महाकवि कपिलनाथ कश्यप : महाकाव्यों के रचइता

7 मार्च . जयंती पर विशेष
आज कलम पकडते ही तुरत लिखो तुरत छपो की मंशा लेकर लेखन करने वालों की फौज बढते जा रही है. किन्तु हमारे अग्रपुरूषों नें लेखन के बावजूद अपने संपूर्ण जीवन में छपास की आकांक्षा को दबाये रखा है. उन्होनें अपनी पाण्डुलिपियों को बारंबार स्वयं पढा है उसमें निर्मम संपादन किया है फिर पूर्ण संतुष्टि के बाद पाठकों तक लाया है. आज के परिवेश मे ऐसा पढ सुन कर आश्चर्य अवश्य होता है किंतु ऐसा भी होता है. हमारे प्रदेश मे हिन्दी और छत्तीसगढी भाषा में समान रूप से लेखन करने वाले एक ऐसे साहित्यानुरागी हुए है जो इसी प्रकार से बिना किसी हो हल्ला के जीवन भर सृजन करते रहे. अपने द्वारा लिखी रचनाओं के प्रकाशन के लिए उन्होंनें कभी भी स्वयं कोई पहल नहीं किया. मित्रों के अनुरोध पर उनकी कुछ पुस्तकें प्रकाशित हुई किन्तु वे उन पर चर्चा या गोष्ठी करवाने के लोभ से विमुख वीतरागी बन रचना कर्म में ही रत रहे. उस महामना का नाम था महाकवि कपिलनाथ कश्यप.
6 मार्च सन् 1906 को छत्तीसगढ के जांजगीर जिले के अकलतरा रेलवे स्टेशन के पास एक छोटे से गांव पौना में कपिलनाथ कश्यप जी का जन्म हुआ. इनके पिता श्री शोभानाथ कश्यप साधारण किसान थे. माता श्रीमती चंद्रावती बाई भी अपने पति के साथ खेतों में कार्य करती थी. बालक कपिलनाथ के जन्म के तीन वर्ष के अंतराल में ही इनके पिता स्वर्गवासी हो गए एवं पांच साल के होते होते इनकी माता भी स्वर्ग सिधार गई. कपिलनाथ कश्यप जी मेधावी थे. इनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव में और माध्यमिक शिक्षा बिलासपुर में हुई. आगे की पढाई करते हुए किशोर कपिलनाथ को गांधी जी के असहयोग आंदोलन ने प्रभावित किया. और उन्होने अपने साथियों के साथ सरकारी स्कूल का बहिस्कार कर दिया. बाद मे इस स्कूल को अंग्रेजो ने बन्द कर दिया. कपिलनाथ कश्यप जी आगे पढना चाहते थे किन्तु उनकी परिस्थिति ऐसी नहीं थी कि उच्चतर अध्ययन के लिए बाहर जा सकें. सौभाग्यवश उनके गांव के जमीदार का पुत्र कलकत्ता से पढाई बीच में ही छोडकर भाग आया था. उसके जमीदार मां बाप उसे आगे पढाना चाहते थे पर वह अकेले नहीं जाना चाहता था. फलतः कपिलनाथ कश्यप जी को अवसर मिल गया और वे उसके साथ इलाहाबाद चले गए. क्रिश्चन कालेज से सन् 1927 में उन्होंनें इंटरमीडियेट किया और सन् 1931 में प्रयाग विश्वविद्यालय से स्नातक परीक्षा पास की.
विश्वविद्यालय में अध्ययन के समय इन्हें आचार्य रामचंद्र शुक्ल, डॉ.धीरेन्द्र वर्मा, डॉ.रामकुमार वर्मा जैसे प्राध्यापकों का आशिर्वाद सदैव प्राप्त होता रहा. इलाहाबाद में अध्ययन के दौरान उन्हंद महादेवी वर्मा जी से कविता का संस्कार प्राप्त करने का अवसर भी मिला. इलाहाबाद के सृजनशील परिवेश नें उनके जीवन में गहरा प्रभाव डाला और वे कविता लिखने लगे. कश्यप जी जब इलाहाबाद में अध्ययन कर रहे थे उन्हीं दिनों उन्हें शहीद चन्‍द्रशेखर आजाद से कुछ क्षणों के लिए मिलने का सौभाग्य भी प्राप्त हुआ. कश्यप जी 27 फरवरी 1931 को अल्फ्रेड पार्क जाने के रास्ते में खडे थे तभी चंद्रशेखर आजाद जी आये और कश्यप जी को सायकल पकडाकर पैदल पार्क की ओर साथ चलने को कहा. कश्यप जी आकाशीय प्रेरणा से सायकल थाम कर पार्क की ओर उनके साथ चलते गये और उन्हें पार्क के पास छोडकर वापस आ गए. तब कश्यप जी को भान नहीं था कि उनके साथ चल रहे व्यक्ति चन्‍द्रशेखर आजाद थे.
कश्यप जी तद समय के स्नातक थे वे चाहते तो उन्हें तहसीलदार या उच्च प्रशासनिक पद पर नौकरी मिल जाती किन्तु उन्होंनें पटवारी की नौकरी को अपने लिये चुना और शहर से दूर गांवों में किसानों के बीच रह कर जीवन यापन आरंभ किया. यद्यपि उनकी प्रतिभा, लगन एवं परिश्रम के बल पर उन्हें लगातार पदोन्नति मिलती रही और वे शीध्र ही सहायक भू अभिलेख अधीक्षक हो गए.
शासकीय सेवा करते हुए कपिलनाथ कश्यप जी नें हिन्दी एवं छत्तीसगढी में लगातार लेखन किया. उनकी छत्तीसगढ़ी कृतियो मे महाकाव्य श्रीराम काव्य व श्री कृष्ण काव्य. अब तो जागो और गजरा काव्य संग्रह. कथा संग्रह मे डहर के कांटा, हीरा कुमार व डहर के फूल. एकांकी मे अंधियारी रात और नवा बिहान. निसेनी निबंध संग्रह. श्रीमद् भागवत गीता और रामचरित मानस का छत्तीसगढ मे भाषानुवाद. हिन्दी साहित्य की कृतियो मे खण्ड काव्य वैदेही बिछोह, बावरी राधा, युद्ध आमंत्रण, सुलोचना विलाप, सीता की अग्नि परीक्षा, स्वतंत्रता के अमर सेनानी, कंस कारागार और आव्हान. काव्य संग्रह मे पीयूष एवं बिखरे फूल, न्याय, भ्रांत, श्री रामचन्द्र एवं चित्रलेखा है. इनमें से तीन छत्तीसगढी और एक हिन्दी कृति ही प्रकाशित हो पाई. शेष पाण्डुलिपियां आज भी प्रकाशन के इंतजार में कपिलनाथ कश्यप जी के पुत्र गणेश प्रसाद के पास सुरक्षित हैं.
गुमनाम जिन्दगी जीना पसन्द करने वाले महाकवि कपिलनाथ कश्यप जी की लेखनी से छत्तीसगढ ज्यादा परिचित नहीं था. जैसे जैसे इनकी रचनाओं पर समीक्षकों व साहित्यकारों की नजर पडी, उनकी कृतियों को पढ कर सभी आश्चर्यचकित हो गए. साहित्यकारों नें यहां तक कहा कि कश्यप जी जैसा रचनाकार बीसवी सदी में इस अंचल में न तो हुआ है और ना ही होगा. उन पर डॉ.सत्येन्द्र कुमार कश्यप नें पीएचडी किया. डॉ.विनय कुमार पाठक जी नें कपिलनाथ कश्यप जी के संपूर्ण रचनायात्रा पर एक विस्तृत ग्रंथ ‘कपिलनाथ कश्यप : व्यक्तित्व‘ के नाम से लिखा. धीरे धीरे कपिलनाथ कश्यप जी की लेखनी पाठकों तक पहुंची और अंचल नें उन्हें महाकवि के रूप में स्वीकारा. जीवनभर निस्वार्थ भाव से साहित्य सेवा करते हुए कपिलनाथ कश्यप जी का 2 मार्च 1985 को निधन हो गया.
संजीव तिवारी
साथियों, इस आलेख में महाकवि कपिलनाथ कश्‍यप जी के संबंध में मुझसे कुछ त्रुटि हुई थी। जिसे 19 जनवरी 2018 को बेमेतरा में आयोजित छठवें छत्‍तीसगढ़ राजभाषा सम्‍मेलन में उनके परिवार के सदस्‍यों नें ध्‍यान दिलाया, मैं उनका बहुत-बहुत आभारी हूं। अनजाने में हुई भूल के लिए मैं उनसे क्षमा प्रार्थी हूं । महाकवि की जन्‍म तिथि पूर्व में 7 मार्च सन् 1909 लिखा गया गया था जो गलत था, उसे सुधार कर 6 मार्च 1906 कर दिया गया है। इसी तरह भगत सिंह संबंधी वाकये में भगत सिंह का उल्‍लेख गलत था, उसे सुधार कर चन्‍द्रशेखर आजाद कर दिया गया है। - संजीव तिवारी

3 टिप्‍पणियां:

  1. आश्चर्य नहीं कि उनपर पीएच.डी. करने वाले नाम अधिक चर्चित हुए और वे स्वयं गुमनाम रहे , जोकि स्वयं उनकी पसंद थी ! उनसे परिचय हेतु आपका आभार !

    जवाब देंहटाएं
  2. उनसे परिचय हेतु आभार !

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणियों का स्वागत है. (टिप्पणियों के प्रकाशित होने में कुछ समय लग सकता है.) -संजीव तिवारी, दुर्ग (छ.ग.)

लेबल

संजीव तिवारी की कलम घसीटी समसामयिक लेख अतिथि कलम जीवन परिचय छत्तीसगढ की सांस्कृतिक विरासत - मेरी नजरों में पुस्तकें-पत्रिकायें छत्तीसगढ़ी शब्द Chhattisgarhi Phrase Chhattisgarhi Word विनोद साव कहानी पंकज अवधिया सुनील कुमार आस्‍था परम्‍परा विश्‍वास अंध विश्‍वास गीत-गजल-कविता Bastar Naxal समसामयिक अश्विनी केशरवानी नाचा परदेशीराम वर्मा विवेकराज सिंह अरूण कुमार निगम व्यंग कोदूराम दलित रामहृदय तिवारी अंर्तकथा कुबेर पंडवानी Chandaini Gonda पीसीलाल यादव भारतीय सिनेमा के सौ वर्ष Ramchandra Deshmukh गजानन माधव मुक्तिबोध ग्रीन हण्‍ट छत्‍तीसगढ़ी छत्‍तीसगढ़ी फिल्‍म पीपली लाईव बस्‍तर ब्लाग तकनीक Android Chhattisgarhi Gazal ओंकार दास नत्‍था प्रेम साईमन ब्‍लॉगर मिलन रामेश्वर वैष्णव रायपुर साहित्य महोत्सव सरला शर्मा हबीब तनवीर Binayak Sen Dandi Yatra IPTA Love Latter Raypur Sahitya Mahotsav facebook venkatesh shukla अकलतरा अनुवाद अशोक तिवारी आभासी दुनिया आभासी यात्रा वृत्तांत कतरन कनक तिवारी कैलाश वानखेड़े खुमान लाल साव गुरतुर गोठ गूगल रीडर गोपाल मिश्र घनश्याम सिंह गुप्त चिंतलनार छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग छत्तीसगढ़ वंशी छत्‍तीसगढ़ का इतिहास छत्‍तीसगढ़ी उपन्‍यास जयप्रकाश जस गीत दुर्ग जिला हिन्दी साहित्य समिति धरोहर पं. सुन्‍दर लाल शर्मा प्रतिक्रिया प्रमोद ब्रम्‍हभट्ट फाग बिनायक सेन ब्लॉग मीट मानवाधिकार रंगशिल्‍पी रमाकान्‍त श्रीवास्‍तव राजेश सिंह राममनोहर लोहिया विजय वर्तमान विश्वरंजन वीरेन्‍द्र बहादुर सिंह वेंकटेश शुक्ल श्रीलाल शुक्‍ल संतोष झांझी सुशील भोले हिन्‍दी ब्‍लाग से कमाई Adsense Anup Ranjan Pandey Banjare Barle Bastar Band Bastar Painting CP & Berar Chhattisgarh Food Chhattisgarh Rajbhasha Aayog Chhattisgarhi Chhattisgarhi Film Daud Khan Deo Aanand Dev Baloda Dr. Narayan Bhaskar Khare Dr.Sudhir Pathak Dwarika Prasad Mishra Fida Bai Geet Ghar Dwar Google app Govind Ram Nirmalkar Hindi Input Jaiprakash Jhaduram Devangan Justice Yatindra Singh Khem Vaishnav Kondagaon Lal Kitab Latika Vaishnav Mayank verma Nai Kahani Narendra Dev Verma Pandwani Panthi Punaram Nishad R.V. Russell Rajesh Khanna Rajyageet Ravindra Ginnore Ravishankar Shukla Sabal Singh Chouhan Sarguja Sargujiha Boli Sirpur Teejan Bai Telangana Tijan Bai Vedmati Vidya Bhushan Mishra chhattisgarhi upanyas fb feedburner kapalik romancing with life sanskrit ssie अगरिया अजय तिवारी अधबीच अनिल पुसदकर अनुज शर्मा अमरेन्‍द्र नाथ त्रिपाठी अमिताभ अलबेला खत्री अली सैयद अशोक वाजपेयी अशोक सिंघई असम आईसीएस आशा शुक्‍ला ई—स्टाम्प उडि़या साहित्य उपन्‍यास एडसेंस एड्स एयरसेल कंगला मांझी कचना धुरवा कपिलनाथ कश्यप कबीर कार्टून किस्मत बाई देवार कृतिदेव कैलाश बनवासी कोयल गणेश शंकर विद्यार्थी गम्मत गांधीवाद गिरिजेश राव गिरीश पंकज गिरौदपुरी गुलशेर अहमद खॉं ‘शानी’ गोविन्‍द राम निर्मलकर घर द्वार चंदैनी गोंदा छत्‍तीसगढ़ उच्‍च न्‍यायालय छत्‍तीसगढ़ पर्यटन छत्‍तीसगढ़ राज्‍य अलंकरण छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंजन जतिन दास जन संस्‍कृति मंच जय गंगान जयंत साहू जया जादवानी जिंदल स्टील एण्ड पावर लिमिटेड जुन्‍नाडीह जे.के.लक्ष्मी सीमेंट जैत खांब टेंगनाही माता टेम्पलेट डिजाइनर ठेठरी-खुरमी ठोस अपशिष्ट् (प्रबंधन और हथालन) उप-विधियॉं डॉ. अतुल कुमार डॉ. इन्‍द्रजीत सिंह डॉ. ए. एल. श्रीवास्तव डॉ. गोरेलाल चंदेल डॉ. निर्मल साहू डॉ. राजेन्‍द्र मिश्र डॉ. विनय कुमार पाठक डॉ. श्रद्धा चंद्राकर डॉ. संजय दानी डॉ. हंसा शुक्ला डॉ.ऋतु दुबे डॉ.पी.आर. कोसरिया डॉ.राजेन्‍द्र प्रसाद डॉ.संजय अलंग तमंचा रायपुरी दंतेवाडा दलित चेतना दाउद खॉंन दारा सिंह दिनकर दीपक शर्मा देसी दारू धनश्‍याम सिंह गुप्‍त नथमल झँवर नया थियेटर नवीन जिंदल नाम निदा फ़ाज़ली नोकिया 5233 पं. माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकार परिकल्‍पना सम्‍मान पवन दीवान पाबला वर्सेस अनूप पूनम प्रशांत भूषण प्रादेशिक सम्मलेन प्रेम दिवस बलौदा बसदेवा बस्‍तर बैंड बहादुर कलारिन बहुमत सम्मान बिलासा ब्लागरों की चिंतन बैठक भरथरी भिलाई स्टील प्लांट भुनेश्वर कश्यप भूमि अर्जन भेंट-मुलाकात मकबूल फिदा हुसैन मधुबाला महाभारत महावीर अग्रवाल महुदा माटी तिहार माननीय श्री न्यायमूर्ति यतीन्द्र सिंह मीरा बाई मेधा पाटकर मोहम्मद हिदायतउल्ला योगेंद्र ठाकुर रघुवीर अग्रवाल 'पथिक' रवि श्रीवास्तव रश्मि सुन्‍दरानी राजकुमार सोनी राजमाता फुलवादेवी राजीव रंजन राजेश खन्ना राम पटवा रामधारी सिंह 'दिनकर’ राय बहादुर डॉ. हीरालाल रेखादेवी जलक्षत्री रेमिंगटन लक्ष्मण प्रसाद दुबे लाईनेक्स लाला जगदलपुरी लेह लोक साहित्‍य वामपंथ विद्याभूषण मिश्र विनोद डोंगरे वीरेन्द्र कुर्रे वीरेन्‍द्र कुमार सोनी वैरियर एल्विन शबरी शरद कोकाश शरद पुर्णिमा शहरोज़ शिरीष डामरे शिव मंदिर शुभदा मिश्र श्यामलाल चतुर्वेदी श्रद्धा थवाईत संजीत त्रिपाठी संजीव ठाकुर संतोष जैन संदीप पांडे संस्कृत संस्‍कृति संस्‍कृति विभाग सतनाम सतीश कुमार चौहान सत्‍येन्‍द्र समाजरत्न पतिराम साव सम्मान सरला दास साक्षात्‍कार सामूहिक ब्‍लॉग साहित्तिक हलचल सुभाष चंद्र बोस सुमित्रा नंदन पंत सूचक सूचना सृजन गाथा स्टाम्प शुल्क स्वच्छ भारत मिशन हंस हनुमंत नायडू हरिठाकुर हरिभूमि हास-परिहास हिन्‍दी टूल हिमांशु कुमार हिमांशु द्विवेदी हेमंत वैष्‍णव है बातों में दम

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को ...