भूमि अधिग्रहण कानून पर संसद से सड़क तक हो रहे राष्ट्रव्यापी हो-हल्ले पर पिछले दिनों विराम लग गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में स्पष्ट कर दिया कि सरकार इस मामले में चौथा ऑर्डिनैंस नहीं लाएगी। विद्यमान भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधनों के साथ वर्तमान सरकार द्वारा प्रस्तुत भूमि अधिग्रहण बिल लोकसभा में पारित होने के बाद राज्यसभा में पारित होने की राह जोह रहा है। इस बिल को प्रभावी बनाने के वैकल्पिक तरीकों के रूप में सरकार लगातार तीन बार ऑर्डिनैंस ला चुकी थी, इस तीसरे आर्डिनेंस की अंतिम तिथि 31 अगस्त थी। सरकार द्वारा चौथी बार आर्डिनेंस नहीं लाने के फैसले से विद्यमान अधिग्रहण कानून अपने पूर्ण प्रभाव के साथ देश में पुन: लागू हो गया है। हालॉंकि अरूण जेटली नें सरकार के इस कदम को ही वैकल्पिक रास्ता कहा जो राजनीतिक विवाद के लिए अख्तियार किया गया है। उन्होंनें यह भी कहा कि इससे हमें कम राजनीतिक कीमत चुकानी होगी और राज्य सरकारों को भू-अधिग्रहण के मामलों में अधिक स्वतंत्रता मिल जायेगी। पिछले सप्ताह हुये इस उठापठक का फायदा यह भी हुआ कि भूमि अधिग्रहण से जुड़े अन्य 13 केन्द्रीय कानूनों को भी विद्यमान अधिग्रहण कानून में शामिल कर लिया गया जो अब तक अपने स्वतंत्र अस्तित्व में प्रभावी थे।
भारतीय संविधान के अनुसार भूमि राज्य सरकार की अनुसूची में आता है इस कारण भूमि संबंधी मामलों में राज्य के पास अतिरिक्त विकल्प सदैव उपलब्ध होते हैं। सरकार के इस फैसले के बाद राज्य सरकारें भूमि अधिग्रहण पर विद्यमान काननू 2013 के प्रकाश पर अपने आवश्यकता के अनुरूप स्वयं का कानून लाने का प्रयास निश्चित तौर पर करेंगी। इससे देश भर में अधोसंरचना विकास पर लगे ग्रहण को दूर किया जा सकेगा एवं किसानों, भूस्वामियों एवं सरकारों के मध्य हो रहे संघर्षों में निश्चित तौर पर कमी आयेगी। न्यायालयों में लंबित हजारों मामले जल्दी निबटेंगें एवं दोनों पक्षों को राहत मिलेगी।
केन्द्र सरकार के द्वारा विद्यमान कानून 2013 में सुधार के मुद्दे एवं विरोध में उठ रहे लोगों के स्वर जो भी रहे हों पर विद्यमान कानून 2013 में कुछ खामियॉं भी विद्यमान है, इस बात का अहसास पिछले माह सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा कराया गया। सवोच्च न्यायालय नें सूरजमल विरूद्ध बिहार राज्य के लंबित मामले में फैसला देते हुए जो टिप्पणियॉं की उस पर, ऐसे समय में राज्य सरकारों का ध्यानाकर्षण आवश्यक है।
ऐसे समय में जब कोई पुराने कानून को रिप्लेस करते हुए नया कानून लागू किया जाता है तब इन दोनों कानूनों के प्रभावी होने के संबंध में भी स्पष्ट प्रावधान नये कानून में किए गए होते हैं। विद्यमान अधिग्रहण कानून में भी इसी तरह के प्रावधानों का उल्लेख किया गया है जिससे अधिग्रहण के विभिन्न मामलों में निर्णय लिया जा सकेगा। अधिग्रहण संबंधी इस कानून के धारा 24 में इसके प्रावधान दिए गए हैं, इसी धारा के संबंध में उक्त प्रकरण पर निर्णय देते हुए देश के सवोच्च न्यायालय के माननीय न्यायाधीश विक्रमजीत सेन एवं अभय मनोहर सप्रे नें कहा कि विद्यमान कानून 2013 के धारा 24 (1) (ए) और 24 (2) के मध्य अस्पष्ट विसंगति है।
विद्यमान कानून 2013 की धारा 24 बताता है कि 1894 के अधिनियम के अनुसार आरंभ की गई भूमि अर्जन की प्रक्रिया किन मामलों में व्यपगत समझी जावेगी। आपकी सुविधा के लिए इस धारा के उपधाराओं का यहॉं स्पष्ट ज्यों का त्यों उल्लेख कर रहे हैं-
धारा 24 उपधारा (1) इस अधिनियम में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी भूमि अर्जन अधिनियम, 1894 के अधीन आरंभ की गई भूमि अर्जन की कार्यवाहियों के ऐसे किसी मामलों में – (क) जहॉं उक्त भूमि अर्जन अधिनियम की धारा 11 के अधीन कोई अधिनिर्णय नहीं किया गया है वहॉं इस अधिनियम के प्रतिकर का अवधारण किए जाने से संबंधित सभी उपबंध लागू होंगें, या (ख) जहॉं उक्त धारा 11 के अधीन कोई अधिनिर्णय किया गया है, वहॉं ऐसी कार्यवाहियॉं उक्त भूमि अर्जन अधिनियम के उपबंधों के अधीन उसी प्रकार जारी रहेंगी मानो उक्त अधिनियम निरसित नहीं किया गया है। उपधारा (2) उपधारा (1) में कुछ भी अन्तर्विष्ट होते हुए, भूमि अर्जन अधिनियम, 1894 के अधीन आरंभ की गई भूमि अर्जन की कार्यवाहियों के किसी मामलों में, जहॉं उक्त धारा 11 के अधीन इस अधिनियम के प्रारम्भ की तारीख से पांच वर्ष या उससे अधिक पूर्व अधिनिर्णय किया है किन्तु भूमि का वास्तविक कब्जा नहीं लिया गया या प्रतिकर का संदाय नहीं किया गया है, वहॉं उक्त कार्यवाहियों के बारे में यह समझा जाएगा कि वह व्यपगत हो गई हैं और समुचित सरकार, यदि वह ऐसा चुनाव करे, इस अधिनियम के उपबंधों के अनुसार ऐसे भूमि अर्जन की कार्यवाहियॉं नए सिरे से आरंभ करेगी।
माननीय न्यायाधीश द्वय नें उपरोक्त कंडिका का अपने न्याय निर्णय में उल्लेख करते हुए कहा कि धारा 24 (1) (क) में अधिनिर्णय एवं मुआवजा देनें की अक्षमता के बावजूद अधिग्रहण प्रभावी हो जाता है और उसमें मात्र मुआवजे का निर्धारण 2013 के कानून के प्रावधानों के तहत् होता है। जबकि 24 (2) के अनुसार पांच साल पूर्व पारित अधिनिर्णय के बावजूद मुआवजा नहीं दिये जाने या भूमि पर वास्तविक कब्जा प्राप्त नहीं कर पाने के कारण अधिग्रहण प्रक्रिया समाप्त हो जाती है। या यूं कहें कि समय के अनुशासन का पालन नहीं करने के कारण राज्य सरकार की सफलता, असफलता में बदल जाती है। वहीं राज्य सरकार की असफलता समय के अनुशासन का पालन करने की मंशानुरूप कार्य करने के बावजूद अधिनियम अपने प्रभावी होने की गति से उसे पछाड़ देती है। माननीय न्यायाधीश द्वय नें प्रश्न उछाला कि जहॉं सरकार नें मात्र अधिग्रहण की घोषणा की हो, जमीन पर कब्जा ना ली हो, मुआवजे का भुगतान ना किया हो वहॉं 2013 के कानून का कौन सा प्रावधान लागू होगा यह स्पष्ट नहीं है। इस मसले पर न्यायालय नें सरकारों को स्थिति स्पष्ट करने के लिए कहा है जिसे राज्य सरकारों को विधि के वैकल्पिक प्रावधानों के द्वारा स्पष्ट करना चाहिए ताकि न्यायालय में अधिग्रहण के ऐसे लंबित मामलों का निराकरण शीघ्र हो सके।
इन दोनों उपधाराओं के बीच विसंगति को दूर करने का व्यवहारिक तरीका यह है कि जहॉं पुराने अधिनियम के अंतरगत कोई अधिनिर्णय नहीं लिया गया है एवं यदि लिया गया है किन्तु भूमि वास्तविक कब्जा नहीं लिया गया है या मुआवजे का भुगतान भू स्वामी को नहीं किया गया है ऐसी सभी स्थितियों में पूर्व के अधिग्रहण प्रक्रिया को निरस्त किया जाना चाहिए एवं नये सिरे से अधिग्रहण प्रक्रिया आरंभ किया जाना चाहिए ताकि नये अधिनियम के उद्देश्यों का पूर्ण संरक्षण हो सके। यहां पर हम सीमांध्र के मुख्यमंत्री के द्वारा अपनाये गए तौर तरीकों का विशेष रूप से उल्लेख करेंगें जिसमें उन्होंनें किसानों के प्रति सहानुभति रखते हुए उन्हें अधिकतम मूल्य देने की चेष्टा की गई है।
इसके साथ ही राज्य सरकारों को नये बने राज्य सीमांध्र के अनुसार अधिग्रहण प्रक्रिया अपनाते हुए, सहजता से कानूनी अड़चनों से निजात पाना चाहिए। सीमांध्र के मुख्यमंत्री नें पिछले दिनों अपनी नयी राजधानी परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण के मामले में अभूतपूर्व एवं स्वगतेय कदम उठाया है, जिसकी राष्ट्र स्तरीय प्रशंसा हुई है। उनके द्वारा नई राजधानी परियोजना के लिए आवश्यक भूमि के लिए ‘लैण्ड पुलिंग’ का नवाचार प्रस्तुत किया गया है। जिसमें उन्होंनें राजधानी परियोजना के लिए अधिग्रहित होने वाले 34000 एकड़ भूमि के भू स्वामियों को भूमि के बदले विकसित भूमि देने एवं दस वर्ष तक नियमित रूप से समुचित लाभ देनें का निर्णय लिया है। इससे किसानों एवं सरकारों के बीच बेवजह होने वाले लिटिगेशनों को लगभग समाप्त कर देनें का प्रयास सीमांध्र सरकार के द्वारा किया गया है। इस स्वागतेय पहल को अपनाते हुए अन्य राज्य सरकारों को भी इस तरह की योजनाओं पर विचार करना चाहिए।
-संजीव तिवारी
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