पारम्परिक साहित्य में प्रेम एवं विरह, गद्य एवं पद्य की मूल विषय वस्तु रही है. विभिन्न महान कवि एवं लेखकों नें इसे केन्द्र में रखकर साहित्य की रचना की है. रचनाकारों के इसी सृजन से भारतीय साहित्य में भी विभिन्न नायक-नायिकाओं की कहानियॉं उपलब्ध है. इसी क्रम में उर्वशी एवं पुरूरवा की प्रेम कथायें भारतीय संस्कृत साहित्य एवं तदनन्तर हिन्दी साहित्य में भी मिलती हैं. पाठकों की रूचि के कारण रचनाकार इन प्रेम कहानियों को बार-बार नित-नव अर्थान्वयन करता हुआ नये रूप में प्रस्तुत करता है. ऐसा ही स्वागतेय प्रयास उडिया एवं अंग्रेजी के प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ.पंचानन मिश्र नें ‘पुरूरवा का पूर्वानुमान’ के रूप में किया है. उडिया में लिखी गई इस कविता का हिन्दी अनुवाद यशस्वी अनुवादक कृष्ण कुमार ‘अजनबी’ नें किया है.
उडिया में लिखी गई इस लम्बी कविता में कवि नें प्रेम एवं विरह के भावों का अद्भुत चित्रण है. इस मिथक कथा से परिचित सुधीजन जानते हैं कि पुरूरवा को मिलन से कहीं अधिक विरह को झेलना पड़ा है. कवि नें काव्य नायक असफल प्रेमी पुरूरवा का मार्मिक अंत:स्वर को इसमें शब्द दिया है. एक ऐसे अपूर्व सौंदर्यशाली, बलशाली पुरूष पुरूरवा जिससे उर्वशी जैसी अप्सरा मोहित हो जाती है उसके विरह की स्थिति का जीवंत चित्रण करता हुआ कवि लिखता है ‘हे ब्रम्हाण्ड सुन्दरी/उतर आओ धरती पर फिर से एक बार/ जीर्ण-शीर्ण अस्थि पंजर वाले../ इस शरीर में फूंक दो जीवनांश का मंत्र/ देकर एक ऐसा चुम्बन.’ ऐसा आर्तनाद करते पुरूरवा की नायिका ब्रम्हाण्ड सुन्दरी उर्वशी का परिचय कवि कुछ इस तरह से कराते हैं ‘.. और विस्तृत नितम्बों के घूर्णन पर/ गतिशील होते हैं पृथ्वी के/ उत्तर व दक्षिण गोलार्ध दोनों. कम्पित वक्षोजों के उत्थान एवं पतन पर/ लिपिबद्ध हो जाता/ मानवीय संस्कृति का लम्बा इतिहास/ हिरणी से नैनों वाली की/ तिरछी नजरों से/ मोहासक्त है स्वर्ग, मर्त्य व पाताल.’
कवि इस लम्बी कविता में इसी तरह से अपनी अभिव्यक्ति को बहुत सुन्दर ढंग से मुखरित किया है. मिलन की आस में सूखते पुरूरवा स्वयं कविता के रूप में अपनी कहानी कहता है जिसे कवि आगे बढ़ाता है. कविता में कवि की दार्शनिकता घटनाओं का प्रतीकात्मक विश्लेषण करते हुए बार बार सोचने के लिए विवश करती है. देवराज इन्द्र, लुब्धक दैत्य, चित्ररेखा व अन्य अप्सराओं के साथ उमड़ते घुमड़ते यादों के बवंडर कविता को रोचक बनाते हैं.
डॉ.पंचानन मिश्र जी की कृति ‘सीता जी की आखिरी रात’ रामचरित के सीता वनवास की कथा है. यह लम्बी कविता पूरी तरह से दर्शन पर आधारित कविता है. कवि इसे काव्य रूप में रचने के पहले अपनी मनोदशा एवं चिंतन को पाठकों के सामने रखने के लिए नौ पृष्टों में भूमिका लिखा है. बार बार अग्निपरीक्षा देती नारी के मनोभावों का मार्मिक चित्रण इस कविता में नजर आती है. राज्याभिषेक के उपरांत सीता पर लांछन लगने के कारण राम द्वारा उसे त्याग दिया जाता है. गर्भवती असहाय नारी को जंगल में इस तरह छोड़ जाने से थोथे राम राज्य की परिकल्पना पर भी जगह-जगह इसमें तीक्ष्ण व्यंग्य उपस्थित हैं. शब्दों का संयोजन एवं भाव प्रवाह अद्भुत है, कविता को पढ़ते हुए सीता के प्रति करूणा के साथ ही मानवीय सम्राट के निर्णय पर बार बार खीझ उभर आता है. कविता प्रत्येक पूर्णविरामों के साथ गंभीरता से सोंचने को मजबूर करती है. ‘सीता जी की आखिरी रात’ के कई हिस्से अत्यंत प्रभावशाली एवं उल्लेखनीय है जिन्हें मैं यहां लिखना चाहूं तो पूरे किताब की नकल यहां उतारना पड़ेगा. यह लम्बी कविता काव्य के सभी तत्वों से परिपूर्ण है, प्रादेशिक भाषा उडिया में लिखे इस उत्कृष्ट साहित्य को तो राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार मिलना चाहिए.
प्रतीकों एवं शब्द संयोजन में कवि की सिद्धस्तता दोनों पुस्तकों में स्पष्ट झलक रही है. अनुवादक के हिन्दी शब्द सामर्थ्य से यह रचना हिन्दी पाठकों के लिए भी सुगम व बोधगम्य हो गई है. इन्ही गुणों के कारण दोनों पुस्तकों को पढ़ते हुए, आरंभ से अंत तक, घटनाओं का प्रवाह अविरल रूप से मानस में समाता चला जाता है. छंदमुक्त नई कविता के स्वरूप में लिखी गई इन दोनों लम्बी कविताओं के रचनाकार डॉ.पंचानन मिश्र एवं अनुवादक कृष्ण कुमार ‘अजनबी’ को मेरी शुभकामनायें.
संजीव तिवारीपुरूरवा का पूर्वानुमान
रचनाकार : डॉ.पंचानन मिश्र
भाषान्तर : कृष्ण कुमार ‘अजनबी’
प्रकाशक : पहले पहल प्रकाशन, भोपाल
प्रथम संस्करण 2015
पृष्ट संख्या : 112
मूल्य : 150/- हार्ड बाउन्ड
सीता जी की आखिरी रात
रचनाकार : डॉ.पंचानन मिश्र
भाषान्तर : कृष्ण कुमार ‘अजनबी’
प्रकाशक : अयन प्रकाशन, नई दिल्ली
प्रथम संस्करण 2015
पृष्ट संख्या : 136
मूल्य : 260/- हार्ड बाउन्ड
waah kyaa baat hai..Mujhe ye blog bohot pasand hai..khaas taur pe likhnne ka andaaz..
जवाब देंहटाएंSarkari Naukri