अधिवक्‍ता संघ की मासिक बुलेटिन अब हिन्‍दी ब्‍लाग में

हिन्‍दी की बढती लोकप्रियता व इंटरनेट की सर्वसुलभता को देखते हुए प्रिंट मीडिया का रूझान अब आनलाईन प्रकाशन की ओर बढ रहा है । विगत दिनों छत्‍तीसगढ अधिवक्‍ता संध की एक इकाई दुर्ग अधिवक्‍ता संध नें विधि विषयों पर केन्द्रित एक मासिक बुलेटिन के प्रकाशन का निर्णय लिया जिससे कि सदस्‍यों से नियमित संपर्क भी बना रहे एवं विधिक गतिविधियों से सदस्‍य परिचित भी होते रहें । इस बुलेटिन के लिए जब अधिवक्‍ताओं से लेख आदि आमंत्रित किये जा रहे थे तब मैंनें ‘विधि एवं सूचना क्रांति’ शीर्षक से एक लेख इस बुलेटिन हेतु प्रेषित किया, संपादकों से चर्चा के दौरान पता चला कि उन्‍हें ब्‍लाग के संबंध में सामान्‍य जानकारी है और वे कुछ ब्‍लागों से परिचित भी हैं इसलिये उन्‍होंनें इस बुलेटिन को ब्‍लाग के माध्‍यम से आनलाईन करने का सुझाव दिया, हमने संघ को सहायता प्रदान की और इस बुलेटिन का एक ब्‍लाग बना दिया ।


मुझे तब बहुत खुशी हुई जब इस पत्र के पिंट प्रति के विमोचन समारोह के लिए निर्धारित तिथि दिनांक 29 जुलाई 2008 को जिला न्यायालय परिसर में स्थित संघ के ग्रंथालय में इस ब्‍लाग को भी समारोहपूर्वक जारी किया गया और दुर्ग अधिवक्‍ता संघ के लगभग 3000 पंजीकृत अधिवक्‍ताओं में से भारी संख्‍या में उपस्थित अधिवक्‍ताओं, साहित्‍यकारों व गणमान्‍य अतिथियों के सम्‍मुख राज्‍य के जलसंसाधन मंत्री हेमचंद यादव जी नें 'अभिभाषक वाणी' के आनलाईन ब्लाग संस्करण के ‘विजिबल टू एवरीवन’ बटन को क्लिक कर जारी किया ।


विमोचन अवसर पर कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री हेमचंद यादव, मंत्री जल संसाधन, आयकट, परिवहन एव श्रम विभाग, छ.ग. शासन थे एवं अध्यक्षता श्री रंगनाथ चंद्राकर, जिला एवं सत्र न्यायाधीश, दुर्ग नें किया इस कार्यक्रम के विशिष्ठ अतिथि श्री ए.के. निमोनकर, प्रधान न्यायाधीश, कुटुम्ब न्यायालय, दुर्ग व श्री विवेक रंजन तिवारी, अध्यक्ष छ.ग.अधिवक्ता परिषद व श्री रावलमल जैन 'मणि' समाजसेवा एवं साहित्यकार थे ।


इस अवसर पर 'अभिभाषक वाणी' परिवार नें सामूहिक रूप से विधि के क्षेत्र में उत्कृष्ट ब्लाग तीसरा खम्बा एवं अदालत का अवलोकन भी किया एवं विधि संबंधी हिन्दी ब्लागों को देखकर प्रसन्नता भी जाहिर की । ब्‍लाग के टिप्‍पणियों को देखकर अभिभाषक वाणी संपादक मंडल नें 'अभिभाषक वाणी' में किये गये टिप्‍पणियों एवं सुझावों को आगामी प्रिंट अंक में पाठक के पत्रों के रूप में स्‍थान देने एवं सुझावों के अनुरूप बुलेटिन को पाठकानुकूल बनाने का भी निर्णय लिया है ।


मैं हिन्‍दी ब्‍लाग के सुखद भविष्‍य को देखते हुए इस समाचार को आप सबों के बीच बांटना चाहता हूं, आपसे अनुरोध है कि दुर्ग अधिवक्‍ता संघ के नियमित ब्‍लाग व प्रिंट माध्‍यमों से बुलेटिन प्रकाशन के निर्णय पर संपादक मंडल का साहस बढायें ।


(कार्यक्रम के फोटो अभी उपलब्‍ध नहीं हैं जैसे ही उपलब्‍ध होंगें यहां लगाउंगा)

लेख चोरों से अपने ब्‍लाग को बचायें

पिछले कई पोस्टों में आपने पढा होगा कि फलां ब्लागर्स की कविता फलां नें कापी कर अपने ब्लाग में पोस्ट किया या फलां नें ब्लाग पोस्ट को कापी कर फलां पत्रिका में अपने नाम से छपवा लिया ।

हम अपने जुगाडू तंत्र से कई दिनों से इसका हल ढूढने में लगे थे, हमारे मित्रों नें बतलाया था कि एचटीएमएल में कापी प्रोटेक्ट करने के भी कोड होते हैं, पर वह हमें मिल नहीं रहा था पिछले दिनों हमें नेट सर्च में इसके दर्शन हो गये और हमने इसका प्रयोग प्रथमत: अपने ही ब्लाग पर किया । इस कोड को स्थापित करने के बाद पोस्ट टेक्स्ट में कर्सर कापी कमांड को स्वीकार करने के लिए सलेक्ट ही नहीं होता जिससे टेक्स्ट कापी ही नहीं हो पाता और हमारा लेख कापी के पेस्ट के सहारे चोरी नहीं हो पायेगा ।

यदि आप भी इसे आजमाना चाहते हैं तो हम इसे क्रमिक रूप से आपके लिये प्रस्‍तुत कर रहे हैं :-

1 . ब्लागर्स में लागईन होंवें - लेआउट - एडिट एचटीएमएल

2. सुरक्षा के लिहाज से संपूर्ण डाउनलोड टैम्पलेट से डाटा सहेज लेवें ।

3. एचटीएमएल बाक्स में नीचे चित्र में दिये गये कोड को खोजें -
4. उस कोड को हटाकर नीचे चित्र में दिये गये संपूर्ण कोड को टाईप कर देवें ।

5. टेम्पलेट सेव करें और अपना ब्लाग देखें, टेक्स्ट कापी बैन हो गया है ।




संजीव तिवारी

कहां है घर ? : कहानी

उसने टीन शेड से बने अस्थाई शौचालय के लटकते दरवाजे को भेडकर अंदर प्रवेश किया । चूंउउउव करता हुआ दरवाजा खुला, चिखला से अपने पैर को बचाते हुए उसने दरवाजे में कुंडी लगाई और आगे बढी । शौचालय में मद्धिम रौशनी की बल्ब जल रही थी । टीन सेड को जोड जोड कर बनाये गए अस्थाई शौचालय के जोड से बाहर का दृश्य दिख रहा था । बाहर तार के बाड के इस पार सर्चलाईट की रौशनी छाई हुई थी । दो बंदूकधारी रेत के बोरों में दबे छिपे थे, उसने जोड के छेद में आंखें सटा दी, दो वर्दीवाले में से एक जोहन था ।


जोहन नें जेब से सितार जर्दे का पाउच निकाला और उसे मुह में उडेल लिया, साथी वर्दीवाला उससे कुछ बात कर रहा था । टीन शेड के जोड में सटी आंखें जोहन पर टिकी थी । शौचालय के दरवाजे में दस्तक हुई । ‘अरे जल्दी निकल गोई, सुत गेस का ?’ खिलखिलाती आवाज नें उसकी तंद्रा भंग कर दी । उसने कुंडी खोला और अपने मिट्टी निर्मित टीन शेड से ढकें ठिकाने में चली गई । लगभग आठ बाई पांच के उस संदूकनुमा घर में जमीन पर उसके बाबू, दाई और दो छोटे भाई सोये थे । बाजू में ही ईंटो से बना चूल्हा एवं जूठे बर्तन को तिरियाकर रखा गया था । उसने घर का फइरका बंद किया और छोटे भाई के चिरकट चद्दर को खींचकर उसके अंदर घुस गई । आंखों में जोहन का लम्बां तगडा वर्दी वाला रूप छा गया जिसे उसने अभी अभी देखा था । वह देर तक स्वप्नों में, डोंगरी पहाडों में जोहन के साथ करमा नाचती रही और सो गई ।


सबह उठकर उसने बर्तन साफ किये, रात के बचे आधा बंगुनिया पानी में नहाया और सार्वजनिक नल पांईट से जर्मन के बडे भगोनें में लड-झगड कर खिसियाते हुए पानी लाई ‘सरकार हर बोरिंग कोडा के लडई बढावत हे, बने रहे मोर सेंदर नदिया दई कोनों रोके न टोंके, ससन भर तंउर अउ दस बेर धौड के हौंला हौला पानी ल भर डर ।‘ बडबडाते हुए चूल्हे में लकडी जलाकर पसिया पकाने लगी ।


कुछ माह पहले ही वह अपने परिवार के साथ इस कैम्प में आई थी, अपने हंसते-खिलखिलाते तरूणाई को गांव में ही छोड कर । यहां आकर उसकी कुछ उम्र में बडी लडकियां सलेही बन गई थी जो आस पास के ही गांव के थे । अब जब वे चूल्हा चौंका से मुक्त होतीं तो कहीं एक जगह मिल बैठते और फुसफुसाहट के साथ किसी किसी सहेली के लाल होते मुख मंडल से हंसी फूटती फिर सब समवेत खिलखिलाने लगते । करमा और ददरिया के बंद फूट पडते । सहेलियां छेडछाड से लेकर नरवा में युवा मित्र के साथ आंख मिचौली के अनुभवों को बताती तो उसके पूरे शरीर में झुरझुरी फैल जाती । किशोरावस्था पर ग्रामीण बालाओं में चढती जवानी की कहानियां सभी को मदमस्त कर देती ।


दिन में उसके दाई बाबू जंगल जाते और चार चिरौंजी, हर्रा बहेरा, इकट्ठा कर घर लाते । खाखी वर्दी वाले दिन भर कैम्प में गस्त करते, तार के कांटों से घिरे स्वस्फूर्त ? बंधन में परदेशी वर्दीवालों से बचकर रहने की हिदायत दे किशोर व जवान लडकियों की मांए दहशत के बावजूद चेहरे पर सरकार के दिये आवश्य‍क रूप से लगाए जाने वाले मुस्कान को चिपकाये रहतीं ।


उसका मन होता कि पल्ला दौंड कर डोंगरी में चढ जाये या किसी विशाल महुआ के वृक्ष के थिलिंग में चढकर दूर दूर तक फैले जंगल में टेढी-मेढी रेखाओं सी नजर आती सडक पर चींटी जैसे रेंगते इक्का दुक्का वाहनों को घंटों निहारे । पर अब वह बडी हो गई है, दाई उसे बार बार समझाती है ‘अक्केल्ला् मत निंगे कर ।‘ वर्दी में जोहन को देखकर उसका मन भंवरा नाचने लगता था, अब वह जवान हो गई है ।


जोहन जंगल इलाके का था वह हल्बी व छत्तीसगढी में बोलना जानता था इस कारण कैम्प के सभी लोगों से वह प्रतिदिन पांव-पैलगी करते रहता था । वनवासी अपने बीच के ‘साहेब’ की आत्मियता से अपनी जमीन छोडने का दुख बिसराने का प्रयास करते । युवा जोहन स्टेनगन थामें पूरे कैम्प में चौकडी भरते रहता । कैम्प के सभी युवा लडकियों का वह हीरो था ।


उस रात को भी उसके आंखों में जोहन छाया था वैसे ही लाईट गुल हो गई, सन्नाटा मीलों तक पसरा था । वर्दीवालों की आवाजें तेज हो गई फिर जनरेटर चलने की आवाज के साथ सर्चलाईट पुन: चमकने लगे । ‘ठांय ।‘ की आवाज नें उंघते वर्दीवालों को चौंका दिया, उन्हेंर कुछ समझ में आता तब तक पूरे सर्चलाईट गोली से उड चुके थे । अंधेरे में भगदड मच गई । दादा लोगों की टोली कैम्प् में घुस आई थी । चीख-पुकार, गालियों के संग गोलियों के आदान प्रदान और आर्तनाद से वह सिहर उठी । अपने भाई को अपने छाती में छिपाकर चद्दर में अपने पूरे शरीर को ढांप कर चुरू-मुरू दुबक गई । घंटो तक बाहर का माहौल वैसे ही बना रहा, उसकी बंद आंखें बाहर के दृश्यों को आवाजों से महसूस करती रही । दहशत में नींद हवा हो गई थी, दाई-बाबू भी जाग गए थे पर सभी अनजान बने दुबके थे ।


सुबह धीरे-धीरे हिम्मत करते हुए लोग अपने अपने घरों से बाहर निकलने लगे । बाहर का दृश्य देखकर सभी का टट्टी सटक गया । अपने परिजनों का जला व गोलियों से बिंधा लाश देख कर करेजा कांप गया । मौत का भय यहां भी ताण्डव करता नजर आया ।


दो-तीन दिन खुसुर-फुसुर के बाद दाई बाबू कैम्प से महुआ बीनने निकलकर बाहर दूर सडक में उसका और बच्चों का इंतजार करने लगे । वह बच्चों को घुमाने के बहाने कैंम्प से टसक गई और इंतजार करते दाई बाबू के पास पहुचकर कैम्प को दूर से प्रणाम किया जैसा उसने कैम्प् में आने के पहले अपने गांव के बूढा देव को किया था । ‘जीव रही त कहूं कमा खा लेबो नोनी के दाई ।‘ बाबू के शव्दे नें मौत के भय से सुकुरदुम हुए पूरे परिवार को बल दिया और वे सडक पर आ रही बस को रोककर उसमें चढ गए । कहां जाना है यह बाबू भी तय नहीं कर पाये थे, अभी तो यहां से निकलना जरूरी था । एक शहर फिर दूसरा शहर फिर ........ इन पांच जिन्दगियों नें कई कई शहरों को पार कर, कंटेनरों में भरा कर आसाम के बर्मा से सटे एक गांव तक का सफर तय किया ।


यहां नदी किनारे चार पांच चिमनी वाले ईंट भट्ठे में बहुतायत छत्तीसगढिया मजदूर थे । दाई बाबू नें ईंट भट्ठे के खोला में जब अपना मोटरा रखा तब उनके आंखों में खुशी को झांकती हुई वह झाडू उठा कर कमरे में झाडू लगाने लगी । नदी किनारे फैले जंगल अपने से लग रहे थे, आजू बाजू के लोग भी अस्सीं कोस नव बासा में भी अपने थे । चिंता और भय झाडू के चलते ही दूर आसमान में उड चला ।


अब वह भी दाई बाबू के साथ भट्ठे में काम करने लगी । बाबू नें रास्ते में उसे बताया था कि उस दिन और लोगों के साथ जोहन की भी मौत हो गई थी । अब उसे रात में जोहन के सपने नहीं आते, सभी सहेलियां छूट गई । यहां आकर वह कुछ गुमसुम सी हो गई है । उसका खिलता यौवन ठहर सा गया है, अल्लडता जब्बं हो गई है, परिपक्वता छा गई है ।


एक साथ बीस ईंट को सिर में लेकर गहरे भट्ठे से जब वह निकलती तब दूर से उसके संपूर्ण शरीर को गिद्ध की तरह निहारते मुंशी को वह कनखिंयों से देखती और एक हाथ में साडी के पल्लू को पकड कर अपने ढपे स्तनों को और ढापती । कभी कभी वर्दी वाले लोगों का दल भट्ठे पर आता और मजदूरों की ओर हाथ दिखा कर मुंशी से कुछ फुस-फुसाता फिर चला जाता । यह दल वैसे ही शक्ल सूरत के होते जैसे उसने अपने गांव और कैम्प के वर्दीवालों का देखा था । उसने एक अधेड छत्तीसगढी महिला से शंका से पूछा ‘नागा पुलिस अउ मिजो पुलिस ?  का इंहों दादा मन के राज हे ?’ ‘ नहीं नोनी, का लिट्टे क उल्‍फा कहिथे दाई, दादा ये येमन इंहा के फेर हमन ला कुछू नि करे ।‘ अधेड महिला नें बताया था । उसके मन में पुन: भय का प्रवेश हो जाता है पर वह अपने लोगों से बात कर आश्वस्थ हो जाती है ।


कुछ माह ऐसे ही चलता रहा, एक दिन वर्दीवालों का फरमान मुंशी नें पढ सुनाया जिसका सार यह था कि यह जमीन उनकी है यहां कोई दूसरे प्रदेश का आदमी नहीं रह सकता, पांच दिन के अंदर अपने घर भाग जाओ नहीं तो गोली से उडा देंगें । बाजू भट्ठे के एक बुजुर्ग मजदूर नें दाई बाबू को शाम को आकर समझाया ‘भाग जाना ठीक हे बाबू, इंहा बात कहत बंदूक चलथे, परदेश के सोंहारी ले तो अपन घर के पेज पसिया बने ।‘ वह यहां की परिस्थिति से तो वाकिफ नहीं थी पर वह ऐलान का मतलब समझती थी, फरमान की ताकत जानती थी । कहां जायेंगें वे, कहां है उनका घर ?


छत्तीसगढ पर लिखी गई मोटी मोटी किताबों को एयरवेज के विमान से लाकर मैं डिब्रूगढ के सितारा होटल में बैठकर छत्तीसगढ की आदिवासी अस्मिता पर एक बडा लेख लिखने में मशगुल हूं, मेरे सुपरवाईजर नें मुझे उनसे परिचय कराया है, वे लगभग 25 किलोमीटर पैदल चल कर शहर आये हैं । पेट्रोलियम प्रोडक्ट के मेरे कंपनी के टैंकरों की खेप सुल्फा से लेनदेन के बाद आज छत्तीसगढ के लिए रवाना होने वाली है पर वे पांचों अपने मोटरा के पास बैठे हैं मेरे आग्रह पर भी किसी भी ट्रक में सवार नहीं हो रहे हैं, शाम हो रही है और मुझे भी आज ही परिवार सहित आसाम छोड देना है ।
(यह कहानी, परिस्थितियां और इसके पात्र पूर्णतया काल्‍पनिक हैं )

संजीव तिवारी

भू.पू.राष्‍ट्रपति श्री डॉ.ए.पी.जे.अब्‍दुल कलाम नें जारी किया कार्टून चित्र

कार्टून आज संचार के लिए बेहद लोकप्रिय माध्‍यम बन गया है । कार्टून के माध्‍यम से बहुत सारी चीजों को बताया और समझाया जा सकता है । आज इसका इस्‍तेमाल शिक्षा, बच्‍चों को जागरूक करने और नये संदेश देने के लिए एक रोचक ढंग से किया जा रहा है ।


इसी परिपेक्ष्‍य में जनसंपर्क एवं कारपोरेट कम्‍यूनिकेशन पर केन्द्रित देश की एकमात्र ई-पत्रिका ई-ज्‍वाईन के संपादक एवं प्राईम टाईम पाइंट पब्लिक रिलेशन प्राईवेट लिमिटेड एवं प्राईम टाईम फाउंडेशन के अध्‍यक्ष व मुख्‍य प्रशासनिक अधिकारी श्री के.श्रीनिवासन की पहल और मार्गदर्शन पर छत्‍तीसगढ, रायपुर के कार्टूनिस्‍ट एवं कार्टून वॉच पत्रिका के संपादक श्री त्र्यंबक शर्मा नें जनसंपर्क कार्टून चरित्र (पी आर कार्टून करेक्‍टर) प्रिंस तैयार किया है । इसे भारत के पूर्व राष्‍ट्रपति श्री डॉ.ए.पी.जे.अब्‍दुल कलाम नें विगत दिनों चेन्‍नई में जारी किया । इस अवसर पर डॉ. कलाम पी आर करैक्‍ब्‍र तैयार करने के लिए श्री के.श्रीनिवासन एवं श्री त्र्यंबक शर्मा को बधाई एवं शुभकामनायें दीं और उन्‍होंनें कार्टून करैक्‍टर पर अपने हस्‍ताक्षर भी किए ।


उल्‍लेखनीय है कि जनसंपर्क के क्षेत्र में किये जाने वाले नए नए प्रयोग और नई सोंच को केन्द्रित कर यह कार्टून तैयार किया गया है, इसके माध्‍यम से जनसंपर्क और कारपोरेट कम्‍यूनिकेशन के क्षेत्र में सरल हास्‍य के माध्‍यम से सूचनाएं एवं संदेश दिये जा सकेंगें । इस कार्टून कैरेक्‍टर का नामकरण के लिए देशभर के जनसंपर्क एवं कारपोरेट कम्‍यूनिकेशन प्रोफेशनल्‍स से सुझाव मांगे गये थे, लगभग 100 नामों के बीच प्रिंस नाम पर सहमति बन पाई ।


यह कार्टून करैक्‍टर अगस्‍त 2008 की ई-जाईन पत्रिका में पहली बार दिखाई देगा जिसमें प्रिंस पूर्व राष्‍ट्रपति से आर्शिवाद ले रहे हैं ।

भाई त्र्यंबक शर्मा को हमारी भी शुभकामनायें ।

छत्तीसगढ़ी संस्कृति, साहित्य एवं लोककला की आरूग पत्रिका अगासदिया - 30 : ब्‍लाग संस्‍करण

छत्तीसगढ़ी संस्कृति, साहित्य एवं लोककला की आरूग पत्रिका

वर्ष - 1, अंक -2, अप्रैल - जून - 2008

अगासदिया- अव्यवसायिक, त्रैमासिक

अंधकार से लड़कर में जो भी जहां जिया,

उसके लिए सदैव प्रकाशित रहा अगासदिया

छत्तीसगढ़ राजनीति के चाणक्य श्रद्धेय दाऊ वासुदेव चन्द्राकर के व्यक्तित्व पर केन्द्रित

मुद्रक : यूनिक, पंचमुखी हनुमान मंदिर के पीछे, मठपारा, दुर्ग (छ.ग.) ०७८८-२३२८६०५


वेब प्रकाशन : संजीव तिवारी


अनुक्रमणिका


1. सात संस्मरण

2. भूपेश की जीत का रहस्य : डॉ. परदेशीराम वर्मा
3. जीवन वृत्त - वासुदेव चंद्राकर
4. नेलशन कलागृह और सियान संरक्षक दाऊ वासुदेव चंद्राकर
5. मूर्तिकार जे.एम. नेल्सन के गांधी और मेरी मुसीबत
6. प्रथम डॉ. खूबचन्द बघेल अगासदिया सम्मान से विभूषित
7. दाऊ वासुदेव चन्द्राकर, अमृत सम्मान परिशिष्ट

8. कल के लिये : रवि श्रीवास्तव
9. काँग्रेस के नैष्ठिक सिपाही श्री वासुदेव चन्द्राकर : राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल
10. दाऊजी जैसे छत्तीसगढ़ महतारी के सपूत सदा अभिनंदित होंगे : पवन दीवान
11. वासुदेव चंद्राकर - भूपेश बघेल : साक्षात्कारकर्त्ता- महेश वर्मा
12. सतत् सक्रियता ने दाऊ जी को महत्वपूर्ण बनाया - ताराचंद साहू
13. भाषा की जीत सुनिश्चित है छत्तीसगढ़ी से बना छत्तीसगढ़ राज्य : पवन दीवान
14. दुर्लभ छत्तीसगढ़िया किसान नेता हमारे दौर के चाणक्य : वासुदेव चन्द्राकर
15. सागर रुप वासुदेव चन्द्राकर : जमुना प्रसाद कसार
16. धरती पुत्रों के पक्षधर - वासुदेव चन्द्राकर : हेमचन्द यादव
17. छत्तीसगढ़ राजनीति के चाणक्य श्रद्धेय दाऊ वासुदेव चन्द्राकर के व्यक्तित्व पर
18. अंचल के चर्चित हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. एम.पी. चन्द्राकर से बातचीत

19. साक्षी समय के : वासुदेव चन्द्राकर - भास्कर में प्रकाशित पूर्व साक्षात्कार
20. वासुदेव जी की प्रशासनिक क्षमता : हरिशंकर उजाला
21. होई हैं सोई जो राम रचि राखा दाऊ वासुदेव चन्द्राकर जी की जीवनी : रामप्यारा पारकर
22. अगासदिया के हरि ठाकुर अंक हेतु दाऊ वासुदेव चंद्राकर का साक्षात्कार
23. दाऊ वासुदेव चंद्राकर के यशस्वी शिष्य श्री भूपेश बघेल
24. छत्तीसगढ़ का बदलता तेवर और नारायण चंद्राकर की यह कृति
25. सूरता - करमयोगी संत चन्दूलाल चंद्राकर जी : नारायण चंद्राकर
26. परदेशीराम वर्मा द्वारा लिखा गया चंदूलाल चंद्राकर का अंतिम साक्षात्कार
27. भुइंया की महिमा के मुग्ध गायक - नारायण प्रसाद चंद्राकर

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स्वाधीनता संग्राम सेनानी स्‍व.श्री मोतीलाल त्रिपाठी

छत्तीसगढ के अग्रणी स्वतंत्रता सग्राम सेनानियों में स्व . श्री मोतीलाल त्रिपाठी जी का नाम सम्मान से लिया जाता है, इन्होंनें जहां स्वतंत्रता आन्दोलन के समय में गांधीवादी विचारधारा को जन जन तक पहुचाया वहीं स्व्तंत्रता प्राप्ति के बाद सामाजिक क्रांति लाने बेहतर समाज के निर्माण में उल्लेखनीय योगदान दिया आज कृतज्ञ छत्तीसगढ श्री त्रिपाठी जी के 85वीं जयंती पर उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करता है


स्व. श्री मोतीलाल त्रिपाठी जी का जन्म 24 जुलाई 1923 को छत्ती‍सगढ के एक छोटे से ग्राम धमनी में हुआ । इनके पिता स्व . श्री प्यारेलाल त्रिपाठी सन् 1930 के स्वतंत्रता आंन्दोलन में पं.सुन्दरलाल शर्मा व नंदकुमार दानी जी के साथ अपनी सक्रिय भूमिका निभा रहे थे । बालक मोतीलाल उस अवधि में अपनी प्राथमिक शिक्षा ग्राम पलारी में ले रहे थे तभी गांधी जी के स्वागत का अवसर इन्हें प्राप्त हो गया था । प्राथमिक शिक्षा के बाद माता श्रीमति जामाबाई त्रिपाठी एवं स्वतंत्रता संग्राम के कर्मठ सिपाही पिता प्यारेलाल का संस्कार लिये बालक मोतीलाल हाईस्कूल की शिक्षा लेने सेंटपाल हाईस्कूल रायपुर आ गए । इस अवधि में इनके पिता छत्तीसगढ के स्वाधीनता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभा रहे थे जिसके कारण किशोर मोतीलाल के मन में भी देश के लिए कुछ कर गुजरने का जजबा धीरे धीरे जागृत होने लगा था


पिता के राहों में चलते हुए मोतीलाल जी के हृदय में गांधी जी के दर्शन के बाद से सुसुप्त देश प्रेम की चिंगारी 1936 में फूट कर बाहर आ निकली जब 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाने का आहवान पं.नेहरू और सरदार पटेल नें किया और युवा छात्रों के दल का नेतृत्व् करते हुए युवा मातीलाल नें रायपुर के गलियों में शानदार जुलूस लिकाला । अपनी कुशल नेतृत्व क्षमता से श्री त्रिपाठी जी युवाओं के दिलों पर छा गए । इसके बाद से गांधी जी के सत्याग्रह का झंडा इन्होंनें थाम लिया । सन् 1939 के प्रथम विश्वयुद्ध के समय अंग्रेजों द्वारा युद्ध में सहयोग करने के आहवान को गांधी जी नें ठुकरा दिया और मोतीलाल जी नें गांधी जी के इस विरोध को पूरे छत्तीगसगढ में फैलाने के लिए पैदल यात्रायें की और उनका संदेश जन जन में पहुचाया इस पदयात्रा के कारण छत्तीसगढ में आंदोलन को संगठनात्मक स्वरूप प्राप्त हुआ ।


देश में 11 फरवरी 1941 को गांधी जी द्वारा सत्याग्रह आंदोलन आरंभ कर दिया गया, इस आंदोलन के छत्तीसगढ में नेतृत्व के लिए एकमात्र कर्मठ सत्यायग्रही युवा मोतीलाल को चुना गया । सत्याग्रह आंदोलन का नेतृत्व सम्हालने के बाद मोतीलाल जी नें अपने नेटवर्क को फैलाते हुए छत्तीसगढ में इस आंदोलन का अलख गांव गांव में जगा दिया । हजारों की संख्या में सत्याग्रहियों का हुजूम अंग्रेजी हूकूमत के खिलाफ मौन प्रदर्शन करने लगे, फलत: इनके साथियों के साथ इन्हें अंग्रेजी सरकार के द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया और 2 अप्रैल 1941 को नागपुर जेल भेज दिया गया । 5 दिसम्बर 1941 को गांधी जी एवं अंग्रेजों के मध्य हुए एक समझौते के तहत् राजनैतिक बंदियों को आजाद कर दिया गया तब मोतीलाल जी भी नागपुर से रायपुर वापस आकर सत्याग्रह एवं स्वदेशी आंदोलन व खादी के प्रचार प्रसार में जुट गए । कुछ दिन रायपुर में रह कर वे खादी वस्त्र भंडार नरसिंहपुर चले गए और खादी की सेवा देश सेवा की भांति करने लगे

9 अगस्त 1942 को भारत छोडो आंदोलन की रण भेरी बजने लगी, स्वातंत्रता संग्राम सेनानी अंग्रेजों को भारत से उखाड फेंकने के लिए जगह जगह रैली व सत्याग्रह करने लगे । स्वाभाविक तौर पर त्रिपाठी जी का देश प्रेम नरसिंहपुर में भी अंग्रेजों के आंखों में खटकने लगा और उन्हें गिरफ्तार करने का फरमान जारी कर दिया गया । इस गिरफ्तारी से बचने एवं भारत छोडो आंदोलन को हवा देने के उद्देश्य से वे फरारी में रायपुर आ गए । रायपुर में रह कर वे देश प्रेम, खादी प्रसार व भारत छोडो आंदोलन संबंधी अपनी वैचारिक अभिव्यक्ति को परचा लिख लिख कर परचे के माध्याम से जनता तक पहुचाने लगे । 26 जनवरी सन् 1943 को वे रायपुर में परचा बांटते हुए पकड लिये गये और इन्हें छ: माह की सजा हुई, इन्हें बिलासपुर जेल भेज दिया गया जहां से वे 14 जुलाई 1943 को छूटे


खादी एवं गांधी को अपना सर्वस्वा मान चुके श्री त्रिपाठी जी स्वतंत्रता प्राप्ति तक एवं उसके बाद भी रायपुर के विचारकों के अग्र पंक्ति में रहकर गांधी जी की विचारधारा को पुष्पित व पल्ल्वित करते रहे । स्वतंत्रता प्राप्त के बाद इनकी नेतृत्व क्षमता व सहृदयता के कारण ये स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का नेतृत्व छत्तीसगढ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी संगठन के महामंत्री के रूप में करते रहे और उनके सुख दुख में सदैव साथ रहे । साहित्तिक प्रतिभा इनमें आरंभ से ही थी जिसके कारण वे प्रदेश के साहित्तिक आयोजनों में जीवन पर्यन्तत सहभागी बनते रहे । इनकी लेखन क्षमता नें तत्कालीन प्रदेश के एकमात्र समाचार पत्र ‘महाकोशल’ के सह संपादक के पद को गरिमामय रूप में सुशोभित भी किया और इन्होंनें पत्रकारिता के माध्यम से जनता के प्रति अपने कर्तव्यों को बखूबी निभाया । गांधी जी की सत्य, अहिंसा, कुष्ठ सेवा व खादी के ध्वज वाहक व सच्चे् अर्थों में मानवतावादी स्व. श्री मोतीलाल त्रिपाठी जी को हमारा प्रणाम ।


(स्व. श्री मोतीलाल त्रिपाठी जी हमारे हिन्दी ब्लागर साथी संजीत त्रिपाठी, आवारा बंजारा के पिता थे । संजीत जी नें स्‍वयं अपने एक पोस्ट में उनको श्रद्धासुमन अर्पित किया है देखें - यहां)


संजीव तिवारी

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छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को ...