प्रादेशिक भाषाओं में गज़ल कहने के समक्ष चुनौतियों को स्वीकार करते हुए मनोज भावुक ने जब भोजपुरी में गज़ल संग्रह प्रकाशित करवाया और यह संग्रह मित्र शैलेष भारतवासी के हिन्द युग्म से प्रकाशित हुआ तब तक मैं इस पर गंभीर नहीं था। सन् 2006 के लिए जब मनोज भावुक के इस संग्रह को भारतीय भाषा परिषद के पुरस्कारों के लिए चुना गया तब खुशी हुई। इस बीच में मनीष कुमार जी नें उस संग्रह के गज़लों पर दो तीन समीक्षात्मक आलेख लिखे और फिर बहुत सारे भोजपुरिया मित्रों नें समवेत स्वर में उस संग्रह के ठेठ शब्दों और माधुर्य पर इंटरनेट में बीसियों पोस्ट लिखे। इससे मेरा छत्तीसगढि़या मन उत्साह से भर गया और मैंनें भी छत्तीसगढ़ी भाषा में लिखे गए गज़लों को अपने वेब मैग्जीन गुरतुर गोठ डॉट काम में क्रमश: डालना आरंभ किया जिसमें जनकवि मुकुन्द कौशल जी के पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित छत्तीसगढ़ी गज़लों को भी सामिल किया गया । इसी क्रम में डॉ.सुधीर शर्मा जी से सलाह प्राप्त करने पर ज्ञात हुआ कि मुकुन्द कौशल जी की गज़ल विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में है और इनकी एक संग्रह भी प्रकाशित हो चुकी है। सहृदय मुकुंद जी से कुछ दिन बाद मुलाकात हुई, गज़लों पर लम्बी बातचीत हुई और गुरतुर गोठ डॉट कॉम के लिए गज़लों का खजाना मिल गया। मैं सदैव छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़ी के प्रति आत्ममुग्ध रहा हूं, मुझे लगा हिन्दी के अन्य बोली भाषा में लिखे गज़लों में छत्तीसगढ़ी गज़ले सर्वश्रेष्ठ हैं। और यह सर्वविदित सत्य है कि हिन्दी से इतर अन्य बोली भाषाओं की गज़लों में में मुकुंद कौशल जी नें जो छत्तीसगढ़ी में गज़ल कहे हैं उसका स्थान सर्वोच्च है।
छत्तीसगढ़ी में गज़ल का आगाज और मुकुंद कौशल जी की दमदार उपस्थिति उनके पहले संग्रह ‘छत्तीसगढ़ी गज़ल’ से ही सिद्ध हो चुकी थी। हिन्दी के बाद प्रादेशिक भाषाओं में भी हृदय के तार को झंकृत कर देने वाले एवं शांत लहरों में भी तूफान उठाने की क्षमता रखने वाले शेर कहे गए और गज़लों का क्रम आरम्भ हुआ। लाला जगदलपुरी के अदबी अनुशासन में कसे गज़लों की श्रृंखला को मुकुन्द कौशल जी नें विस्तृत किया। छत्तीसगढ़ी साहित्य में गज़ल को एक अलग विधा के रूप में आपने पल्लवित किया। ‘छत्तीसगढ़ी गज़ल’ संग्रह के प्रकाशन एवं तदनंतर उसके समीक्षा ग्रंथ के प्रकाशन नें यह सिद्ध कर दिया कि छत्तीसगढ़ी में गज़ल को साधने वालों में मुकुंद कौशल जी शीर्ष पर हैं। जन गीतकार मुकुद कौशल जी नें छत्तीसगढ़ी गज़लों को यह मकाम कैसे दिया, यह उनके सुदीर्घ अनुभव, सतत रचनाशीलता और छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक परम्पराओं में गहरा जुड़ाव का फल है। मुकुंद कौशल जी नें छत्तीसगढ़ को एक से एक लोकप्रिय गीत दिए जो अब जन गीत के रूप में स्थापित हैं। उन्होंनें हिन्दी में पहले गज़ल को साधा, हिन्दी में भी उनके गज़ल संग्रह आये, और उनके हिन्दी गज़ल संग्रहों को साहित्य में विशेष स्थान मिला। उन्होंनें गज़ल को साधा और उर्दू अदब के सांचे में छत्तीसगढ़ी भाव व बिम्ब को शब्द दिया। यही कारण है कि समकालीन अन्य छत्तीसगढ़ी गज़लकारों में मुकुंद कौशल जी का एक अलग और शीर्ष स्थान है।
छत्तीसगढ़ी में गज़ल का आगाज और मुकुंद कौशल जी की दमदार उपस्थिति उनके पहले संग्रह ‘छत्तीसगढ़ी गज़ल’ से ही सिद्ध हो चुकी थी। हिन्दी के बाद प्रादेशिक भाषाओं में भी हृदय के तार को झंकृत कर देने वाले एवं शांत लहरों में भी तूफान उठाने की क्षमता रखने वाले शेर कहे गए और गज़लों का क्रम आरम्भ हुआ। लाला जगदलपुरी के अदबी अनुशासन में कसे गज़लों की श्रृंखला को मुकुन्द कौशल जी नें विस्तृत किया। छत्तीसगढ़ी साहित्य में गज़ल को एक अलग विधा के रूप में आपने पल्लवित किया। ‘छत्तीसगढ़ी गज़ल’ संग्रह के प्रकाशन एवं तदनंतर उसके समीक्षा ग्रंथ के प्रकाशन नें यह सिद्ध कर दिया कि छत्तीसगढ़ी में गज़ल को साधने वालों में मुकुंद कौशल जी शीर्ष पर हैं। जन गीतकार मुकुद कौशल जी नें छत्तीसगढ़ी गज़लों को यह मकाम कैसे दिया, यह उनके सुदीर्घ अनुभव, सतत रचनाशीलता और छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक परम्पराओं में गहरा जुड़ाव का फल है। मुकुंद कौशल जी नें छत्तीसगढ़ को एक से एक लोकप्रिय गीत दिए जो अब जन गीत के रूप में स्थापित हैं। उन्होंनें हिन्दी में पहले गज़ल को साधा, हिन्दी में भी उनके गज़ल संग्रह आये, और उनके हिन्दी गज़ल संग्रहों को साहित्य में विशेष स्थान मिला। उन्होंनें गज़ल को साधा और उर्दू अदब के सांचे में छत्तीसगढ़ी भाव व बिम्ब को शब्द दिया। यही कारण है कि समकालीन अन्य छत्तीसगढ़ी गज़लकारों में मुकुंद कौशल जी का एक अलग और शीर्ष स्थान है।
छत्तीसगढ़ी गज़लों की श्रृंखला में मुकंद कौशल जी का दूसरा गज़ल संग्रह ‘मोर गज़ल के उड़त परेवा’ जब मिला तो आनंदित होते हुए आरंभ से अंत तक बुदबुदाते हुए एक बैठकी में ही पढ़ गया। कौशल जी नें इस संग्रह में छोटी और बड़ी बहर की गज़लों का बेजोड़ गुलशन रचाया है। छत्तीसगढ़ की आत्मा और वर्तमान परिवेश को इसमें शब्द मिले हैं। गज़लों में भावनाओं की गहराई, सौंदर्य और प्रेम की भाषा देशज ठेठ शब्दों के माधुर्य के साथ प्रस्तुत हुआ है। गीत लिखने वाले कौशल जी जन के स्पंदन के कवि हैं, उनकी संवेदना इस संग्रह के गज़लों में मुखरित हुई है। संग्रहित गज़लों में छत्तीसगढ़ का कस्बाई और ग्रामीण समाज बार बार आंखों के सामने आता है, उनके दुख दर्द, उनकी परम्पराओं पर होते प्रहार आदि इत्यादि बहरों में डूबते उतराते हैं।
इस संग्रह के प्रत्येक गज़ल और शेर अपने भावार्थों में विशालता लिए हुए प्रस्तुत हुए हैं। शब्दों में अंर्तनिहित गूढार्थ व्यवस्था की कलई उधेड़ता है और होट स्वयं उन शेरों को बुदबुदाने लगते हैं। इस संग्रह के जो अंश मुझे बेहद प्रभावित कर रहे हैं उनमें से कुछ का उल्लेख मैं करना चाहूंगा, जिन्हें मैंनें जिस अर्थों में समझा और मेरे हृदय नें अंगीकार किया - क्रमश: ...
संजीव तिवारी
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