सरला शर्मा की कहानी : सफेद होता लहू

समय के साथ साथ रिश्‍तों की संवेदनशीलता बदल रही है, संबंधों के बीच नि:स्‍वार्थ प्रेम और भारतीय परिवार की परम्‍परा का मजबूत किला धीरे धीरे ढहने लगा है। देश में बुजुर्ग मॉं-बाप के प्रति बेटा-बहुओं का व्‍यवहार और बृद्धाश्रम में दिन काटते तिरस्‍कृत जीवों की कहानी आप रोज पढ़ते होंगें। अमरीका जैसे गुलाबी स्‍वप्‍नों के देश में संपूर्ण सुख का भोग कर रहे बेटा-बहुओं के द्वारा अपनी ही मॉं को किस तरह भावनात्‍मक प्रतारणा दिया जा रहा है, इसकी झलक आप इस कहानी में देख सकते हैं।
सरला शर्मा, छत्‍तीसगढ़ की प्रखर लेखिका हैं, इनके पिता स्‍व.श्री शेषनाथ शर्मा 'शील' जी छत्‍तीसगढ़ के वरिष्‍ठ साहित्‍यकार के रूप में प्रतिष्ठित हैं। इन्‍होंनें हिन्‍दी, बंगला एवं छत्‍तीसगढ़ी में लेखन किया है एवं उम्र के इस पड़ाव में भी निरंतर सृजनशील हैं। अंर्तजाल जगत में इनका एक ब्‍लॉग भी है एवं वे फेसबुक व ब्‍हाट्स एप के माध्‍यम से अपनी वैचारिक दखल प्रस्‍तुत कर रही हैं। सरला दीदी नें यह कहानी मुझे बहुत पहले भेजी थी, किन्‍तु समयाभाव के कारण मैं इसे डिजिटलाईज नहीं कर पाया था, अतिथि लेखक के रूप में प्रस्‍तुत हैं उनकी एक कहानी-

सुबह - सुबह फोन की घण्टी फूटी आंख नहीं सुहाती। अरे नहीं, फूटे कान नहीं सुहाती.. पर क्या करू? जानती हॅू कि स्थानीय फोन कॉल हैं.. चलों जिसे जरूरी काम होगा, वह फिर कॉल करेगा ही.. ओह! तीसरी बार फाने ने चीखना शुरू किया, तो बेमन से थोड़ी झुंझुलाकर ही ’हलो’ बोली। अरे बाप रे ..... कान के परदे फट गये ’हलो सरला! फोन क्यो नहीं उठाती।’ आवाज पहचान गई अपूर्वा जैन मेडम थीं आश्चर्य हुआ वो तो अगले महीने आने वाली थी।...
’’हलों जैन मेडम! आप कहां से बोल रही हैं, आप तो यू.एस. गई थी बेटे के पास ...। मेरा कथन समाप्त होने के पहले ही असहिष्णु झुंझलाई हुई आवाज आई ’’हॉ जी अटलाण्टा गई थी, जार्जिया राज्य की राजधानी, व्यापार और पाश्चात्य संस्कृति का केन्द्र, खुबसूरत किन्तु व्यस्त, त्रस्त एक ऐसा शहर जहॉं आदमी को खुद के लिये भी समय निकाल पाना कठिन है... और कुछ..?
मुझे समझ में नहीं आ रहा था, क्या कहॅू सो पूछ लिया ’’अभी कहां से बोल रहीं हैं..?
तीखी आवाज में उत्तर आया ’हार्टस फील्ड जेक्सन अटलाण्टा इन्टरनेशनल एयरपोर्ट दुबई... वहॉ से दिल्ली एयरपोर्ट। अभी रायपुर एयरपोर्ट से बोल रही हॅूं... सीधे तुम्हारे पास आ रहीं हॅू... आज छुट्टी ले लो... बहुत कुछ कहना है तुमसे ... हो सकता है बाद में इतना सब साफ साफ न बता पाऊॅ...।
यह क्या बात हुई? अरे भाई! बेटे के पास से आ रही है... वो तो ठीक है... धनी देश के धनी-मानी नागरिक बन गये बेटे बहू ने सुख सुविधा का इंतजाम जुटाने में कोई कोर कसर बाकी नहीं रखा होगा... अपना सुखद अनुभव, वह भी विदेश यात्रा का वर्णन सुनाये बिना रहा नही जा रहा है... वहॉ तक तो ठीक है, पर इस तरह... आनन फानन... विवरण देने की क्या जरूरत है? अब अपना काम धाम छोड़कर जैन मेडम की अगवानी में लगूं... बड़ी... असमंजस मे पड़ गई। किन्तु, कौतूहल, मित्रता, स्त्रियोचित ईर्ष्या सबने मिलकर प्रिंसिपल से छुट्टी तो दिलवा दी...।
करीब दो घण्टे बाद जो महिला खड़ी थी, उसे जैन मेडम कहने में डर लगा। निस्तेज ऑखे, मुरझाया चेहरा, शिथिल पड़ गई मांस पेशियॉ... पीली पड़ गई थीं वो। इन दो महिनों में ही उनकी उम्र दस साल बढ़ गई क्या? सोचनें लगी पुत्रगर्व से गर्विता माता की यह कैसी दशा है? शिष्टाचार वश कुछ बोली नहीं... भीतर आते ही वे सोफे पर धंस गई... पानी का गिलास एक ही सांस में खाली हो गया... सहसा मेरा हाथ पकड़कर रोने लगी... मेरा हाथ उनकी पीठ पर पहुंचा ही था कि भरे गले से बोली... ’सरला! अपने घर में थोड़ी सी जगह दोगी? मरते तक मेरी देखभाल कर सकोगी?’
यह कैसा प्रश्न है? जिसने जाति-धर्म, भाषा बोली, सगे-संबंधी की सीमा पार करके मनुष्यता को जगा दिया? जैन मेडम मुझसे दस - बारह साल बड़ी होंगी, दुनिया देखी, मजबूत इरादों वाली महिला है फिर इतनी अधीरता, इतनी दीनता क्यों? उन्हे शांत करने को बोली, ’’ हॉ...हॉ... मेडम आपका ही घर है, चलिये थक गई होंगी, आखीर बीस, इक्कीस घण्टे की हवाई यात्रा कम तो नहीं होती...चलिये... नहा धोकर, कुछ खा पी लीजिये, फिर आराम से बैठकर बातें करेंगे... आज की छुट्टी ले ली हूॅ...।’
यथासमय बातें शुरू हुई। इस बार मेरी उत्सुकता बढ़ चली थी तो बोली... ’हॉ मेडम। आप दीवान पर लेटे हुये ही अपनी सुनाइये मैं भी सोफे पर आराम से बैठ जाती हॅू। थोड़ी देर मुझे एकटक निहारने के बाद बोली ’कब से कैसे शुरू करू सरला... पिछले दिनों की मानसिक यंत्रणा, ऊहापोह और अनिश्चित भविष्य की आशंका... किस किस का जिक्र करूॅ...? तुम तो जानती हो कि अनुज मेरा बेटा अटलाण्टा की साफ्टवेयर कम्पनी में इंजीनियर है, दो बेटे है उसके...। बच्चों के स्कूल चले जाने पर बहू अकेली पड़ी रहती थी, तो उसने भी किसी गारमेन्ट कम्पनी में सुपर वाइजर की नौकरी कर ली... पैसों की कमीं नहीं रहीं... तो काफी बड़ा घर खरीद लिया...। पर वहॉ नौकर - चाकर तो मिलते नहीं... घर का रख - रखाव, खाना बनाना, घरेलू काम, बच्चों को पढ़ाना फिर नौकरी... आसान तो होता नहीं... बहू चिड़चिड़ाने लगी... थक जाती थी... ऐसे में मेरी याद आई... अकेली पड़ी रहती हॅू तो अब उनके साथ रहूॅ... यहॉ तक तो ठीक था... मैं अनुज को ना नहीं कह सकी आखिर अपनों का साथ इस उम्र में प्रलोभन देता ही है... चली गई...’।
मैंने पूछा ’अकेली कैसे चली गई... इतनी दूर...।’ उन्होने कहा इसके पहले भी जा चुकी थी, तब मि. जैन साथ थे। तब हम दोनों तीन महीने वहॉ रूके थे, तो इस बार अकेली चली गई। वह तो बाद में समझ आया कि यह जाना कुछ और था... बहू ने धीरे से घर का सारा काम समझा दिया... मैं भी व्यस्त हो गई... हॉ बच्चों से बातचीत में भाषा आड़े आती थी...। बेटा भारतीय खाने की फरमाइश करता... मैं खुशी-खुशी बनाती खिलाती...।’
’आप थक नहीं जाती थी, फिर वहॉ के बदलते मौसम में आपकी तबीयत...।’ वाक्य पूरा नहीं कर पाई वे बोल उठी...। ’हॉ ... यही से तो मुश्किल की शुरूआत हुई। आये दिन होने वाली बारिश, बादलों से ढका आसमान, सारे दिन की मेहनत... मेरी तबियत खराब होने लगी... कभी सिर चकराने लगता, तो हाथ पैर का दर्द अलग से... कभी कभी सांस फूलने लगती...।’ जैन मेडम ने बताया।
मैं सोचने लगी उम्र के इस पड़ाव पर शरीर आराम चाहता है बोली ’जैन मेडम ! आपने बेटे बहू से कहॉ क्यो नहीं... वहॉ तो अच्छे डाक्टर अच्छी दवाए मिल जाती है।’
धीमे से मुस्कुरा कर जैन मेडम ने कहॉ ’मॉ हूॅ ना... बेटे बहू की व्यस्तता, दिन भर थके हारे, घर लौटे बच्चों से अपना दुखड़ा रोकर उन्हे तकलीफ क्यां दूॅ यही सोचती थी...।
इसी बीच एक दिन बहू को एक नया विचार आया बोली ’मम्मी! आप तो बोर होती होंगी, ऐसा कीजिये कि कम्प्यूटर पर स्काइप पर जाकर हिन्दी पढ़ाने का काम शुरू कर दीजिये। एक घण्टे के लेक्चर का 300 डालर मिलेगा... काम भी होगा कुछ आमदनी भी हो जायेगी...।’
मेरे ना नुकुर करने पर बेटे ने सुझाव दिया - डरिये मत, गूगल में जाकर सर्च करेंगी तो भूले भटके प्रसंग याद आ जायेंगे, कोई कठिन नहीं है...।
’’जैन मेडम आपने बेटे से पूछा नहीं कि घर बैठे... बिना विद्यार्थियों के पढ़ाने का काम कैसे होगा।’’ मैने कहा तो - उन्होने बताया कि वहॉ पर इसे लांग डिस्टेन्स लेक्चर कहते है...।
आखिर... जैन मेडम ने वहॉ - बेटे बहू की खुशी के लिये यह भी शुरू कर दिया... कुछ ही दिनों में उन्हें लेक्चर देना अच्छा लगने लगा पर कम्प्यूटर पर लगे रहने से घर का काम करने को समय नहीं बचता था और वह थक भी जाती थी। बहू का मुॅह फूलने लगा। सबसे बड़ी शिकायत यह थी कि वहॉ जैन मेडम का मेडिकल इंश्योरेंस तो था नहीं, वहॉ तो डॉक्टरों की फीस बहुत ज्यादा है फिर महंगी दवाइयों का खर्च अलग से... दुनियादार बहू को यह खर्च गवारा नहीं था। देर रात गये... पानी पीने उठी जैन मेडम ने सुना बहू कह रही थाी। ’डायमण्ड मंगलसूत्र तो वह लाई नहीं, जो कपड़े लाई हैं वह भी ढंग के नहीं हैै, वहॉ अकेली रहती है, कोई खर्च तो है नहीं, पैंसों का करती क्या है, सोची थी यहीं रख लेगे, थोडी मदद हमारी भी हो जायेगी वह भी नहीं हो पा रहा है। इनकी दवाओं का खर्च अलग से... न हो इन्हे वहीं भेज दो...।’
बहू के विचारों ने जैन मेडम के कानों मे ताले लगा दिये। बेटे ने क्या कहा - सुन लेती तो... रही सही कसर पूरी हो जाती। पर मेरा सोचना सही नहीं था... चार दिनों बाद बेटे का तीखा स्वर सुनाई दे ही गया ’रूचि! भूलो मत की मैं मम्मी का इकलौता बेटा हूॅ मुझे ही उन्हे देखना है फिर अभी तो उन्ही के कमाये डालर हमारे एकाउंट में जमा है, भूलो मत की मम्मी ही तुमको पसंद करके लाई थी, वह भी बिना दान दहेज के...।’
अनुज आगे कुछ और कहता कि झमक कर रूचि ने कहा ’’कौन सा उपकार किया था, वे अच्छी तरह जानती थी कि पढ़ी लिखी हॅू विदेश में भी चार पैसा कमा सकूंगी और उनके बेटे का घर भी संभाल सकूंगी...।’’ ठीक है निभाइये अपनी जिम्मेदारी... वहॉ भी तो वृद्वाश्रम खुल गये है... वहीं रखिये... पैसे आप दीजिये... मैं मना नहीं करती... कम से कम हम तो यहॉ चैन से रह सकेंगें।’’
अवाक रह गई मै... तभी जैन मेडम की सिसकियां कान में पड़ी। मेरे पास तो सांत्वना के शब्द भी नहीं थे... क्या कहती? चुपचाप उनके हाथ को थपकती रही... कभी कभी स्पर्श भी भाषा बन जाती है... मौन मुखर हो जाता है...। धीरे धीरे मेडम शांत होने लगी...।
आखें पोंछकर बोली... ’’सरला! अकेली विधवा मॉ इस उम्र में घर में गर्ल्स हॉस्टल चला कर कैसे जीवन काट रही है, इसकी चिन्ता नहीं है, बेटे बहू हो तकलीफ ना हो इसलिये कभी उनसे कुछ मांगा नहीं... लहू का रंग सफेद कैसे हो गया... कब हो गया?’’ सात समुंदर पार की दूरी मॉ बेटे के बीच की दूरी कब बन गई? संबंधों की उष्मा ठण्डे प्रदेश में पहुंच कर ठण्डी हो जाती है क्या? जन्मभूमि से दूरी जननी जनक से भी दूरी पैदा कर देती है, यह तो नहीं सुना था। मैं सोचने लगी जैन मेडम के हृदय में जमी, दुख की शिला बोलने पर ही पिघलेगी... तो सुनती रही...।
वे फिर बोलने लगीं ’इस तरह तो वे हजारों बूढे़ मां बाप जो अपने बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिये उन्हे विदेश भेजकर खुश हाते है, गर्व से सिर ऊॅचा कर चलते है, अपने बुढ़ापे के प्रति निश्चिंत होते है, उन सबका गर्व, आशा, भरोसा सब बिखर जायेगा। आसन्न मृत्यु की पदचाप सुनते ये वृ़द्ध दम्पति अपने ही बच्चों की अर्थ लोलुपता की हुंकार सुनते, मृत्यु की कामना करते शेष जीवन बितायेंगे। चिन्ता इस बात की भी रहेगी कि जो पहले जायेगा वह चिता में जलने से पहले चिता में जलेगा कि जो पीछे छूट रहा है, वह किसके सहारे जियेगा? पीछे छूटने वाला साथी आगामी अकेलेपन से डरा सहमा, बिछुड़े साथी का शोक भी ठीक से मना नहीं पायेगा, आंसू बहे इसके पहले ही भविष्य की चिन्ता ऑखों को मरूस्थल बना देगी। रिश्तों की भावनाओं की, पारिवारिक जिम्मेदारियों की कैसी भयावह सच्चाई सामने आ रही है?
मैं सोचने लगी इस स्थिति में वृद्धाश्रमों की स्थापना कितना जरूरी हो गया है? समाज सेवी संस्थायें, हमारा प्रशासन इस समस्या को कब, कैसे सुलझायेगी। लंबी सांस खींचकर जैन मेडम ने कहा, ’’सरला! आज प्रतिभावान युवा वर्ग का पलायन तो हो रहा है, आस-पड़ोस, दूर ही दराज के क्षेत्रों में भी युवा वर्ग बेरोजगारी की मार से बचने विदेशों की ओर पलायन कर रहा है। इसके लिये किसे दोष दें... आर्थिक उदारीकरण, बाजारवाद, उपभोक्तावादी संस्कृति, कौन जिम्मेदार है...?
मैने कहा ’नहीं, जैन मेडम! सिर्फ भारतीय परिवार नहीं सारा संसार इस दर्द से अछूता नहीं बचेगा, संवेदनाहीन समाज में भावनाहीन किन्तु, हाड़ मांस के चलते फिरते रोबोट ही रह जायेंगे..। मानवीय मूल्यों का विनाश समस्त मानवजाति को अंधेरों की ओर खींच जे जायेगा... दुख इस बात का है।’
जैन मेडम ने कहा ’तुम ठीक कहती हो दर्द का यह सैलाब नाते रिश्ते परिवार सबको बहा ले जायेगा... तब क्या होगा?’
जैन मेडम को आराम करने को कहा, उनकी ऑखे मुंदने लगी... पर मेरी ऑखे खुली थी, सोचने लगी... नहीं... मेरे मन में असंख्य प्रश्न नागफनी की तरह उग आये थे, जिनकी चुभन मेरी चेतना को लहूलुहान कर रही थी। युवा वर्ग का इस तरह परदेशी होना... परिवार, समाज और देश के लिये कितना भयावह है, असंख्य असहाय जर्जर वृद्ध स्त्री पुरूषों वाला भारत तब किस दिशा में कैसे और कितनी प्रगति कर सकेगा...? मानती हॅू, लहू का रंग सफेद होने लगा है।
-सरला शर्मा, दुर्ग

1 टिप्पणी:

  1. अन्तर्मन को छूती , भावना को तरासने की सीख देती , सुन्दर - कहानी । सरला , तुम्हें बहुत - बहुत बधाई ।

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणियों का स्वागत है. (टिप्पणियों के प्रकाशित होने में कुछ समय लग सकता है.) -संजीव तिवारी, दुर्ग (छ.ग.)

लेबल

संजीव तिवारी की कलम घसीटी समसामयिक लेख अतिथि कलम जीवन परिचय छत्तीसगढ की सांस्कृतिक विरासत - मेरी नजरों में पुस्तकें-पत्रिकायें छत्तीसगढ़ी शब्द Chhattisgarhi Phrase Chhattisgarhi Word विनोद साव कहानी पंकज अवधिया सुनील कुमार आस्‍था परम्‍परा विश्‍वास अंध विश्‍वास गीत-गजल-कविता Bastar Naxal समसामयिक अश्विनी केशरवानी नाचा परदेशीराम वर्मा विवेकराज सिंह अरूण कुमार निगम व्यंग कोदूराम दलित रामहृदय तिवारी अंर्तकथा कुबेर पंडवानी Chandaini Gonda पीसीलाल यादव भारतीय सिनेमा के सौ वर्ष Ramchandra Deshmukh गजानन माधव मुक्तिबोध ग्रीन हण्‍ट छत्‍तीसगढ़ी छत्‍तीसगढ़ी फिल्‍म पीपली लाईव बस्‍तर ब्लाग तकनीक Android Chhattisgarhi Gazal ओंकार दास नत्‍था प्रेम साईमन ब्‍लॉगर मिलन रामेश्वर वैष्णव रायपुर साहित्य महोत्सव सरला शर्मा हबीब तनवीर Binayak Sen Dandi Yatra IPTA Love Latter Raypur Sahitya Mahotsav facebook venkatesh shukla अकलतरा अनुवाद अशोक तिवारी आभासी दुनिया आभासी यात्रा वृत्तांत कतरन कनक तिवारी कैलाश वानखेड़े खुमान लाल साव गुरतुर गोठ गूगल रीडर गोपाल मिश्र घनश्याम सिंह गुप्त चिंतलनार छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग छत्तीसगढ़ वंशी छत्‍तीसगढ़ का इतिहास छत्‍तीसगढ़ी उपन्‍यास जयप्रकाश जस गीत दुर्ग जिला हिन्दी साहित्य समिति धरोहर पं. सुन्‍दर लाल शर्मा प्रतिक्रिया प्रमोद ब्रम्‍हभट्ट फाग बिनायक सेन ब्लॉग मीट मानवाधिकार रंगशिल्‍पी रमाकान्‍त श्रीवास्‍तव राजेश सिंह राममनोहर लोहिया विजय वर्तमान विश्वरंजन वीरेन्‍द्र बहादुर सिंह वेंकटेश शुक्ल श्रीलाल शुक्‍ल संतोष झांझी सुशील भोले हिन्‍दी ब्‍लाग से कमाई Adsense Anup Ranjan Pandey Banjare Barle Bastar Band Bastar Painting CP & Berar Chhattisgarh Food Chhattisgarh Rajbhasha Aayog Chhattisgarhi Chhattisgarhi Film Daud Khan Deo Aanand Dev Baloda Dr. Narayan Bhaskar Khare Dr.Sudhir Pathak Dwarika Prasad Mishra Fida Bai Geet Ghar Dwar Google app Govind Ram Nirmalkar Hindi Input Jaiprakash Jhaduram Devangan Justice Yatindra Singh Khem Vaishnav Kondagaon Lal Kitab Latika Vaishnav Mayank verma Nai Kahani Narendra Dev Verma Pandwani Panthi Punaram Nishad R.V. Russell Rajesh Khanna Rajyageet Ravindra Ginnore Ravishankar Shukla Sabal Singh Chouhan Sarguja Sargujiha Boli Sirpur Teejan Bai Telangana Tijan Bai Vedmati Vidya Bhushan Mishra chhattisgarhi upanyas fb feedburner kapalik romancing with life sanskrit ssie अगरिया अजय तिवारी अधबीच अनिल पुसदकर अनुज शर्मा अमरेन्‍द्र नाथ त्रिपाठी अमिताभ अलबेला खत्री अली सैयद अशोक वाजपेयी अशोक सिंघई असम आईसीएस आशा शुक्‍ला ई—स्टाम्प उडि़या साहित्य उपन्‍यास एडसेंस एड्स एयरसेल कंगला मांझी कचना धुरवा कपिलनाथ कश्यप कबीर कार्टून किस्मत बाई देवार कृतिदेव कैलाश बनवासी कोयल गणेश शंकर विद्यार्थी गम्मत गांधीवाद गिरिजेश राव गिरीश पंकज गिरौदपुरी गुलशेर अहमद खॉं ‘शानी’ गोविन्‍द राम निर्मलकर घर द्वार चंदैनी गोंदा छत्‍तीसगढ़ उच्‍च न्‍यायालय छत्‍तीसगढ़ पर्यटन छत्‍तीसगढ़ राज्‍य अलंकरण छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंजन जतिन दास जन संस्‍कृति मंच जय गंगान जयंत साहू जया जादवानी जिंदल स्टील एण्ड पावर लिमिटेड जुन्‍नाडीह जे.के.लक्ष्मी सीमेंट जैत खांब टेंगनाही माता टेम्पलेट डिजाइनर ठेठरी-खुरमी ठोस अपशिष्ट् (प्रबंधन और हथालन) उप-विधियॉं डॉ. अतुल कुमार डॉ. इन्‍द्रजीत सिंह डॉ. ए. एल. श्रीवास्तव डॉ. गोरेलाल चंदेल डॉ. निर्मल साहू डॉ. राजेन्‍द्र मिश्र डॉ. विनय कुमार पाठक डॉ. श्रद्धा चंद्राकर डॉ. संजय दानी डॉ. हंसा शुक्ला डॉ.ऋतु दुबे डॉ.पी.आर. कोसरिया डॉ.राजेन्‍द्र प्रसाद डॉ.संजय अलंग तमंचा रायपुरी दंतेवाडा दलित चेतना दाउद खॉंन दारा सिंह दिनकर दीपक शर्मा देसी दारू धनश्‍याम सिंह गुप्‍त नथमल झँवर नया थियेटर नवीन जिंदल नाम निदा फ़ाज़ली नोकिया 5233 पं. माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकार परिकल्‍पना सम्‍मान पवन दीवान पाबला वर्सेस अनूप पूनम प्रशांत भूषण प्रादेशिक सम्मलेन प्रेम दिवस बलौदा बसदेवा बस्‍तर बैंड बहादुर कलारिन बहुमत सम्मान बिलासा ब्लागरों की चिंतन बैठक भरथरी भिलाई स्टील प्लांट भुनेश्वर कश्यप भूमि अर्जन भेंट-मुलाकात मकबूल फिदा हुसैन मधुबाला महाभारत महावीर अग्रवाल महुदा माटी तिहार माननीय श्री न्यायमूर्ति यतीन्द्र सिंह मीरा बाई मेधा पाटकर मोहम्मद हिदायतउल्ला योगेंद्र ठाकुर रघुवीर अग्रवाल 'पथिक' रवि श्रीवास्तव रश्मि सुन्‍दरानी राजकुमार सोनी राजमाता फुलवादेवी राजीव रंजन राजेश खन्ना राम पटवा रामधारी सिंह 'दिनकर’ राय बहादुर डॉ. हीरालाल रेखादेवी जलक्षत्री रेमिंगटन लक्ष्मण प्रसाद दुबे लाईनेक्स लाला जगदलपुरी लेह लोक साहित्‍य वामपंथ विद्याभूषण मिश्र विनोद डोंगरे वीरेन्द्र कुर्रे वीरेन्‍द्र कुमार सोनी वैरियर एल्विन शबरी शरद कोकाश शरद पुर्णिमा शहरोज़ शिरीष डामरे शिव मंदिर शुभदा मिश्र श्यामलाल चतुर्वेदी श्रद्धा थवाईत संजीत त्रिपाठी संजीव ठाकुर संतोष जैन संदीप पांडे संस्कृत संस्‍कृति संस्‍कृति विभाग सतनाम सतीश कुमार चौहान सत्‍येन्‍द्र समाजरत्न पतिराम साव सम्मान सरला दास साक्षात्‍कार सामूहिक ब्‍लॉग साहित्तिक हलचल सुभाष चंद्र बोस सुमित्रा नंदन पंत सूचक सूचना सृजन गाथा स्टाम्प शुल्क स्वच्छ भारत मिशन हंस हनुमंत नायडू हरिठाकुर हरिभूमि हास-परिहास हिन्‍दी टूल हिमांशु कुमार हिमांशु द्विवेदी हेमंत वैष्‍णव है बातों में दम

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को ...