छत्तीसगढी भाषा साहित्य के इतिहास पर नजर दौडानें मात्र से बार बार एक नाम छत्तीसगढी कविता के क्षितिज पर चमकता है. वह है छत्तीसगढी भाषा के ख्यात कवि कोदूराम दलित जी का. कोदूराम दलित जी ने छत्तीसगढी कविता को एक नया आयाम दिया और इस जन भाषा को हिन्दी कविसम्मेलन मंचो मे भी पूरे सम्मान के साथ स्थापित किया. कोदूराम जी की हास्य व्यंग्य रचनाएँ समाज के खोखले आदर्शो पर तगडा प्रहार करते हुए गुददुदाती और अन्दर तक चोट करती हुई तद समय के मंचो पर छा गयी थी.
ठेठ ग्रामीण जीवन की झलक से परिपूर्ण दलित जी की कविताये आम आदमी को सीख भी देती हैं और दीर्धकालिक प्रभाव भी छोडती हैं. वे अपनी कविताओ मे छत्तीसगढ़ी लोकोक्तियों का प्रयोग बड़े सहज और सुन्दर तरीके से करते थे. इन सबके कारण उनकी कविताओ को बार बार पढने को जी चाहता है. उनकी कविताये आज भी प्रासांगिक हैं. इस सम्बन्ध मे विस्तार से लिखने का इरादा है.
आज ही के दिन 5 मार्च सन् 1910 में छत्तीसगढ के जिला दुर्ग के टिकरी गांव में जन्मे गांधीवादी कोदूराम जी प्राइमरी स्कूल के मास्टर थे. उन्होने पहले पहल स्वांत: सुखाय कविता लिखना आरम्भ किया, उनकी धारदार कविताओ की खुशबू धीरे धीरे महकने लगी और वे कविसम्मेलन मंचो पर छा गये. उनकी अधिकम रचनाये आज भी अप्रकाशित है. जिसे उनके पुत्र श्री अरुण कुमार निगम जी ने सजो कर रखा है, श्री निगम भारतीय स्टैट बैंक जबलपुर मे सेवारत है. आज सुबह ही अरुण जी से हमारी फोन पर बात हुई और अरुण जी ने हमे हमारे पाठको के लिये आदरणीय कोदुराम "दलित" जी का फोटो ई मेल किया. आदरणीय कोदुराम "दलित" जी की प्रकाशित कविता संग्रह हैं - सियानी गोठ, कनवा समधी, अलहन, दू मितान, हमर देस, कृष्ण जन्म, बाल निबंध, कथा कहानी, छत्तीसगढ़ी शब्द भंडार अउ लोकोक्ति.
उनकी रचनाओं में से कुछ पंक्तिया हम यहा प्रस्तुत कर रहे है -
संगत सज्जन के करौ, सज्जन सुपा आय
दाना-दाना ला रखय, भूसा देय उडाय
भूंसा देय उडाय, असल दाना ला बांटय
फून-फून के कनकी, कोढा गोंटी छांटय
छोडव तुम कुसंग, बन जाहू अच्छा मनखे
सज्जन हितवा आय, करव संगत सज्जन के ।
छत्तीसगढ पैदा करय, अडबड चांउर दार
हवय लोग मन इंहा के, सिधवा अउ उदार
सिशवा अउ उदार, हवैं दिन रात कमाथें
दे दूसर ला भात, अपन मन बासी खाथें
ठगथैं ये बपुरा मन ला, बंचकमन अडबड
पिछडे हावय हमर, इही कारन छत्तीसगढ ।
ढोंगी मन माला जपैं, लम्मा तिलक लगाय
हरिजन ला छूवै नहीं, चिंगरी मछरी खाय
चिंगरी मछरी खाय, दलित मन ला दुतकारै
कुकुर बिलई ला चूमय, पावै पुचकारैं
छोंड छांड के गांधी के, सुघर रस्ता ला
भेदभाव पनपाय, जपै ढोंगी मन माला ।
मेरे संग्रह में आदरणीय कोदूराम दलित जी की कुछ और कवितायें हैं जिन्हें मैं गुरतुर गोठ में प्रस्तुत करूंगा. आज वे हमारे बीच नहीं हैं किन्तु उनकी लिखी कवितायें आज भी इस प्रदेश के बहुतेरे लोगों के जुबां पर जीवंत है. आज उनके जन्म दिवस पर हम उन्हें श्रद्धांजली अर्पित करते हैं.
संजीव तिवारी
hamari shradhdhhanjali bhi arpit hai !!
जवाब देंहटाएंहमारी ओर से भी पुण्यस्मरण !
जवाब देंहटाएंआदरणीय श्री कोदूराम जी का परिचय बहुत ही सहज व प्रभावशाली ढंग से किया है, बहुत बहुत बधाई!
जवाब देंहटाएंShree Koduraam ji se aapne hamari mulaqaat karwaai , bahut bahut aabhar...
जवाब देंहटाएंचिंगरी मछरी देइख/पईध के खाईक मन कईर गेलक ..
संजीव जी
जवाब देंहटाएंछत्तीसगढ़ के इस महान कवि के बारे आपकी जानकारी बहुत ही उपयोगी है और उनके बारे में लोग जान पाए. आपका बहुत-बहुत धन्यवाद
ऱाजेन्दर सिंह ठाकुर
आपका आभार....परिचय के लिए...पुण्य आत्मा को नमन!
जवाब देंहटाएंकोदू राम जी के कविता के परिभाषा ह अब तक के सबले सुघ्घर अउ सटीक लागथे,, जइसे मुसवा निकलथे बिल ले वइसने कविता निकलथे दिल ले,,कोदू राम जी का नमन और आपका धन्यवाद,,
जवाब देंहटाएंआदरणीय श्री कोदूराम जी का परिचय बहुत ही सहज व प्रभावशाली ढंग से किया है, बहुत बहुत बधाई!
जवाब देंहटाएंमेल से श्री पवन उपाध्याय जी की टिप्पणी
जवाब देंहटाएंवाह, धन्यवाद तिवारी जी आपने आज माटी से जुड़े कवि से परिचय कराया. दो चार पंक्तियों मे ही कोदू राम दलित जी की लेखनी की तेज धार का पता चल जाता है . मुझे ऐसा विश्वास है की आप कोदूराम जी अन्य कृतियों को भी पढ़ने का सुअवसर प्रदान करेंगे.
संजीव आज तुमने मन प्रसन्न कर दिया ( हमेशा करते ही हो ) आदरणीय कोदूराम जी का मूल्यानकन अभी होना शेष है । उन्हे अभी पढ़ा जाना है । इस देश के लोग उन्हे अभी जानते नही हैं । अरुण मेरा मित्र है मैं कई बार उससे अपनी यह तकलीफ व्यक्त कर चुका हूँ । अब उनका सम्पूर्ण साहित्य प्रकाश मे आ ही जाना चाहिये ।
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