सर्वोच्च अदालत ने सही निर्णय और भारतीयता के प्रति न्याय किया


क्या सब कुछ बनाने वाले एक ऊपरवाले से भी ऊपर है सोनीया या राहुल या नाज फाउण्डेशन या कि वो हमारी दो पीढ़ी पहले के पूर्वजो से अक्ल मे अबके ये मंत्री इतने ही आगे बढ़ गये है कि जो बात महात्मा गांधी और डॉ.राजेन्द्र प्रसाद, चाचा नेहरू, बाबा साहब और भी लाखों अक्लमदों ने तब काफी सोची-लिखी लम्बी बहस के बाद सविंधान में बनायी वो गलत कहते है! कोई तो खुल के यह बोले, क्या तब भी उन विद्वानों में कोई अक्ल की कमी थी, जो उन्होनें वह धारा संविधान में जारी रखी जिससे असमाजिक कृत्य मानते हुऐ समलैंगिकता को एक गैरकानूनी कारनामा माना। लंदन से पढ़ कर तो ये महान विभूतियां वकालत और उससे भी बड़ी डिग्री उन दासता और अभाव के जमाने में ले आये थे। पता नहीं राहुल और सोनिया कितने पढ़े लिखे हैं और राज चलाने की कितनी बड़ी यूनीर्वसीटी के टॉप के स्कालर हैं? जो भी हो। पर गलत तो गलत है, चाहे त्रिया हठ या बाल हठ या राज हठ में ही करनों क्यों ना पडे। या तो एक मानसिक विकलांगता है समलैंगिकता अथवा फिर परिपक्व जिस्म वाले दोपाये जीव के पास अ-परिपक्व, अविकसित व अल्पविकसित दिमाग की सोच! नहीं तो कम से कम यह तो माना ही जा सकता है, किसी मंद बुद्धि के भेजे में आयी विकृत सोच का परिणाम। यह स्वतः सिद्ध तथ्य है कि मानव जाति एक उभयलिंग जीव है! क्या नहीं है? क्या इसमें सोनीया या राहुल या अमेरिका से पढ़े राजनेताओं को कोई शक है? नयी अगली पीढ़ी को जीवन देने के लिए स्त्री पुरूष का ही सहवास चाहिए। कौन से अर्थशास्त्र या वकालत के ज्ञान में शरीर रचना का विशेष पाठ इन समलैंगिकता के पैराकार नेताओं ने सीखा है।
कम से कम अब तक की विज्ञान की उपलब्धियां ने दोपाये जीव को ऐक प्यारा सा इंसान नहीं बना सकी। वह तो एक सोच ही करती है। ऐसे में प्रकृति के प्रतिकूल निर्णय ले कर क्या समाज की उच्च स्तरीय अस्तितव को बचाया जा सकता है? नहीं! संभव ही नहीं। पशुतर स्वभाव में कमी और मानवीय गुणों की ग्राह्यता का अभाव यही दिख रहा है। तब भी चाहे किसी के विचार के लिए क्या ठीक या गलत कहें वो बात सही बताऐं कि - रोगी हो कोई! बीमार है कोई! तो इलाज और बचाव की जरूरत है। पागल या विक्षिप्त की भांति कामुकता की अधिकता के रोग ग्रस्त भी लोग होते ही है। मानसिक विकारों और बीमारियों पर नित नयी खोजों से मनुष्य अभी तक स्वास्थ्य पाने के रास्ते समझ ही रहा है।
क्यों कर आदमी रोगी होता है। निदान और उपचार की प्रक्रिया के अनुसंधान में नित नयी बातें आती है। मानव प्रगति में आज का जीव-वैज्ञानिक अपनी क्षमता से पुरूष को स्त्री और विपरीत लिगीं बनाने में सफल हो चुके हैं। समलैंगिक आर्कषण का इलाज लिंग परिवर्तन करा कर सह जीवन जीने की व्यवस्था करें पर प्रकृति के विरूद्ध ना जाऐ इंसान। वरना एड्स जैसे और क्या क्या रोग होगें।
समलैंगिता अप्राकृतिक है, सभी मानते है और यह मनुष्य समाज में सर्वकालिक थी इस वास्तविकता को भी जानते है। लेकिन सर्वकालिक तो ढेरों कुरीतियां थी। कई कुरीतियों को समाज ने वक्ती तौर पर अपनाया और फिर त्यागा भी। आज भी समाज में विवेचना वैसी चीजों पर होती रहती है। करने वाले तो सिगरेट व शराब की पैरवी करते हैं मगर वो ही गांजा, चरस, हशीश को जलावा देते हैं। जैसे की करने वाले तो सिगरेट व शराब की पैरवी करते हैं मगर वो ही गांजा, चरस, हशीश को जलावा देते हैं। क्यों कर वो प्रकृति के अनुरूप जीवनयापन करना चाहिए इसकी बात नहीं समझ पा रहे है, संभव है कि भूल से बचपन में बच्चा जो मुँह में लगा दे या हर चीज चख चख कर देखता है चाहे मैला हो या मिट्टी। ऐसे में कौन सा बड़ा वैसी हर ओछी हरकत करने की मंजूरी देता है? बालक का दिमाग जब तक सीख नहीं पाता तब तक महज उत्सुकता में विकसित होते यौन अगों को लेकर खुद ही अपने आप में और दिल के करीबी सबसे खुले आदमी के साथ उद्वेलित आन्नदित या विद्युतिक अनुभव का सकोंच में जिक्र करता है। परिपक्वता की ओर बढ़ती उमर में अलग अलग सोच के साथ प्रयोगिक दौर और हमउमर व समवय के समुह में मानव संतान सीखती है। परिपक्व मतिष्क की उमर में आते आते सब ठीक ही हो जाता है। मगर सब की जिन्दगी में सब कुछ सही नहीं होता। कुछ लोगों का दिमाग बढ़ नहीं पाता।
कुछ गलत संगत में पड जाते है और जीवन का बोधज्ञान उचित नहीं हो पाता। शारीरिक यौन रोगों की भातिं ही मानसिक यौन रोग भी है। ये तो जीव वैज्ञानिकों के अनुसंधान और समाज को दिशा देने वाले बुद्धिजीवी वर्ग की सोच पर निर्भर करता है। कल की पीढ़ी के पास ही मानवीय समाज की व्याख्या और जीवन जीने का दृष्टिकोण सहज ही प्रतिबिंबत होगा। ऐसा ना हो कि आज के निर्णयों की खामियों को कल की पीढ़ी वैसे ही दुत्कारें जैसे सती प्रथा और अन्य कुरीतियां अपना ली गयी पूर्वजों को घृणा के साथ अंधेर कालीन या काला युग कह कर हम इतिहास में लिखते हैं।
भारतीय कानून की बात करने वाले संविधान में अधिकारों की धाराऐं बताते हैं मगर वह पहली पंक्ति भी तो याद रखें की वो सारे अधिकार “भारत के लोगों” कि लिए हैं। किसी भी दोपाये जीव के नाते नहीं। ऐसी मांग करने वालों को भारतीयता की समझ वाला कौन सा आधार कार्ड दिया है। बापूजी ने कहा था मूक है भारत की जनता। उसकी इच्छा, आशा, उम्मीद पर जनप्रतिनिधि को प्राथमिकता देनी चाहीए। आखिर भारतीय सभ्यता के अनुरूप भी तो कुछ कहो, जनता की मर्जी के अनुसार समाजिक गठन पर कुछ करो।
यही कारण है कि रामदेव जैसे सरीखे समाज के योग सेवक शब्द रहीत हो बोझिल हो कर तर्क की जगह उल्टा प्रश्न ही पूछते है कि बताऐं - क्या कहीं राहुल समलैंगिक तो नहीं।
आगामी आलेख :-
1. बिस्‍मार्क : कुबेर
2. सोमवार, 7 अक्तूबर 2013 भारत की राजनीति : कुबेर

1 टिप्पणी:

  1. हो जग का कल्याण, पूर्ण हो जन-गण आसा |
    हों हर्षित तन-प्राण, वर्ष हो अच्छा-खासा ||

    शुभकामनायें आदरणीय

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणियों का स्वागत है. (टिप्पणियों के प्रकाशित होने में कुछ समय लग सकता है.) -संजीव तिवारी, दुर्ग (छ.ग.)

लेबल

संजीव तिवारी की कलम घसीटी समसामयिक लेख अतिथि कलम जीवन परिचय छत्तीसगढ की सांस्कृतिक विरासत - मेरी नजरों में पुस्तकें-पत्रिकायें छत्तीसगढ़ी शब्द Chhattisgarhi Phrase Chhattisgarhi Word विनोद साव कहानी पंकज अवधिया सुनील कुमार आस्‍था परम्‍परा विश्‍वास अंध विश्‍वास गीत-गजल-कविता Bastar Naxal समसामयिक अश्विनी केशरवानी नाचा परदेशीराम वर्मा विवेकराज सिंह अरूण कुमार निगम व्यंग कोदूराम दलित रामहृदय तिवारी अंर्तकथा कुबेर पंडवानी Chandaini Gonda पीसीलाल यादव भारतीय सिनेमा के सौ वर्ष Ramchandra Deshmukh गजानन माधव मुक्तिबोध ग्रीन हण्‍ट छत्‍तीसगढ़ी छत्‍तीसगढ़ी फिल्‍म पीपली लाईव बस्‍तर ब्लाग तकनीक Android Chhattisgarhi Gazal ओंकार दास नत्‍था प्रेम साईमन ब्‍लॉगर मिलन रामेश्वर वैष्णव रायपुर साहित्य महोत्सव सरला शर्मा हबीब तनवीर Binayak Sen Dandi Yatra IPTA Love Latter Raypur Sahitya Mahotsav facebook venkatesh shukla अकलतरा अनुवाद अशोक तिवारी आभासी दुनिया आभासी यात्रा वृत्तांत कतरन कनक तिवारी कैलाश वानखेड़े खुमान लाल साव गुरतुर गोठ गूगल रीडर गोपाल मिश्र घनश्याम सिंह गुप्त चिंतलनार छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग छत्तीसगढ़ वंशी छत्‍तीसगढ़ का इतिहास छत्‍तीसगढ़ी उपन्‍यास जयप्रकाश जस गीत दुर्ग जिला हिन्दी साहित्य समिति धरोहर पं. सुन्‍दर लाल शर्मा प्रतिक्रिया प्रमोद ब्रम्‍हभट्ट फाग बिनायक सेन ब्लॉग मीट मानवाधिकार रंगशिल्‍पी रमाकान्‍त श्रीवास्‍तव राजेश सिंह राममनोहर लोहिया विजय वर्तमान विश्वरंजन वीरेन्‍द्र बहादुर सिंह वेंकटेश शुक्ल श्रीलाल शुक्‍ल संतोष झांझी सुशील भोले हिन्‍दी ब्‍लाग से कमाई Adsense Anup Ranjan Pandey Banjare Barle Bastar Band Bastar Painting CP & Berar Chhattisgarh Food Chhattisgarh Rajbhasha Aayog Chhattisgarhi Chhattisgarhi Film Daud Khan Deo Aanand Dev Baloda Dr. Narayan Bhaskar Khare Dr.Sudhir Pathak Dwarika Prasad Mishra Fida Bai Geet Ghar Dwar Google app Govind Ram Nirmalkar Hindi Input Jaiprakash Jhaduram Devangan Justice Yatindra Singh Khem Vaishnav Kondagaon Lal Kitab Latika Vaishnav Mayank verma Nai Kahani Narendra Dev Verma Pandwani Panthi Punaram Nishad R.V. Russell Rajesh Khanna Rajyageet Ravindra Ginnore Ravishankar Shukla Sabal Singh Chouhan Sarguja Sargujiha Boli Sirpur Teejan Bai Telangana Tijan Bai Vedmati Vidya Bhushan Mishra chhattisgarhi upanyas fb feedburner kapalik romancing with life sanskrit ssie अगरिया अजय तिवारी अधबीच अनिल पुसदकर अनुज शर्मा अमरेन्‍द्र नाथ त्रिपाठी अमिताभ अलबेला खत्री अली सैयद अशोक वाजपेयी अशोक सिंघई असम आईसीएस आशा शुक्‍ला ई—स्टाम्प उडि़या साहित्य उपन्‍यास एडसेंस एड्स एयरसेल कंगला मांझी कचना धुरवा कपिलनाथ कश्यप कबीर कार्टून किस्मत बाई देवार कृतिदेव कैलाश बनवासी कोयल गणेश शंकर विद्यार्थी गम्मत गांधीवाद गिरिजेश राव गिरीश पंकज गिरौदपुरी गुलशेर अहमद खॉं ‘शानी’ गोविन्‍द राम निर्मलकर घर द्वार चंदैनी गोंदा छत्‍तीसगढ़ उच्‍च न्‍यायालय छत्‍तीसगढ़ पर्यटन छत्‍तीसगढ़ राज्‍य अलंकरण छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंजन जतिन दास जन संस्‍कृति मंच जय गंगान जयंत साहू जया जादवानी जिंदल स्टील एण्ड पावर लिमिटेड जुन्‍नाडीह जे.के.लक्ष्मी सीमेंट जैत खांब टेंगनाही माता टेम्पलेट डिजाइनर ठेठरी-खुरमी ठोस अपशिष्ट् (प्रबंधन और हथालन) उप-विधियॉं डॉ. अतुल कुमार डॉ. इन्‍द्रजीत सिंह डॉ. ए. एल. श्रीवास्तव डॉ. गोरेलाल चंदेल डॉ. निर्मल साहू डॉ. राजेन्‍द्र मिश्र डॉ. विनय कुमार पाठक डॉ. श्रद्धा चंद्राकर डॉ. संजय दानी डॉ. हंसा शुक्ला डॉ.ऋतु दुबे डॉ.पी.आर. कोसरिया डॉ.राजेन्‍द्र प्रसाद डॉ.संजय अलंग तमंचा रायपुरी दंतेवाडा दलित चेतना दाउद खॉंन दारा सिंह दिनकर दीपक शर्मा देसी दारू धनश्‍याम सिंह गुप्‍त नथमल झँवर नया थियेटर नवीन जिंदल नाम निदा फ़ाज़ली नोकिया 5233 पं. माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकार परिकल्‍पना सम्‍मान पवन दीवान पाबला वर्सेस अनूप पूनम प्रशांत भूषण प्रादेशिक सम्मलेन प्रेम दिवस बलौदा बसदेवा बस्‍तर बैंड बहादुर कलारिन बहुमत सम्मान बिलासा ब्लागरों की चिंतन बैठक भरथरी भिलाई स्टील प्लांट भुनेश्वर कश्यप भूमि अर्जन भेंट-मुलाकात मकबूल फिदा हुसैन मधुबाला महाभारत महावीर अग्रवाल महुदा माटी तिहार माननीय श्री न्यायमूर्ति यतीन्द्र सिंह मीरा बाई मेधा पाटकर मोहम्मद हिदायतउल्ला योगेंद्र ठाकुर रघुवीर अग्रवाल 'पथिक' रवि श्रीवास्तव रश्मि सुन्‍दरानी राजकुमार सोनी राजमाता फुलवादेवी राजीव रंजन राजेश खन्ना राम पटवा रामधारी सिंह 'दिनकर’ राय बहादुर डॉ. हीरालाल रेखादेवी जलक्षत्री रेमिंगटन लक्ष्मण प्रसाद दुबे लाईनेक्स लाला जगदलपुरी लेह लोक साहित्‍य वामपंथ विद्याभूषण मिश्र विनोद डोंगरे वीरेन्द्र कुर्रे वीरेन्‍द्र कुमार सोनी वैरियर एल्विन शबरी शरद कोकाश शरद पुर्णिमा शहरोज़ शिरीष डामरे शिव मंदिर शुभदा मिश्र श्यामलाल चतुर्वेदी श्रद्धा थवाईत संजीत त्रिपाठी संजीव ठाकुर संतोष जैन संदीप पांडे संस्कृत संस्‍कृति संस्‍कृति विभाग सतनाम सतीश कुमार चौहान सत्‍येन्‍द्र समाजरत्न पतिराम साव सम्मान सरला दास साक्षात्‍कार सामूहिक ब्‍लॉग साहित्तिक हलचल सुभाष चंद्र बोस सुमित्रा नंदन पंत सूचक सूचना सृजन गाथा स्टाम्प शुल्क स्वच्छ भारत मिशन हंस हनुमंत नायडू हरिठाकुर हरिभूमि हास-परिहास हिन्‍दी टूल हिमांशु कुमार हिमांशु द्विवेदी हेमंत वैष्‍णव है बातों में दम

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को ...