अलग अलग गणना चिन्ह |
हम अंकों और उस पर आधारित गणना पद्धति के इतिहास की बात करें तो विश्व के अधिकांश जगहों पर पर गणना पद्धति का प्रारम्भिक आधार दस ही रहा है और भारतीय गणना पद्धति को तो दशमिक गणना पद्धति भी कहा जाता है। इसमें एक सवाल यह भी खड़ा होता है कि विश्व के अलग-अलग हिस्सों में स्वतंत्र रुप से विकसित इस गणना पद्धतियों में दस का आधार ही क्यों लिया गया? जबकि बारह अंकों वाला आधार वैज्ञानिक रुप से अधिक उपयुक्त होता क्योंकि यह आधे तिहाई व चौथाई हिस्से तक पूर्णांकों में विभक्त हो जाता। इसका जवाब देते हुए नृतत्व शास्त्री कहते हैं कि चूंकि गणना के प्रारंभिक लोग अपनी हाथों की अंगुलियों का इस्तेमाल किया करते थे। (जैसा छोटे बच्चे अब भी करते है) और हाथों में दस अंगुलियां ही होती है इसी से विश्व के अधिकांश गणना पद्धतियों में दस अंकों का आधार विकसित हुआ।
शून्य का पहला अभिलेखीय प्रमाण |
भारतीय अंक व गणना-पद्धति की विश्व विजयी यात्रा-पूर्व की ओर उन साहसी व्यापारियों व विजेताओं के साथ शुरु होती है जिन्होंने पूर्वी एशिया में अपने उपनिवेश स्थापित किये थे, कम्बोडिया के मंदिरों के अलावा सम्बौर का श्री विजय स्तम्भ अभिलेख, पलेबंग का मलय अभिलेख (मलेशिया) जावा (इंडोनेशिया) का दिनय संस्कृत अभिलेख के अतिरिक्त इस क्षेत्र के कई अभिलेखों में भारतीय गणना पद्धति का उपयोग किया गया है, ये अभिलेख चूंकि पद्यात्मक शैली में लिखे गये है, इसलिए इसमें अंकों के स्थान पर भूतसंख्यांओं का उपयोग किया गया है। भूत संख्याऐं वे शब्द है जिनसे गणना चिन्हों को व्यक्त किया जाता है। यथा -
0 - निर्वाण
1 - चन्द्रमा (जो अद्वितीय हो)
2 - नेत्र, कर्ण, बाहु (जो जोड़े में हो)
3 - राम (तीन प्रसिद्ध राम- परशुराम, बलराम, दशरथ पुत्र राम)
4 - वेद
5 - बाण (कामदेव के प्रसिद्ध पांच बाण)
6 - रस
7 - स्वर
8 - सिद्धि
9 - निधि
इसी तरह विभिन्न अंकों के लिए अन्य शब्दों का प्रयोग हुआ है। चीन में भारतीय अंक बौद्ध धर्म के साथ पहुंचे वहां के सम्राटों को भारतीय ज्योतिष में बेहद आस्था थी। जिससे प्रेरित होकर उन्होंने बहुत से भारतीय ज्योतिष-गणित के ग्रन्थों का चीनी में अनुवाद कराया।
पश्चिम की ओर भारतीय अंकों की यात्रा का पहला पड़ाव ईरान था, जहां के पहलवी शासक शापूर ने भारतीय ज्योतिष-गणित के ग्रन्थों का बड़े पैमाने में फारसी अनुवाद कराया था। ऐसे अनेकों संकेत मिलते है कि पांचवी शताब्दी तक भारतीय अंक व्यापारियों के माध्यम से अलेक्जेfन्ड्रया के बाजारों तक पहुंच चूके थे। इसका सबसे विश्वस्त प्रमाण इस बात से मिलता है कि गणित के बहुत से भारतीय विद्वान उस समय यूनानी वाणिज्य दूत सेवरस के अतिथि रहे थे।
इस बीच इस्लाम के उदय ने भारतीयों का यूरोप से सम्पर्क को लगभग खत्म कर दिया। किन्तु इससे भारतीय अंकों की विजय यात्रा में कोई बाधा नहीं आयी, क्योंकि जब अरबों ने ईरान को विजित किया तो उन्हें वहां के खजानों के साथ-साथ फारसी में अनुवादित बहुत सी बहुमूल्य भारतीय पुस्तकें भी मिली जो गणित सहित अन्य कई विषयों से संबंधित थी। अरबों ने इनका यथायोचित सम्मान करते हुए, इनका अरबी में अनुवाद कराया। इस तरह भारतीय अंक अरबों तक पहुंचे जिन्होंने उसे अपने व्यापारिक साझीदार यूरोपियों तक पहुंचाया, यही कारण है कि भारतीय अंकों को यूरोपीय आज भी इन्डों-अरेबिक संख्याऐं कहते है।
अल ख्वारिज्म |
कई अरब विद्वानों ने स्वतंत्र रुप से भी भारतीस अंकों व गणना पद्धति पर भी पुस्तकें लिखी, जिनमें सबसे अधिक प्रसिद्ध हुई सन् 825 ई. में अल ख्वारिज्म की लिखी पुस्तक ‘‘किताब हिसाब अल अद्द् अल हिन्दी’’ इसमें उन्होंने सिद्ध किया कि भारतीय अंक व गणना पद्धति न सिर्फ सर्वश्रेष्ठ है बल्कि सबसे सरल भी है। यह पुस्तक ‘‘लीबेर अलगोरिज्म डिन्युमरों इन्डोरम’’ (भारतीय संख्याओं पर अलगोरिज्म की पुस्तक) नाम से लैटिन में अनुवादित होकर यूरोप पहुंची और यूरोप अंकगणित से परिचित हुआ। यही कारण है कि यूरोपिय आज भी अंकगणित को अलगोरिज्म के नाम से ही पुकारते हैं। इसके अलावा अबु युसुफ अल किन्दी की ‘‘हिसाबुल हिन्दी’’ अलबरुनी की ‘‘अल अर्कम’’ महत्वपूर्ण पुस्तकें हैं। अल दिनवरी ने व्यापार संबंधी हिसाब में भारतीय पद्धति का प्रतिपादन किया। साहित्य प्रेमी बुखारा के रहने वाले और अपनी रुबाईयों के लिए मशहुर उम्मर खय्याम को जरुर जानते होंगे, दरअसल वो खगोलविद् थे और उन्होंने भी बड़े जतन से भारतीय गणना पद्धति को सीखा था। बुखारा के ही एक अन्य विद्वान इब्नसीना ने अपनी अपनी आत्मकथा में लिखा है कि उन्होंने भारतीय अंक व गणना पद्धति उन मिस्री उपदेशकों से सीखी थी जो धर्म प्रचार के लिए वहां आते थे। यह कथन इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यदि इब्नसीना इस बात को न लिखते तो कोई स्वप्न में भी यह नहीं सोच सकता कि भारतीय अंक रुस में व्हाया मिस्र (अफ्रीका) दाखिल हुए।
पंचतंत्र का अरबी अनुवाद, एक दृश्य |
भावों के प्रवाह में बहकर हम अपनी मूल धारा से दूर आ गये, चलिये वापस लौटते है। फ्रांस में जन्मे गेरबर्ट नामक व्यक्ति ने स्पेन जाकर भारतीय अंक व गणना पद्धति संबंधित ज्ञान अर्जित किया। वह इस पद्धति से इतना प्रभावित हुआ कि जब वह ‘‘सिल्वेस्टर द्वितीय’’ के नाम से पोप बना तो उसने पूरे यूरोप में भारतीय अंकों व गणना पद्धति के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।
चौदहवी शताब्दी में यूनानी पादरी मैक्समस प्लेनुडेस द्वारा ग्रीक में लिखी पुस्तक ‘‘भारतीय अंक गणित जो महान है’’ इस बात का प्रमाण है कि इस समय तक पूरे ईसाई व मुस्लिम जगत में भारतीय अंक व गणना पद्धति प्रचलित हो चुके थे। यद्यपि इसमें कुछ बाधायें भी आयी। सन् 1299 में फ्लोरेन्स की नगर परिषद ने वाणिज्य लेखों के लिए भारतीय अंकों पर प्रतिबद्ध लगा दिया था पर युरोप के विभिन्न विश्व विद्यालयों जिनमें आक्सफोर्ड, पेरिस, पेदुआ व नेपल्स प्रमुख थे। भारतीय अंकों व गणना पद्धति पर अध्ययन-अध्यापन जारी रहा। अतः युरोप में प्रचलित होने के बाद ये अंक यूरोपियों के साथ अमेरिका पहुंचे और भारतीय अंकों का विश्व विजय अभियान पूर्ण हुआ।
विश्व को भारत की सबसे महान देने में पहला बौद्ध धर्म का एशिया में प्रसार है जबकि दाशमिक अंक प्रणाली को दुनिया भर में स्वीकार्यता मिलना भारतीय मस्तिष्क की दुसरी बड़ी विजय है। इनमें से एक क्षेत्र पारलौकिक ज्ञान है तो दुसरे का क्षेत्र लौकिक विज्ञान।
विवेक राज सिंह
समाज कल्याण में स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्त विवेकराज सिंह जी स्वांत: सुखाय लिखते हैं।अकलतरा, छत्तीसगढ़ में इनका माईनिंग का व्यवसाय है.
एक मूल, सब अंक वहीं से निकले हैं..
जवाब देंहटाएंअंकों के इतिहास पर बहुत ही उपयोगी जानकारी प्रदान करने के लिये आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब, बढि़या संकलन व संयोजन.
जवाब देंहटाएंप्रिय विवेक जी ,
जवाब देंहटाएंब्लॉग जगत में इस श्रेणी की प्रविष्टियाँ कम ही देखने को मिलती हैं अस्तु साधुवाद !
और हां ८वें ९वे पैरे में टंकण की दो तीन त्रुटियाँ सुधार दीजियेगा !
जवाब देंहटाएंबिहार को नष्ट = विहार को नष्ट
मिश्र = मिस्र
मिश्री = मिस्री
एक शोधपूर्ण सार्थक जानकारी युक्त आलेख!!
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी धन्यवाद ..
जवाब देंहटाएंkalamdaan.blogspot.in
बहुत ही अच्छी जानकारी दी है आपने ..आभार ।
जवाब देंहटाएंशानदार जानकारी एकदम रोचक तरीके से| 'भास्कराचार्य कृत लीलावती' की उपलब्धता स्थिति पर प्रकाश डाल सकेंगे क्या?
जवाब देंहटाएंpin pointed post . collectable.waiting for next one nice .
जवाब देंहटाएंअच्छा संकलन.बढ़िया जानकारी,
जवाब देंहटाएंअंको की उत्पत्ति को ऐसे रहस्यात्मक तरीके से प्रस्तुत किया गया है जो आपके विचार को दर्शाती है की आपकी सोच कहाँ से कहाँ तक विस्तृत है या मै कहूँ तो आपने अंको की सृष्टी ही रच डाली है उपयोगी जानकारी के लिए साधुवाद
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