विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों
छत्तीसगढ़ की नग्नता शुरू से प्रदर्शन की वस्तु रही है। बस्तर में बस्तर बालाओं की नग्नता देखने के लिए अंग्रेज पुरुष उतावले होते थे वही अंग्रेज महिलाएं छत्तीसगढ़ के पुरुष की नग्नता देखने के लिए भी उतावली रही है। स्वतंत्रता के पूर्व रायपुर जेल में ऐसा वाकया घटित हुआ है।
दुर्ग के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी नरसिंह प्रसाद अग्रवाल जी उस समय स्वतंत्रता आंदोलन के चलते रायपुर जेल में निरुद्ध थे। कैदियों को अंग्रेजो के द्वारा सुविधा नहीं दिया जाता था, 1 किलो दाल में 25-30 किलो पानी मिलाकर परोसा जाता था, शिकायत सुनी नहीं जाती थी। नरसिंह प्रसाद अग्रवाल जी ने भी शिकायत किया किंतु जेल प्रबंधन ने नहीं माना।
नरसिंह प्रसाद अग्रवाल जी ने विरोध का एक नया तरीका अपनाया, उन्होंने जेल में अपना समस्त वस्त्र उतार दिया और दिगंबर हो गए। उन्होंने कहा कि जब तक यह व्यवस्था नहीं सुधर जाती, मैं कपड़ा नहीं पहनूंगा। नागपुर में पदस्थ पुलिस महानिरीक्षक मिस्टर मरु को जब इसकी जानकारी मिली तब उस अंग्रेज अफसर की पत्नी ने इस विचित्र हिंदुस्तानी को देखने की इच्छा प्रकट की।
पति ने टाला तो पत्नी जिद करने लगी, अंग्रेज पति अपनी पत्नी को लेकर नागपुर से रायपुर पहुंचे। कैदी को उनके सामने पेश किया गया।
मुझे लगता है कि उनके सामने भौतिक रूप से छत्तीसगढ़ भले नंगा खड़ा था किन्तु अंग्रेजों ने स्वयं अपनी नग्नता का दर्शन किया होगा। मरु दम्पत्ति के आदेश से मामला सुलझा और नरसिंह प्रसाद अग्रवाल जी को खादी के कपड़े दिए गए।
-संजीव तिवारी
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
आपकी टिप्पणियों का स्वागत है. (टिप्पणियों के प्रकाशित होने में कुछ समय लग सकता है.) -संजीव तिवारी, दुर्ग (छ.ग.)