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छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

’लोक साहित्य म लोक प्रतिरोध के स्वर’ बर रचना आमंत्रित हे

साकेत साहित्य परिषद् सुरगी ह पीछू पंदरह बरस ले सरलग अपन सालाना कार्यक्रम म कोनों न कोनों महत्वपूर्ण विषय ल ले के विचार गोष्ठी के आयोजन करत आवत हे। निर्धारित विषय ऊपर केन्द्रित स्मारिका के प्रकाशन घला करे जाथे। विषय विशेषज्ञ के रूप म आमंत्रित विद्वान मन गोष्ठी म विचार मंथन करथें। इही सिलसिला म 23 फरवरी 2014 में गंडई पंडरिया म छत्तीसगढ़ी हाना ल ले के विचार गोष्ठी के आयोजन करे गे रिहिस। गोष्ठी म डॉ.विनय पाठक, डॉ.गोरेलाल चंदेल, डॉ.जीवन यदु, डॉ.पीसी लाल यादव, डॉ.दादूलाल जोशी जइसे विद्वान मन के अनमोल विचार सुने बर मिलिस। गोष्ठी अउ ये मौका म प्रकाशित स्मारिका के सब झन प्रशंसा करिन। आगामी गोष्ठी 22 फरवरी 2015 म प्रस्तावित हे (तिथि म बदलाव संभव हे)। परिचर्चा के विषय होही - ’लोक साहित्य म लोक प्रतिरोध के स्वर’।

छत्तीसगढ़ ह लोकसाहित्य के मामला म समृद्ध हे। विभिन्न प्रकार के लोकगीत, लोककथा, लोकगाथा, लोक परंपरा म प्रचलित प्रतीक चिह्न अउ हाना; जम्मो ह लोकसाहित्य म समाहित हे। आप सबो झन जानथव कि साहित्य ह अभिव्यक्ति के माध्यम आय। हिरदे के प्रेम-विषाद्, हर्ष-उल्लास, सुख-दुख, के अभिव्यक्ति ल तो हम साहित्य के माध्यम ले करबे करथन; येकर अलावा घला मन के सहमति-असहमति अउ वो जम्मों गोठ, जम्मों काम जउन ल हम क्रियात्मक रूप म नइ कहि सकन, नइ कर सकन, वो सब ल साहित्य के माध्यम ले कहिथन, करथन। अइसन तरह के अभिव्यक्ति करे के मामला म लोक अउ लोकसाहित्य के बराबरी कोनों साहित्य ह नइ कर सकय। लोकसाहित्य के माध्यम ले लोक ह अपन विरोध ल अतका मारक ढंग ले पन अतका सुंदर अउ कलात्मक रूप म व्यक्त करथे कि वोकर मन के भड़ास ह घला निकल जाथे अउ सुनइया ल खराब घला नइ लागय। उदाहरण बर सुवा गीत ल ले सकथन। वइसे तो सुवा गीत के माध्यम ले नारी-मन के हर्ष-उल्लास के अभिव्यक्ति घला होथे फेर ये गीत ह प्रमुख रूप ले पुरूष प्रधान समाज द्वारा नारी उत्पीड़न के विरोध म नारी-मन के सामूहिक अभिव्यक्ति के गीत आवय। एक पद देखव -

’ठाकुर पारा जाइबे तंय घुम-फिर आइबे,
तंय घुम-फिर आइबे, रे सुवा न;
कि सेठ पारा झन जाइबे,
रे सुवा न; कि सेठ पारा झन जाइबे।
सेठ टुरा हे बदन इक मोहनी,
बदन इक मोहनी, रे सुवा न,
कि कपड़ा म लेथे मोहाय।
रे सुवा न, कि कपड़ा म लेथे मोहाय।’

विचार करव, सेठ वर्ग ल शोषक वर्ग के पर्याय माने जाथे। ये पद म शोषक वर्ग के प्रतिरोध जउन कलात्मक सौन्दर्य के साथ करे गे हे वो ह कला अउ सौन्दर्य, दोनों के पराकाष्ठा नो हे? हमर लोकसाहित्य ह अइसनहे कतरो कलात्मक प्रतिरोध के स्वर ले भरे पड़े हे। एक हाना देखव - ’खेत बिगाड़े सोमना, गाँव बिगाड़े बाम्हना।’ ये ह लोक प्रतिरोध के स्वर नो हे त अउ काये? देवार मन अपन लइका-बच्चा के नाम रखथें - पुलिस, कप्तान, तहसीलदार, श्रीदेवी, आदि। सोचव, ये ह का आवय।

साकेत साहित्य परिषद् सुरगी ह अपन अगामी स्मारिका खातिर आप सब्बो विद्वान मन ले रचना भेजे के निवेदन करत हे। विषय याद रखहू - ’लोक साहित्य म लोक प्रतिरोध के स्वर’। वइसे संदर्भ तो छत्तीसगढ़ी लोकसाहित्य हे, पन भारत के दूसर क्षेत्र के लोक साहित्य के संदर्भ ल घला मान्य करे जाही। संक्षिप्त व सारगर्भित रचना केवल छत्तीसगढ़ी या हिन्दी म कृतिदेव 010 या चाणक्य फाण्ट म र्ह मेल से स्वीकार करे जाही। रचना भेजे खातिर ई मेल पता -
kubersinghsahu@gmail.com

निवेदक
कुबेर
संरक्षक, साकेत साहित्य परिषद सुरगी
जिला - राजनांदगाँव

टिप्पणियाँ

  1. सुन्दर विचार । एकर ले साहित्य के विस्तार होही । साहित्य निखरही ।

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