोना भी है जिन्दगी में
दृष्टि इतनी सबल है
ध्वनि को कष्ट मत दो
दो, मुझे मौन दो
जिन्दगी की कौंध दो
न हो ध्वनि तदुपरान्त
मुझे मौन से
प्रेम दो, मौन दो
मौन से
दिखता नहीं अब
चाँद पूरा साफ-साफ
आँखें हो चलीं बूढ़ीं
अपने मन से बह रही हो
हवा ऐसी दिखती नहीं अब
खुश़बू हो गई लापता
बातें हो चलीं झूठीं
कहाँ है अब कोई जो चल रहा हो
कारवाँ ऐसा दिखता नहीं अब
मंज़िल हो गये किस्से तिलस्मी
रातें हो चलीं जूठीं
सदी की सदी / सरक रही है
व्यग्रता ऐसी
प्रयासों की दिखती नहीं अब
साक्षात्कार सूरज का कहाँ नसीब
साँसें लग रहीं रूठीं
मौन सम्वाद
तुमने कहा मुझसे
मत टोको मुझे, मत रोको मुझे
कह-कह कर ऐसा
की अपनी मनमानी
मेरे हिस्से आया मौन
कल तक बँधी थी पट्टी आँखों पर
अब ताला है मुँह पर
कुछ सुन लेतीं मेरी भी
नहीं, कुछ खास नहीं है कहने को
तुमको ही टाल नहीं पाता कभी
तुम्हारा कहना जरा सा
बड़ा भारी लगता है
जैसे हो बारिश सीने पर दिसम्बर के
कम भासती है लू, मई के महीने में
मत कहो, कम से कम
तुम तो मत ही कहो
अँगुली उठाती हो
हवा की इस थिरकन से
मैं लगता हूँ समाने धरा की कोख में
गिर जाता हूँ उस नज़र से
देखता हूँ खुद को जिस नज़र से
प्रेम ने ही बाँधी थी कभी आँखों पर
सम्बन्धों में भी कुछ शर्त होती है
कितनी भी ठोस क्यों न हो जिन्दगी
सिद्धान्त, विचार, आदर्श और अनुभूतियाँ
सब में पर्त होती है
खुशी से दिन बीता
बीती शाम कहकहों में
सुबह नज़र आते ओस, कहते
रोना भी है जिन्दगी में
दृष्टि इतनी सबल है
ध्वनि को कष्ट मत दो
दो, मुझे मौन दो
जिन्दगी की कौंध दो
न हो ध्वनि तदुपरान्त
मुझे मौन से
प्रेम दो, मौन दो
मौन से
सिंघई साहब से एक बार की ही लेकिन बड़ी अच्छी मुलाकात की तमाम यादें हैं....अच्छी कविताएँ हैं य़े। उन तक मेरी अभिवादन पहुँचा दें।
जवाब देंहटाएंअशॊक जी को पढ़कर आनन्द आ गया. प्रस्तुति के लिये आभार.
जवाब देंहटाएंनिश्चित ही बेजोड़ कविता है… खासकर मौन सम्वाद,
जवाब देंहटाएंअशोक जी को मेरा साधुवाद।
दोनो ही कविताएं पसंद आईं!!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
संजीव जी दोनो ही कवितायें बेजोड़ है बहुत खूबसूरत शब्दों का समावेश! अच्छा लगा पढकर...
जवाब देंहटाएंविषेशकर मौन सम्वाद बहुत अच्छी लगी..
सुनीता(शानू)
अच्छी बेजोड़ कविताएँ ...
जवाब देंहटाएंपढ़कर आनन्द आया
विषेशकर मौन सम्वाद |
आभार.
मुझे मौन से
जवाब देंहटाएंप्रेम दो, मौन दो
मौन से
बहुत सुन्दर मौन अभिव्यक्ति !