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पहला पत्र : हरिशंकर परसाई के नाम
दूसरा पत्र शरद जोशी के नाम
तीसरा पत्र रविन्द्रनाथ त्यागी के नाम
हे व्यंग के ऋतुराज,
आदाब !
गुस्ताख किस्म के खत के लिए माफी चाहता हूं । यों शायद मैं गुस्ताखी का हौसला न करता, अगरचे मरहूम शायर अब्दुल रहीम खानखाना मेरी हौसलाअफजाई न करते । खानखाना साहब फर्मा गये हैं --- ‘ क्षमा बडन को चाहिए छोटन को अपराध ।‘ इस शेर की रोशनी में छोटा होने के कारण मुझे गुस्ताख होने का हक मिल जाता है और बडे होने के कारण आपको माफ करने की सनद ।
जनाब, मैने आपकी कई किताबें पढी हैं । अहा, क्या प्यारी प्यारी फागुनी चीजें दी है आपने ? आपका हर्फ-हर्फ जायकेदार है, लाईन-लाईन सीने से लगा लेने के काबिल हैं ।
आप हिन्दी व्यंग की आबरू हैं, व्यंग के ऋतुराज हैं । अगरचे हिन्दी में और भी व्यंगकार हैं, पर आपके सामने सब फीके हैं । परसाई ग्रीष्म हैं, शरद वर्षा और श्रीलाल शीत । वसंत तो केवल आप हैं । मैं अक्सर अपने दोस्तों से कहता हूं, अगर तुमने त्यागी साहब को नहीं पढा, तो कुछ नहीं पढा, ऐसा ग्रेट राईटर सदियों में पैदा होता हैं ----
‘हजारों साल हिन्दी अपनी बेनूरी पे रोती है, बडी मुश्किल से होता है अदब में, त्यागी तब पैदा ।‘
हम तो आपके ही मुरीद हैं । जैसे रसखान के लिए कृष्ण वैसे हमारे लिए आप । अगले जन्म के लिए यही एकसूत्रीय आरजू है ---
पाहन हौं तो वही फ्लैट को, जो जाय लगे त्यागी साहब के द्वारन ।
गरीबनवाज आपसे एक छोटी सी गुजारिस है । इधर मुहल्ले में अपना एक लफडा चल रहा है । एक चौदहवी के चांद पर दिल जा अटका है, जैसे कटी पतंग बिजली के खंबे पर अटक जाती है । मुश्किल यह है कि इधर एक शायरनुमा नौजवान से लडकी के ताल्लुकात दिन दूने रात चौगुने बढ रहे हें । कमबख्त शेरों शायरी भरे खत लिखता है कि लडकी दिलोजान से उसे चाहने लगी है । आप हसीनाओं के फितरत को जानते ही हैं ( आपने भी तो आधा दर्जन से अधिक इश्क किये हैं और ‘मेरे पहले प्रेम प्रसंग’ वाली रचना में स्वीकार भी किया है ) जो जितना नमक मिर्च लगाकर उनके हुश्न की तारीफ करता है, उसे वो उतना ही बडा आशिक मान बैठती है ।
बदनसीबी से मै भी इस कला में कोरा हूं । हाय रे हिन्दुस्तान, यहां प्रेम करना भी आसान नहीं है । नौजवानों के लिए नर्क है यह देश । नौकरी भी मुश्किल, छोकरी भी मुश्किल । नौकरी के लिए अप्लीकेशन लिखना आना जरूरी है और छोकरी के लिए प्रेमपत्र ।
त्यागी साहब, अब आप भी हमारे अल्लाह हैं । अपने इस बंदे को डूबने से बचाईये । चार पांच अच्छे से दिल फरेब खत लौटती डाक से लिख भेजिए, ताकि मैं उस शायर की औलाद का पत्ता साफ कर सकूं । आपसे पढकर इस फन का माहिर इंडिया में इस वक्त कोई दूसरा नहीं है ।
हालांकि मैं नवाब वाजिद अली शाह की औलाद नहीं हूं, परंतु दिल मैने नवाब का पाया है । आपको हर खत पर मैं 100 रूपया बतौर शुक्राना अदा करूंगा । उम्मीद है आप मेरी फरमाईश पूरी करेंगें ।
आपका शुक्रगुजार
आशिक अली, एम. ए.
संजीव जी बहुत अच्छा अब अगली पोस्ट में आप प्रेम-पत्र भी पोस्ट किजियेगा ताकि बहुत से आशिक अली का फ़ायदा हो जायेगा…न जाने कितने लोग बस इन पत्रों की वजह से अटके हुए है…
जवाब देंहटाएंवैसे ये पोस्ट पहले वाली पोस्ट से अलग है…जो कुछ भी करो बस यह मत भूलो…क्षमा बडन को चाहिए छोटन को अपराध …
अच्छा लगा…
सुनीता(शानू)
बहुत खूब.
जवाब देंहटाएंपता करना जरा कि आशिक अली एम ए को मदद पहुँची कि नहीं.
अगर न पहुँची हो और रकम १०० से उपर बढ़ाने को तैयार हों तो हम लिख कर मदद पहुँचायें. हमारे खत में भी जबाब की गारंटी है वरना रकम वापस. १०० रुपये तो बहुत कम हैं वो भी जबकि गारंटीड रिप्लाई का जुगाड़ हो.
आपके जबाब के इन्तजार में
समीर लाल सी ए
बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंइ लो, इ तो हमरी बात को लिख दिए रहे हमरे सर जी, इस लेटरवा मा।
जवाब देंहटाएंअब सर से जाय के पूछना है कि आया रहा कि नही इसके जवाब मे दू चार प्रेम पत्तर, ताकि हमरे काम आ जाए।
महाशय
जवाब देंहटाएंयह जो स्वामी त्रिनेत्रानंद से लेकर ईंट ठेकेदार और आशिक़ अली तक की भूमिका आपने निभाई है, सबसे पहले तो इसके लिए आपको शुक्रिया. दूसरी जो आपकी समस्या है प्रेम पत्रों वाली उसके लिए आपको एक सुझाव. बेहतर होगा कि व्यंग्य के मौजूदा महारथी आचार्य आलोक पुराणिक से सम्पर्क करें. अपने अपने ख़त में उनका जिक्र भी किया है और यह तय भी नहीं कर पा रहे हैं कि उन्हें क्या मानें. मैं आपकी यह समस्या भी हल किए दे रहा हूँ. आलोक पुराणिक व्यंग्य के नए दौर में मनमोहन सिंह हैं. कहिए कैसे? ऐसे कि वह भी विद्धान (जैसा कि कहा जाता है) अनर्थ शस्त्र के हैं और कर राजनीति रहे हैं. यह भी विद्धान (जैसी कि इनकी डिग्री और पेशा है) अर्थ शास्त्र के हैं और लिख व्यंग्य रहे हैं. मैं यह बात भी शर्त लगा कर कह सकता हूँ कि प्रधानमंत्री रहते भी अगर मनमोहन सिंह ग्राम प्रधान का चुनाव लड़ जाएँ तो भी नीचे से इनका नाम पहले नंबर पर होगा. आलोक पुराणिक के बारे में भी इसी तरह शर्त लगा कर कह सकता हूँ कि जिस दिन ये अपना एक व्यंग्य भी भाभी जी को पढ लें उस दिन अगर इन्हें रोटी की जगह बेलन खा कर पूरे दिन गुजरा न करना पडे तो मैं कोई भी सजा भुगतने के लिए तैयार हूँ. मुश्किल ये है कि मनमोहन सिंह अभी जिंदा हैं वर्ना मैं आलोक जी को उनका ही पुनर्जन्म घोषित कर देता. पुराणों में मुझे कोई नाम इतना पतित दिख नहीं रहा है जिसकी तुलना पुराणिक जी से की जा सके, लिहाजा इस मामले में माफी चाहता हूँ. रही बात आपके प्रेम पत्र वाली तो उसके लिए तुरंत पुराणिक जी से सम्पर्क करिये. आपको शर्तिया तसल्ली बख्श प्रेमपत्र मिलेगा. लेकिन ख़बरदार, भूल कर भी उन्हें प्रेमिका को सीधे पोस्ट करने का ठेका मत दीजिएगा. वर्ना क्या होगा, ये आप खुद समझ सकते हैं. आगे आपको शुभकामनाएँ. पुराणिक और ईश्वर दोनों आपकी मदद करें.
aur haan ye jo aapne eri veri ficatio ka locha laga rakha hai, inko niptaaie nahin to padh kar fir tipiane ki jhanjhat mein naii padoonga.