कहानीः

वह देर तक चिड़िया के घोंसले को देखता रहा, जैसे घोंसले की कलात्मक आकृति की उसको समझ हो। किसी ताम्बुल के आकार का तिनकों से बना घोंसला पेड़ पर लटक रहा था जिसके भीतर बीचोंबीच एक तना अलगाया गया था जैसे किसी बगीचे में लगा fसंगल बार हो जिसमें बच्चे झूलते लटकते रहते हैं। यहॉं इस तने पर चिड़िया के चूजे झूलते लटकते थे। उन चूजों के बीच में चिड़िया-मॉं आ जाती और दोनों चूजों के मुँह में कोई दाना डाल देती, फिर चूजे खुशी से चहचहाने लगते। इस दृश्य को देखकर तब वह भी चहचहा उठता था किसी चूजे की मानिन्द और अपने हाथ चिड़िया के चूजों की ओर उठाकर ठिठोली मारने लगता, जैसे हास-परिहास और आस की उसे समझ हो। वह खुद भी किसी चूजे की तरह हरदम ताजा और साफ सुथरा दिखा करता। वह देर तक उस घोंसले के भीतर बसे परिवार के हर सदस्य को देखता और पुलक उठता जैसे उनके बीच मातृत्व और संतान सुख की बह रही धारा को भी वह देख रहा हो। इस बीच आंगन में आ रही गिलहरी और कोयलों की फुदकन को वह देखता जैसे उनके अंतर सम्बंधों को समझने की वह कोशिश कर रहा हो।

‘यीशु’... गली में खेल रहे किसी बच्चे की आवाज कहीं गूंजी थी, तब उसने आवाज की दिशा में अपनी ऑंखों को छटकाया था। गली की तीस फीट चौडी सड़क को मोहल्ले के बच्चों ने क्रिकेट का पिच मान लिया था और धुंधाधार बल्लेबाजी और गेंदबाजी चल रही थी। मारी गई गेंद को रोकने के लिए आए एक बच्चे ने उसे पुकारा था तब उसकी ओर पुलकते हुए उसने ऐसे देखा जैसे उसकी अच्छी फीfल्डंग के लिए उसे शाबाशी दे रहा हो।

वह हर किसी को परिचित व आत्मीय निगाह से देखने, मन भर जाने से किसी अजनबी की ओर उत्साहित होने या अजनबी में उदासीनता को देख उसके प्रति अजनबी हो जाने या फिर अपने आसपास हो रहे किसी भी परिवर्तन को देखने की जिज्ञासा बनाए रखता है। उसे किसी की भी गोद में जाने से हिचक नहीं है बशर्ते गोद लेने वाले की शारीरिक क्षमता इतनी हो कि वह उसका भार वहन कर सकेे और इस परिवर्तन कामी जगत का दर्शन उसे करवाता रहे। अब उसने अपनी बड़ी मम्मी की ओर इस कृतज्ञता से देखा था कि वह सब कुछ अच्छा अच्छा उसे दिखाती रहती है। उसके पास जो करतब भरा है उसे भी वह बड़ी मम्मी को दिखाता रहता है ताकि बड़ी मम्मी का उस पर रीझना जारी रहे और उनके घर का कोई भी सदस्य उसे वापस लौटा न दे।

ठण्ड के दिनों में उसकी मम्मी उसे उनी कपड़ों से सुसज्जित कर भेजती है। सर पर कनटोप और पैरों में जूते मोजे पहनाकर...लेकिन गरम तासीर के यीशु को इतना सजना धजना ज्यादा देर सहन नहीं होता। अपने करतब दिखाने में ऐसे तल्लीन हो जाता है कि अपने सामने आ रहे है हर अवरोध को वह निकाल फेंकता है, इनमें उनके कपड़े भी शामिल होते हैं। बड़ी मम्मी के घर वह आता है सूटेड बूटेड और यहां से जाता है नंग-धड़ंग। उसे रास नहीं आने वाली चीजों में उसके खिलौने भी शामिल हैं जो उसके जन्म के बाद उसे उपहार में दिए गए हैं लेकिन ज़मीन से जुड़ा यीशु अपनेखेलने के लिए दूसरों के जूते चप्पल और टूटे हुए प्लास्टिक के डिब्बे या स्टूल कुर्सियॉं उठा लेता है। मुंह से थूक निकालते हुए फुर्र्ए की आवाज करते हुए वह जीप ड्रायवर की अदा में किसी डिब्बे को धकेलने लगता है।

अभी तक उसकी यह कृतज्ञता लोगों पर भारी नहीं पड़ी है। सबका हंसी खुशी उसके साथ निर्वाह जारी है। बल्कि परिवार में सबकी कृतज्ञता उसके प्रति है कि वह अपने पापा मम्मी के गठबन्धन के बाइस सालों बाद इस धरती पर आया है। इस बात की परवाह भी उसने नहीं की कि जब बैंकाक-पटाया के समुद्रतट परं पैरा-ग्लाहडिंग करती उसकी मम्मी को पता नहीं था कि उसके भीतर ऑंख झपकाता छह माह का शिशु है। मॉं के पेट से गिर जाने वाले ऐसे कितने ही रक्त रंजित लोंदों का नया और सुगठित अवतार बनकर आया यह यीशु है। जैसे किसी सलीब पर चढ़ा हो फिर उतर गया हो उस यीशु की तरह जो गुडफ्राइडे को गया और सन्डे की यीस्टर को वापस आ गया था। इसलिए भी अपने मम्मी-पापा और सारे रिश्ते-नातो के लिए यह अजूबा ईश्वर तो नहीं पर ईश्वर का पुत्र अवश्य मान लिया गया है। मम्मी-पापा के ईश्वर का ‘निकनेम’ ईशु नहीं है पर ईसा का निकनेम यीशु तो है और इसीलिए उसके निकनेम को लिखा जाय तो यीशु ही लिखा जावेगा।

लगता है यीशु में सौन्दर्य बोध अधिक है और वह सबसे सुन्दर महिला की गोद में पहले लपक जाता है। इस मामले में उसकी बड़ी मम्मी और मौसी उसकी आदर्श पसंद हैं। बड़ी मम्मी तो उसे देखकर निहाल हो उठती है.. कहती है ‘‘यीशु सांवला सलोना है पर न तो उसकी नाक बहती है न ऑंख में कीचड़ आता है... न मुंह से लार टपकती है... न ज्यादा शी करता है न शू... सुबह सोकर ऐसे उठता है जैसे नहाकर उठा हो।’’ वह यीशु को उठाकर कभी गालू गालू खेलने लगती है तो कभी नाकू नाकू।

घर के आसपास सभी ये मानते हैं कि वह और उसकी बड़ी मम्मी दोनों एक हाल है। समाजशास्त्रीय भाषा में कहा जाय तो एक दूसरे के अन्यान्योश्रित हैं, एक दूसरे पर निर्भर हैं, एक के अभाव में दूसरा अधूरा है। एक कला है तो दूसरा विज्ञान है। यीशु का अपनी अलग अलग हरकतों से बड़ी मम्मी को बहलाना एक कला है तो बड़ी मम्मी का उसकी हर भाव-भंगिमा को तत्काल समझ लेना एक विज्ञान है। मम्मी के ड्यूटी पर निकल जाने के बाद या तो वह मौसी के घर रह जाता है या बड़ी मम्मी के। दिन भर एक दूसरे का समय आसानी से काट लेते हैं। लम्बी संगति से दोनों के चेहरों पर थकान दिखने के बाद भी दोनों का मन उत्साह से भरा होता है।

उसके चचेरे भाई बहन कहते हैं कि ‘यीशु ने हमारे पारिवारिक समीकरणों को बिगाड़ दिया है। वह पैदा होते ही चाचा मामा बन गया है। एक ऐसा चाचा जिसके भतीजे बहुत पहले जनम गए हों, एक ऐसा मामा जिसके भांजे पहले पैदा हो गए हों।’ तब यीशु अपने चचेरे बड़े भाई की बॉंहों में झूलता हुआ उसकी बातों को गौर से सुनता है जैसे उसे रिश्तों के समीकरणों की समझ हो और इस बात से भी वह अनभिज्ञ नहीं है कि उसने इस समीकरण को प्रभावित किया है। बड़ा भाई यीशु के गाल खींचते हुए कहता है ‘बहुत सयाना है यीशु।’ इस चालबाजी से खुश अबं वह बड़े भैया की मूंछ और दाढ़ी को खींचने लगता है जैसे बड़े भैया ने मूंछ और दाढ़ी यीशु के खींचने के लिए उगाई हो।बड़ा भाई कहता है कि ‘यीशु को लेकर कम्पयूटर पर बैठो तो माउस पकड़कर गाने को क्लिक कर देता है और लूंगी डांस लूंगी डांस पर मटक उठता है।’

उसकी बड़ी मम्मी और यीशु के बीच उम्र का फासला बहुत है और लगता है उम्र की यह दूरी ही उनकी निकटता का कारण है। बड़ी मम्मी उसे पा जाने के बाद उसकी दादी बन जाती है और वह उसका पोता। मोहल्ले की पोता-विहीन महिलाओं के लिए वह एक अच्छा रोल मॉं डल है। यीशु की उपयोगिता घर के बड़े बुजुर्गों को उठाने के लिए भी होती है। वरना खुर्राट बड़े पापा को कौन उठाए। अच्छा है कि सुबह सबेरे उनकी खाट में यीशु को ही छोड़ दिया जाय। यीशु अपनी नन्ही नन्ही टांगो से बड़े पापा के पेट को लतियाना शुरु कर देता है जैसे कि हर सोये हुए इन्सान को लतियाना उसका सामाजिक दायित्व हो। लतियाने से भी सोया हुआ इन्सान न उठे तो गरम पानी की पिचकारी मारने का परमिट भी यीशु के पास है।

बड़े पापा कहते हैं कि ‘‘यीशु की मोटी जांघों और पॉंव चलाने की फुरती को देखकर लगता है कि आगे चलकर यह फुटबाल का जबरदस्त खिलाड़ी निकलेगा। ऐसा धांसू कीक मारेगा कि हर पेनाल्टी कॉर्नर को गोल में बदल डालेगा।’’ यीशु इसका अभ्यास अपने घर से ही शुरु कर देता है अपने पापा के मोट्टे काले पेट को फुटबाल समझकर। बड़े पापा के बिस्तर पर तो उसकी करामात किसी प्रशिक्षित खिलाड़ी की तरह होती है।

समाजशास्त्री ये बताते हैं कि ‘आम तौर पर मानव शिशु जन्म लेते ही रोता है और दो तीन दिनों बाद हॅसना सीखता है। क्योंकि रोना मनुष्य का प्राकृतिक गुण है और उसका हॅसना सामाजीकरण की प्रक्रिया है।’ यीशु को देखकर लगता है कि हॅसना उसका प्राकृतिक गुण है और रोना वह समाज से सीख रहा है। वह कम रोता है, रोते समय वह पहले थोड़ा चिड़चिड़ाता है क्योंकि कई बार उसका सामना किसी ऐसे इन्सान से पड़ता है जिसे देख कर उसे रोना आ जाता है।

वह एक समाजसेवी परिवार में जन्मा है। बल्कि कहा जा सकता है कि वह उसकी विरासत में बह रही तरल सामाजिक भावना का काढ़ा हो। वह किसी भी अजनबी के साथ कहीं भी जाने को मचल उठता है ऐसे जैसे थोड़ी देर में ही किसी सार्वजनिक हित के कार्यों के लिए वह चन्दा मॉं गने निकल पड़ेगा। उसकी ऑंखें हर आगंतुक को तौलती हैं साहित्यकार मुक्तिबोध की तरह मानों पूछ रहा हो कि ‘पार्टनर तुम्हारी पॉलीटिक्स क्या है? पहले ये तो बताओ कि तुम हो किस तरफ?’

क्या किसी शिशु की चार-छह माह की अवस्था में ही उसकी संवेदनाओं में उसके सामाजिक सरोकारों के लक्षण देखे जा सकते हैं?

20 सितंबर 1955 को दुर्ग में जन्मे विनोद साव समाजशास्त्र विषय में एम.ए.हैं। वे भिलाई इस्पात संयंत्र में प्रबंधक हैं। मूलत: व्यंग्य लिखने वाले विनोद साव अब उपन्यास, कहानियां और यात्रा वृतांत लिखकर भी चर्चा में हैं। उनकी रचनाएं हंस, पहल, ज्ञानोदय, अक्षरपर्व, वागर्थ और समकालीन भारतीय साहित्य में भी छप रही हैं। उनके दो उपन्यास, चार व्यंग्य संग्रह और संस्मरणों के संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। कहानी संग्रह प्रकाशनाधीन है। उन्हें कई पुरस्कार मिल चुके हैं। वे उपन्यास के लिए डॉ. नामवरसिंह और व्यंग्य के लिए श्रीलाल शुक्ल से भी पुरस्कृत हुए हैं। आरंभ में विनोद जी के आलेखों की सूची यहॉं है।
संपर्क मो. 9407984014, निवास - मुक्तनगर, दुर्ग छत्तीसगढ़ 491001
ई मेल -vinod.sao1955@gmail.com

6 टिप्‍पणियां:

आपकी टिप्पणियों का स्वागत है. (टिप्पणियों के प्रकाशित होने में कुछ समय लग सकता है.) -संजीव तिवारी, दुर्ग (छ.ग.)

लेबल

संजीव तिवारी की कलम घसीटी समसामयिक लेख अतिथि कलम जीवन परिचय छत्तीसगढ की सांस्कृतिक विरासत - मेरी नजरों में पुस्तकें-पत्रिकायें छत्तीसगढ़ी शब्द Chhattisgarhi Phrase Chhattisgarhi Word विनोद साव कहानी पंकज अवधिया सुनील कुमार आस्‍था परम्‍परा विश्‍वास अंध विश्‍वास गीत-गजल-कविता Bastar Naxal समसामयिक अश्विनी केशरवानी नाचा परदेशीराम वर्मा विवेकराज सिंह अरूण कुमार निगम व्यंग कोदूराम दलित रामहृदय तिवारी अंर्तकथा कुबेर पंडवानी Chandaini Gonda पीसीलाल यादव भारतीय सिनेमा के सौ वर्ष Ramchandra Deshmukh गजानन माधव मुक्तिबोध ग्रीन हण्‍ट छत्‍तीसगढ़ी छत्‍तीसगढ़ी फिल्‍म पीपली लाईव बस्‍तर ब्लाग तकनीक Android Chhattisgarhi Gazal ओंकार दास नत्‍था प्रेम साईमन ब्‍लॉगर मिलन रामेश्वर वैष्णव रायपुर साहित्य महोत्सव सरला शर्मा हबीब तनवीर Binayak Sen Dandi Yatra IPTA Love Latter Raypur Sahitya Mahotsav facebook venkatesh shukla अकलतरा अनुवाद अशोक तिवारी आभासी दुनिया आभासी यात्रा वृत्तांत कतरन कनक तिवारी कैलाश वानखेड़े खुमान लाल साव गुरतुर गोठ गूगल रीडर गोपाल मिश्र घनश्याम सिंह गुप्त चिंतलनार छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग छत्तीसगढ़ वंशी छत्‍तीसगढ़ का इतिहास छत्‍तीसगढ़ी उपन्‍यास जयप्रकाश जस गीत दुर्ग जिला हिन्दी साहित्य समिति धरोहर पं. सुन्‍दर लाल शर्मा प्रतिक्रिया प्रमोद ब्रम्‍हभट्ट फाग बिनायक सेन ब्लॉग मीट मानवाधिकार रंगशिल्‍पी रमाकान्‍त श्रीवास्‍तव राजेश सिंह राममनोहर लोहिया विजय वर्तमान विश्वरंजन वीरेन्‍द्र बहादुर सिंह वेंकटेश शुक्ल श्रीलाल शुक्‍ल संतोष झांझी सुशील भोले हिन्‍दी ब्‍लाग से कमाई Adsense Anup Ranjan Pandey Banjare Barle Bastar Band Bastar Painting CP & Berar Chhattisgarh Food Chhattisgarh Rajbhasha Aayog Chhattisgarhi Chhattisgarhi Film Daud Khan Deo Aanand Dev Baloda Dr. Narayan Bhaskar Khare Dr.Sudhir Pathak Dwarika Prasad Mishra Fida Bai Geet Ghar Dwar Google app Govind Ram Nirmalkar Hindi Input Jaiprakash Jhaduram Devangan Justice Yatindra Singh Khem Vaishnav Kondagaon Lal Kitab Latika Vaishnav Mayank verma Nai Kahani Narendra Dev Verma Pandwani Panthi Punaram Nishad R.V. Russell Rajesh Khanna Rajyageet Ravindra Ginnore Ravishankar Shukla Sabal Singh Chouhan Sarguja Sargujiha Boli Sirpur Teejan Bai Telangana Tijan Bai Vedmati Vidya Bhushan Mishra chhattisgarhi upanyas fb feedburner kapalik romancing with life sanskrit ssie अगरिया अजय तिवारी अधबीच अनिल पुसदकर अनुज शर्मा अमरेन्‍द्र नाथ त्रिपाठी अमिताभ अलबेला खत्री अली सैयद अशोक वाजपेयी अशोक सिंघई असम आईसीएस आशा शुक्‍ला ई—स्टाम्प उडि़या साहित्य उपन्‍यास एडसेंस एड्स एयरसेल कंगला मांझी कचना धुरवा कपिलनाथ कश्यप कबीर कार्टून किस्मत बाई देवार कृतिदेव कैलाश बनवासी कोयल गणेश शंकर विद्यार्थी गम्मत गांधीवाद गिरिजेश राव गिरीश पंकज गिरौदपुरी गुलशेर अहमद खॉं ‘शानी’ गोविन्‍द राम निर्मलकर घर द्वार चंदैनी गोंदा छत्‍तीसगढ़ उच्‍च न्‍यायालय छत्‍तीसगढ़ पर्यटन छत्‍तीसगढ़ राज्‍य अलंकरण छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंजन जतिन दास जन संस्‍कृति मंच जय गंगान जयंत साहू जया जादवानी जिंदल स्टील एण्ड पावर लिमिटेड जुन्‍नाडीह जे.के.लक्ष्मी सीमेंट जैत खांब टेंगनाही माता टेम्पलेट डिजाइनर ठेठरी-खुरमी ठोस अपशिष्ट् (प्रबंधन और हथालन) उप-विधियॉं डॉ. अतुल कुमार डॉ. इन्‍द्रजीत सिंह डॉ. ए. एल. श्रीवास्तव डॉ. गोरेलाल चंदेल डॉ. निर्मल साहू डॉ. राजेन्‍द्र मिश्र डॉ. विनय कुमार पाठक डॉ. श्रद्धा चंद्राकर डॉ. संजय दानी डॉ. हंसा शुक्ला डॉ.ऋतु दुबे डॉ.पी.आर. कोसरिया डॉ.राजेन्‍द्र प्रसाद डॉ.संजय अलंग तमंचा रायपुरी दंतेवाडा दलित चेतना दाउद खॉंन दारा सिंह दिनकर दीपक शर्मा देसी दारू धनश्‍याम सिंह गुप्‍त नथमल झँवर नया थियेटर नवीन जिंदल नाम निदा फ़ाज़ली नोकिया 5233 पं. माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकार परिकल्‍पना सम्‍मान पवन दीवान पाबला वर्सेस अनूप पूनम प्रशांत भूषण प्रादेशिक सम्मलेन प्रेम दिवस बलौदा बसदेवा बस्‍तर बैंड बहादुर कलारिन बहुमत सम्मान बिलासा ब्लागरों की चिंतन बैठक भरथरी भिलाई स्टील प्लांट भुनेश्वर कश्यप भूमि अर्जन भेंट-मुलाकात मकबूल फिदा हुसैन मधुबाला महाभारत महावीर अग्रवाल महुदा माटी तिहार माननीय श्री न्यायमूर्ति यतीन्द्र सिंह मीरा बाई मेधा पाटकर मोहम्मद हिदायतउल्ला योगेंद्र ठाकुर रघुवीर अग्रवाल 'पथिक' रवि श्रीवास्तव रश्मि सुन्‍दरानी राजकुमार सोनी राजमाता फुलवादेवी राजीव रंजन राजेश खन्ना राम पटवा रामधारी सिंह 'दिनकर’ राय बहादुर डॉ. हीरालाल रेखादेवी जलक्षत्री रेमिंगटन लक्ष्मण प्रसाद दुबे लाईनेक्स लाला जगदलपुरी लेह लोक साहित्‍य वामपंथ विद्याभूषण मिश्र विनोद डोंगरे वीरेन्द्र कुर्रे वीरेन्‍द्र कुमार सोनी वैरियर एल्विन शबरी शरद कोकाश शरद पुर्णिमा शहरोज़ शिरीष डामरे शिव मंदिर शुभदा मिश्र श्यामलाल चतुर्वेदी श्रद्धा थवाईत संजीत त्रिपाठी संजीव ठाकुर संतोष जैन संदीप पांडे संस्कृत संस्‍कृति संस्‍कृति विभाग सतनाम सतीश कुमार चौहान सत्‍येन्‍द्र समाजरत्न पतिराम साव सम्मान सरला दास साक्षात्‍कार सामूहिक ब्‍लॉग साहित्तिक हलचल सुभाष चंद्र बोस सुमित्रा नंदन पंत सूचक सूचना सृजन गाथा स्टाम्प शुल्क स्वच्छ भारत मिशन हंस हनुमंत नायडू हरिठाकुर हरिभूमि हास-परिहास हिन्‍दी टूल हिमांशु कुमार हिमांशु द्विवेदी हेमंत वैष्‍णव है बातों में दम

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को ...