जय, बमलेश्वरी मैया, नैना, प्रेम सुमन, राजा छत्तीसगढि़या, दबंग दरोगा, बंधना प्रीत के, माटी के दिया, भाई-बहिनी एक अटूट बंधन, भक्त मां करमा सहित अनेकों छत्तीसगढ़ी, भोजपुरी एवं हिन्दी फिल्मों में अभिनय करने वाले विनायक अग्रवाल को कौन नहीं जानता। इन्होंनें नाट्य, टी.वी.सीरियल, डाकुमेंट्री, फीचर फिल्म सहित प्रदर्शनकारी कलाओं के क्षेत्र में अद्भुत एवं विशद कार्य किया। दूरदर्शन रायपुर में इन्होंनें पद्मश्री सुरेन्द्र दुबे लिखित 'बिहान', डॉ.परदेशीराम वर्मा लिखित 'भूमि पुत्र' एवं 'नाचा एक विकास यात्रा' टीवी धारावाहिक के डायरेक्टर एवं प्रोड्यूसर रहे।
विनायक जी जब कॉलेज में बी.कॉम फाइनल सत्र 1974-1975 के विद्यार्थी थे। उसी समय कालेज के स्नेह सम्मेलन मे पहली बार उन्होंनें नाटक में अभिनय किया। इसके संबंध में बताते हुए वे कहते हैं कि 'मुझे स्टेज फियर था।' इसके बावजूद उन्होंनें उस नाटक में अभिनय किया। उस नाटक का नाम था 'खून कितना सुर्ख है', यह बंगला देश की आज़ादी पर आधारित था। इसके डाइरेक्टर रामकृष्ण चौबे थे। विनायक जी नें चौबे जी को नाटक में छोटा रोल के देनें के लिए कहा, उन्होने महत्वपूर्ण रोल दिया। इस नाटक को एवं विनायक जी के अभिनय को प्रसंशा तो खूब मिली किन्तु किसी कारणवश उस नाटक को आउट ऑफ कॉंपिटेशन कर दिया गया। इस अनुभव को याद करते हुए विनायक अग्रवाल जी कहते हैं कि 'उस पहले प्रदर्शन के समय की तालियो की गड़गड़ाहट कानों मे आज भी गूँजती है। नाट्य के क्षेत्र में मुझे लाने वाले रामकृष्ण चौबे मेंरे प्रथम नाट्य गुरू हुए। और उसी दिन से मैं अपना जीवन नाटक के लिए समर्पित कर दिया, मेरी रंगमंच की यात्रा शुरू हो गयी। उन्हीं दिनो सन् 1976 मे श्री राम हृदय तिवारी जी ने क्षितिज रंग शिविर दुर्ग की स्थापना की थी।'
क्षितिज रंग शिविर की यात्रा के संबंध में वे बताते हैं कि, 'राम हृदय तिवारी जी इस बैनर से पहला नाटक 'अंधेरे के उस पार' का रिहर्सल उस समय के भिलाई दुर्ग के कलाकारो को लेकर तिलक प्राइमरी स्कूल, दुर्ग मे कर रहे थे। मैं अपने नाट्य गुरु चौबे जी के साथ रिहर्सल देखने जाया करता था और कलाकार की अनुपस्थिति में उस रोल की नकल किया करता था। ऐसा महीनो चला और अंततः जब कलाकार नहीं आए तब उस ड्रामा का मैं प्रॉंप्टर से हीरो हो गया। उसमें हीरोईन छत्तीसगढ़ की मशहूर लोक गायिका ममता चंद्राकार हुई। इस नाटक का शो बीएसपी ड्रामा कॉंपिटेशन मे सन् 1977 को हुआ। इस तरह मैं क्षितिज़ रंग शिविर दुर्ग के साथ जुड़ कर शुरू मे तिवारी जी के साथ फिर संतोष जैन के साथ और फिर मैं खुद अपने डाइरेक्शन मे मंचीय और नुक्कड़ नाटकों की यात्रा लगभग 40 वर्षो तक जारी रखा।'
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इसकी भी प्रस्तुति के पूर्व की कहानी भी बड़ी रोचक और संघर्ष पूर्ण थी। इस नाटक के लिए कोई हॉल नहीं मिलने की वजह से राजेद्र पार्क दुर्ग मे, खुले आकाश के नीचे रिहर्शल करते थे। कुछ दिन हिन्दी भवन के सामने खुली जगह मे रिहर्शल करना पड़ा फिर कुछ वर्षो तक महावीर जैन स्कूल मे शुरू मे प्रति दिन 10/- के दर से रिहर्शल की अनुमति मिली। बाद मे मदन जैन जी ने काफ़ी वर्षो तक नि:शुल्क रिहर्शल की सुविधा दी। उनके बाद दूसरे लोगो ने रिहर्शल की अनुमति ही नही दी। अंततः हमे स्थाई रूप से कौशल यादव, यूनियन लीडर के सहयोग से कस्तूरबा बाल मंदिर दुर्ग मे निशुल्क रिहर्शल की सुविधा मिली। इस प्रकार से आर्थिक, मानसिक एवं शारीरिक रूप से लहू लुहान होते हुए हमनें अपनी रंग यात्रा जारी रखी। इसके बदले में लोगो का बहुत प्यार मिला सम्मानित भी हुए और दुर्ग नगर वासियों को 26 जनवरी, 15 अगस्त का इंतजार होने लगा क्योकि लगभग 25 वर्षों तक हम इन तिथियो पे नुक्कड़ नाटक खेलते रहे।'
'श्री राम हृदय तिवारी जी के क्षितिज रंग शिविर दुर्ग की स्थापना काल से ही मैं उनके साथ रहा। तिवारी जी के निर्देशन मे क्षितिज के बैंनर से लगभग 6-7 वर्षों तक नुक्कड़ एवं मंचीय नाटकों का सिलसिला जारी रहा। उनके निर्देशन मे पेंसन, भविष्य, मुर्गीवाला, झड़ीराम सर्वहारा, विरोध, घर कहां है, हम क्यों नहीं गाते, अरण्य गाथा, राजा जिंदा है, सभी नाटको के राइटर प्रेम सायमन थे। इन नाटकों का मंचीय एवं नुक्कड़ प्रस्तुतिया दुर्ग, भिलाई, राजनांदगांव, रायपुर मे इन 6-7 वर्षों मे किया गया। इन प्रस्तुतियों में प्रोडक्शन से लेकर प्रस्तुति तक मेरा लीड रोल रहा।'
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30 वर्षें से अनवरत नाट्य के क्षेत्र में कार्य रहे विनायक अग्रवाल में गजब की उर्जा आज भी विद्यमान है। आप एम.कॉम, एलएल.बी. तक शिक्षा प्राप्त किया हैं। आप स्टैट बैंक में नौकरी करते थे एवं वर्तमान में दुर्ग जिला न्यायालय में अधिवक्ता हैं।
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आपकी टिप्पणियों का स्वागत है. (टिप्पणियों के प्रकाशित होने में कुछ समय लग सकता है.) -संजीव तिवारी, दुर्ग (छ.ग.)