विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों
पढे और भी सनसनीखेज 4 से 10 अगस्त तक की साप्ताहिक खबरें छत्तीसगढ सवेरा में जिसे हमने पिछले सप्ताह ही चिट्ठा संसार में आप सब की प्रेरणा से उतारा है ।
आज प्रस्तुत है इसका द्वितीय चिट्ठा प्रति । संपूर्ण समाचारों को हमने इसमें डाला है, चित्रों को डालना शेष है, भविष्य में इसे और भी रूचिकर बनाने का प्रयास है ।
इस पर समय व श्रम अत्यधिक लग रहा है । हालांकि हम क्वार्क फाईलों को रवि रतलामी जी के सुझाये रूपांतर का प्रयोग कर यूनिकोड रूपांतर कर रहे हैं, परन्तु एक दिन में संपूर्ण साप्ताहिक को रूपांतरित करना एवं पोस्ट करना (लगभग पचास) कष्टप्रद है ।
आप सब का आर्शिवाद एवं प्रोत्साहन चाहता हूं । कृपया हमारे साप्ताहिक समाचार चिट्ठे पर आयें एवं उसका अवलोकन कर यहां हमें सुझाव देवें ।
छत्तीसगढ सवेरा का लिंक है : http://cgsavera.blogspot.com/
आपको समय लग रहा है - यह जूनून ही तो जीवन का विटामिन होता है. धन्यवाद.
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