लायब्रेरी पर कमीश्नरी हावी : दुर्ग संभायुक्त कार्यालय हिन्दी भवन में


आज के समाचार पत्रों में दो अलग अलग खबरों पर राहुल सिंह जी नें ध्यान दिलाया. जिसमें से एक रायपुर के 110 साल पुरानी लाईब्रेरी के रख रखाव की खबर थी तो दूसरे समाचार में दुर्ग में आगामी 5 सितम्बर से आरंभ होने वाले संभागायुक्त कार्यालय हेतु दुर्ग के लाईब्रेरी को चुनने के संबंध में समाचार था. दुर्ग में जिस जगह पर संभागायुक्त कार्यालय खुलना प्रस्तावित है, उस भवन का नाम हिन्दी भवन है, इस भवन के उपरी हिस्से पर बरसों से नगर पालिक निगम की लायब्रेरी संचालित होती रही है. लायब्रेरी के संचालन के कारण ही हिन्दी भवन में 'सार्वजनिक वाचनालय' लिखा गया था. वैसे पिछले कुछ वर्षों से इस भवन से लाईब्रेरी को नव निर्मित भवन 'सेंट्रल लाईब्रेरी' में स्थानांतरित कर दिया गया था, जिसमें नगर पालिक निगम द्वारा संचालित यह लाईब्रेरी अब संचालित हो रही है. वैसे लायब्रेरी पर कमीश्नरी हावी होने का किस्सा अकेले दुर्ग का नहीं है, यह दंश बरसों पहले बिलासपुर भी झेल चुका है. बरसों से लोगों के मन में हिन्दी भवन की छवि एक सार्वजनिक वाचनालाय के रूप में ही रही है इस कारण जब संभागायुक्त कार्यालय के रूप में इस भवन का चयन किया गया तो लोगों के मन में सहज रूप से इस निर्णय के विरोध का भाव आया.


अब इसी बहाने दुर्ग के 'हिन्दी भवन' एवं दुर्ग नगर पर कुछ चर्चा कर लेते हैं. इस भवन का निर्माण सन् 1911 में अंग्रेजों के द्वारा किया गया था, जिसका नाम एडवर्ड हाल रखा गया था. इस भवन के उपरी हिस्से में सन् 1915 से सार्वजनिक वाचनालय का संचालन आरंभ हुआ था जो अभी कुछ वर्षों पहले तक सतत संचालित था. स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद इस भवन का उपयोग साहित्यिक व सांस्कृतिक कार्यों के लिए किया जाने लगा इसीलिए इसका नाम 'हिन्दी भवन' पड़ा. हिन्दी भवन नाम होने के बावजूद नगर के साहित्यकारों को यह भवन साहित्यिक कार्यक्रमों के लिए आसानी से कभी नहीं मिल पाया. यह भवन मात्र दिखावे के लिए हिन्दी भवन बना रहा.


गांव, गढ़, तहसील फिर जिला और उसके बाद संभाग बनने के सफर को दुर्ग के इतिहास के पन्नों में टटोलें तो दुर्ग को गढ़ रूप में स्थापित करने के पीछे जगपाल या जगतपाल नाम के एक गढ़ पति का नाम सामने आता है. अस्पष्ट सूत्रों के अनुसार यह कलचुरी वंश के पृथ्वी देव द्वितीय के सेनापति थे. कहीं कहीं जगपाल को मिर्जापुर के बाघल देश का निवासी बताते हैं जो कलचुरियों का कोषाधिकारी था. कलचुरी नरेश नें किसी बात से प्रसन्न होकर जगपाल को दुर्ग सहित 700 गांव इनाम में दे दिए तब जगपाल नें यहां गढ़ स्थापित किया. मौर्य, सातवाहन, राजर्षि, शरभपुरीय, सोमवंश, नल, महिष्मति, कलचुरी, मराठा शासकों मौर्य, सातवाहन, राजर्षि, शरभपुरीय, सोमवंश, नल, महिष्मति, कलचुरी, मराठा शासकों का शासन इस नगर में रहा. गजेटियरों में इस नगर को सन् 1818 से 1947 तक द्रुग लिखा जाता रहा है. सन् 1860 से सन् 1947 तक यह मध्य प्रांत व सन् 1947 से सन् 1956 तक सीपी एण्ड बरार सेन्ट्रल प्राविंस में शामिल था उसके बाद यह 1 नवम्बर सन् 1956 से मध्य प्रदेश, फिर 1 नवम्बर 2000 से छत्तीसगढ़ राज्य में है. दुर्ग को जिला सन् 1906 में बनाया गया था तब इसमें दुर्ग, राजनांदगांव, कवर्धा, मुगेली, धमतरी के कुछ हिस्से व सिमगा के कुछ हिस्से शामिल थे. तब इस जिले में परपोड़ी, गंडई, ठाकुरटोला, सिल्हाटी, बरबसपुर, सहसपुर लोहारा, गुण्डरदेही, खुज्जी, डौडीलोहारा, अम्बागढ़ चौकी, पानाबरस, कोरचा व औंधी जमीदारियां शामिल थी. इस प्रकार से तब एक बहुत बड़ा भू भाग दुर्ग जिले में शामिल था.


दुर्ग को सन् 1906 में ही नगर पालिका बनाया गया जिसके पहले अध्यक्ष पं.द्वारिका प्रसाद तिवारी थे, 1 अप्रैल 1981 को इसे नगर पालिक निगम बनाया गया जिसके पहले महापौर सुच्चा सिंह ढ़िल्लो मनोनीत किए गए. दुर्ग जिले के वर्तमान जिलाधीश कार्यालय भवन का निर्माण सन् 1907 में हुआ उस समय के इस जिले के प्रथम जिलाधीश एस.एम.चिटनवीस थे. ..... ये सब कथा कहानी से ईब क्या होगा, संभाग बना है तो बनाने का श्रेय लेने के लिए चौक चौराहों पर बड़े बड़े होर्डिंग्स लग गए है, इतिहास गाथा तो वही कहेंगें ना.

संजीव तिवारी

9 टिप्‍पणियां:

  1. साहित्‍य और संस्‍कृति, शासन-प्रशासन के हाशिये का ही विषय है और शायद शोभती भी वहीं है.

    जवाब देंहटाएं
  2. राहुल जी ने बिल्कुल सही कहा।

    और ऐसा लगता है कि शासन-प्रशासन की निगाह में तो पुस्तकालयों का शायद कुछ भी महत्व नहीं रह गया है।

    जवाब देंहटाएं
  3. संजीव भैयाजी
    आपने आलेख में बिलकुल सही बातें लिखी हैं। मैं कई बार वहां वाचलनालय में गया हूं। हमेशा उस ऐतिहासिक इमारत की दुर्दशा देखकर अफसोस होता था। इस ऐतिहासिक हिंदी भवन को नौकरशाही का अड्डा बनने से बचाने के लिए आप जैसे साहित्यकारों व आम जनता को आगे आना चाहिए। आंदोलन चलाना चाहिए और इसे हमेशा-हमेशा के लिए लाइब्रेरी व साहित्यिक गतिविधियों के लिए आरक्षित करने का अभियान चलाना चाहिए। अच्छा होगा कि इस संबंध में आप जैसे और साहित्यकारों का एक प्रतिनिधिमंडल मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह से मुलाकात कर इस ऐतिहासिक हिंदी भवन को नौकरशाही भवन बनने से बचाने का निवेदन किया जाना चाहिए। मुख्यमंत्री डॉ. सिंह जरूर इस पर विचार कर सकते हैं, क्योंकि दुर्ग में और भी शासकीय भवन व इमारत हैं, जहां कमिश्नर कार्यालय खोला जा सकता है।

    जवाब देंहटाएं
  4. पुस्तक पुस्तकालयों में, पुस्तकालय पुस्तक में।

    जवाब देंहटाएं
  5. "अँधकार है वहॉं जहॉं आदित्य नहीं है मुर्दा है वह देश जहॉं साहित्य नहीं है ।" दुर्ग-भिलाई में कहने को तो बहुत पुस्तकालय है पर हकीक़त यह है कि हम जैसे पढने-लिखने वाले लोग पुस्तक के लिए तरस जाते हैं और इसीलिए कई-कई शोध आलेख अधूरे पडे हुए हैं अधिकतर किताबें खरीदनी पड्ती है क्योंकि दुर्ग भिलाई में ढंग का पुस्तकालय कम ही है एक-दो पुस्तकालय तो ऐसे भी हैं जिनकी प्रक्रिया इतनी जटिल है कि मुझ जैसा प्राणी अनेक बार भटक कर भी बिना किताब लिए लौट चुका है अतः हर परिस्थिति में हिन्दी भवन का, पुस्तकालय एवम् हिन्दी की गतिविधियों हेतु ही उपयोग होना चाहिए । प्रशासन से अनुरोध है कि वह हिन्दी भवन को हिन्दी भवन ही रहने दे हिन्दी को बेघर न करे ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सुन्दर प्रस्तुति! हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच} की पहली चर्चा हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती -- हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल चर्चा : अंक-001 में आपका सह्य दिल से स्वागत करता है। कृपया पधारें, आपके विचार मेरे लिए "अमोल" होंगें | आपके नकारत्मक व सकारत्मक विचारों का स्वागत किया जायेगा | सादर .... Lalit Chahar

      हटाएं

आपकी टिप्पणियों का स्वागत है. (टिप्पणियों के प्रकाशित होने में कुछ समय लग सकता है.) -संजीव तिवारी, दुर्ग (छ.ग.)

लेबल

संजीव तिवारी की कलम घसीटी समसामयिक लेख अतिथि कलम जीवन परिचय छत्तीसगढ की सांस्कृतिक विरासत - मेरी नजरों में पुस्तकें-पत्रिकायें छत्तीसगढ़ी शब्द Chhattisgarhi Phrase Chhattisgarhi Word विनोद साव कहानी पंकज अवधिया सुनील कुमार आस्‍था परम्‍परा विश्‍वास अंध विश्‍वास गीत-गजल-कविता Bastar Naxal समसामयिक अश्विनी केशरवानी नाचा परदेशीराम वर्मा विवेकराज सिंह अरूण कुमार निगम व्यंग कोदूराम दलित रामहृदय तिवारी अंर्तकथा कुबेर पंडवानी Chandaini Gonda पीसीलाल यादव भारतीय सिनेमा के सौ वर्ष Ramchandra Deshmukh गजानन माधव मुक्तिबोध ग्रीन हण्‍ट छत्‍तीसगढ़ी छत्‍तीसगढ़ी फिल्‍म पीपली लाईव बस्‍तर ब्लाग तकनीक Android Chhattisgarhi Gazal ओंकार दास नत्‍था प्रेम साईमन ब्‍लॉगर मिलन रामेश्वर वैष्णव रायपुर साहित्य महोत्सव सरला शर्मा हबीब तनवीर Binayak Sen Dandi Yatra IPTA Love Latter Raypur Sahitya Mahotsav facebook venkatesh shukla अकलतरा अनुवाद अशोक तिवारी आभासी दुनिया आभासी यात्रा वृत्तांत कतरन कनक तिवारी कैलाश वानखेड़े खुमान लाल साव गुरतुर गोठ गूगल रीडर गोपाल मिश्र घनश्याम सिंह गुप्त चिंतलनार छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग छत्तीसगढ़ वंशी छत्‍तीसगढ़ का इतिहास छत्‍तीसगढ़ी उपन्‍यास जयप्रकाश जस गीत दुर्ग जिला हिन्दी साहित्य समिति धरोहर पं. सुन्‍दर लाल शर्मा प्रतिक्रिया प्रमोद ब्रम्‍हभट्ट फाग बिनायक सेन ब्लॉग मीट मानवाधिकार रंगशिल्‍पी रमाकान्‍त श्रीवास्‍तव राजेश सिंह राममनोहर लोहिया विजय वर्तमान विश्वरंजन वीरेन्‍द्र बहादुर सिंह वेंकटेश शुक्ल श्रीलाल शुक्‍ल संतोष झांझी सुशील भोले हिन्‍दी ब्‍लाग से कमाई Adsense Anup Ranjan Pandey Banjare Barle Bastar Band Bastar Painting CP & Berar Chhattisgarh Food Chhattisgarh Rajbhasha Aayog Chhattisgarhi Chhattisgarhi Film Daud Khan Deo Aanand Dev Baloda Dr. Narayan Bhaskar Khare Dr.Sudhir Pathak Dwarika Prasad Mishra Fida Bai Geet Ghar Dwar Google app Govind Ram Nirmalkar Hindi Input Jaiprakash Jhaduram Devangan Justice Yatindra Singh Khem Vaishnav Kondagaon Lal Kitab Latika Vaishnav Mayank verma Nai Kahani Narendra Dev Verma Pandwani Panthi Punaram Nishad R.V. Russell Rajesh Khanna Rajyageet Ravindra Ginnore Ravishankar Shukla Sabal Singh Chouhan Sarguja Sargujiha Boli Sirpur Teejan Bai Telangana Tijan Bai Vedmati Vidya Bhushan Mishra chhattisgarhi upanyas fb feedburner kapalik romancing with life sanskrit ssie अगरिया अजय तिवारी अधबीच अनिल पुसदकर अनुज शर्मा अमरेन्‍द्र नाथ त्रिपाठी अमिताभ अलबेला खत्री अली सैयद अशोक वाजपेयी अशोक सिंघई असम आईसीएस आशा शुक्‍ला ई—स्टाम्प उडि़या साहित्य उपन्‍यास एडसेंस एड्स एयरसेल कंगला मांझी कचना धुरवा कपिलनाथ कश्यप कबीर कार्टून किस्मत बाई देवार कृतिदेव कैलाश बनवासी कोयल गणेश शंकर विद्यार्थी गम्मत गांधीवाद गिरिजेश राव गिरीश पंकज गिरौदपुरी गुलशेर अहमद खॉं ‘शानी’ गोविन्‍द राम निर्मलकर घर द्वार चंदैनी गोंदा छत्‍तीसगढ़ उच्‍च न्‍यायालय छत्‍तीसगढ़ पर्यटन छत्‍तीसगढ़ राज्‍य अलंकरण छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंजन जतिन दास जन संस्‍कृति मंच जय गंगान जयंत साहू जया जादवानी जिंदल स्टील एण्ड पावर लिमिटेड जुन्‍नाडीह जे.के.लक्ष्मी सीमेंट जैत खांब टेंगनाही माता टेम्पलेट डिजाइनर ठेठरी-खुरमी ठोस अपशिष्ट् (प्रबंधन और हथालन) उप-विधियॉं डॉ. अतुल कुमार डॉ. इन्‍द्रजीत सिंह डॉ. ए. एल. श्रीवास्तव डॉ. गोरेलाल चंदेल डॉ. निर्मल साहू डॉ. राजेन्‍द्र मिश्र डॉ. विनय कुमार पाठक डॉ. श्रद्धा चंद्राकर डॉ. संजय दानी डॉ. हंसा शुक्ला डॉ.ऋतु दुबे डॉ.पी.आर. कोसरिया डॉ.राजेन्‍द्र प्रसाद डॉ.संजय अलंग तमंचा रायपुरी दंतेवाडा दलित चेतना दाउद खॉंन दारा सिंह दिनकर दीपक शर्मा देसी दारू धनश्‍याम सिंह गुप्‍त नथमल झँवर नया थियेटर नवीन जिंदल नाम निदा फ़ाज़ली नोकिया 5233 पं. माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकार परिकल्‍पना सम्‍मान पवन दीवान पाबला वर्सेस अनूप पूनम प्रशांत भूषण प्रादेशिक सम्मलेन प्रेम दिवस बलौदा बसदेवा बस्‍तर बैंड बहादुर कलारिन बहुमत सम्मान बिलासा ब्लागरों की चिंतन बैठक भरथरी भिलाई स्टील प्लांट भुनेश्वर कश्यप भूमि अर्जन भेंट-मुलाकात मकबूल फिदा हुसैन मधुबाला महाभारत महावीर अग्रवाल महुदा माटी तिहार माननीय श्री न्यायमूर्ति यतीन्द्र सिंह मीरा बाई मेधा पाटकर मोहम्मद हिदायतउल्ला योगेंद्र ठाकुर रघुवीर अग्रवाल 'पथिक' रवि श्रीवास्तव रश्मि सुन्‍दरानी राजकुमार सोनी राजमाता फुलवादेवी राजीव रंजन राजेश खन्ना राम पटवा रामधारी सिंह 'दिनकर’ राय बहादुर डॉ. हीरालाल रेखादेवी जलक्षत्री रेमिंगटन लक्ष्मण प्रसाद दुबे लाईनेक्स लाला जगदलपुरी लेह लोक साहित्‍य वामपंथ विद्याभूषण मिश्र विनोद डोंगरे वीरेन्द्र कुर्रे वीरेन्‍द्र कुमार सोनी वैरियर एल्विन शबरी शरद कोकाश शरद पुर्णिमा शहरोज़ शिरीष डामरे शिव मंदिर शुभदा मिश्र श्यामलाल चतुर्वेदी श्रद्धा थवाईत संजीत त्रिपाठी संजीव ठाकुर संतोष जैन संदीप पांडे संस्कृत संस्‍कृति संस्‍कृति विभाग सतनाम सतीश कुमार चौहान सत्‍येन्‍द्र समाजरत्न पतिराम साव सम्मान सरला दास साक्षात्‍कार सामूहिक ब्‍लॉग साहित्तिक हलचल सुभाष चंद्र बोस सुमित्रा नंदन पंत सूचक सूचना सृजन गाथा स्टाम्प शुल्क स्वच्छ भारत मिशन हंस हनुमंत नायडू हरिठाकुर हरिभूमि हास-परिहास हिन्‍दी टूल हिमांशु कुमार हिमांशु द्विवेदी हेमंत वैष्‍णव है बातों में दम

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को ...