साहित्य अकादमी नई दिल्ली द्वारा शताब्दी की कालजयी कहानियों का चयन किया गया है। चयनित कहानियां किताब घर प्रकाशन से ४ खण्डों में प्रकाशित हुई है। विगत सौ वर्षों से कथा लेखकों में छत्तीसगढ़ के गांव लिमतरा से निकले डॉ. परदेशीराम वर्मा के महत्व को साहित्य अकादमी ने आंका है। इस चयन में वाणी प्रकाशन से प्रकाशित प्रथम कथा संग्रह "दिन प्रतिदिन" की प्रतिनिधि कहानी को डॉ. परदेशीराम वर्मा की कालजयी कहानी का सम्मान मिला है।
छत्तीसगढ़ में कथा-लेखन की समृद्ध परंपरा है। छत्तीसगढ़ में ही हिन्दी की पहली कहानी "टोकरी भर मिट्टी" यशस्वी कथाकार माधवराव सप्रे ने लिखी। छत्तीसगढ़ के गांव लिमतरा में जन्मे कथाकर डॉ. परदेशीराम वर्मा को मध्यप्रदेश शासन का सप्रे सम्मान मिला। उल्लेखनीय है कि डॉ. परदेशीराम वर्मा छत्तीसगढ़ और देश के विशिष्ट कथाकार हैं जिन्हें कृष्ण प्रताप कथा प्रतियोगिता में लगातार दो बार क्रमशः "लोहारबारी" एवं "पैंतरा" कहानियों के लेखन के लिए पुरस्कृत किया गया। अब तक २५० से अधिक कहानियां तथा अन्य विधाओं की रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं। वे अंचल के विशिष्ट कथाकार हैं जो प्रायः सभी विधाओं में लेखन करते हैं। मूलरूप से ग्रामीण पृष्ठभूमि के गहरे जानकार डॉ. परदेशीराम वर्मा ने फौज में भी सेवा दी। वे भारतीय डाकघर विभाग तथा भिलाई इस्पात संयंत्र में भी सेवा दे चुके हैं। हिन्दी एवं छत्तीसगढ़ी में लिखित उनके उपन्यास बेहद चर्चित हैं। हिन्दी के उपन्यास "प्रस्थान" को जहां महंत अस्मिता सम्मान मिला वहीं छत्तीसगढ़ी उपन्यास "आवा" को एमए पूर्व के पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया गया।
साप्ताहिक हिन्दुस्तान के सर्वभाषा कहानी विशेषांक में हिंदी के प्रतिनिधि के रूप में डॉ. परदेशीराम वर्मा को सम्मिलित किया गया था। उन्हें जीवनी "आरुग फूल" के लेखन के लिए मध्यप्रदेश शासन का सप्रे सम्मान मिल चुका है। २००३ में पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय ने उन्हें मानद डी. लिट की उपाधि दी। पांच हिंदी तथा एक छत्तीसगढ़ी के कथा संग्रह के लेखक डॉ. वर्मा की कहानियां बंगला, उड़िया, मलयालय, तमिल तथा तेलुगु में अनुदित होकर भिन्न-भिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी है। छत्तीसगढ़ शासन के शिक्षा विभाग के लिए त्रिभाषाई शब्दकोष निर्माण में डॉ. परदेशीराम वर्मा की उल्लेखनीय एवं प्रशंसनीय भूमिका रही। लेखन के साथ ही वे सांस्कृतिक संस्था अगासदिया की रचनात्मक गतिविधियों का संचालन भी करते हैं। विशिष्ट पत्रिका अगासदिया के अब तक ३८ विशेषांक भी निकल चुके हैं जिनका संपादन डॉ. परदेशीराम वर्मा ने किया है।
अगर हो सके तो वर्मा जी कि इस कहानी को इस ब्लॉग पर प्रस्तुत करें ताकि हम भी इसका आनंद ले सकें.
जवाब देंहटाएंshaandaar !
जवाब देंहटाएंbadhai agraj kathakar ko. varma ji is layak hain.
जवाब देंहटाएंबधाई !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगथे जब हमर संजीव भाई ह बड़े बड़े साहित्यकार के बारे मा गुरतुर जानकारी इहां मड़ाथे। धन्यवाद भाई संजीव। अरे भाई तोर मेरन अब्बड़ अकन किताब होही पढ़े बर। एको ठन एती बर घलो सरका देते। अ म मोर जोंधरी के जुच्छा अस्थान ल कब भरबे जी??
जवाब देंहटाएंआदरणीय डा साहेब हमारे प्रदेश की धरोहर है।उनका जितना सम्मान किया जाये उतना कम है।
जवाब देंहटाएंगुरूदेव को मैं इस मामले में पहले ही बधाई दे चुका हूं. एक बार फिर से बधाई.
जवाब देंहटाएंवाकई किताब अच्छी निकली है.
दो-चार दिनों में ही मैं उसे लेने भी जा रहा हूं. संभालकर रखने लायक हैं.
dr sahab kjo badhai. jarur padhna chahunga.
जवाब देंहटाएंmadhav rao sapre ji ki kahani tokri bhar mitti, internet par uplabd hai,
yahan dekhein,
हिंदी की पहली कहानी और माधवराव सप्रे http://sanjeettripathi.blogspot.com/2007/05/blog-post_25.html
धन्यवाद संजीत भाई, लिंक लगा दिया हूं।
जवाब देंहटाएंइस कहानी को ब्लॉग के माध्यम से सुनाया जा सकता है।
जवाब देंहटाएंटोकरी भर मिटटी एक शानदार कहानी है, इसे हिन्दी की पहली बाल कहानी भी माना जाताहै।
जवाब देंहटाएं................
पॉल बाबा का रहस्य।
आपकी प्रोफाइल कमेंट खा रही है?.
satpatra ka chayan hum sab ke gaurav ka vishay.
जवाब देंहटाएंडाक्टर साहेब ला गाड़ा गाड़ा बधाई, छत्तीसगढ़ हा विश्व साहित्य के अगास म जगमगावय इही कामना संग छत्तीसगढ़ के माटी ला परनाम.
जवाब देंहटाएंइस जानकारी ने गर्वानुभूति कराई है । डॉ परदेशी राम जी वर्मा को कोटिशः बधाइयाँ । ऐसे होते हैं छत्तीसगढ़ महतारी के सपूत , गर्व होता है कि हम ऐसे प्रदेश के वासी हैं । आपको को बहुत बहुत बधाइयाँ संजीव तिवारी जी । जानकारी देने के लिए धन्यवाद भाई जी ।
जवाब देंहटाएं-आशुतोष मिश्र
शानदार पोस्ट
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
बहुत बढिया!
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएं................
नाग बाबा का कारनामा।
व्यायाम और सेक्स का आपसी सम्बंध?
सुन्दर लेखन
जवाब देंहटाएं