कुछ जमीन से कुछ हवा से : रंगों और तूलिकाओं की दुनिया में तीन दिन

- विनोद साव


अतिथि चित्रकार अखिलेश के साथ लेखक.
भिलाई के चित्रकार हरि सेन ने फोन किया था कि ‘भिलाई में चित्रकला पर तीन दिनों का बढ़िया आयोजन है .. आप अपने विचारों के साथ आ जाइये.’ ऐसा कहते हुए उनके छत्तीसगढ़ी के चिर परिचित जुमले थे ‘भइगे कका.. जान दे कहाथे’. हरि सेन से मेरा परिचय १९९३ से है जब उन्होंने मेरे पहले व्यंग्य संग्रह ‘मेरा मध्य प्रदेशीय ह्रदय’ का मुखपृष्ठ बनाया था. लेकिन मुझे चित्रकारों के बीच में ‘लॉन्च’ किया है चित्रकार डी.एस.विद्यार्थी और सूक्ष्म कलाकार अंकुश देवांगन ने. मेरा मन शिल्पों, चित्रों और रंगों की दुनियां में शुरू से ही रमा रहा है. हाँ .. चित्रकारों की संगत देर से मिल रही है.

मैं हर शाम ऑफिस से निकलता और इन तूलिकाओं और उनके रंगों की दुनिया में जा समाता. पहली शाम सिविक सेंटर के नेहरु आर्ट गैलरी में थी जहाँ कला प्रेमी नेहरु को हार पहना कर चित्रकला प्रदर्शनी का उदघाटन किया गया. इस अवसर पर अनेक चित्रकारों व भिलाई के अधिकारियों कर्मचारियों के बीच इंदौर से आये प्रसिद्ध चित्रकार व लेखक अखिलेश उपस्थित थे. गोल गुम्बद वाली इस गैलरी में चित्रों को देखना एक अलहदा अनुभव होता है.

सभी चित्र आधुनिक कलाओं के यानी ‘माडर्न आर्ट’ के थे. तीन दिनों के इस चित्रमय आयोजन को स्वच्छता अभियान को समर्पित किया गया था. चित्रों में औद्योगिक विकास के साथ मिलने वाले प्रदूषण की ओर ध्यान आकर्षित किया गया था. अखिलेश के बनाये कुछ चित्रों में मशीनीकरण के बीच फंसे मनुष्य के द्वन्द को इस प्रकार दर्शाया गया था मानों वे भी मशीन के कल पुर्जे हो गए हों. एक अन्य चित्रकार ने धूल और कालिमा से अंटे एक पेड़ को दर्शाया था जो स्पंज आयरन फैक्टरी की देन थे. कुछ ताल तलैया थे जिनमे प्रदूषित जलों की वीभत्सता को दर्शाया गया था.


कैनवास पर चित्र बनाते हुए सुनीता वर्मा तथा अन्य चित्रकार
इस तीन दिवसीय आयोजन की एक बड़ी विशेषता यह थी कि कला पर विमर्श करने की कोशिश की गई थी. दूसरे दिन भिलाई क्लब में कला विमर्श पर गोष्ठी थी. भिलाई आर्ट क्लब के अध्यक्ष आर.के.मेराल ने बताया था कि ‘यह द्विपक्षीय सम्प्रेषण का विमर्श है जिसमें चित्र बनाने वाले और चित्रों को देखने वाले दोनों अपनी बातें कह सकेंगे. यह एक तरह से विमर्श में जन भागीदारी है.’ संचालन कर रहे सत्यवान नायक ने जब मुझे बोलने का अवसर दिया तब बातें इस तरह निकलीं कि ‘कला के किसी भी प्रति-रूप का सम्प्रेषण जितनी बड़ी चुनौती कला को देखने वाले के लिए है उससे बड़ी चुनौती यह कला का सृजन करने वाले के लिए है. और यह चुनौती सबसे अधिक माँडर्न आर्ट के लिए है.. यहाँ प्रदर्शित कलाओं की यह बड़ी विशेषता है कि वे हमारे कल कारखानों से बढते प्रदूषण को बता पा रही हैं. हमें सावधान कर पा रही हैं.’

१९३६ में बनी फिल्म ‘चार्ली इन माँडर्न टाइम्स’ में चार्ली चेप्लिन ने इस भोगवादी संस्कृति और उत्पादन की मारामारी के बीच मनुष्य को भी मशीन बना देने जैसे मालिकों के जघन्य कृत का खुलासा किया था. चैप्लिन को यह फिल्म बनाने की प्रेरणा महात्मा गाँधी से मिली थी.’

गोष्ठी के मुख्य वक्ता अखिलेश थे. कान में बाली पहने ऊंची कद काठी वाले अखिलेश केवल एक चित्रकार ही नहीं हैं एक अच्छे लेखक भी हैं. पिछले दिनों भिलाई के सार्वजनिक वाचनालय से उनकी एक किताब हासिल हुई थी ‘मकबूल’ नाम की जो मकबूल फ़िदा हुसैन पर लिखी गई है. अखिलेश इसमें लिखते हैं कि ‘आज भी कला महाविद्यालय में प्रवेश लेने वाले युवा मन में पहली छवि हुसैन की ही होती है. यह आलोक हुसैन अकेले दम पर फैलाते हैं, जिसमें कई साल बाद आने वाला युवा चित्रकार भी प्रकाशित होता है.’

आयोजन के तीसरे दिन ऐसे कई युवा चित्रकार प्रकाशित हो रहे थे और अपनी तूलिकाओं से आलोक फैला रहे थे उस सौ फुट लंबे सफ़ेद कैनवास पर. यह कैनवास नेहरु आर्ट गैलेरी के सामने फैलाया गया था जिसमें हरि सेन, सुनीता वर्मा, योगेन्द्र त्रिपाठी जैसे वरिष्ठ चित्रकारों के साथ अनेक युवा चित्रकार भी अपनी तूलिकायें लेकर जुट गए थे और रंगों की छटा बिखरा रहे थे. यह रंगों और चित्रों की एक अलग दुनियां थी जो अद्भुत और अविस्मणीय थी.




20 सितंबर 1955 को दुर्ग में जन्मे विनोद साव समाजशास्त्र विषय में एम.ए.हैं। वे भिलाई इस्पात संयंत्र में प्रबंधक हैं। मूलत: व्यंग्य लिखने वाले विनोद साव अब उपन्यास, कहानियां और यात्रा वृतांत लिखकर भी चर्चा में हैं। उनकी रचनाएं हंस, पहल, ज्ञानोदय, अक्षरपर्व, वागर्थ और समकालीन भारतीय साहित्य में भी छप रही हैं। उनके दो उपन्यास, चार व्यंग्य संग्रह और संस्मरणों के संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। कहानी संग्रह प्रकाशनाधीन है। उन्हें कई पुरस्कार मिल चुके हैं। वे उपन्यास के लिए डॉ. नामवरसिंह और व्यंग्य के लिए श्रीलाल शुक्ल से भी पुरस्कृत हुए हैं। आरंभ में विनोद जी के आलेखों की सूची यहॉं है।
संपर्क मो. 9407984014, निवास - मुक्तनगर, दुर्ग छत्तीसगढ़ 491001
ई मेल -vinod.sao1955@gmail.com


1 टिप्पणी:

  1. अच्छी जानकारी इस आयोजन की ... कला और साहित्य के ऐसे मौके कम ही मिलते हैं आज कल ...

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