गजानन माधव मुक्तिबोध बीसवीं सदी के एक महान साहित्यकार थें, जिनका कद इक्कीसवीं सदी में और भी ऊंचा हुआ है। आने वाली सदियों में वे और भी अधिक अन्वेषित होकर और भी महान लेखक होते चले जावेंगे। उनकी कविताओं की जटिलता और रहस्यमयता जग जाहिर है। वे कठिन कवि माने जाते हैं जिन्हें औरों की तरह सेलीब्रेट नहीं किया जा सकता। इसलिए जहॉ अन्य कवियों की कविताऍं आसानी से गाई बजाई जाती रहीं हैं उस तरह से गाना बजाना मुक्तिबोध की कविताओं के साथ संभव नहीं हो पाया था। उनकी किसी कविता का गायन कभी देखने सुनने में नहीं आया था।
मेरे लिए आज की तारीख 13 नवंबर 2010 एक यादगार तारीख रहेगी जब जनसंस्कृति मंच, भिलाई के राष्ट्रीय अधिवेशन में मैंने इस चमत्कार को पहली बार होते देखा। मुक्तिबोध को समर्पित इस अधिवेशन की शुरुआत में जो गीत गाए गए उनमें एक गीत मुक्तिबोध का था। यह उनकी प्रसिद्ध कविता ’अंधेरे में’ की पंक्तियों का सस्वर गायन था। इसे पुरुष और महिला कलाकारों ने एक साथ प्रस्तुत किया। जैसे ही मंच पर सामूहिक गान शुरु हुआ मुक्तिबोध की द्वन्द से भरी ये कालजयी पंक्तियॉ गूंज उठीं :
ओ मेरे आदर्शवादी मन
ओ मेरे सिद्धान्तवादी मन
तूने क्या किया
जीवन क्या जिया
इसे सुनना बहुत आल्हादकारी था। ये मुक्तिबोध की संघर्षमयी उबड़ खाबड़ जमीन से जुड़ी पंक्तियॉ थीं जिसे करीने से स्वरबद्ध किया गया था। यह अपने आप में एक चमत्कारिक संयोजन था। इसे लोगों ने किसी चमत्कार की तरह देखा। मुक्तिबोध के समग्र चमत्कारिक लेखन की ही तरह। यह प्रस्तुति अन्धेरे में किसी रहस्यमय सुरंग से आती मधुर आवाज की तरह थी। इस धुन ने सुनने वालों को न केवल भाव विभोर बल्कि रस विभोर भी कर दिया जो कई दशकों तक अपने में एक असंभव काम सा लगता रहा था। इसे संभव कर दिखाया था उन नौजवान कलाकारों ने जो मंच में खड़े होकर मिल जुलकर गा रहे थे ’तूने क्या किया - जीवन क्या जीया।’ मुक्तिबोध के शब्दों में किसी अनहदनाद की तरह।
मंच पर मैनेजर पाण्डेय और मंगेश डबराल बैठे थे। इस गायन के तुरन्त बाद जब मुक्तिबोध पर बोलने के लिए मंगेश डबराल को बुलाया गया तब सबसे पहले उन्होंने यहीं कहा कि ’मुक्तिबोध ने अपनी कविताओं को रचते समय यह कल्पना भी नहीं की रही होगी कि कभी कोई ऐसा समय आएगा जब उनकी कविता का लयबद्ध मधुर गायन होगा। आज यहॉ जो हुआ वह कितना विलक्षण और रोमांचकारी है।’ मंगेशजी ने सबके दिलों की बात कह दी थी।
विनोद साव
इस कविता को हिरावल के नितिन एवं साथियों नें प्रस्तुत किया नितिन जी की कुछ प्रस्तुतियॉं यहां उपलब्ध है, हमने उनसे अनुरोध किया है कि ओ मेरे आदर्शवादी मन ... का आडियो विडियो को भी इसमें प्रस्तुत करें।
इस कविता को हिरावल के नितिन एवं साथियों नें प्रस्तुत किया नितिन जी की कुछ प्रस्तुतियॉं यहां उपलब्ध है, हमने उनसे अनुरोध किया है कि ओ मेरे आदर्शवादी मन ... का आडियो विडियो को भी इसमें प्रस्तुत करें।
सस्वर पाठ की धुन बनाने और उस धुन में भाव समाहित कर लेने के लिये साधुवाद।
जवाब देंहटाएंआलेख की शुरुआत से ही ऐसा लग रहा था कि संजीव जी बदल कैसे गए ? बाद में पता चला ये अतिथि की भाषा थी :)
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति ! नितिन जी की प्रस्तुतियाँ भी सुनी जा रही हैं ! आभार !
'अन्धेर में' की छूटी वर्तनी दुरुस्त कर लें, ऐसे कुछ जो मूल शीर्षक से वाकिफ नहीं होंगे, उनके लिए यह आवश्यक है.
जवाब देंहटाएंकर्यक्रम का सिलसिले वार ,सुन्दर विवरण मुझे लेख को तरतीब से पढने के लिये मजबूर होना पड़ा।
जवाब देंहटाएं@ धन्यवाद राहुल भईया, वर्तनी दुरुस्त कर दिया हूं.
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट के और लिंक के लिए आभार संजीव भईया...
जवाब देंहटाएंप्रणाम,
जवाब देंहटाएंसार्थक एवं मन को छु लेने वाले पोस्ट के लिए बधाई स्वीकार करें.....
... bahut sundar ... shaandaar abhivyakti/post !
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति!
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