ठीक पकड़े हैं, शौंचालय बनाना सस्ते का सौदा है

आप बिलकुल ठीक पकड़े हैं आप शौचालय बनाने की सोच रहे हैं या शौचालय में एसी लगाने की सोच रहे हैं जिसके चलते शौचालय महंगा बनेगा। शौचालय महंगा होता ही नहीं है। गांवों में तो शौचालय बाहर जाने की परंपरा है। गांवों में कहा जाता है -
नदी नहाए पूरा पाए , तालाब नहाए आधा।
कुआंं नहाए कुछ न पाए, घर नहाए ब्याधा।।

कहने का सीधा मतलब है कि नदी नहाने से पूरा पुण्य मिलता है जबकि तालाब नहाने से आधा और कुंआ नहाने से कुछ भी पुण्य नहीं मिलता है । वहीं घर में नहाने वाले बीमार व्यक्ति होते हैं। नहाने के पूर्व शौच जाना और फिर शुद्ध होना गांंव की परंपरा है। इस परंपरा में सुबह की सैर नदी की धारा में कटि स्नान शामिल है। यानी पूरी तरह वैज्ञानिक सम्पूर्ण स्नान। अगर ऊपर के दोहे को ध्यान से देखें तो उसके साथ गांव के शांत जीवन और पर्याप्त समय की बात भी छुपी हुई है जिसके पास जितना समय होता है उस हिसाब से वह नहाने और शौच के लिए नदी या तालाब का विकल्प चुनता है।
लेकिन अब पहले के से गांव नहीं रहे । किसानों की जोत छोटी हो गई है उन्हें अपनी जीविकोपार्जन के लिए खेती के अलावा भी अन्य काम करने पड़ते हैं इसलिए अब गांवों में भी लोगो के पास समय नहीं है उन्हें भी जल्द से जल्द तैयार होकर अपने काम से जाना पड़ता है इसके कारण उनके पास भी अब न तो नदी जाने की फुरसत है और न तालाब जाने का समय । चूंकि गृह स्वामी को जल्दी तैयार होना होता है तो उससे पहले महिलाओं को तैयार होना जरूरी है क्योंकि आखिर गृह स्वामी के भोजन व नास्ते का प्रबंध जो उन्हें करना पड़ता है, इसलिए अब गांवों के कच्चे घरों में भी शौचालय विलासिता नहीं बल्कि जरूरत बन गई है।

घबराइए नहीं शौचालय बिल्कुल भी महंगा नहीं होता है बस आपको उसकी तकनीक का थोड़ा सा ज्ञान भर होना चाहिए। हम देखते हैं कि गांवों में सस्ते शौचालय बनाने की तकनीक सुलभ इंटरनेश्नल ने विकसित की है। इसके लिए आपके पास थोड़ी ज्यादा जमीन होनी चाहिए जिसमें सोख्ता शौचालय(सोक पिट) का निर्माण किया जा सकता है इसमें अंदाज से डेढ़ मीटर व्यास तथा उतनी ही गहराई का थोड़ी-थोड़ी दूरी पर दो गड्ढ़े बनाइए जाते हैं उसमें ईंटोंं से अंतर छोड़कर जोड़ाई करके पक्का निर्माण किया जाता है ताकि छोड़े गए स्थान से पानी आसानी से जमीन में चला जाए। इस गड्ढ़ा निर्माण में उसके ऊपर के स्थान पर सीमेंट से ढलाई कर ढक्कन बना दिया जाता है। इस दोनों सोक पिट को पाइप के सहारे एक छोटे से ब्लाक से जोड़ा जाता है इस ब्लाक से एक पाइप जुडा होता है जो शौचालय की सीट के सिस्टम से जुड़ा होता है जो जमीन से थोड़ी ऊंचाई पर बनाया जाता है। इस सिस्टम मेंं पहले एक गड्ढ़े में शौच चालू किया जाता है जब वह गड्ढा भर जाता है तो फिर दूसरे गड्ढ़े की तरफ की का पाइप खोल दिया जाता है और पहले वाले गड्ढे का उपयोग बंद रहता है। एक दो महीने बाद पहला गड्ढा सूख जाता है इस गड्ढ़े से बाद मेंं खोल कर सोनखाद निकाल ली जाती है जो खेतों के लिए उपयोगी है। यही क्रम बारी-बारी से चलता रहता है। इस निर्माण मेंं गड़्ढ़े में बनी गैस ईंट के किनारे के छोरोंं से अपने-आप निकलती रहती है। यह सबसे सस्ता सोकपिट शौचालय सिस्टम है।

आइए अब देखें सेप्टिक टैंक की तकनीक जिसे अज्ञानता वश लोग महंगा बना देते हैं। वास्तव में सेप्टिक टैंक ऐसी साधारण टंकी है जिसमें मानव मल के प्रबंधन की युक्ति से बनाई गई होती है। हम देखें तो मल की प्रकृति कच्चे में पानी में ऊपर बलबलाने की होती है । यही मल जब सड़ जाता है तो मलबे के रूप में नीचे बैठ जाता है, इसलिए टंकी में कच्चे मल को अलग और मलबा को अलग करने के खंड बनाए जाते हैं। टंकी के ऊपरी सतह से गैस पाइप दिया जाता है ताकि गंदी बास ऊपर वायुमंडल में उड़ जाए । वहीं सेप्टिक टैंक से पानी निकालने के लिए बीच के भाग से साइफन सिस्सटम से पाइप लगाया जाता है ताकि केवल भूरा पानी ही निकले और मल न निकल पाए। इस पानी को आप सीधे नाली,खेतों में या फिर सोक पिट में डाल सकते हैं।

सेप्टिक टैंक के आकार पर उसका खर्च निर्भर करता है समझ के अभाव में लोग टैंक को बड़ा और मजबूत बनाने के लिए भारी खर्च कर देते हैं जबकि सेप्टिक टैंक का आकार उसके उपयोग करने वालों की संख्या पर निर्भर करता है साधारणतया 700 गैलन का टैंक दो बाथरूम तक के लिए पर्याप्त होता है। आपके आत्म विश्वास के लिए यहां पर विभिन्न सेप्टिक टैंक क्षमता के बनावट की तालिका दी जा रही है ताकि आप निश्चिंत हो सकें कि कहीं कोई गड़बड़ी नहीं हो रही है। रही बात उसको बनाने की तो यह आप पर निर्भर करता है कि आप इसे छड़ सीमेंट से ढाल कर हल्की कांक्रीट का सिस्टम बनाते हैं या फिर एक ईंट की दीवार का बनाते हैं यह नहीं भूलना चाहिए कि आपको एक वाटर प्रूफ टंकी बनानी है जिसे जमीन में गड़े रहना है कोई बंकर या तहखाना नहीं बनाना है जिसमें न ही कोई विस्फोटक पदार्थ रखना हो। सेप्टिक टैंक मानव मल के प्रबंधन का एक साधारण संयत्र है जिसके भर जाने पर समय-समय पर साफ करवाना पड़ता है। विदेशों में तो अब प्लास्टिक के रेडीमेट सेप्टिक टैंक मिलने लगे हैं जिन्हें जमीन में गाड़ दीजिए और उपयोग करिए।

चलिए सेप्टिक टैंक से अलग बाथरूम की बात करते हैं तो बाजार में शौचालय में लगने वाली शीट की कीमत में बड़ा अंतर देखने को मिलता है। राजधानी के गुप्ता ट्रेडर्स के सौरभ गुप्ता ने चार गुणा साढ़े चार फिट के स्थान में बाथरूम की डिजाइन तैयार की है। उनके अनुसार इंडियन शीट 3 सौ रुपए से शुरु हो कर 50 हजार तक मिलती है जबकि इंग्लिश शीट 8 सौ रुपए से शुरु होकर 2 लाख रुपए तक बिकती है। अब तो बाजार में टच स्क्रीन टायलेट का विज्ञापन भी देखने को मिल रहा है। इसे ही कहते हैं जितना गुण उतना मीठा आपकी मर्जी आप कितना खर्च करना पसंद करेंगे।

आजकल टीवी में सरकार के द्वारा भी शौचालय के उपयोग की महत्ता से जुड़े विज्ञापन दिखा जा रहे हैं। लेकिन अपनी आदत को क्या कीजिएगा जहां कहीं सुनसान नदी देखता हूं शौच जाने के लिए मचल जाता हूं। आखिर बचपन के संस्कार कहीं छूटते हैं। मन और है और जरूरत और है क्या आप तथा-कथित सभ्य बनेंगे। आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा।


-प्रमोद ब्रम्‍हभट्ट
रायपुर
प्रमोद ब्रम्‍हभट्ट जी वरिष्‍ठ पत्रकार हैं, वर्तमान में रायपुर के प्रतिष्ठित दैनिक अखबार 'जनता से रिश्‍ता' से जुड़े हैं।
इनसे आप फेसबुक पर यहॉं संपर्क कर सकते हैं। 

1 टिप्पणी:

  1. अब गाँव वाले भी समझ रहे हैं कि शौचालय आवश्यक है , सुलभ इन्टरनेशनल प्रणम्य है जो बरसों से सम्पूर्ण देश में इसी पावन कार्य में लगी हुई है । हम सभी का यह दायित्व है कि हम जन - जन के बीच जाकर उन्हें जागरूक करें ।

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणियों का स्वागत है. (टिप्पणियों के प्रकाशित होने में कुछ समय लग सकता है.) -संजीव तिवारी, दुर्ग (छ.ग.)

लेबल

संजीव तिवारी की कलम घसीटी समसामयिक लेख अतिथि कलम जीवन परिचय छत्तीसगढ की सांस्कृतिक विरासत - मेरी नजरों में पुस्तकें-पत्रिकायें छत्तीसगढ़ी शब्द Chhattisgarhi Phrase Chhattisgarhi Word विनोद साव कहानी पंकज अवधिया सुनील कुमार आस्‍था परम्‍परा विश्‍वास अंध विश्‍वास गीत-गजल-कविता Bastar Naxal समसामयिक अश्विनी केशरवानी नाचा परदेशीराम वर्मा विवेकराज सिंह अरूण कुमार निगम व्यंग कोदूराम दलित रामहृदय तिवारी अंर्तकथा कुबेर पंडवानी Chandaini Gonda पीसीलाल यादव भारतीय सिनेमा के सौ वर्ष Ramchandra Deshmukh गजानन माधव मुक्तिबोध ग्रीन हण्‍ट छत्‍तीसगढ़ी छत्‍तीसगढ़ी फिल्‍म पीपली लाईव बस्‍तर ब्लाग तकनीक Android Chhattisgarhi Gazal ओंकार दास नत्‍था प्रेम साईमन ब्‍लॉगर मिलन रामेश्वर वैष्णव रायपुर साहित्य महोत्सव सरला शर्मा हबीब तनवीर Binayak Sen Dandi Yatra IPTA Love Latter Raypur Sahitya Mahotsav facebook venkatesh shukla अकलतरा अनुवाद अशोक तिवारी आभासी दुनिया आभासी यात्रा वृत्तांत कतरन कनक तिवारी कैलाश वानखेड़े खुमान लाल साव गुरतुर गोठ गूगल रीडर गोपाल मिश्र घनश्याम सिंह गुप्त चिंतलनार छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग छत्तीसगढ़ वंशी छत्‍तीसगढ़ का इतिहास छत्‍तीसगढ़ी उपन्‍यास जयप्रकाश जस गीत दुर्ग जिला हिन्दी साहित्य समिति धरोहर पं. सुन्‍दर लाल शर्मा प्रतिक्रिया प्रमोद ब्रम्‍हभट्ट फाग बिनायक सेन ब्लॉग मीट मानवाधिकार रंगशिल्‍पी रमाकान्‍त श्रीवास्‍तव राजेश सिंह राममनोहर लोहिया विजय वर्तमान विश्वरंजन वीरेन्‍द्र बहादुर सिंह वेंकटेश शुक्ल श्रीलाल शुक्‍ल संतोष झांझी सुशील भोले हिन्‍दी ब्‍लाग से कमाई Adsense Anup Ranjan Pandey Banjare Barle Bastar Band Bastar Painting CP & Berar Chhattisgarh Food Chhattisgarh Rajbhasha Aayog Chhattisgarhi Chhattisgarhi Film Daud Khan Deo Aanand Dev Baloda Dr. Narayan Bhaskar Khare Dr.Sudhir Pathak Dwarika Prasad Mishra Fida Bai Geet Ghar Dwar Google app Govind Ram Nirmalkar Hindi Input Jaiprakash Jhaduram Devangan Justice Yatindra Singh Khem Vaishnav Kondagaon Lal Kitab Latika Vaishnav Mayank verma Nai Kahani Narendra Dev Verma Pandwani Panthi Punaram Nishad R.V. Russell Rajesh Khanna Rajyageet Ravindra Ginnore Ravishankar Shukla Sabal Singh Chouhan Sarguja Sargujiha Boli Sirpur Teejan Bai Telangana Tijan Bai Vedmati Vidya Bhushan Mishra chhattisgarhi upanyas fb feedburner kapalik romancing with life sanskrit ssie अगरिया अजय तिवारी अधबीच अनिल पुसदकर अनुज शर्मा अमरेन्‍द्र नाथ त्रिपाठी अमिताभ अलबेला खत्री अली सैयद अशोक वाजपेयी अशोक सिंघई असम आईसीएस आशा शुक्‍ला ई—स्टाम्प उडि़या साहित्य उपन्‍यास एडसेंस एड्स एयरसेल कंगला मांझी कचना धुरवा कपिलनाथ कश्यप कबीर कार्टून किस्मत बाई देवार कृतिदेव कैलाश बनवासी कोयल गणेश शंकर विद्यार्थी गम्मत गांधीवाद गिरिजेश राव गिरीश पंकज गिरौदपुरी गुलशेर अहमद खॉं ‘शानी’ गोविन्‍द राम निर्मलकर घर द्वार चंदैनी गोंदा छत्‍तीसगढ़ उच्‍च न्‍यायालय छत्‍तीसगढ़ पर्यटन छत्‍तीसगढ़ राज्‍य अलंकरण छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंजन जतिन दास जन संस्‍कृति मंच जय गंगान जयंत साहू जया जादवानी जिंदल स्टील एण्ड पावर लिमिटेड जुन्‍नाडीह जे.के.लक्ष्मी सीमेंट जैत खांब टेंगनाही माता टेम्पलेट डिजाइनर ठेठरी-खुरमी ठोस अपशिष्ट् (प्रबंधन और हथालन) उप-विधियॉं डॉ. अतुल कुमार डॉ. इन्‍द्रजीत सिंह डॉ. ए. एल. श्रीवास्तव डॉ. गोरेलाल चंदेल डॉ. निर्मल साहू डॉ. राजेन्‍द्र मिश्र डॉ. विनय कुमार पाठक डॉ. श्रद्धा चंद्राकर डॉ. संजय दानी डॉ. हंसा शुक्ला डॉ.ऋतु दुबे डॉ.पी.आर. कोसरिया डॉ.राजेन्‍द्र प्रसाद डॉ.संजय अलंग तमंचा रायपुरी दंतेवाडा दलित चेतना दाउद खॉंन दारा सिंह दिनकर दीपक शर्मा देसी दारू धनश्‍याम सिंह गुप्‍त नथमल झँवर नया थियेटर नवीन जिंदल नाम निदा फ़ाज़ली नोकिया 5233 पं. माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकार परिकल्‍पना सम्‍मान पवन दीवान पाबला वर्सेस अनूप पूनम प्रशांत भूषण प्रादेशिक सम्मलेन प्रेम दिवस बलौदा बसदेवा बस्‍तर बैंड बहादुर कलारिन बहुमत सम्मान बिलासा ब्लागरों की चिंतन बैठक भरथरी भिलाई स्टील प्लांट भुनेश्वर कश्यप भूमि अर्जन भेंट-मुलाकात मकबूल फिदा हुसैन मधुबाला महाभारत महावीर अग्रवाल महुदा माटी तिहार माननीय श्री न्यायमूर्ति यतीन्द्र सिंह मीरा बाई मेधा पाटकर मोहम्मद हिदायतउल्ला योगेंद्र ठाकुर रघुवीर अग्रवाल 'पथिक' रवि श्रीवास्तव रश्मि सुन्‍दरानी राजकुमार सोनी राजमाता फुलवादेवी राजीव रंजन राजेश खन्ना राम पटवा रामधारी सिंह 'दिनकर’ राय बहादुर डॉ. हीरालाल रेखादेवी जलक्षत्री रेमिंगटन लक्ष्मण प्रसाद दुबे लाईनेक्स लाला जगदलपुरी लेह लोक साहित्‍य वामपंथ विद्याभूषण मिश्र विनोद डोंगरे वीरेन्द्र कुर्रे वीरेन्‍द्र कुमार सोनी वैरियर एल्विन शबरी शरद कोकाश शरद पुर्णिमा शहरोज़ शिरीष डामरे शिव मंदिर शुभदा मिश्र श्यामलाल चतुर्वेदी श्रद्धा थवाईत संजीत त्रिपाठी संजीव ठाकुर संतोष जैन संदीप पांडे संस्कृत संस्‍कृति संस्‍कृति विभाग सतनाम सतीश कुमार चौहान सत्‍येन्‍द्र समाजरत्न पतिराम साव सम्मान सरला दास साक्षात्‍कार सामूहिक ब्‍लॉग साहित्तिक हलचल सुभाष चंद्र बोस सुमित्रा नंदन पंत सूचक सूचना सृजन गाथा स्टाम्प शुल्क स्वच्छ भारत मिशन हंस हनुमंत नायडू हरिठाकुर हरिभूमि हास-परिहास हिन्‍दी टूल हिमांशु कुमार हिमांशु द्विवेदी हेमंत वैष्‍णव है बातों में दम

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को ...