’लोक साहित्य म लोक प्रतिरोध के स्वर’ बर रचना आमंत्रित हे

साकेत साहित्य परिषद् सुरगी ह पीछू पंदरह बरस ले सरलग अपन सालाना कार्यक्रम म कोनों न कोनों महत्वपूर्ण विषय ल ले के विचार गोष्ठी के आयोजन करत आवत हे। निर्धारित विषय ऊपर केन्द्रित स्मारिका के प्रकाशन घला करे जाथे। विषय विशेषज्ञ के रूप म आमंत्रित विद्वान मन गोष्ठी म विचार मंथन करथें। इही सिलसिला म 23 फरवरी 2014 में गंडई पंडरिया म छत्तीसगढ़ी हाना ल ले के विचार गोष्ठी के आयोजन करे गे रिहिस। गोष्ठी म डॉ.विनय पाठक, डॉ.गोरेलाल चंदेल, डॉ.जीवन यदु, डॉ.पीसी लाल यादव, डॉ.दादूलाल जोशी जइसे विद्वान मन के अनमोल विचार सुने बर मिलिस। गोष्ठी अउ ये मौका म प्रकाशित स्मारिका के सब झन प्रशंसा करिन। आगामी गोष्ठी 22 फरवरी 2015 म प्रस्तावित हे (तिथि म बदलाव संभव हे)। परिचर्चा के विषय होही - ’लोक साहित्य म लोक प्रतिरोध के स्वर’।

छत्तीसगढ़ ह लोकसाहित्य के मामला म समृद्ध हे। विभिन्न प्रकार के लोकगीत, लोककथा, लोकगाथा, लोक परंपरा म प्रचलित प्रतीक चिह्न अउ हाना; जम्मो ह लोकसाहित्य म समाहित हे। आप सबो झन जानथव कि साहित्य ह अभिव्यक्ति के माध्यम आय। हिरदे के प्रेम-विषाद्, हर्ष-उल्लास, सुख-दुख, के अभिव्यक्ति ल तो हम साहित्य के माध्यम ले करबे करथन; येकर अलावा घला मन के सहमति-असहमति अउ वो जम्मों गोठ, जम्मों काम जउन ल हम क्रियात्मक रूप म नइ कहि सकन, नइ कर सकन, वो सब ल साहित्य के माध्यम ले कहिथन, करथन। अइसन तरह के अभिव्यक्ति करे के मामला म लोक अउ लोकसाहित्य के बराबरी कोनों साहित्य ह नइ कर सकय। लोकसाहित्य के माध्यम ले लोक ह अपन विरोध ल अतका मारक ढंग ले पन अतका सुंदर अउ कलात्मक रूप म व्यक्त करथे कि वोकर मन के भड़ास ह घला निकल जाथे अउ सुनइया ल खराब घला नइ लागय। उदाहरण बर सुवा गीत ल ले सकथन। वइसे तो सुवा गीत के माध्यम ले नारी-मन के हर्ष-उल्लास के अभिव्यक्ति घला होथे फेर ये गीत ह प्रमुख रूप ले पुरूष प्रधान समाज द्वारा नारी उत्पीड़न के विरोध म नारी-मन के सामूहिक अभिव्यक्ति के गीत आवय। एक पद देखव -

’ठाकुर पारा जाइबे तंय घुम-फिर आइबे,
तंय घुम-फिर आइबे, रे सुवा न;
कि सेठ पारा झन जाइबे,
रे सुवा न; कि सेठ पारा झन जाइबे।
सेठ टुरा हे बदन इक मोहनी,
बदन इक मोहनी, रे सुवा न,
कि कपड़ा म लेथे मोहाय।
रे सुवा न, कि कपड़ा म लेथे मोहाय।’

विचार करव, सेठ वर्ग ल शोषक वर्ग के पर्याय माने जाथे। ये पद म शोषक वर्ग के प्रतिरोध जउन कलात्मक सौन्दर्य के साथ करे गे हे वो ह कला अउ सौन्दर्य, दोनों के पराकाष्ठा नो हे? हमर लोकसाहित्य ह अइसनहे कतरो कलात्मक प्रतिरोध के स्वर ले भरे पड़े हे। एक हाना देखव - ’खेत बिगाड़े सोमना, गाँव बिगाड़े बाम्हना।’ ये ह लोक प्रतिरोध के स्वर नो हे त अउ काये? देवार मन अपन लइका-बच्चा के नाम रखथें - पुलिस, कप्तान, तहसीलदार, श्रीदेवी, आदि। सोचव, ये ह का आवय।

साकेत साहित्य परिषद् सुरगी ह अपन अगामी स्मारिका खातिर आप सब्बो विद्वान मन ले रचना भेजे के निवेदन करत हे। विषय याद रखहू - ’लोक साहित्य म लोक प्रतिरोध के स्वर’। वइसे संदर्भ तो छत्तीसगढ़ी लोकसाहित्य हे, पन भारत के दूसर क्षेत्र के लोक साहित्य के संदर्भ ल घला मान्य करे जाही। संक्षिप्त व सारगर्भित रचना केवल छत्तीसगढ़ी या हिन्दी म कृतिदेव 010 या चाणक्य फाण्ट म र्ह मेल से स्वीकार करे जाही। रचना भेजे खातिर ई मेल पता -
kubersinghsahu@gmail.com

निवेदक
कुबेर
संरक्षक, साकेत साहित्य परिषद सुरगी
जिला - राजनांदगाँव

आयोजन : गंडई पंडरिया में साकेत साहित्य परिषद् सुरगी का पंद्रहवाँ सम्मान समारोह एवं वैचारिक संगोष्ठी सम्पन्न


हाना न केवल छत्तीसगढी भाषा की प्राण है अपितु यह इस भाषा का स्वभाव और श्रृँगार भी है : कुबेर


23 फरवरी 2014 को गंडई पंडरिया में साकेत साहित्य परिषद् सुरगी का पंद्रहवाँ सम्मान समारोह एवं वैचारिक संगोष्ठी सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रगतिशील विचारधारा के सुप्रसिद्ध समालोचक-साहित्यकार डॉ. गोरेलाल चंदेल (खैरागढ़) ने की। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सुप्रसिद्ध भाषाविद्, साहित्यकार व संपादक डॉ. विनय कुमार पाठक (बिलासपुर) एवं विशिष्ट अतिथि डॉ. जीवन यदु, डॉ. दादूलाल जोशी, डॉ. पीसीलाल यादव, डॉ माघीलाल यादव, आ. सरोज द्विवेदी, श्री हीरालाल अग्रवाल तथा डॉ. सन्तराम देशमुख थे। 'छत्तीसगढ़ी जनजीवन पर हाना का प्रभाव' विषय पर केन्द्रित संगोष्ठी के प्रारंभ में आधार वक्तव्य देते हुए परिषद् के संरक्षक कथाकार कुबेर ने कहा कि छत्तीसगढ़ी भाषा में मुहावरों, कहावतों और लोकोक्तियों को 'हाना' कहा जाता है। हाना न केवल छत्तीसगढी भाषा की प्राण है अपितु यह इस भाषा का स्वभाव और श्रृँगार भी है। आम बोलचाल में छत्तीसगढ़ियों का कोई भी वाक्य हाना के बिना पूर्ण नहीं होता। कभी-कभी तो पूरी बात ही हानों के द्वारा कह दी जाती है। छत्तीसगढ़ी हाना लक्षणा के अलावा व्यंजना शब्द शक्ति से भी युक्त होती है। इसके अलावा लोकोक्तियों के रूप में प्रयुक्त हानों में अन्योक्ति अलंकार का भी समावेश होता है। एक उदाहरण देखिये - आगू के भंइसा पानी पीये, पाछू के ह चिखला चॉंटे। इसका आशय है, सामूहिक भोज के समय पीछे रह जाने वालों के लिए भोजन कम पड़ने की संभावना रहती है।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ. विनय पाठक ने कहा कि हाना पूर्णत: अपने परिवेश और जनजीवन पर आधारित होते हैं। एक ऊक्ति है - 'कानून अंधा होता है।' छत्तीसगढ़ में लोग कहते हैं - 'कानून होगे कनवा अउ भैरा होगे सरकार।' यह लोक की निरीक्षण-शक्ति से उत्पन्न ऊक्ति है, जो उनके भोगे गये यथार्थ से आती है और इसीलिए यह 'कानून अंधा होता है' जैसे बहुप्रचलित ऊक्ति से कहीं अधिक मारक और तथ्यपरक है। लोकमान्यता में कानून अंधा नहीं बल्कि काना होता है जिसकी खुली आँख निम्न वर्ग की ओर रहती है, उसे उसके छोटे-मोटे हर अपराध के लिए तुरंत दण्डित करती है परन्तु बंद आँख उच्च वर्ग की ओर रहती है, और उनके बड़े से बड़े अपराध को भी अनदेखा करने के आरोप से खुद को बचाती है। आजकल शोधार्थियों द्वारा शब्दकोश से किसी हाना का छत्तीसगढ़ी में अनुवाद करके प्रस्तुत करने का गलत प्रचलन बढ़ रहा है। 'ऊँट के मुँह म जीरा' इसका उदाहरण है। छत्तीसगढ़ में न तो ऊँट होते हैं और न ही जीरा। इस आशय का छत्तीसगढ़ी हाना है 'हाथी के पेट म सोहारी' साकेत साहित्य परिषद ने हाना का संकलन व इस पर संगोष्ठियों की शुरूआत कर सराहनीय कार्य किया है।

अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में डॉ. गोरेलाल चंदेल ने कहा कि हाना लोकभाषा और लोकजीवन के गाढ़े अनुभव से पैदा होते हैं। वस्तुतत्व को अतिशय प्रभाव से प्रस्तुत करने की कला ही हाना है। इसमें अनुभव और निरीक्षण, दोनों ही प्रभावी ढंग से परिलक्षित होते हैं। हाना में निश्चित ही व्यंजना होती है जिसके प्रभाव से यह अपने परिवेश से निकलकर वैश्विक रूप धारण कर लेता है। एक हाना है - 'कोढ़िया बइला रेंगे नहीं, रेंगही त मेड़ फोर।' यह हाना ग्राम्य परिवेश में जितना सार्थक है उतना ही आज के तथाकथित बाहुबलियों और महाशक्तियों की राष्ट्रीय और वैश्विक परिवेश के लिए भी सार्थक है।

हाना बनने की स्वाभाविक प्रक्रिया और शब्द शक्तियों के अंतर्संबंधों को हीरालाल अग्रवाल ने रोचक प्रसंगों के माध्यम से प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा; डॉक्टर जब मरीज से पूछता है - 'तोला कइसे लागत हे?' तब मरीज जवाब देता है - 'कइसे लागत हे।' डॉक्टर और मरीज के शब्द 'कइसे लागत हे' एक जैसे हैं, पर मरीज का जवाब, 'कइसे लागत हे' उसकी अभिव्यक्ति कौशल के कारण, नया अर्थ ग्रहण करके एक हाना बन जाता है; ठीक वैसे ही, जैसे - 'ऐसे-वैसे कैसे-कैसे हो गए, कैसे-कैसे, कैसे-कैसे हो गए।'

आचार्य सरोज द्विवेदी ने कहा कि यदि मैं कहूँ - 'एक रूपया चाँऊर' तो आपको इशारा समझने में कोई दिक्कत नहीं होगी और आजकल 'पप्पू' और फेंकू' का क्या मतलब है, इसे भी आप बखूबी जानते हैं। हाना ऐसे ही बनते है। डॉ. जीवन यदु ने कहा कि हाना प्रथमत: भाषा का मामला है। इसमें देश, समाज और अर्थतंत्र के अभिप्राय निहित होते हैं। डॉ. दादूलाल जोशी ने कहा कि हाना में 'सेंस ऑफ ह्यूमर' होता है, इसीलिए हाना में कही गई बातों का लोग बुरा नहीं मानते हैं। यशवंत मेश्राम ने कहा कि हाना में 'हाँ' और '' अर्थात स्वीकार्यता और अस्वीकार्यता दोनों निहित होते हैं। हाना की अर्थ-संप्रेषणीता और मारकता इन्हीं दोनों के समन्वित प्रभाव से आती है। प्रारंभ में डॉ. पीसीलाल यादव ने 'जिसकी लाठी उसकी भैंस''आँजत-आँजत कानी होगे' तथा 'पान म दरजा हे फेर हमर म नहीं', जैसे हानों की उत्पत्ति के संभावित प्रसंगों को रोचक कहानियों के द्वारा समझाया।

सम्मान की कड़ी में साहित्यकार श्री बी.डी.एल श्रीवास्तव, लोककलाकार-गायक श्री द्वारिका यादव (शिक्षक) तथा कवि-उद्घोषक श्री नन्द कुमार साहू (शिक्षक) को 2014 का साकेत सम्मान प्रदान किया गया। इस अवसर पर हाना पर केन्द्रित पत्रिका 'साकेत स्मारिका 2014' तथा कथाकार-संपादक सुरेश सर्वेद की छत्तीसगढ़ी कहानियों का संग्रह 'बनकैना' का विमोचन भी किया गया। 

हाना पर केन्द्रित इस महत्वपूर्ण संगोष्ठी के लिए सभी अतिथियों ने साकेत साहित्य परिषद् सुरगी के प्रयासों को सराहा जिसके माध्यम से इतनी गहन, महत्वपूर्ण व सार्थक परिचर्चा संभव हो सकी। इस संगोष्ठी में साकेत साहित्य परिषद के सदस्य व पदाधिकारियों के अलावा कथाकार-संपादक सुरेश सर्वेद, डॉ. सन्तराम देशमुख, डॉ. माघी लाल यादव, राजकमल सिंह राजपूत तथा बड़ी संख्या में साहित्य प्रेमी उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन ओमप्रकाश साहू 'अंकुर' तथा आभार प्रदर्शन लखन लाल साहू 'लहर' ने किया।

एक ठो अउर राजधानी नामा: बौद्धिकता का पैमाना

हमारे पिछले फेसबुक स्टेट्स ‘पवित्र उंगलिंयॉं‘ में  कमेंटियाते हुए प्रो.अली सैयद नें हमारी पर्यवेक्षणीयता की सराहना की थी. हम भी सोंचें कि ऐसा कैसे हुआ, व्यावसायिक कार्य हेतु दिल्ली, ट्रेन से आना जाना तो लगा रहता है पर ऐसी पर्यवेक्षणीयता हर बार नहीं होती. बात दरअसल यह थी कि मोबाइल चोरी चला गया था, ना कउनो फेसबुक, ना ब्लॉग पोस्ट, ना मेल सेल, ना एसएमएस, ना गोठ बात. तो कान आंख खुले थे जब किटिर पिटिर करने को मोबाईल ना हो तो, खाली मगज चलबे करी.





त हुआ का कि, हमारे सामने के सीट म एक नउजवान साहेब बइठे रहिन. टीटी टिकस पूछे त, बताईन हम रेलवे के साहब हूं. हम देख रहे थे, बिल्कुल साहेब जइसे दिख भी रहे थे. हमने सोंचा भले साहब की रूचि हम पर ना हो फिर भी समें काटे खातिर उनसे बात शुरू की जाए. बाते म पता चली कि साहेब भारतीय रेलवे अभियांत्रिकी सेवा के अधिकारी हैं, झांसी में पदस्थ हैं, नाम है अहमद, लखनउ के हैं. 

अहमद साहेब के रौब दाब देख के हमहू बताए दिए के बंगलोर में हमारे भी मित्र है, रेलवे अभियांत्रिकी सेवा के साहब हैं. अहमद साहब हमारा मन रखने के लिए पूछे के, ‘का नाम है, आपके मित्र का.‘ हमने बताया ‘प्रवीण पाण्डेय.‘ सामने बइठे अहमद साहब तनि चकराए. अब उनकी आवाज से लगा के कउनो तवज्जो दीन है साहब नें. अहमद साहेब खुश होकर बताने लगे के ‘प्रवीण पाण्डेय साहब तो झांसी में रहे हैं. हमसे सीनियर पोस्ट में थे, बड़ा नाम है साहब का झांसी में, कड़क और इमानदार साहब हैं.‘ हमसे पूछा कि ‘आपसे कइसे पहचान है.‘ 


हम सोंचे बड़ बुडबक है यार उ पांडे हम तेवारी ऐतना नइ बुझाता. फिर खामुस खा गए. थूंक घुटके फिर बोले ‘उ बड़ा उम्दा हिन्दी ब्लागर हैं और हम भी ब्लॉगर हैं एइ कारन पहचान है.‘ अहमद साहेब नें दूसरा क्बेसचन दागा, ‘मतलब आपका ये टिकट पाण्डेय साहब के अप्रोच से कनफर्म हुआ है.‘ हम चकराए कि इनको कईसे पता चला कि अपरोच से टिकट कनफर्म हुआ. कने लगे, ‘लिस्ट में आपके नाम के आगे एच. ओ. लिखा है, दो दिन पहले बना टिकट कहीं इन दिनों बिना अपरोच के कनफर्म होता है भला.‘ हमने कहा ‘अरे नहीं भाई, ई तो हमारे कलाईंटें न कटवाया है, कउनो मंत्री संत्री से करवाए होंगें कनफर्म. हमको नइ पता.‘ उन्होंनें कहा ‘ओह!‘

इसी बात पर अहमद साहब नें टिकट कनफर्म कराने आने वाले मित्रों और रिश्तेदारों के फोन की कथा सुनाई और अपनी बेबसी का खुलासा किया. हमने भी कहानियों को सुनते हुए उन्हीं की तरह बार बार बोला ‘ओह!‘

तब तक अहमद साहब प्रवीण पाण्डेय जी का ब्लॉग ‘न दैन्यं ना पलायनम‘ माबाईल में ढूंढ निकाले थे और प्रशन्नता से बांचने लगे... खामोशी. 

कुछ देर बाद हमें लगा के इन पर अब अपना रौब दाबा जाए. हमने बताया के ‘हमहू हिन्दी ब्लॉगर हैं अउर हमारी भी वैश्विक पहचान है. फलां फलां सम्मान मिला है, ये है, वो है, माटी वाले हैं, कुल मिला कर हम हम हैं.‘ 

‘वाह भई!‘ तब तक अहमद साहब हमारा ब्लॉग भी मोबाईल में चाप लिए थे. आपके ब्लॉग में तो दूसरों के भी पोस्ट हैं. हम तनि झेंपियाते हुए बोले ‘का है ना कि हम आजकल बहुत बियस्त रहते हैं इस कारन पोस्ट नहीं लिख पाते...‘ ये तो गनीमत था कि अहमद साहब ब्लॉगर नहीं थे नहीं तो हमारी वैश्विक पहचान दुई मिनट में धूल में मिल जाती, हालांकि एसी कूपे में मिलाने लायक धूल नहीं थी इस बात का भी सकून था. उनके हाव भाव से पता चल रहा था कि हमारे बताने के बावजूद वे हमें असामान्य कतई नहीं मान रहे थे जबकि हम अपनी वैश्विकता सिद्ध करना चाह रहे थे. 

बात ना बनते देख हमने एक चांस अउर लिया. हमने उन्हें बताया कि ‘इलाहाबाद में हमारे एक और पहचान के हैं. रेलवे में बड़का पोस्ट में है, नाम है उनका ज्ञानदत्त पाण्डेय.‘ अहमद साहब उपर पंखे की ओर देखते रहे, लगा वे उसकी रफ़तार बढ़ाना चाह रहे थे. 

हमने आगे बताया कि ‘वे मालगाड़ी परिवहन से संबंधित विभाग में बड़का साहेब हैं.‘ अहमद साहब नें कहा कि ‘वो कोई बड़ा पोस्ट नहीं होता.‘ बात गिरते देखकर हमने कहा कि ‘नइ जी, बड़े पोस्ट में हैं, बिट्स पिलानी के ग्रेजुएट हैं, सीनियर हैं.‘ अहमद साहब झट इलाहाबाद फोन लगा लिए. पूछने लगे ‘किसी ज्ञानदत्त पाण्डेय को जानते हो.‘ उधर से आ रही आवाजों को हम अहमद के आंखों की चमक से सुनने लगे. फोन बंद करने के बाद अहमद साहब नें मुस्कुराते हुए बताया कि ‘ज्ञानदत्त पाण्डेय जी चीफ आपरेटिंग मैनेंजर हैं अब गोरखपुर में हैं.‘ उन्होंनें स्वीकारा कि वे बहुत बड़े पोस्ट में हैं, दिल को सूकूं मिला. 

आगे अहमद साहब नें बताया कि जिनको उन्होंनें फोन किया था वे ज्ञानदत्त पाण्डेय जी की काफी प्रशंसा कर रहे थे, कह रहे थे कि ‘बहुतै अच्छे अदमी हैं, कबि हैं मने गियानी हैं..‘

बातों बातों में झांसी टेसन आ गया, अहमद साहब हाथ मिलाकर दरवाजे की ओर चले गए. हम भी दुर्ग उतर गए, फिन अब तक सोंच रहे हैं. ज्ञानदत्त जी तो गद्यकार हैं, उनके कवि होने की जानकारी हमें नहीं है. संभवतः सामने वाले नें कवि होने का मतलब बौद्धिकता से लगाया होगा, मने बौद्धिकता का पैमाना कविता है.

संजीव तिवारी 

अशोक सिंघई एवं विद्यादेवी साहू को पतिराम साव सम्मान


विगत ग्यारह वर्षों से दुर्ग में प्रतिष्ठित ‘समाजरत्न पतिराम साव सम्मान’ साहित्य, शिक्षा और समाजसेवा के क्षेत्र में कार्य करने वाले विशिष्ट जनों को दिया जाता है। इस वर्ष यह अलंकरण साहित्य के लिए भिलाई के प्रसिद्ध कवि एवं समीक्षक अशोक सिंघई को और समाजसेवा के लिए रायपुर की सामाजिक कार्यकर्ता विद्यादेवी साहू को दिया गया। अतिथियों ने शाल, श्रीफल और अभिनंदन पत्र भेंटकर इन विशिष्ट जनों का सम्मान किया। इस अवसर पर कार्यक्रम के मुख्य अतिथि रविशंकर विश्वfद्यालय, रायपुर के कुलपति डॉ.शिवकुमार पाण्डेय ने कहा कि ‘पतिराम साव की समाजसेवा कोई जातिगत समाज सेवा नहीं थी, उन्होंने अपने समय में समाज के विभिन्न घटकों को जोड़ने और हमेशा उन्हें समाज की मुख्यधारा में लाने का कार्य किया था। समाजसेवा, साहित्य और शिक्षा के क्षेत्रों में वे जहां भी सक्रिय रहे समाज के सभी लोगों को एक साथ लेकर चले। उनका यह प्रयास हमारे आज के समय की भी एक बड़ी जरुरत है।’ समारोह की अध्यक्षता करते हुए अशोका इंजीनियfरंग कालेज, राजनांदगांव के चेयरमैन सचिन fसंह बघेल ने अपने आत्मीय वक्तव्य में कहा कि ‘यह मेरा सौभाग्य रहा कि पतिराम सावजी के यशस्वी परिवार से मेरी सम्बद्धता विगत चार दशकों से रही है। सावजी के ज्येष्ठ सुपुत्र ख्यातनाम प्राचार्य अर्जुनfसंह साव हमारे न केवल गुरु थे बल्कि हमारे संस्कारपुंज थे, जिनके कारण पतिराम सावजी के सामाजिक प्रभावों को मुझे निकट से देखने का मौका मिला था।’

सम्मान अलंकरण ग्रहण करते हुए भिलाई के साहित्यकार अशोक सिंघई ने कहा कि ‘यहां उपस्थितजन मेरे सम्मान में नहीं सावजी के सम्मान में उपस्थित हुए हैं।’ उन्होंने मॉं पर अपनी भावपूर्ण कविताओं का पाठ किया जिसे श्रोताओं ने सराहा। दूसरे सम्मानित अतिथि रायपुर से पधारीं सामाजिक कार्यकर्ता विद्यादेवी साहू ने कहा कि ‘सामूहिक आदर्श विवाह और महिला सशक्तीकरण आज की बड़ी आवश्यकता है और इन सबकी प्रेरणा हमें सावजी जैसे कर्मशील व्यक्तित्वों से मिली। विद्यादेवी ने साव जी की कविता का पाठ कर उपस्थितनों को विभोर किया।

विगत 30 मार्च को ‘साहू सदन’ दुर्ग में संपन्न हुए इस कार्यक्रम का संचालन सुबोध साव ने किया। स्वागत भाषण प्रो.ललितकुमार साव ने और आयोजकीय वक्तव्य विनोद साव ने दिया। अभिनंदन पत्रों का वाचन मैंना साहू व नीता कम्बोज ने किया। अतिथियों का पुष्पगुच्छ से स्वागत सर्वश्री केशरलाल साहू, प्रदीप भट्टाचार्य, प्रशान्त कानस्कर, शरद कोकास तथा अन्य ने किया। आभार प्रदर्शन परमेश्वर वैष्णव ने किया। इस अवसर पर साहू समाज के सदस्यगणों के बीच साहित्यकार लोकबाबू, मुमताज, डॉ.निर्वाण तिवारी, प्रदीप वर्मा, गुलबीरसिंह भाटिया, रघुवीर अग्रवाल पथिक, डी.पी.देशमुख एवं डॉ.नलिनी श्रीवास्तव सहित अनेक प्रबुद्ध महिलाएं भारी संख्या में उपस्थित थीं।

लेबल

संजीव तिवारी की कलम घसीटी समसामयिक लेख अतिथि कलम जीवन परिचय छत्तीसगढ की सांस्कृतिक विरासत - मेरी नजरों में पुस्तकें-पत्रिकायें छत्तीसगढ़ी शब्द Chhattisgarhi Phrase Chhattisgarhi Word विनोद साव कहानी पंकज अवधिया सुनील कुमार आस्‍था परम्‍परा विश्‍वास अंध विश्‍वास गीत-गजल-कविता Bastar Naxal समसामयिक अश्विनी केशरवानी नाचा परदेशीराम वर्मा विवेकराज सिंह अरूण कुमार निगम व्यंग कोदूराम दलित रामहृदय तिवारी अंर्तकथा कुबेर पंडवानी Chandaini Gonda पीसीलाल यादव भारतीय सिनेमा के सौ वर्ष Ramchandra Deshmukh गजानन माधव मुक्तिबोध ग्रीन हण्‍ट छत्‍तीसगढ़ी छत्‍तीसगढ़ी फिल्‍म पीपली लाईव बस्‍तर ब्लाग तकनीक Android Chhattisgarhi Gazal ओंकार दास नत्‍था प्रेम साईमन ब्‍लॉगर मिलन रामेश्वर वैष्णव रायपुर साहित्य महोत्सव सरला शर्मा हबीब तनवीर Binayak Sen Dandi Yatra IPTA Love Latter Raypur Sahitya Mahotsav facebook venkatesh shukla अकलतरा अनुवाद अशोक तिवारी आभासी दुनिया आभासी यात्रा वृत्तांत कतरन कनक तिवारी कैलाश वानखेड़े खुमान लाल साव गुरतुर गोठ गूगल रीडर गोपाल मिश्र घनश्याम सिंह गुप्त चिंतलनार छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग छत्तीसगढ़ वंशी छत्‍तीसगढ़ का इतिहास छत्‍तीसगढ़ी उपन्‍यास जयप्रकाश जस गीत दुर्ग जिला हिन्दी साहित्य समिति धरोहर पं. सुन्‍दर लाल शर्मा प्रतिक्रिया प्रमोद ब्रम्‍हभट्ट फाग बिनायक सेन ब्लॉग मीट मानवाधिकार रंगशिल्‍पी रमाकान्‍त श्रीवास्‍तव राजेश सिंह राममनोहर लोहिया विजय वर्तमान विश्वरंजन वीरेन्‍द्र बहादुर सिंह वेंकटेश शुक्ल श्रीलाल शुक्‍ल संतोष झांझी सुशील भोले हिन्‍दी ब्‍लाग से कमाई Adsense Anup Ranjan Pandey Banjare Barle Bastar Band Bastar Painting CP & Berar Chhattisgarh Food Chhattisgarh Rajbhasha Aayog Chhattisgarhi Chhattisgarhi Film Daud Khan Deo Aanand Dev Baloda Dr. Narayan Bhaskar Khare Dr.Sudhir Pathak Dwarika Prasad Mishra Fida Bai Geet Ghar Dwar Google app Govind Ram Nirmalkar Hindi Input Jaiprakash Jhaduram Devangan Justice Yatindra Singh Khem Vaishnav Kondagaon Lal Kitab Latika Vaishnav Mayank verma Nai Kahani Narendra Dev Verma Pandwani Panthi Punaram Nishad R.V. Russell Rajesh Khanna Rajyageet Ravindra Ginnore Ravishankar Shukla Sabal Singh Chouhan Sarguja Sargujiha Boli Sirpur Teejan Bai Telangana Tijan Bai Vedmati Vidya Bhushan Mishra chhattisgarhi upanyas fb feedburner kapalik romancing with life sanskrit ssie अगरिया अजय तिवारी अधबीच अनिल पुसदकर अनुज शर्मा अमरेन्‍द्र नाथ त्रिपाठी अमिताभ अलबेला खत्री अली सैयद अशोक वाजपेयी अशोक सिंघई असम आईसीएस आशा शुक्‍ला ई—स्टाम्प उडि़या साहित्य उपन्‍यास एडसेंस एड्स एयरसेल कंगला मांझी कचना धुरवा कपिलनाथ कश्यप कबीर कार्टून किस्मत बाई देवार कृतिदेव कैलाश बनवासी कोयल गणेश शंकर विद्यार्थी गम्मत गांधीवाद गिरिजेश राव गिरीश पंकज गिरौदपुरी गुलशेर अहमद खॉं ‘शानी’ गोविन्‍द राम निर्मलकर घर द्वार चंदैनी गोंदा छत्‍तीसगढ़ उच्‍च न्‍यायालय छत्‍तीसगढ़ पर्यटन छत्‍तीसगढ़ राज्‍य अलंकरण छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंजन जतिन दास जन संस्‍कृति मंच जय गंगान जयंत साहू जया जादवानी जिंदल स्टील एण्ड पावर लिमिटेड जुन्‍नाडीह जे.के.लक्ष्मी सीमेंट जैत खांब टेंगनाही माता टेम्पलेट डिजाइनर ठेठरी-खुरमी ठोस अपशिष्ट् (प्रबंधन और हथालन) उप-विधियॉं डॉ. अतुल कुमार डॉ. इन्‍द्रजीत सिंह डॉ. ए. एल. श्रीवास्तव डॉ. गोरेलाल चंदेल डॉ. निर्मल साहू डॉ. राजेन्‍द्र मिश्र डॉ. विनय कुमार पाठक डॉ. श्रद्धा चंद्राकर डॉ. संजय दानी डॉ. हंसा शुक्ला डॉ.ऋतु दुबे डॉ.पी.आर. कोसरिया डॉ.राजेन्‍द्र प्रसाद डॉ.संजय अलंग तमंचा रायपुरी दंतेवाडा दलित चेतना दाउद खॉंन दारा सिंह दिनकर दीपक शर्मा देसी दारू धनश्‍याम सिंह गुप्‍त नथमल झँवर नया थियेटर नवीन जिंदल नाम निदा फ़ाज़ली नोकिया 5233 पं. माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकार परिकल्‍पना सम्‍मान पवन दीवान पाबला वर्सेस अनूप पूनम प्रशांत भूषण प्रादेशिक सम्मलेन प्रेम दिवस बलौदा बसदेवा बस्‍तर बैंड बहादुर कलारिन बहुमत सम्मान बिलासा ब्लागरों की चिंतन बैठक भरथरी भिलाई स्टील प्लांट भुनेश्वर कश्यप भूमि अर्जन भेंट-मुलाकात मकबूल फिदा हुसैन मधुबाला महाभारत महावीर अग्रवाल महुदा माटी तिहार माननीय श्री न्यायमूर्ति यतीन्द्र सिंह मीरा बाई मेधा पाटकर मोहम्मद हिदायतउल्ला योगेंद्र ठाकुर रघुवीर अग्रवाल 'पथिक' रवि श्रीवास्तव रश्मि सुन्‍दरानी राजकुमार सोनी राजमाता फुलवादेवी राजीव रंजन राजेश खन्ना राम पटवा रामधारी सिंह 'दिनकर’ राय बहादुर डॉ. हीरालाल रेखादेवी जलक्षत्री रेमिंगटन लक्ष्मण प्रसाद दुबे लाईनेक्स लाला जगदलपुरी लेह लोक साहित्‍य वामपंथ विद्याभूषण मिश्र विनोद डोंगरे वीरेन्द्र कुर्रे वीरेन्‍द्र कुमार सोनी वैरियर एल्विन शबरी शरद कोकाश शरद पुर्णिमा शहरोज़ शिरीष डामरे शिव मंदिर शुभदा मिश्र श्यामलाल चतुर्वेदी श्रद्धा थवाईत संजीत त्रिपाठी संजीव ठाकुर संतोष जैन संदीप पांडे संस्कृत संस्‍कृति संस्‍कृति विभाग सतनाम सतीश कुमार चौहान सत्‍येन्‍द्र समाजरत्न पतिराम साव सम्मान सरला दास साक्षात्‍कार सामूहिक ब्‍लॉग साहित्तिक हलचल सुभाष चंद्र बोस सुमित्रा नंदन पंत सूचक सूचना सृजन गाथा स्टाम्प शुल्क स्वच्छ भारत मिशन हंस हनुमंत नायडू हरिठाकुर हरिभूमि हास-परिहास हिन्‍दी टूल हिमांशु कुमार हिमांशु द्विवेदी हेमंत वैष्‍णव है बातों में दम

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को ...