विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों
पंकज जी वनस्पति विज्ञानी है और पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान के खोज में देशभर में एवं छत्तीसगढ़ के वन ग्रामों में लगातार शोध यात्राएं करते रहते है और वहां से प्राप्त ज्ञान को इंटरनेट में दस्तावेजीकरण करने के लिए अपलोड भी करते रहते हैं। मधुमेह पर वैज्ञानिक रिपोर्ट लिखने के संबंध में पंकज जी का एक साक्षात्कार हिन्दी वेबसाईट पर यहां उपलब्ध है। वर्तमान में पंकज जी मधुमेह से संबंधित रपट अपने साईट में अपलोड कर रहे है वे पारंम्परिक चिकित्सा के संबंध में अपने वेबसाईट में १५ जीबी की सामग्री डाल चुके हैं, और अब एक दूसरी वेबसाईट में डायबीटीज की रपट अपलोड कर रहे हैं। इस साईट में अभी तक ३६ लाख से अधिक पन्ने अपलोड हो चुके हैं यह हम सब के लिए गौरव की बात है कि पंकज जी के गहन शोध से प्राप्त यह सामाग्री और ज्ञान हमारे छत्तीसगढ़ का है।
पंकज जी, शोध आलेखों के साथ ही उपन्यास भी लिखते हैं यह हमें विगत दिनो ज्ञात हुआ जब इनके अप्रकाशित अंग्रेजी उपन्यास ब्रेब मनटोरा (Brave Mantora) का हिन्दी अनुवाद इतवारी अखबार में क्रमश: प्रकाशित हुआ है। हमारे अनुरोध पर पंकज जी नें इस उपन्यास के कुछ अंशों को आरंभ में प्रकाशित करने की सहमति दी है। आगामी पोस्टों में हम पंकज अवधिया जी के इस उपन्यास का हिन्दी अनुवाद क्रमश: प्रस्तुत करेंगें।
हार्दिक स्वागत.
जवाब देंहटाएंप्रतीक्षा रहेगी।
जवाब देंहटाएंसुस्वागतम !
जवाब देंहटाएंअच्छी पहल।
जवाब देंहटाएंआभार...
स्वागत.....
उत्सकुता से इंतजार रहेगा इस उपन्यास को पढ़ने का। देखना है कि एक वनस्पति विज्ञानी का साहित्य लेखन कैसा है।
जवाब देंहटाएंबढ़िया लेख इसे भी देखे :-
जवाब देंहटाएंhttp://hindi4tech.blogspot.com/