यादव जी न केवल लेखक हैं वरन सांस्कृतिक धरातल पर प्रतिष्ठित और लोकप्रिय लोक मंच के संचालक हैं। जो छत्तीसगढ़ सहित देश के विभिन्न हिस्सों में छत्तीसगढ़ी लोक संस्कृति की प्रस्तुति दे चुकी है। वे आज भी लगातार छत्तीसगढ़ी सांस्कृतिक प्रस्तुति मंचों पर देते रहते हैं जिसमें लगभग 20 लोक कलाकार शामिल हैं। रेडियो और टेलीविजन में उनके कार्यक्रम लगातार आते रहते हैं।
लेखन के क्षेत्र में यादव जी गद्य और पद्य के अन्यान्य विधाओं में, हिंदी एवं छत्तीसगढ़ी दोनों भाषाओँ में लिखते हैं। पंडवानी पर उनका विशद् शोध ग्रन्थ वैभव प्रकाशन से प्रकाशित है जो अब तक के प्रकाशित पंडवानी के किताबों में श्रेष्ठ है। छत्तीसगढ़ के लोक गाथाओं पर उनका महत्वपूर्ण कार्य है। उन्होंने छत्तीसगढ़ के विभिन्न लोक गाथाओं को जो विलुप्ति के कगार पर थे उनका संग्रहण किया है। उनके पास बहुत सारी लोकगाथाओं का लिखित रूप उपलब्ध है।
गंडई-पंडरिया जिला राजनांदगांव निवासी डॉ. पीसी सी लाल यादव का नाम हम बचपन से रेडियो में सुनते आ रहे हैं। उनको मैंने थोडा-बहुत ही जाना है, उनके संबंध में मैंने यहां जो कुछ भी लिखा वह उनके असल अवदान के हिसाब से बहुत ही कम है, किंतु उनके सामान्य परिचय के लिए मैंने यह लिखा।
डॉ.पीसी लाल यादव जी जितने सरल हैं उतने ही कठिन उनके साथ बैठे दूसरे महान विभूती खुमान लाल साव जी हैं। उनके संबंध में आपको ज्यादा कुछ कहने की आवश्यकता नहीं है। इनके सम्बन्ध में कहा जाता है कि इन्होंने छत्तीसगढ़ी लोक संगीत को एक नया आयाम दिया, इनके संबंध में तो मेरे पास ऑडियो-वीडियो-टेक्स्ट का खजाना है, जो बेतरतिब है। समय मिलते ही कुछ खंडो में प्रकाशन के लिए तैयार करूँगा।
© संजीव तिवारी
ये दोनों विभूतियाँ पुरखौती संस्कारों को परिमार्जित करते हुए उसे सात समुन्दर - पार तक पहुँचा रही हैं, वह दिन दूर नहीं जब छ्त्तीसगढ की लोक - कला की खुशबू पूरी दुनियाँ में बगरेगी और हम उस सुख को बौरेंगे ।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया जानकारी
जवाब देंहटाएं