पिछले दिनों रायपुर के एक प्रेस से पत्रकार मित्र का फोन आया कि संस्कृति विभाग द्वारा राजधानी में पहले व तीसरे रविवार को मुख्यमंत्री निवास के बाजू में नाचा - गम्मत का एक घंटे का कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है इस पर आपकी राय क्या है तो मैंने छूटते ही कहा था कि छत्तीसगढ़ की पारम्परिक विधा नाचा रात से आरंभ होकर सुबह 'पंगपंगात' ले चलने वाला आयोजन है जिसमें एक-एक गम्मत एक-दो घंटे का होता है, आगाज व जोक्कड़ों का हास्य प्रदर्शन, जनउला गीत ही लगभग एक-डेढ़ घंटे का होता है तब कहीं जाकर सिर में लोटा 'बोहे' परी दर्शकों के पीछे से गाना गाते प्रकट होती है 'कोने जंगल कोने झाड़ी हो ......' इसके बाद प्रहसन रूप में शिक्षाप्रद कथाओं का गम्मतिहा नाट्य मंचन होता है। ऐसे में विभाग के द्वारा इतने सीमित समय में इस आयोजन को समेटने से इसका मूल स्वरूप खो सा जायेगा। बात आई-गई हो गई।
आज राजधानी के आनलाईन समाचार पत्रों के पिछले पन्ने पलटते हुए इस कार्यक्रम का समाचार नजर आया तो रायपुर में मित्रों को फोन मिलाया और सिंहावलोकन वाले राहुल सिंह जी से इस सफल आयोजन के संबंध में विस्तृत जानकारी व फोटो मांग लाया। मित्रों व राहुल सिंह जी से प्राप्त जानकारी के अनुसार रायपुर के नागरी परिवेश में छत्तीसगढ़ की यह संस्कृति जब मंच पर उतरी तो लोग अभिभूत होकर देखते ही रह गए। साज-सज्जा से कोसो दूर होने के बावजूद यह कार्यक्रम जैसे ही शुरू हुआ, लोगों की भीड़ जुटने लगी। इसमें प्रदेश के कलाकारों द्वारा छत्तीसगढ़ की मूल सांस्कृतिक धरोहर नाचा को बेहतरीन तरीके से मंच पर प्रस्तुत किया गया।
शुरुआत लोक गायिका किरण शर्मा द्वारा गणपति वंदना तै मूसुवा में चढ़ के आजा गणपति से हुई। इसके बाद एक से बढ़कर एक लोकगीतों की प्रस्तुतियों ने दर्शकों को बांधे रखा। भरथरी, देवार, नाचा व कर्मा गीतों की प्रस्तुतियों ने लोगों को अपनी माटी की खुशबू को करीब से जानने का मौका दिया। फिर शुरू हुआ हास्य गम्मत प्रहसन का दौर। इसके मुख्य कलाकार रामलाल निर्मलकर की प्रस्तुति को देखने के लिए लोग बेताब नजर आएँ। ये उन चुनिंदा कलाकारों में से एक हैं, जिन्होंने हबीब तनवीर के साथ काम किया है। गड़बड़ गपशप शीर्षक पर आधारित इस गम्मत ने जहाँ दर्शकों का मनोरंजन किया, वहीं सशक्त संदेश भी दिया। इसमें पति-पत्नी के बीच किसी तीसरे व्यक्ति की वजह से कलह मच जाती है, पर बाद में सच्चाई पता होने पर उन्हें बहुत पछतावा होता है। इसमें यही संदेश देने की कोशिश की गई, कभी भी दूसरों की बातों में आकर गलतफहमी का शिकार न होवें। इसे कलाकारों ने न केवल अभिनय के जरिए बल्कि नृत्य व संगीत के साथ प्रस्तुत किया।
दर्शकों की उपस्थिति और खासकर बच्चों की उत्साहपूर्वक सहभागिता ने मानों साबित किया कि टीवी पर ढ़र्रे वाले सतही कार्यक्रम और फूहड़ता को देखना लोगों की मजबूरी है अगर उन्हें सहज, सुलभ मनोरंजक सांस्कृतिक प्रस्तुतियां उपलब्ध कराई जाय तो इसकी दर्शक संख्या अभी भी कम नहीं. रामलाल, अछोटा, धमतरी पार्टी के साथ, मंदराजी सम्मान प्राप्त कलाकार मानदास टंडन का गायन व चिकारा वादन, सुश्री किरण शर्मा का लोकगीत गायन व नृत्य, लच्छी-दुर्योधन की जोड़ी की भी प्रस्तुतियां थीं. निरंजन महावर जी और आयुक्त संस्कृति राजीव श्रीवास्तव जी विशेष रूप से उपस्थित रहे. निसार अली ने संयोजन में सहयोग दिया.
छत्तीसगढ़ी नाचा को मंच देने और लोगों को इससे रूबरू कराने के उद्देश्य से संस्कृति विभाग और नाचा थियेटर द्वारा हर माह के पहले और तीसरे रविवार को यह कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा। अगली प्रस्तुति में नाचा के साथ छत्तीसगढ़ी संस्कृति का आनंद लेने के लिये अभी से तैयार रहें ..
आज राजधानी के आनलाईन समाचार पत्रों के पिछले पन्ने पलटते हुए इस कार्यक्रम का समाचार नजर आया तो रायपुर में मित्रों को फोन मिलाया और सिंहावलोकन वाले राहुल सिंह जी से इस सफल आयोजन के संबंध में विस्तृत जानकारी व फोटो मांग लाया। मित्रों व राहुल सिंह जी से प्राप्त जानकारी के अनुसार रायपुर के नागरी परिवेश में छत्तीसगढ़ की यह संस्कृति जब मंच पर उतरी तो लोग अभिभूत होकर देखते ही रह गए। साज-सज्जा से कोसो दूर होने के बावजूद यह कार्यक्रम जैसे ही शुरू हुआ, लोगों की भीड़ जुटने लगी। इसमें प्रदेश के कलाकारों द्वारा छत्तीसगढ़ की मूल सांस्कृतिक धरोहर नाचा को बेहतरीन तरीके से मंच पर प्रस्तुत किया गया।
शुरुआत लोक गायिका किरण शर्मा द्वारा गणपति वंदना तै मूसुवा में चढ़ के आजा गणपति से हुई। इसके बाद एक से बढ़कर एक लोकगीतों की प्रस्तुतियों ने दर्शकों को बांधे रखा। भरथरी, देवार, नाचा व कर्मा गीतों की प्रस्तुतियों ने लोगों को अपनी माटी की खुशबू को करीब से जानने का मौका दिया। फिर शुरू हुआ हास्य गम्मत प्रहसन का दौर। इसके मुख्य कलाकार रामलाल निर्मलकर की प्रस्तुति को देखने के लिए लोग बेताब नजर आएँ। ये उन चुनिंदा कलाकारों में से एक हैं, जिन्होंने हबीब तनवीर के साथ काम किया है। गड़बड़ गपशप शीर्षक पर आधारित इस गम्मत ने जहाँ दर्शकों का मनोरंजन किया, वहीं सशक्त संदेश भी दिया। इसमें पति-पत्नी के बीच किसी तीसरे व्यक्ति की वजह से कलह मच जाती है, पर बाद में सच्चाई पता होने पर उन्हें बहुत पछतावा होता है। इसमें यही संदेश देने की कोशिश की गई, कभी भी दूसरों की बातों में आकर गलतफहमी का शिकार न होवें। इसे कलाकारों ने न केवल अभिनय के जरिए बल्कि नृत्य व संगीत के साथ प्रस्तुत किया।
दर्शकों की उपस्थिति और खासकर बच्चों की उत्साहपूर्वक सहभागिता ने मानों साबित किया कि टीवी पर ढ़र्रे वाले सतही कार्यक्रम और फूहड़ता को देखना लोगों की मजबूरी है अगर उन्हें सहज, सुलभ मनोरंजक सांस्कृतिक प्रस्तुतियां उपलब्ध कराई जाय तो इसकी दर्शक संख्या अभी भी कम नहीं. रामलाल, अछोटा, धमतरी पार्टी के साथ, मंदराजी सम्मान प्राप्त कलाकार मानदास टंडन का गायन व चिकारा वादन, सुश्री किरण शर्मा का लोकगीत गायन व नृत्य, लच्छी-दुर्योधन की जोड़ी की भी प्रस्तुतियां थीं. निरंजन महावर जी और आयुक्त संस्कृति राजीव श्रीवास्तव जी विशेष रूप से उपस्थित रहे. निसार अली ने संयोजन में सहयोग दिया.
छत्तीसगढ़ी नाचा को मंच देने और लोगों को इससे रूबरू कराने के उद्देश्य से संस्कृति विभाग और नाचा थियेटर द्वारा हर माह के पहले और तीसरे रविवार को यह कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा। अगली प्रस्तुति में नाचा के साथ छत्तीसगढ़ी संस्कृति का आनंद लेने के लिये अभी से तैयार रहें ..
मजा आगे, मजा आगे, मजा आगे जी, आज के नचाई माने पोस्ट म संगी मजा आ गे जी.
जवाब देंहटाएंपढ़कर आनंद आ गया जी ...हम भी झूम उठे ..शुक्रिया
जवाब देंहटाएंनयी विधा देखने को मिली, लोक संस्कृति।
जवाब देंहटाएंबेरा पंगपंगात ले देखे बर भुइयां मा चद्दर हा कभू ओढ़े अउ बिछाय दुनो के मजा देवत रहिस हे...! राहुल भैया ता खुरसी म बैठे दिखत हे. तभो ले येहा बड़ाई के काम आय हमरो डहर जोहार पहुंचे.
जवाब देंहटाएंसुकवा के उगत अऊ बेर के पहात ले नाचा के मजा लेय हन भैया। बोरा के जठना मा। काखरो बिहाव बरात में घला नाचा वाला मन आए।
जवाब देंहटाएंजोक्कड़ के गोठ मा कठल कठल के हांसन, बड़ मजा आवै,अब नाचा के दिन नंदा गे।
जब ले सुनेवं नाचा के आयोजन होवत हे त देखे के मन लागिस।
राहुल भैया के संदेश मिले रहिसे,आघु शनिच्चर के दरी मा बैठे के नाचा गम्मत के मजा लेना हे।
संस्कृति विभाग ला गाड़ा गाड़ा बधई।
badhiya...photo and video are intresting...thanx...
जवाब देंहटाएंबड़ा मजा अइस संगी...
जवाब देंहटाएंराजधानी में पारंपरिक नाचा के दीवाने...
जवाब देंहटाएं...माने राजधानी के बाहर वालों को आप गिनोगे ही नहीं :)
मजा आगे संगी,गाड़ा-गाड़ा बधई...
जवाब देंहटाएंधरोहर, विरासत संजोने की बात तो सब करते है, परन्तु छत्तीसगढ संस्कति विभाग ये काम कर भी रहा है...बधाई विभाग व नाचा थियेटर को....
जवाब देंहटाएंए कार्यक्रम ल देखे हौं, सिरतोन बड मज़ा आईस... अइसन सुग्घर आयोजन बर संस्कृति विभाग हर बधाई के पात्र हवे. बधाई.
जवाब देंहटाएंआदरणीय बंधुवर संजीव तिवारी जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
नाचा संबंधी आलेख बहुत पसंद आया , बधाई और आभार !
हम एक दूसरे के लोक जीवन के माध्यम से निस्संदेह और निकट आते हैं ।
इतने श्रम और लगन से तैयार पोस्ट के लिए जितनी ता'रीफ़ करूं , कम है … !
आपकी कुछ पिछली पोस्ट्स भी देखी, जो बहुत अच्छी लगीं ।
~*~ नव वर्ष २०११ मंगलमय हो ! ~*~
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
बने लागिस.
जवाब देंहटाएंअति सुंदर।
जवाब देंहटाएं---------
बोलने वाले पत्थर।
सांपों को दुध पिलाना पुण्य का काम है?
मैं सोचता हूं कि नाचा के लिए जितना निसार भाई के करने की कोशिश की है। उन्हें उसके लिए उतना श्रेय नहीं मिला है। निसार भाई ने स्वचेतना से काम किया वे एक बड़े व्यक्तित्व हैं, आदरणीय हैं।
जवाब देंहटाएं