छत्तीसगढ़ी लोक कथा

छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस के दिन छत्तीसगढ़ी लोकभाषा मंच के कार्यक्रम में वरिष्ठ लोककलाकार और संस्कृतिधर्मी राकेश तिवारी ने बहुत रोचक छत्तीसगढ़ी लोककथा सुनाया। इसे उनकी दादी ने उन्हें सुनाया था। जो लोग इस लोककथा को उनके मुख से, रोचक अंदाज में सुन नहीं पाए हैं उनके लिए हम उसे प्रस्तुत कर रहे हैं-

एक गाँव मे एक भड्डरी और भड्डरिन दम्पत्ति रहते थे। वे बहुत गरीब थे और भिक्षा मांगकर अपना जीवन यापन करते थे। भड्डरिन गर्भवती थी, उसे एक दिन डूमर फल खाने का शौक हुआ। वह अपने पति से बोली कि मुझे डूमर का फल खाना है, तब उसके पति ने कहा कि मैं गांव में भिक्षा मांगने के लिए जा ही रहा हूं, तुम भी मेरे साथ चलो, रास्ते में जो डूमर का पेड़ है उसमें से तुम डूमर तोड़ कर खा लेना। मैं भिक्षाटन के लिए आगे चले जाऊंगा और वापस आकर फिर हम साथ अपने घर वापस आ जाएंगे।
दूसरे दिन ऐसा ही हुआ, भड्डरिन भड्डरी के साथ घर से निकली और रास्ते में पड़ने वाले डूमर के पेड़ के नीचे रुक गई। भड्डरी भिक्षाटन के लिए चला गया।
इधर भड्डरिन उस डूमर के पेड़ में चढ़ी और पका फल तोड़ कर खाने लगी। जब वह उतर रही थी तो उसका पेट एक सूखे डंगाल के टूटे हिस्से पर पड़ा और फट गया, वह नीचे गिर गई।
इधर शाम को जब भड्डरी भिक्षाटन कर वापस उस पेड़ के पास पहुंचा। वहाँ उसने देखा, उसकी पत्नी पेड़ के नीचे मरी पड़ी थी उसका पेट फूटा हुआ था। पास में ही एक नवजात बच्ची और एक बकरी का नर मेमना था। भड्डरी ने उस मेमने और लड़की को घर लाया और गांव वालों को बुलाकर अपनी पत्नी का क्रियाकर्म कर दिया।
समयानुसार बच्ची और मेमना बढ़ने लगे। मेमना जल्दी ही बकरा बन गया किन्तु बच्ची अभी छोटी ही थी। दोनों भाई बहन खेलते हुए बढ़ने लगे। गांव वालों ने भड्डरी से कहा कि भड्डरी तुम इन बच्चों की देखरेख के लिए दूसरा विवाह कर लो। पहले तो भड्डरी ने मना किया उसके बाद उसने दूसरी शादी कर ली।
कुछ दिन बाद भड्डरी की दूसरी पत्नी से भी एक लड़की पैदा हुई। अब तीनों साथ साथ बढ़ने लगे। भड्डरी की दूसरी पत्नी के मन में अपने सौतेली बेटी और बकरे पर हमेशा क्रोध आता था। वह उनके प्रति बुरा व्यवहार करती थी, वह सौतेली बेटी को खाना नहीं देती थी और वह भूखी रहती थी। बकरा इधर उधर चारा चर लेता था।
एक दिन वह लड़की अपने भाई बकरे को चराने के लिए जंगल की ओर गई। लड़की बहुत उदास थी, उसके भाई बकरे ने पूछा की बहन तुम क्यों उदास हो? उसकी बहन ने कहा कि मुझे मेरी सौतेली मां खाना नहीं देती है। मैं कई दिनों से पेटभर खाना नहीं खाई हूं। बकरे ने कहा कि बहन तुम फिक्र मत करो, तुम मेरे सिर पर मुक्के से वार करो और जो चाहती हो वह मांगो। बच्ची हंसी मजाक में ही उसके सिर को मुक्के से मारकर बोली 'लडुवा बतासा! बकरे के मुंह से ढेर सारा लडुवा बतासा टपक गया। बच्ची उसे तृप्त होने तक खाई।
इसी तरह दिन गुजरते गए, लड़की को जो भी खाने का मन होता वह बकरे के सिर में मुष्टिक प्रहार से पा जाती। घर में उसकी सौतेली मां उसे खाने को नहीं देती थी किंतु वह बकरे के सिर को मारकर रोज लडुआ-पपची, खीर-सोहारी, हलवा-पूड़ी खाती थी। ऐसा करते-करते वह काफी मोटी ताजी हो गयी। इधर उसकी सौतेली मां की लड़की खाना कम होने के कारण पतली ही रह गई।
सौतेली मां विचारने लगी कि उसकी जन्माई पुत्री बहुत कमजोर है और यह लड़की काफी हष्ट पुष्ट है जबकि मैं इसे खाना कम देती हूं। उसने इसका कारण पता लगाने के लिए अपनी पुत्री से कहा कि तुम आज उसका पीछा करो। पता लगाओ की यह क्या खाती है जिसके कारण वह काफी तंदुरुस्त है और तुम कृशकाय हो।
सौतेली मां की पुत्री उस दिन लड़की और बकरे के पीछे लग गई। उसे पता चला कि दोनों एक पेड़ के नीचे रोज जाते हैं। दूसरे दिन उनके आने के पहले ही वह उस पेड़ के ऊपर चढ़ गई। लड़की और उसका भाई बकरा जैसे ही उस पेड़ के नीचे पहुंचे, लड़की ने उस बकरे के सिर पर मुक्का मारा। कहा 'हलवा पूड़ी!' बकरे के मुंह से ताजा-ताजा हलवा पूड़ी बरसने लगा। लड़की हलवा पूड़ी खाने लगी। पेड़ के ऊपर चढ़ी हुई लड़की उनके चले जाने के बाद नीचे उतरी और घर जाकर अपनी मां को इस वाकये को सुनाया।
सौतेली पत्नी ने सोचा इस बकरे को मार देने से लड़की को भोजन मिलने का आधार भी खत्म हो जाएगा और मैं उसे फिर से परेशान कर सकूंगी। उसने अपने पति से कहा कि इस बकरे की बलि देना बहुत आवश्यक है। पति ने कारण पूछा तो वह कुछ भी बहाना बना दी। पति जानता था कि बकरा उसका पुत्र है, वह उसको मारना नहीं चाहता था, किंतु त्रियाहठ के कारण उसे विवश होकर उस बकरे की बलि देने के लिए हां कहना पड़ा। दूसरे दिन बकरा और लड़की जंगल गए,  लड़की ने बताया कि भाई मेरी सौतेली मां तुम्हारा बलि देना चाहती है। बकरा बोला तुम चिंता ना करो बहन, बकरे का हश्र यही होता है। मेरी बलि लेने के बाद तुम मेरी हड्डी को तालाब में फेंक देना, फिर मैं तुम्हारी भोजन की व्यवस्था लगातार करते रहूंगा। लड़की ने ऐसा ही किया।
लड़की ने बकरे की बलि के बाद उसकी हड्डी को तालाब में फेंक दिया। देखते ही देखते वह बगुला (कोकड़ा) बन गया। वह बगुला तालाब से मछलियां निकाल-निकाल कर उस लड़की को देने लगा। लड़की उस मछली को आग में भून कर खाने लगी। इसी तरह रोज उसे मछली मिलने लगा, वह और तंदरुस्त रहने लगी। सौतेली मां को फिर शंका हुई उसने अपनी लड़की को पुनः बोला कि जाकर देखो ये लड़की रोज क्या खाती है?
सौतेली मां की लड़की तालाब के एक पेड़ पर चढ़ गई। उसकी सौतेली बहन जैसे ही तालाब के पार में पहुंची,  अपने बकरे भाई का नाम लेकर आवाज दी। एक बगुला उड़ते हुए आया और तालाब से मछलियां निकाल-निकाल कर उस बच्ची को देने लगा जिसे वह भून-भून कर खाने लगी। पेट भर जाने पर वह वहाँ से चली गई। सौतेली मां की बेटी पेड़ से उतरी और अपनी मां को यह बात जाकर बताई। सौतेली मां ने पुनः त्रियाचरित्र किया और उस बगुले को मारने का आदेश दे दिया। दूसरे दिन लड़की ने बगुला को बताया कि भाई तुम्हें आज मारने वाले हैं। तब उस बगुले ने कहा कि बहन तुम फिक्र न करो, मेरे मरने के बाद मेरी हड्डियों को तुम तालाब के पार में गड़ा देना। लड़की ने उसकी हड्डियां तालाब के पार में दबा आई। तालाब के पार में एक बड़ा आम का पेड़ उग गया। लड़की उस पेड़ के नीचे जाकर भाई से आम मांगती तो टप से बड़ा सा पका आम टपक पड़ता। लड़की फिर मोटाने लगी, सौतेली माँ को फिर तकलीफ हुई। उन्होंने भड्डरी से जिद करके उस आम के पेड़ को कटवा दिया। आम ने कटने से पहले लड़की से कहा कि मेरी कुछ लकड़ियों को राजा के बाग में दबा देना। लड़की ने कहा भाई इसी तरह हर बार मेरी सौतेली माँ तुमको मरवाते रहेगी, इसका कोई स्थायी हल निकालो। आम ने लड़की के कान में जुगत बताई। लड़की के द्वारा आम की लकड़ियों को राजा के बाग में दबाने के कुछ दिन बाद वहाँ लाल भाजी उग आया। राजा के बाग की लाल भाजी को देखकर रानी को उसकी सब्जी खाने का मन हुआ। उस लालभाजी को खाकर रानी गर्भवती हो गई। उसका एक पुत्र हुआ, कुछ दिनों बाद एक दिन बच्चा लगातार रोने लगा। किसी के भी चुप कराने से वह चुप नहीं हो रहा था। राजा-रानी परेशान हो गए। राजा ने पूरे प्रदेश में मुनादी कराया कि जो इस बच्चे को चुप करा देगा उसे उचित इनाम दिया जाएगा। लड़की को बगुले ने कान में बताया था कि मेरे हड्डी को राजा के बाग में दबाने पर उस से पैदा हुए लाल भाजी को रानी खाएगी तो गर्भवती होगी और उसका एक बच्चा होगा। कुछ दिनों बाद वह बच्चा रोएगा, वह बच्चा मैं ही रहूंगा। मैं तभी चुप होऊंगा जब तुम मुझे चुप कराओगी। लड़की यह बात जानती थी। मुनादी सुनने के बाद सारे देश के लोग आए सभी ने उस बच्चे को चुप कराने का प्रयास किया किंतु वह बच्चा किसी से चुप नहीं हुआ। तब वह लड़की राजमहल में गई और बच्चे से बोली-
बोकरा ले कोकड़ा होए भईया
कोकड़ा ले आमा रुख
आमा ले लाल भाजी होए भईया
चुप होजा मोर भईया
चुप होजा ना
इसे सुनने के बाद बच्चा खिलखिलाने लगा। राजा खुश हुआ,  राजा ने कहा कि आज से तुम इस राज्य की राजकुमारी हो और यह तुम्हारा भाई है। इस प्रकार से लड़की अपने भाई के साथ सुख से रहने लगी। कुछ समय के बाद राजकुमार की शादी हुई। नगर में भंडारा खुला  देश भर के लोग आए और छक कर भोजन किया। बारात धूमधाम के साथ निकली। भड्डरी के दरवाजे से बारात निकली तो लड़की ने देखा, लोग मालपुआ खा रहे थे और भड्डरी-भड्डरिन पतरी चांट रहे थे।
(श्री राकेश तिवारी के वक्तव्य के अनुसार संजीव तिवारी ने रूपांतरित किया)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

आपकी टिप्पणियों का स्वागत है. (टिप्पणियों के प्रकाशित होने में कुछ समय लग सकता है.) -संजीव तिवारी, दुर्ग (छ.ग.)

लेबल

संजीव तिवारी की कलम घसीटी समसामयिक लेख अतिथि कलम जीवन परिचय छत्तीसगढ की सांस्कृतिक विरासत - मेरी नजरों में पुस्तकें-पत्रिकायें छत्तीसगढ़ी शब्द Chhattisgarhi Phrase Chhattisgarhi Word विनोद साव कहानी पंकज अवधिया सुनील कुमार आस्‍था परम्‍परा विश्‍वास अंध विश्‍वास गीत-गजल-कविता Bastar Naxal समसामयिक अश्विनी केशरवानी नाचा परदेशीराम वर्मा विवेकराज सिंह अरूण कुमार निगम व्यंग कोदूराम दलित रामहृदय तिवारी अंर्तकथा कुबेर पंडवानी Chandaini Gonda पीसीलाल यादव भारतीय सिनेमा के सौ वर्ष Ramchandra Deshmukh गजानन माधव मुक्तिबोध ग्रीन हण्‍ट छत्‍तीसगढ़ी छत्‍तीसगढ़ी फिल्‍म पीपली लाईव बस्‍तर ब्लाग तकनीक Android Chhattisgarhi Gazal ओंकार दास नत्‍था प्रेम साईमन ब्‍लॉगर मिलन रामेश्वर वैष्णव रायपुर साहित्य महोत्सव सरला शर्मा हबीब तनवीर Binayak Sen Dandi Yatra IPTA Love Latter Raypur Sahitya Mahotsav facebook venkatesh shukla अकलतरा अनुवाद अशोक तिवारी आभासी दुनिया आभासी यात्रा वृत्तांत कतरन कनक तिवारी कैलाश वानखेड़े खुमान लाल साव गुरतुर गोठ गूगल रीडर गोपाल मिश्र घनश्याम सिंह गुप्त चिंतलनार छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग छत्तीसगढ़ वंशी छत्‍तीसगढ़ का इतिहास छत्‍तीसगढ़ी उपन्‍यास जयप्रकाश जस गीत दुर्ग जिला हिन्दी साहित्य समिति धरोहर पं. सुन्‍दर लाल शर्मा प्रतिक्रिया प्रमोद ब्रम्‍हभट्ट फाग बिनायक सेन ब्लॉग मीट मानवाधिकार रंगशिल्‍पी रमाकान्‍त श्रीवास्‍तव राजेश सिंह राममनोहर लोहिया विजय वर्तमान विश्वरंजन वीरेन्‍द्र बहादुर सिंह वेंकटेश शुक्ल श्रीलाल शुक्‍ल संतोष झांझी सुशील भोले हिन्‍दी ब्‍लाग से कमाई Adsense Anup Ranjan Pandey Banjare Barle Bastar Band Bastar Painting CP & Berar Chhattisgarh Food Chhattisgarh Rajbhasha Aayog Chhattisgarhi Chhattisgarhi Film Daud Khan Deo Aanand Dev Baloda Dr. Narayan Bhaskar Khare Dr.Sudhir Pathak Dwarika Prasad Mishra Fida Bai Geet Ghar Dwar Google app Govind Ram Nirmalkar Hindi Input Jaiprakash Jhaduram Devangan Justice Yatindra Singh Khem Vaishnav Kondagaon Lal Kitab Latika Vaishnav Mayank verma Nai Kahani Narendra Dev Verma Pandwani Panthi Punaram Nishad R.V. Russell Rajesh Khanna Rajyageet Ravindra Ginnore Ravishankar Shukla Sabal Singh Chouhan Sarguja Sargujiha Boli Sirpur Teejan Bai Telangana Tijan Bai Vedmati Vidya Bhushan Mishra chhattisgarhi upanyas fb feedburner kapalik romancing with life sanskrit ssie अगरिया अजय तिवारी अधबीच अनिल पुसदकर अनुज शर्मा अमरेन्‍द्र नाथ त्रिपाठी अमिताभ अलबेला खत्री अली सैयद अशोक वाजपेयी अशोक सिंघई असम आईसीएस आशा शुक्‍ला ई—स्टाम्प उडि़या साहित्य उपन्‍यास एडसेंस एड्स एयरसेल कंगला मांझी कचना धुरवा कपिलनाथ कश्यप कबीर कार्टून किस्मत बाई देवार कृतिदेव कैलाश बनवासी कोयल गणेश शंकर विद्यार्थी गम्मत गांधीवाद गिरिजेश राव गिरीश पंकज गिरौदपुरी गुलशेर अहमद खॉं ‘शानी’ गोविन्‍द राम निर्मलकर घर द्वार चंदैनी गोंदा छत्‍तीसगढ़ उच्‍च न्‍यायालय छत्‍तीसगढ़ पर्यटन छत्‍तीसगढ़ राज्‍य अलंकरण छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंजन जतिन दास जन संस्‍कृति मंच जय गंगान जयंत साहू जया जादवानी जिंदल स्टील एण्ड पावर लिमिटेड जुन्‍नाडीह जे.के.लक्ष्मी सीमेंट जैत खांब टेंगनाही माता टेम्पलेट डिजाइनर ठेठरी-खुरमी ठोस अपशिष्ट् (प्रबंधन और हथालन) उप-विधियॉं डॉ. अतुल कुमार डॉ. इन्‍द्रजीत सिंह डॉ. ए. एल. श्रीवास्तव डॉ. गोरेलाल चंदेल डॉ. निर्मल साहू डॉ. राजेन्‍द्र मिश्र डॉ. विनय कुमार पाठक डॉ. श्रद्धा चंद्राकर डॉ. संजय दानी डॉ. हंसा शुक्ला डॉ.ऋतु दुबे डॉ.पी.आर. कोसरिया डॉ.राजेन्‍द्र प्रसाद डॉ.संजय अलंग तमंचा रायपुरी दंतेवाडा दलित चेतना दाउद खॉंन दारा सिंह दिनकर दीपक शर्मा देसी दारू धनश्‍याम सिंह गुप्‍त नथमल झँवर नया थियेटर नवीन जिंदल नाम निदा फ़ाज़ली नोकिया 5233 पं. माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकार परिकल्‍पना सम्‍मान पवन दीवान पाबला वर्सेस अनूप पूनम प्रशांत भूषण प्रादेशिक सम्मलेन प्रेम दिवस बलौदा बसदेवा बस्‍तर बैंड बहादुर कलारिन बहुमत सम्मान बिलासा ब्लागरों की चिंतन बैठक भरथरी भिलाई स्टील प्लांट भुनेश्वर कश्यप भूमि अर्जन भेंट-मुलाकात मकबूल फिदा हुसैन मधुबाला महाभारत महावीर अग्रवाल महुदा माटी तिहार माननीय श्री न्यायमूर्ति यतीन्द्र सिंह मीरा बाई मेधा पाटकर मोहम्मद हिदायतउल्ला योगेंद्र ठाकुर रघुवीर अग्रवाल 'पथिक' रवि श्रीवास्तव रश्मि सुन्‍दरानी राजकुमार सोनी राजमाता फुलवादेवी राजीव रंजन राजेश खन्ना राम पटवा रामधारी सिंह 'दिनकर’ राय बहादुर डॉ. हीरालाल रेखादेवी जलक्षत्री रेमिंगटन लक्ष्मण प्रसाद दुबे लाईनेक्स लाला जगदलपुरी लेह लोक साहित्‍य वामपंथ विद्याभूषण मिश्र विनोद डोंगरे वीरेन्द्र कुर्रे वीरेन्‍द्र कुमार सोनी वैरियर एल्विन शबरी शरद कोकाश शरद पुर्णिमा शहरोज़ शिरीष डामरे शिव मंदिर शुभदा मिश्र श्यामलाल चतुर्वेदी श्रद्धा थवाईत संजीत त्रिपाठी संजीव ठाकुर संतोष जैन संदीप पांडे संस्कृत संस्‍कृति संस्‍कृति विभाग सतनाम सतीश कुमार चौहान सत्‍येन्‍द्र समाजरत्न पतिराम साव सम्मान सरला दास साक्षात्‍कार सामूहिक ब्‍लॉग साहित्तिक हलचल सुभाष चंद्र बोस सुमित्रा नंदन पंत सूचक सूचना सृजन गाथा स्टाम्प शुल्क स्वच्छ भारत मिशन हंस हनुमंत नायडू हरिठाकुर हरिभूमि हास-परिहास हिन्‍दी टूल हिमांशु कुमार हिमांशु द्विवेदी हेमंत वैष्‍णव है बातों में दम

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को ...