 मूर्धन्य कवि  समीक्षक गजानन माधव मुक्तिबोध जी ने अपने जीवन काल की सर्वश्रेष्ठ रचनाएं छत्तीसगढ़ राज्य के राजनांदगांव जिले के दिग्विजय महाविद्यालय  में अपने सेवा काल (1958-1964) के दौरान लिखी उनके इस रचनाकाल और रचनाओं पर देश की शीर्ष अकादमिक व साहित्यिक बिरादरी में निरंतर चर्चा होती रही है। राज्य शासन नें उनकी यादों को  जीवंत बनाने के लिए यहां भव्य त्रिवेणी संग्रहालय का निर्माण करवाया है। जहां मुक्तिबोध जी रहा करते थे, उनकी साहित्य साधना का स्थान और घुमावदार सीढ़ी जिसका उल्लेख उन्होनें अपनी रचनाओं में की है इस भवन के उपरी मंजिल के उत्तरी खंड में है। इस खडं को पुन: मुक्तिबोध जी को, उनकी यादों के साथ समर्पित करना निश्चय ही उनके प्रति कृतज्ञता एवं श्रृद्धा का प्रतीक है। मुक्तिबोध जी को समर्पित कक्ष को देखकर ऐसा प्रतीत होता है, जैसे वह आज भी अपनी रचनाओं के सृजन में लीन हों। मुक्तिबोध जी का सिगरटे बाक्स, उनकी पोशाक, चश्मा और उनकी वह दो कलमें (पेन) जिससे उन्होंने अपनी अनेक रचनाएं लिखी थी, को वहां देखकर यह आभास होता है जैसे वह कहीं हमारे आसपास मौजदू हों।
मूर्धन्य कवि  समीक्षक गजानन माधव मुक्तिबोध जी ने अपने जीवन काल की सर्वश्रेष्ठ रचनाएं छत्तीसगढ़ राज्य के राजनांदगांव जिले के दिग्विजय महाविद्यालय  में अपने सेवा काल (1958-1964) के दौरान लिखी उनके इस रचनाकाल और रचनाओं पर देश की शीर्ष अकादमिक व साहित्यिक बिरादरी में निरंतर चर्चा होती रही है। राज्य शासन नें उनकी यादों को  जीवंत बनाने के लिए यहां भव्य त्रिवेणी संग्रहालय का निर्माण करवाया है। जहां मुक्तिबोध जी रहा करते थे, उनकी साहित्य साधना का स्थान और घुमावदार सीढ़ी जिसका उल्लेख उन्होनें अपनी रचनाओं में की है इस भवन के उपरी मंजिल के उत्तरी खंड में है। इस खडं को पुन: मुक्तिबोध जी को, उनकी यादों के साथ समर्पित करना निश्चय ही उनके प्रति कृतज्ञता एवं श्रृद्धा का प्रतीक है। मुक्तिबोध जी को समर्पित कक्ष को देखकर ऐसा प्रतीत होता है, जैसे वह आज भी अपनी रचनाओं के सृजन में लीन हों। मुक्तिबोध जी का सिगरटे बाक्स, उनकी पोशाक, चश्मा और उनकी वह दो कलमें (पेन) जिससे उन्होंने अपनी अनेक रचनाएं लिखी थी, को वहां देखकर यह आभास होता है जैसे वह कहीं हमारे आसपास मौजदू हों।यह स्मारक सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक दर्शकों, साहित्य प्रेमियों के लिए खुला रहता है । शासकीय अवकाश रविवार के दिन भी यहां जाया जा सकता है। यह स्मारक सोम वार को बदं रहता है।
मुक्तिबोध ओ मुक्तिबोध, 
तुम गजानन, तुम माधव, 
स्वीकारो श्रद्धा सुमन 
मैं अल्प मति, मैं अबोध 
तुम मुक्तिबोध ..




 
 
 
 
मुक्तिबोध जी विनम्र श्रद्धांजलि और नमन
जवाब देंहटाएंसाहित्य के त्रिदेव के चरण म सत सत नमन
जवाब देंहटाएंसुन्दर जानकारी और श्रद्धा सुमन।
जवाब देंहटाएंछत्तीसगढ़ का साहित्य तीर्थ है यह स्थल. दर्शन का पुण्य लाभ मिला है, सो गौरवान्वित हूं.
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी, राजनांदगांव आने पर साहित्य के इस तीर्थ के दर्शन जरूर करना चाहेंगे।
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी... सत सत नमन
जवाब देंहटाएंआपकी लेखनी और सिंह साहब के चित्रों की जुगलबंदी की जाई पोस्ट कमाल बस कमाल है ! सार्थक पोस्ट !
जवाब देंहटाएंप्रणाम,
जवाब देंहटाएंराजनांदगांव और त्रिवेणी परिसर से मुझे बेहद लगाव है और वाकई वहां जाने पर जो सुकून मिलता है वह कहीं और नहीं, यही वह महत्वपूर्ण स्थान है जहाँ साहित्य के त्रिदेवों का मिलन हुआ और साहित्य ने नए आयामों को प्राप्त किया| यह धरा आदरणीय बख्शी जी, मुक्तिबोध जी एवं मिश्र की आज भी ऋणी है और आज भी राजनांदगांव की माटी में साहित्य एवं कला की मोहक सुगंध को महसूस किया जा सकता है एवं...
आपने इस पोस्ट के माध्यम से मेरे प्रिय नगर एवं वहां की यादों को तरोताजा कर दिया, सच आज इस ब्लॉग में आकर बेहद प्रसन्नता हुई आपको शत शत प्रणाम एवं इस बेहद प्रभावी पोस्ट के लिए अनंत आभार |
गौरव.