6. हमारे विश्वास, आस्थाए और परम्पराए: कितने वैज्ञानिक, कितने अन्ध-विश्वास?
-पंकज अवधिया
इस सप्ताह का विषय
कुछ वर्षो पहले मुझे इटारसी की एक सामाजिक कार्यकर्ता ने फोन किया कि पास के एक गाँव मे नीम के पुराने वृक्ष से पानी जैसा रस टपक़ रहा है और दूर-दूर से लोग एकत्र हो रहे है। मेला जैसा लगा है। पूजा शुरु हो गयी है। कुछ लोग बर्तनो मे इस पानी को भर कर ले जा रहे है। आप वनस्पति विशेषज्ञ है इस लिये इस पर कुछ टिप्पणी कीजिये। मैने अपने वैज्ञानिक मित्रो और दूसरे विशेषज्ञो से सलाह ली तो अपने-अपने विषय के आधार पर सबने अपने-अपने ढंग़ से इसकी व्याख्या की। पर सभी ने अपने जीवन मे यह घटना देखी थी। मैने अपने डेटाबेस का अध्ययन किया तो उससे भी रोचक जानकारी मिली। प्राचीन चिकित्सा प्रणालियो मे इसका वर्णन मिला।
प्राचीन सन्दर्भ साहित्यो के अनुसार इसे ‘नीम का मद’ कहते है। यह लिखा गया है कि जिस तरह मदमस्त हाथी के मस्तक से मद निकलता है उसी तरह नीम से भी मद निकलता है पर यह कभी-कभी ही होता है। इस रस को त्वचा रोगो के लिये उपयोगी बताया गया है। बहुत से आयुर्वेदिक नुस्खो मे इस मद का उल्लेख मिलता है। देश के पारम्परिक चिकित्सक इस मद का आँतरिक प्रयोग भी करते है। मैने अपने वानस्पतिक सर्वेक्षण के आधार पर इस बात का दस्तावेजीकरण किया है कि कैंसर की चिकित्सा मे अन्य औषधीयो के साथ नीम के मद का बाहरी और आँतरिक प्रयोग होता है। घावो को धोने के लिये यह उपयोगी है।
आम लोगो विशेषकर अधिक उम्र वाले लोगो के पास इस विषय मे बहुत जानकारी है। चूँकि ऐसा कम ही होता है इसलिये नीम से पानी टपकने की बात सुनकर लोग उस ओर दौड पडते है। नीम वैसे ही हमारे जीवन से परिवार के सदस्य जैसे जुडा हुआ है। इटारसी के फोन के जवाब मे मैने यह जानकारी भेजी और कहा कि यदि इस घटना का लाभ उठाकर यदि कोई आम लोगो को लूट रहा है तो उसे हतोत्साहित करे। यदि आम लोग इसे ले जा रहे है और नीम की पूजा कर रहे है तो यह निज आस्था है उसे जारी रहने दे। यह भी कहा कि शहर के वैज्ञानिको को वहाँ ले जाये और विस्तार से अनुसन्धान करने का यह अवसर न छोडे। यदि सम्भव हो तो आधुनिक विज्ञान की कसौटी मे भी इस पारम्परिक ज्ञान को परखने प्रयोग कर ले। जिससे देश भर मे इस घटना की व्याख्या की जा सके। बाद मे उन्होने काफी जानकारी भेजी।
यही जानकारी छत्तीसगढ के बिलासपुर शहर मे जब वैसी ही घटना हुयी तो काम आयी। मैने हिन्दी और अंग्रेजी मे दसो लेख लिखे और देश भर मे प्रकाशित किये ताकि नयी पीढी इसकी व्याख्या कर सके। अब देश भर से पत्र आते है जिससे पता चलता है कि पूरे देश मे यह होता ही रहता है। तो क्या यह चमत्कार है? जब तक चमत्कार की व्याख्या न हो तब तक ऐसी घटनाओ को चमत्कार ही माना जाता है। यद्यपि हम नीम के मद के विषय मे बहुत कुछ जानते है फिर भी उन कारणो की पहचान जरुरी है जो इस प्रक्रिया के लिये उत्तरदायी है। अभी विशेषज्ञो का कार्य समाप्त नही हुआ।
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पंकज अवधियाजी,
जवाब देंहटाएंआप नयी पीढी के लिये जिस प्रकार ज्ञान का भंडार तैयार कर रहे हैं उसके लिये नयी पीढी सदैव कृतज्ञ रहेगी । आपके लेख पढकर लगता है कि हिन्दी ब्लाग जगत में इस प्रकार के सार्थक लेखन की बहुत आवश्यकता है । मैं आपके लगभग सभी लेख पढता हूँ ।
मैने भी इस मद के बारे में बहुत पहले यूं ही सुना था। आपने पुष्टि कर दी।
जवाब देंहटाएंनीम की उपयोगिता तो सर्व व्यापक है। आप जैसे तो शायद उस पर लेख माला ही नहीं, मोटी पुस्तक लिख सकें।
मैं ने नीम मद एकाधिक बार झरते देखा है। पहले लोग इसे सामान्य प्रक्रिया के रूप में लेते थे। अब पूजा करना एक धन्धा बन गया है। वह कहीं भी होने लगती है। नीम मद है काम की चीज।
जवाब देंहटाएंह्म्म, बढ़िया जानकारी, शुक्रिया॰
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