19 जून 1871 को मध्य प्रदेश के दमोह जिले के ग्राम पथरिया में जन्में पं. माधवराव सप्रे जी का संपूर्ण जीवन अभावग्रस्त एवं संघर्षमय रहा । सन् 1874 में बालक माधवराव छत्तीसगढ के बिलासपुर में अपने पितातुल्य बडे भाई बाबूराव के पास अपने माता पिता के साथ आये और संपूर्ण छत्तीसगढ को कृतज्ञ कर दिया । इनकी प्राथमिक व माध्यमिक शिक्षा बिलासपुर एवं उच्चतर माध्यमिक शिक्षा रायपुर से हुई । पढाई में कुशाग्र बालक माधवराव को आरंभ से ही छात्रवृत्ति प्राप्त होने लगी थी ।
रायपुर में अध्ययन के दौरान पं. माधवराव सप्रे, पं. नंदलाल दुबे जी के समर्क में आये जो इनके शिक्षक थे एवं जिन्होंनें अभिज्ञान शाकुन्तलम और उत्तर रामचरित मानस का हिन्दी में अनुवाद किया था व उद्यान मालिनी नामक मौलिक ग्रंथ भी लिखा था । पं. नंदलाल दुबे नें ही पं. माधवराव सप्रे के मन में साहित्तिक अभिरूचि जगाई जिसने कालांतर में पं. माधवराव सप्रे को ‘छत्तीसगछ मित्र’ व ‘ हिन्दी केसरी’ जैसे पत्रिकाओं के संपादक के रूप में प्रतिष्ठित किया और राष्ट्र कवि माखनलाल चतुर्वेदी जी के साहित्तिक गुरू के रूप में एक अलग पहचान दिलाई ।
छत्तीसगढ में आने के बाद परिवार के द्वारा इनका दूसरा विवाह करा दिया गया जिसके कारण इनके पास पारिवारिक जिम्मेदारी बढ गइ तब इन्होंने सरकारी नौकरी किए बिना समाज व साहित्य सेवा करने के उद्देश्य को कायम रखने व भरण पोषण के लिए पेंड्रा के राजकुमार के अंग्रेजी शिक्षक के रूप में कार्य किया । समाज सुधार व हिन्दी सेवा के जजबे नें इनके मन में पत्र-पत्रिका के प्रकाशन की रूचि जगाई और मित्र वामन लाखे के सहयोग से ‘छत्तीसगढ मित्र’ मासिक पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ किया जिसकी ख्याति पूरे देश भर में फैल गई ।
मराठी भाषी होने के बावजूद इन्होंनें हिन्दी के विकास के लिए सतत कार्य किया । सन् 1905 में हिन्दी ग्रंथ प्रकाशक मंडल का गठन कर तत्कालीन विद्वानों के हिन्दी के उत्कृष्ठ रचनाओं व लेखों का प्रकाशन धारावाहिक ग्रंथमाला के रूप में आरंभ किया । इस ग्रंथमाला में पं. माधवराव सप्रे जी के मौलिक स्वदेशी आन्दोलन एवं बायकाट लेखमाला का भी प्रकाशन हुआ । बाद में इस ग्रंथमाला का प्रकाशन पुस्तकाकार रूप में हुआ, इसकी लोकप्रियता को देखते हुए अंग्रेज सरकार नें सन् 1909 में इसे प्रतिबंधित कर प्रकाशित पुस्तकों को जप्त कर लिया ।
हिन्दी ग्रंथमाला के प्रकाशन से राष्ट्रव्यापी धूम मचाने के बाद पं. माधवराव सप्रे नें लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक से अनुमति प्राप्त कर उनकी आमुख पत्रिका मराठा केसरी के अनुरूप ‘हिन्दी केसरी’ का प्रकाशन 13 अप्रैल 1907 को प्रारंभ किया । हिन्दी केसरी अपने स्वाभाविक उग्र तेवरों से प्रकाशित होता था जिसमें अंग्रेजी सरकार की दमन नीति, कालापानी, देश का दुर्देव, बम के गोले का रहस्य जैसे उत्तेजक खेख प्रकाशित होते थे फलत: 22 अगस्त 1908 में पं. माधवराव सप्रे जी गिरफ्तार कर लिये गए । तब तक सप्रे जी अपनी केन्द्रीय भूमिका में एक प्रखर पत्रकार के रूप में संपूर्ण देश में स्थापित हो चुके थे ।
इस बीच वे रायपुर में समर्थ रामदास के दास बोध, गीता रहस्य, महाभारत मीमांसा का हिन्दी अनुवाद भी किया और रायपुर में ही रह कर शिक्षा व लेखन कार्य करते रहे । साहित्य के प्रति उनकी रूचि जीवंत रही । सन् 1916 में जबलपुर के सातवें अखिल भारतीय हिन्दी सम्मेलन में उन्होंनें पहली बार देशी भाषाओं को शिक्षा का माध्यम बनाने संबंधी प्रस्ताव रखा ।
पत्र-पत्रिका प्रकाशन व संपादन की इच्छा सदैव इनके साथ रही इसी क्रम में मित्रों के अनुरोध एवं पत्रकारिता के जजबे के कारण 1919-20 में पं. माधवराव सप्रे जी जबलपुर आ गए और ‘कर्मवीर’ नामक पत्रिका का प्रकाशन आरंभ किया जिसके संपादक पं. माखन लाल चतुर्वेदी जी बनाए गए । ‘कर्मवीर’ का प्रकाशन सफल रहा और वे जबलपुर में हिन्दी साहित्य की बगिया महकाने में अपने अंमित प्रयाण 28 दिसम्बर 1971 तक अनवरत जुटे रहे । उन्होंनें देहरादून में आयोजित 15 वें अखिल भारतीय साहित्य सम्मेलन की अध्यक्षता भी की एवं अपनी प्रेरणा से जबलपुर में राष्ट्रीय हिन्दी मंदिर की स्थापना करवाई जिसके सहयोग से ‘छात्र सहोदर’, ‘तिलक’, हितकारिणी’, ‘श्री शारदा’ जैसे हिन्दी साहित्य के महत्वपूर्ण पत्रिकाओं का प्रकाशन संभव हुआ जिसका आज तक महत्व विद्यमान है ।
आज पत्रकारिता व साहित्य के ऋषि पं. माधवराव सप्रे जी की जयंती पर हम इन्हें अपनी श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं ।
संजीव तिवारी
अन्य कडियां -
पं.माधवराव सप्रे की की १३८ वीं जयंती पर राष्ट्रीय आयोजन
http://srijansamman.blogspot.com/2008/06/blog-post_10.html
http://www.dailychhattisgarh.com/today/Page%206.pdf
http://www.mediavimarsh.com/dec07-feb08/sarokar-sanjay%20dwivedi.htm
बहुत सुन्दर आलेख। धन्यवाद प्रस्तुति के लिये।
जवाब देंहटाएंआपके इस लेख को मैं महान कार्य की संज्ञा से विभूषित करता हूँ। ऐसे महापुरुषों के बारे में जानकर अत्यधिक आनन्द और ज्ञानवर्धन होता है। नमस्कार एवं सादर आभार।
जवाब देंहटाएंआभार इस आलेख का एवं परिचय करवाने का.
जवाब देंहटाएंआपका ब्लाग अब डिस्कवरी आफ़ छ्त्तीसगढ हो गया है !!धन्यवाद
जवाब देंहटाएंtiwariji,
जवाब देंहटाएंchatighariya ho. so aapka blog dekhane ka man kiya. lekh ki chori ka mamla thik nai he. kintu aapke blog ko padhana kisi kanon ka ullghan to nahi?
Manoj Kumar