कहते है कि लेखन में कोई बड़ा छोटा नहीं होता। रचनाकार की परिपक्वता को रचना से पहचान मिलती है। उसकी आयु या दर्जनों प्रकाशित पुस्तके गौड़ हो जाती है। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए मैं आज का चौपाल पढ़ने लगा। शीर्षक 'अतिथि संपादक की कलम ले' के नीचे सुदर्शन व्यक्तित्व के ओजस्वी व्यक्ति का चित्र था, नाम था मोहन अग्रहरि। इनका नाम अपरिचित नहीं था, साहित्य के क्षेत्र में प्रदेश में इनका अच्छा खासा नाम है। यद्यपि मुझे इनकी रचनाओं को पढ़ने का, या कहें गंभीरता से पढ़ने का, अवसर नहीं मिला था। चौपाल जैसी पत्रिका, के संपादन का अवसर जिन्हें मिल रहा है, निश्चित तौर पर वे छत्तीसगढ़ के वरिष्ठतम साहित्यकार है और उन्हें छत्तीसगढ़ के कला, साहित्य एवं संस्कृति का विशेष ज्ञान है। इस लिहाज से अग्रहरि जी के संपादकीय को गंभीरता से पढ़ना जरुरी हो गया। अग्रहरी जी ने हिंदी में बढ़िया संपादकीय लिखा है। चौपाल में छत्तीसगढ़ी मे संपादकीय लिखने की परंपरा रही है। शीर्षक शब्द 'अतिथि संपादक की कलम ले' से भी भान होता है कि आगे छतीसगढ़ी में बातें कही जाएँगी। किंतु इसमें हिंदी में भी संपादकीय लिखा जाता रहा है। इस लिहाज से भी अग्रहरि जी ने हिन्दी में संपादकीय लिखा है।
अक्सर हिंदी और छत्तीसगढ़ी दोनों नाव में पांव रखने के चक्कर में मैं ना छत्तीसगढ़ी ठीक से लिख पाता हूँ ना हिन्दी। इसे पढ़ने के बाद हिन्दी के कुछ शब्दों के प्रयोग के सम्बन्ध में मेरे मन में स्थापित धारणा बदली? अग्रहरि साहब ने संपादकीय में लिखा है 'समाज आज भी रूढ़ियों से "जुझ" रहा है।' ज में छोटी उ की मात्रा लगना चाहिए कि बड़ी? यह सिद्ध हुआ कि 'जूझ' नहीं 'जुझ' लिखा जाना चाहिए?
इसी तरह 'हमारे साथ-साथ छत्तीसगढ़ के प्रत्येक नागरिक को इस पर गर्व है, यह कहते हुए अनुभव करता है कि-' लिखते हुए उन्होंने 'अनुभव करते हुए गर्व करना' और 'गर्व का अनुभव करना' जैसे शब्दों के प्रयोग का नया रुप प्रस्तुत किया है। काव्य में जिस तरह से बिम्बो का प्रयोग होता है उसी तरह इन्होनें 'छत्तीसगढ़ अपने इतिहास की संस्कृति बनाए हुए है।' में 'संस्कृति के (का) इतिहास' के उलट अच्छा प्रयोग किया है? आगे '...अपनी बातों "को" आदान प्रदान करते हैं।' लिखते हुए मेरे मगज में स्थापित '...अपनी बातों "का" आदान प्रदान करते हैं।' वाक्यांश को भी गलत ठहरा दिया? धन्यवाद चौपाल।
-तमंचा रायपुरी
बहुत अच्छी प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंशालीन व्यंग्य....लेकिन ‘माथा धरते हुए’ ।
जवाब देंहटाएंवाह संजीव भाई ।
जवाब देंहटाएंबियंग के रंग बर बधाई ।
आज पूरा होईस ।
वाह संजीव भाई ।
जवाब देंहटाएंबियंग के रंग बर बधाई ।
आज पूरा होईस ।
वाह संजीव भाई ।
जवाब देंहटाएंबियंग के रंग बर बधाई ।
आज पूरा होईस ।
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जवाब देंहटाएंदेश के बड़का अखबार हरिभूमि के रंग छत्तीसगढ़ चौपाल पेज म अउ अतिथि संपादक? मोर तो भेजा म नइ घुरसत हाबे। तमंचा रायपुरी के कलम घसीटी ल प्रणाम...
हटाएंजाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान।,
जवाब देंहटाएं..............
बाकी आप खुद समझदार हैं।
व्यंग्य के मतलब होथे बखिया उधेड़ना..........
जवाब देंहटाएंEkdam badhiya ....
जवाब देंहटाएंEkdam badhiya ....
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