इस लेख का कोई वैज्ञानिक आधार नही है यह पूर्णतया मान्यताओं पर आधारित है जो व्यक्ति ज्योतिष, पराशक्ति आदि में विश्वास रखता है उनके लिये हम इसे प्रस्तुत कर रहे हैं ।
विश्व के प्राय: हर देश में रत्नों के लिए स्वाभविक आकर्षण प्रारंभ से रहा है । रत्नों के लुभावने रंग व आभा समूचे संसार का मन भावन रहा है । रत्नों का प्रयोग आभूषणों के लिए प्राचीन काल में होता था किन्तु ज्योतिषीय मतों के अनुसार उसमें निहित दैवीय प्रभाव नें मनुष्य को उसके प्रति आकर्षण को और बढा दिया है । इसी के कारण आजकल १०० में से ८० व्यक्तियों के हांथों की उंगलियों में रत्नजडित अंगूठियों को देखा जा सकता है ।
ज्योतिष के सिद्धांतों पर यदि हम विश्वास करें तो रत्नों का प्रभाव मनुष्य के जीवन में पडता है । रत्न मनुष्य को उसके जन्म कालिक ग्रहों की स्थितियों एवं वर्तमान काल की ग्रहीय स्थितियों के अनुसार फल देते हैं । विवादों के बाद भी यह माना जा रहा है कि रत्नों के धारण करने मात्र से समयानुसार आने वाली मनुष्य की परेशानिया कम या समाप्त हो जाती है । इसी के कारण व्यावसायिक ज्योतिषियों के खजाने भरते जा रहे हैं । रत्नों के प्रति हमारे रूझान में वृद्धि प्रतिस्पर्धा, बीमारी, वैवाहिक कलह व असंतोष के कारण ही बढा है ।
मनुष्य को कब कौन सा रत्न धारण करना चाहिए इसके संबंध में ज्योतिष में सिद्धांतत: दो आधार माने गये हैं एवं उन्हे मान्यता भी प्राप्त है जिसमें से सर्वप्रथम आधार कुण्डली है, कुण्डली तात्कालिक ग्रहों की स्थिति को बताने का एक साधन है, ज्योतिष कुण्डली के ग्रहों की स्थिति के अनुसार पहले जातक की परेशानियों का अनुमान लगाता है फिर वह परेशानी किस ग्रह से संबंधित है यह भी अनुमान लगााता है एवं अनुभव के आधार पर व्यक्ति को रत्न धारण करनें का सुझाव देता है । दूसरा आधार - हांथों में ग्रहों की स्थितियों का अघ्ययन कर रत्नों का चयन किया जाता है ।
अभी तक इन्ही दो आधारों के दवारा रत्नों का सुझाव दिया जाता रहा है किन्तु हमें विगत दिनों एक चौकाने वाली जानकारी हांथ लगी जिसमें रत्नों के चयन की एक नयी पद्धति के संबंध में पता चला । हम आपके समक्ष उसकी जानकारी रखना चाहते हैं । यथा -
छत्तीसगढ के लौह नगरी दुर्ग-भिलाई के एक प्रतिष्ठित व्यवसायी एवं एक भव्य शापिंग माल के मालिक हैं नरेन्द्र कुमार जी अग्रवाल । इनके पास रत्न चयन के संबंध में एक अनोखा ज्ञान है जो ईश्वर प्रदत्त है । अग्रवाल जी यह कार्य स्वांत: सुखाय रूप से करते हैं यह कार्य उनका व्यवसाय नही है, वे जिसे रत्न धारण करना हो उसके हांथों के उपर मोली धागे में पेडुलम की तरह लटकते रूद्राक्ष के दवारा व्यक्ति को किस रत्न की आवश्यकता है यह बतलाते हैं । अग्रवाल जी इस पद्धति को रूद्राक्ष प्रयोग कहते हैं जो उन्हे दैवीय रूप से प्राप्त है एवं हजारों व्यक्तियों के दवारा इसका परीक्षण प्रयोग किया जा चुका है जिसमें वे सफल हुए हैं । इस बात की सत्यता की जानकारी उनके कार्यालय के विजिटर्स बुक में लिखे विभिन्न व्यक्तियों की टिप्पणियों में देखा जा सकता है जिसमें देश से ही नही विदेशों के रहवासियों के संदेश लिखे हुए हैं एवं उनके दवारा भेजे गये पत्र भी उसमें लगे हैं ।
अग्रवाल जी हांथों के उपर रूद्राक्ष को घुमातें हैं एवं विभिन्न प्रकार के रत्नों को बारी बारी से उंगलियों के उपर रखते हैं जिसमें पंेडुलम रूद्राक्ष में तीन स्थितियां निर्मित होती है जो रत्न धारण का आधार होता हैं । पहली स्थिति रूद्राक्ष का क्लाक वाईज घूमना जो बतलाता है कि उक्त रत्न व्यक्ति के लिये उचित है । दूसरी स्थिति एंटी क्लाक वाईज घूमना जो यह बतलाता है कि वह रत्न उस व्यक्ति के लिए अनुचित है । तीसरी स्थिति पेंडुलम की स्थिति होती है जो यह बतलाता हैं कि उक्त रत्न व्यक्ति को कोई खास प्रभाव नही डालेगा । अग्रवाल जी हंथेली के अलग अलग जगह में अलग अलग आवश्यकताओं के अनुसार रूद्राक्ष प्रयोग करते हैं । यहां इस बात पे आश्चर्य होता है कि बिना कुण्डली देखे इनके द्धारा धारण करवाया गया रत्न ज्योतिषीय गणना के अनुसार भी सौ प्रतिशत फिट बैठता है । यह प्रयोग उनके लिए तो वरदान साबित हो सकता है जिनके पास अपनी जन्म कुण्डली नही है जबकि जिनके पास कुण्डली है पर अशुद्ध गणना के अनुसार वह सही नही है ।
अग्रवाल जी नें हमें चर्चा के दौरान यह भी बतलाया कि उन्होंनें कई व्यक्तियों को उनके दवारा पहने गये महंगे रत्नों को उतरवा कर हल्दी के गांठ व तांबें के अंगूठी पहनवा कर भारी से भारी संकट को टलवा दिया है । उनका मानना है कि रोगग्रस्तता का महत्वपूर्ण कारण अज्ञानता एवं विलासिता के लिए हीरे एवं अन्य मंहगे व इमिटेशन आभूषणों को बिना जाने समझे पहनना है । उनका कहना है कि प्रत्येक रत्न मनुष्य के जीवन को अच्छा या बुरा प्रभाव देता है चाहे वह रत्न हो, उप रत्न हो या रंगीला पत्थर । इसलिए कोई भी रत्न पहनने के पहले उसे अपने उपर आजमा लेना चाहिए फिर उसे पहनना चाहिए ।
अग्रवाल जी रत्नों के चयन एवं धारण करने के लिए जो प्रक्रिया अपनाते हैं वह दिखने में सामान्य सा प्रतीत होता है पर उनके दवारा बताये गये रत्नों को ज्योतिषीय आधार पर बार बार परीक्षण किया गया है और वह पूर्णत: खरा उतरा है ।
ज्योतिष के अनुसार रत्नों के चयन में जो मूलभूत प्रक्रिया अपनाई जाती है उस पर मैं संक्षिप्त में प्रकाश डालना चाहता हूं । ज्योतिषियों की भाषा में तीन तरह के रत्नों का उल्लेख प्रमुखत: होता है और ज्योतिषियों के द्धारा मुख्यत: किसी व्यक्ति को इन्ही आधार पर रत्न धारण करने की सलाह देता है -
जीवन रत्न - यह मनुष्य के लग्न भाव के आधार पर तय किया जाता है ज्योतिषियों की मान्यता है कि इस रत्न का धारण मनुष्य अपने जीवन पर्यंत कर सकता है । जीवन रत्न मनुष्य के व्यक्तित्व को निखारता है एवं उसके जीवन को प्रभावशाली व स्वस्थ रखता है ।
भाग्य रत्न - इसके चयन का आधार भाग्य भाव या नवम स्थान होता है यह मनुष्य के सामयिक विकास में कर्म के साथ मिलकर सफलता की संभावनाओं में वृद्धि करता है यानी यदि आप अपने भाग्य को प्रभावशाली बनाना चाहते हैं अपने चिंतन के अनुरूप करना चाहते हैं तो भाग्य रत्न को घारण किया जा सकता है ।
दशानुसार रत्न - उपरोक्त दोनों सामान्य स्थितियों के रत्न चयन का आधार जन्म कुण्डली होता है ।
दशानुसार रत्न का चयन वर्तमान परिस्थितियों में इच्छत फल प्राप्ति के लिए जन्मगत एवं गोचरगत ग्रहीय स्थितियों के अनुसार रत्न का चयन किया जाता है ।
उपरोक्त आधारों पर जन्म कुण्डली के परीक्षण में यदि संपूर्ण गणना एवं सिद्धांतों को ध्यान में नही रखा गया एवं भावगत राशियों एवं भाव में बैठे ग्रहों के आधार पर रत्न धारण करवा दिया जाय तो ग्रहों की दृष्टि, कारक भाव, कारक ग्रह, गोचर गत ग्रह कई बार भावगत राशि व ग्रह को इस कदर प्रभावित करते हैं कि जीवन रत्न मारक प्रभाव देने लगता है ऐसी स्थितियां मनुष्य को ज्योतिष से विमुख करती है एवं ज्योतिष इससे बदनाम होता है ।
अग्रवाल जी से चर्चा के दौरान हमें यह तो भरोसा हो चला कि उनके पास ज्योतिष के इस कठिन एवं नाजुक सिद्धांत में नव या अर्ध ज्ञानियों के द्धारा यदि कोई गलत सलाह दे दिया जाता है तो उनके दवारा रूद्राक्ष परीक्षण से स्थिति स्पष्ट हो जाती है ।
नरेन्द्र कुमार अग्रवाल जी से रूद्राक्ष परीक्षण के उपरांत संतुष्ट व्यक्तियों की लिस्ट में अलग अलग क्षेत्र व अलग अलग व्यवसाय से संबंधित लोग हैं जिसमें से कई ज्योतिष भी हैं । हमें उनके पास से अमेंरिका में निवासरत एक अनिवासीय भारतीय का ई मेल पता भी प्राप्त हुआ है जिसे हम यहां पर दे रहे हैं साथ ही अग्रवाल जी का पता एवं फोन नम्बर भी दे रहे हैं जिससे कि आप स्वयं उनसे उपनी जिज्ञाशाओं का उत्तर प्राप्त कर सकते हैं ।
Mr. Gaurang K., Sanfrancisco, USA . Mail : grkhetan@yahoo.com
श्री नरेन्द्र कुमार अग्रवाल, राधा किसन माल, स्टेशन रोड, सिटी क्लब के सामने, दुर्ग छत्तीसगढ
फोन : ०७८८ २२११६२५, ४०१०७२३
विश्व के प्राय: हर देश में रत्नों के लिए स्वाभविक आकर्षण प्रारंभ से रहा है । रत्नों के लुभावने रंग व आभा समूचे संसार का मन भावन रहा है । रत्नों का प्रयोग आभूषणों के लिए प्राचीन काल में होता था किन्तु ज्योतिषीय मतों के अनुसार उसमें निहित दैवीय प्रभाव नें मनुष्य को उसके प्रति आकर्षण को और बढा दिया है । इसी के कारण आजकल १०० में से ८० व्यक्तियों के हांथों की उंगलियों में रत्नजडित अंगूठियों को देखा जा सकता है ।
ज्योतिष के सिद्धांतों पर यदि हम विश्वास करें तो रत्नों का प्रभाव मनुष्य के जीवन में पडता है । रत्न मनुष्य को उसके जन्म कालिक ग्रहों की स्थितियों एवं वर्तमान काल की ग्रहीय स्थितियों के अनुसार फल देते हैं । विवादों के बाद भी यह माना जा रहा है कि रत्नों के धारण करने मात्र से समयानुसार आने वाली मनुष्य की परेशानिया कम या समाप्त हो जाती है । इसी के कारण व्यावसायिक ज्योतिषियों के खजाने भरते जा रहे हैं । रत्नों के प्रति हमारे रूझान में वृद्धि प्रतिस्पर्धा, बीमारी, वैवाहिक कलह व असंतोष के कारण ही बढा है ।
मनुष्य को कब कौन सा रत्न धारण करना चाहिए इसके संबंध में ज्योतिष में सिद्धांतत: दो आधार माने गये हैं एवं उन्हे मान्यता भी प्राप्त है जिसमें से सर्वप्रथम आधार कुण्डली है, कुण्डली तात्कालिक ग्रहों की स्थिति को बताने का एक साधन है, ज्योतिष कुण्डली के ग्रहों की स्थिति के अनुसार पहले जातक की परेशानियों का अनुमान लगाता है फिर वह परेशानी किस ग्रह से संबंधित है यह भी अनुमान लगााता है एवं अनुभव के आधार पर व्यक्ति को रत्न धारण करनें का सुझाव देता है । दूसरा आधार - हांथों में ग्रहों की स्थितियों का अघ्ययन कर रत्नों का चयन किया जाता है ।
अभी तक इन्ही दो आधारों के दवारा रत्नों का सुझाव दिया जाता रहा है किन्तु हमें विगत दिनों एक चौकाने वाली जानकारी हांथ लगी जिसमें रत्नों के चयन की एक नयी पद्धति के संबंध में पता चला । हम आपके समक्ष उसकी जानकारी रखना चाहते हैं । यथा -
छत्तीसगढ के लौह नगरी दुर्ग-भिलाई के एक प्रतिष्ठित व्यवसायी एवं एक भव्य शापिंग माल के मालिक हैं नरेन्द्र कुमार जी अग्रवाल । इनके पास रत्न चयन के संबंध में एक अनोखा ज्ञान है जो ईश्वर प्रदत्त है । अग्रवाल जी यह कार्य स्वांत: सुखाय रूप से करते हैं यह कार्य उनका व्यवसाय नही है, वे जिसे रत्न धारण करना हो उसके हांथों के उपर मोली धागे में पेडुलम की तरह लटकते रूद्राक्ष के दवारा व्यक्ति को किस रत्न की आवश्यकता है यह बतलाते हैं । अग्रवाल जी इस पद्धति को रूद्राक्ष प्रयोग कहते हैं जो उन्हे दैवीय रूप से प्राप्त है एवं हजारों व्यक्तियों के दवारा इसका परीक्षण प्रयोग किया जा चुका है जिसमें वे सफल हुए हैं । इस बात की सत्यता की जानकारी उनके कार्यालय के विजिटर्स बुक में लिखे विभिन्न व्यक्तियों की टिप्पणियों में देखा जा सकता है जिसमें देश से ही नही विदेशों के रहवासियों के संदेश लिखे हुए हैं एवं उनके दवारा भेजे गये पत्र भी उसमें लगे हैं ।
अग्रवाल जी हांथों के उपर रूद्राक्ष को घुमातें हैं एवं विभिन्न प्रकार के रत्नों को बारी बारी से उंगलियों के उपर रखते हैं जिसमें पंेडुलम रूद्राक्ष में तीन स्थितियां निर्मित होती है जो रत्न धारण का आधार होता हैं । पहली स्थिति रूद्राक्ष का क्लाक वाईज घूमना जो बतलाता है कि उक्त रत्न व्यक्ति के लिये उचित है । दूसरी स्थिति एंटी क्लाक वाईज घूमना जो यह बतलाता है कि वह रत्न उस व्यक्ति के लिए अनुचित है । तीसरी स्थिति पेंडुलम की स्थिति होती है जो यह बतलाता हैं कि उक्त रत्न व्यक्ति को कोई खास प्रभाव नही डालेगा । अग्रवाल जी हंथेली के अलग अलग जगह में अलग अलग आवश्यकताओं के अनुसार रूद्राक्ष प्रयोग करते हैं । यहां इस बात पे आश्चर्य होता है कि बिना कुण्डली देखे इनके द्धारा धारण करवाया गया रत्न ज्योतिषीय गणना के अनुसार भी सौ प्रतिशत फिट बैठता है । यह प्रयोग उनके लिए तो वरदान साबित हो सकता है जिनके पास अपनी जन्म कुण्डली नही है जबकि जिनके पास कुण्डली है पर अशुद्ध गणना के अनुसार वह सही नही है ।
अग्रवाल जी नें हमें चर्चा के दौरान यह भी बतलाया कि उन्होंनें कई व्यक्तियों को उनके दवारा पहने गये महंगे रत्नों को उतरवा कर हल्दी के गांठ व तांबें के अंगूठी पहनवा कर भारी से भारी संकट को टलवा दिया है । उनका मानना है कि रोगग्रस्तता का महत्वपूर्ण कारण अज्ञानता एवं विलासिता के लिए हीरे एवं अन्य मंहगे व इमिटेशन आभूषणों को बिना जाने समझे पहनना है । उनका कहना है कि प्रत्येक रत्न मनुष्य के जीवन को अच्छा या बुरा प्रभाव देता है चाहे वह रत्न हो, उप रत्न हो या रंगीला पत्थर । इसलिए कोई भी रत्न पहनने के पहले उसे अपने उपर आजमा लेना चाहिए फिर उसे पहनना चाहिए ।
अग्रवाल जी रत्नों के चयन एवं धारण करने के लिए जो प्रक्रिया अपनाते हैं वह दिखने में सामान्य सा प्रतीत होता है पर उनके दवारा बताये गये रत्नों को ज्योतिषीय आधार पर बार बार परीक्षण किया गया है और वह पूर्णत: खरा उतरा है ।
ज्योतिष के अनुसार रत्नों के चयन में जो मूलभूत प्रक्रिया अपनाई जाती है उस पर मैं संक्षिप्त में प्रकाश डालना चाहता हूं । ज्योतिषियों की भाषा में तीन तरह के रत्नों का उल्लेख प्रमुखत: होता है और ज्योतिषियों के द्धारा मुख्यत: किसी व्यक्ति को इन्ही आधार पर रत्न धारण करने की सलाह देता है -
जीवन रत्न - यह मनुष्य के लग्न भाव के आधार पर तय किया जाता है ज्योतिषियों की मान्यता है कि इस रत्न का धारण मनुष्य अपने जीवन पर्यंत कर सकता है । जीवन रत्न मनुष्य के व्यक्तित्व को निखारता है एवं उसके जीवन को प्रभावशाली व स्वस्थ रखता है ।
भाग्य रत्न - इसके चयन का आधार भाग्य भाव या नवम स्थान होता है यह मनुष्य के सामयिक विकास में कर्म के साथ मिलकर सफलता की संभावनाओं में वृद्धि करता है यानी यदि आप अपने भाग्य को प्रभावशाली बनाना चाहते हैं अपने चिंतन के अनुरूप करना चाहते हैं तो भाग्य रत्न को घारण किया जा सकता है ।
दशानुसार रत्न - उपरोक्त दोनों सामान्य स्थितियों के रत्न चयन का आधार जन्म कुण्डली होता है ।
दशानुसार रत्न का चयन वर्तमान परिस्थितियों में इच्छत फल प्राप्ति के लिए जन्मगत एवं गोचरगत ग्रहीय स्थितियों के अनुसार रत्न का चयन किया जाता है ।
उपरोक्त आधारों पर जन्म कुण्डली के परीक्षण में यदि संपूर्ण गणना एवं सिद्धांतों को ध्यान में नही रखा गया एवं भावगत राशियों एवं भाव में बैठे ग्रहों के आधार पर रत्न धारण करवा दिया जाय तो ग्रहों की दृष्टि, कारक भाव, कारक ग्रह, गोचर गत ग्रह कई बार भावगत राशि व ग्रह को इस कदर प्रभावित करते हैं कि जीवन रत्न मारक प्रभाव देने लगता है ऐसी स्थितियां मनुष्य को ज्योतिष से विमुख करती है एवं ज्योतिष इससे बदनाम होता है ।
अग्रवाल जी से चर्चा के दौरान हमें यह तो भरोसा हो चला कि उनके पास ज्योतिष के इस कठिन एवं नाजुक सिद्धांत में नव या अर्ध ज्ञानियों के द्धारा यदि कोई गलत सलाह दे दिया जाता है तो उनके दवारा रूद्राक्ष परीक्षण से स्थिति स्पष्ट हो जाती है ।
नरेन्द्र कुमार अग्रवाल जी से रूद्राक्ष परीक्षण के उपरांत संतुष्ट व्यक्तियों की लिस्ट में अलग अलग क्षेत्र व अलग अलग व्यवसाय से संबंधित लोग हैं जिसमें से कई ज्योतिष भी हैं । हमें उनके पास से अमेंरिका में निवासरत एक अनिवासीय भारतीय का ई मेल पता भी प्राप्त हुआ है जिसे हम यहां पर दे रहे हैं साथ ही अग्रवाल जी का पता एवं फोन नम्बर भी दे रहे हैं जिससे कि आप स्वयं उनसे उपनी जिज्ञाशाओं का उत्तर प्राप्त कर सकते हैं ।
Mr. Gaurang K., Sanfrancisco, USA . Mail : grkhetan@yahoo.com
श्री नरेन्द्र कुमार अग्रवाल, राधा किसन माल, स्टेशन रोड, सिटी क्लब के सामने, दुर्ग छत्तीसगढ
फोन : ०७८८ २२११६२५, ४०१०७२३
आपने स्वयं देखा है तो हम इसे अद्भुत ही कहेंगे।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया यह जानकारी यहां उपलब्ध करवानें के लिए।नरेन्द्र कुमार जी को शुभकामनाएं
आपने इस लेख की शुरूआत में बहुत अच्छी बात कही है
जवाब देंहटाएं"इस लेख का कोई वैज्ञानिक आधार नही है"
मैं भी आपका समर्थन करता हूं कि इस लेख का कोई आधार नहीं है
संजीव जी आपने बहुत अच्छी जानकारी दी है,..वैसे मुझे ज्योतिष में विश्वास है,..यधपि इसका कोई वैज्ञानिक आधार नही है ।
जवाब देंहटाएंफ़िर भी ज्योतिष को झुठलाया भी नही जा सकता।
सुनीता(शानू)
I will now narrate one interesting incident that happenned on my last trip to India. It was a fascinating encounter with the power of stones..
जवाब देंहटाएंI live in the US -- I have been looking to marry for a year now, and I had made a few trips to India for this purpose, but it had not been working out.
This time I had again gone to India on Feb with matrimonial intent. I was going to meet a girl on Feb 10, 2007, and before that I incidentally met Mr Narendra Kumar Agarwal (from Durg, Madhya Pradesh) in Bhubhaneshwar in Orissa. It was beleived that he had abilities to decipher for any person the stones which can help him do better in his life. I requested him to test me so that it could help me in my matrimonial process for which progress had stalled. He obliged, and tested me with his procedure using Rudraksh etc, and told me that my "Guru" planet was anti -- so he recommended me to keep "Panna" stone with me in addition to the "Neelam" stone I was already wearing. He told me that without even reading my Kundali! He gave me the Panna stone to keep with me.
I met the girl as planned on Feb 10, 2007. Our meeting did not work out, and I was doubtful about our prospects. I talked with Mr Narendra Agarwal on phone again, and then remembered that I had forgotten to take the Panna stone. Fortunately, the girl's father called my father, and they arranged another meeting the next day. This time I remembered to take the stone with me in my pocket. The meeting went really well, and we both agreed to our marriage! This was so wonderful after so many of my attempts at meeting girls had not worked out in the past!
The marriage has now happenned already, and it went really well, and me and my wife are happily living together.
I tend to think that the stone had a significant, almost magical, effect on this event. I am glad that I met Narendra Agarwal and used his testing method.. it brought about a very nice turn in my life.. I hope he keeps using his ability to help and enrich other people's lives like he did mine.
- Gaurang Khetan, San Francisco, California, USA (http://gaurang.org/blog)