दो दिन पहले की बात है, मैं अपने प्रथम तल में स्थित कार्यालय से नीचे उतरा तो मुझे होटल के स्वागतकक्ष में एक लड़की सफेद गमछे में मुह बांधे बैठे दिखी। मैंनें स्वाभाविक रूप से उससे संबोधित होते हुए कहा कि 'मैडम यहॉं तो नकाब उतार दीजिए' संभवत: अचानक मेरा अनपेक्षित कथन उसे अटपटा सा लगा किन्तु वह मुह में बांधे हुए गमछे को हटा लिया। तब तक मेरे मोबाईल की घंटी बजनी शुरू हो गई थी और मैं स्वागतकक्ष से होते हुए बाहर निकल गया।
फोन अग्रज ब्लॉगर की थी, मेरे द्वारा लगातार दो पोस्ट एक ही दिन में पब्लिश कर देने के संबंध में। बात उनके ताजा पोस्ट के संबंध में भी हुई और मैं अग्रज के श्रीमुख से हल्दी लगे पत्र का वाकया का आनंद स्वानुभूति के साथ लेते हुए बाहर बरांडे में घूमता रहा। इस बीच स्वागताध्यक्ष द्वार के बाहर मेरे फोन बंद होने का इंतजार करता रहा, शायद उसे मुझसे कोई बात करनी रही होगी सो मैने हाथ के इशारे से अंदर जाने को कहा कि फोन के बाद मैं आकर चर्चा करता हूं। इस बीच स्वगातकक्ष में बैठी लड़की (वह लड़की नहीं थी लगभग 34-36 साल की महिला थी) चक्के लगे लगेज के साथ एक नये स्कापियो के पास आई, ड्राईवर नें बैग गाड़ी में रख लिए वह वापस स्वागतकक्ष में चली गई। मेरा फोन चलता रहा, फोन बंद करते ही स्वागताध्यक्ष बाहर मेरे पास आ गया। मैंने पूछा क्यों भाई, इतनी क्या आवश्यक बात है जो बाहर आ गए।
'सर .. वो लेडी .. जिसे आपने मुह खोलने को कहा था ...' मैंनें कहा कहो यार क्या बात है। उसने मुझे दरवाजे से दूर ले जाते हुए जो बतलाया उसका मजमून इस प्रकार है। वह महिला पिछले पांच-छ: दिनों से हमारे होटल में है, अपने पुत्र को बी.ई. में एडमिशन दिलाने आई है। पिछले तीन रात से यह वेटर से 'बच्चा' मंगा रही है, तब से हम लोग इस पर निगाह रखे हुए हैं। मैं चकरा गया कि ये कौन से बच्चे को मंगाती है, और क्या बच्चा भी होटलों में सर्व होता है। मेरे शंका पर रिशेप्शनिष्ट नें समझाया कि यह 'बच्चा' क्या है, उसने बतलाया कि महगे शराब के एक-दो पैग जितनी मात्रा में छोटी शीशी में जो शराब मिलता है उसे बच्चा कहते हैं, (हमने तो अध्धी, पौवा सुना था :) । ... तो यह सिद्ध था कि वह रात को शराब पीती है। ... मैने बेफिक्री से कहा कि .. तो क्या हुआ। उसने पुन: कहा सर शराब से हमें कोई तकलीफ नहीं थी पर वो पिछली रात एक दो गेस्ट के रूम में नाक कर रही थी और गेस्ट से बातचीत कर रही थी कि कहॉं से आये है, क्या करते हैं, बोर हो रही हूं तो यूं ही आपको नाक कर दिया। एक गेस्ट ने शिकायत की और एक गेस्ट के साथ वो देर तक बात करते रही। वेटर ने जब उन्हें रूम के बजाए लाबी में जाकर बात करने को कहा तो नाराज हो गई थी। किसी तरह समझाकर उन्हें उनके रूम में पहुचाया गया।
आज सबेरे हमने इनका रूम चेकआउट कर दिया यह कहते हुए कि पूरा रूम बुक है कोई रूम खाली नहीं है। दिन भर तो यह नहीं आई अभी शाम से फिर आकर बैठी है कि एक रूम दे दो प्लीज। मैने इसके आईडी व पता और इसके पुत्र के संबंध में पूछा, पुत्र एडमीशन के पूर्व एक दिन रूम में साथ रहा, सामने स्कार्पियो और ड्राईवर थे, किसी बड़े सरकारी कर्मचारी की पत्नी रही होगी, ... ओके। मैंनें कहा तो मुझसे क्या हैल्प चाहते हो, रिशेप्शनिष्ट नें कहा सर हो सकता है वो आपसे रिक्वेस्ट करे और आप बिना पूरा वाकया जाने रूम देने के लिए कह देगें तो हमें रूम देना होगा, और यह फिर नाटक करेगी।
अग्रज प्रो.अली जी का पोस्ट मानस से ओझल हुआ ही नहीं था कि यह....। एक और पोस्ट में प्रकाशित कहानी पिछले कुछ दिनों से मन को मथ रही है। कुछ और ख्यात पोस्टों में शब्द बाण संधान चालू आहे। पिछले दिनों से ब्लॉग पोस्टों में पुरूषप्रधान मन को आहत करने वाले दिव्यास्त्रों का प्रयोग और लक्ष्य के बीच नारी विमर्श टाईप का कुछ-कुछ भी प्रस्तुत हुआ है। सनातन परंपरा के विभिन्न महाकाव्यों में विवाहित स्त्री के परपुरूष संबंधों पर अलग-अलग ढंग से व्याख्या और आख्यानों का वर्णन हुआ है, प्रेम पर ओशो नें आधुनिक सदर्भों में वृहद दर्शन परोसा है। ... पर इन किताबों में मुह छिपाने के बजाए मैं नारी अस्मिता, नारी विमर्श, यत्र नारी पूज्यंते ..... के साथ .... इन वाकयों को किसी अपवाद के साथ स्वीकारते हुए, दिमागी तूफानों को शांत करने का प्रयास कर रहा हूं ....... देव, मैं पूर्ण एकाग्रता के साथ दिनकर को पढ़ना चाहता हूं।
संजीव तिवारी
bahut sahi
जवाब देंहटाएंश्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई ।
क्या बात है संजीव जी!
जवाब देंहटाएंकहाँ की बात को कहाँ जोड़ दिया!! :-)
सब के अपन अपन जरुरत हे गा भैया।
जवाब देंहटाएंअउ होटल के रुम हां त अइसन चीज हे बच्चा मांगत-मांगत खंबा हां घलों खंग जथे।
जोहार ले
जन्माष्टमी तिहार के बधई
मैने कुछ 'तीखे चटपटे' के साथ 'बच्चों' को खेलते देखा है पर आज तो वो नकाबपोश हल्दी लगे के साथ खेल गई :)
जवाब देंहटाएंताजा तरीन !
जवाब देंहटाएं@ संजय भाई,
जवाब देंहटाएंधन्यवाद.
@ पाबला जी,
:)
@ ललित भईया,
आठे कन्हैया के बधई.
@ अली भईया,
धन्यवाद. :)
@ डॉक्टर अरविन्द जी,
बासी में उफान कहॉं, इसीलिये ताजा :)
सही है. आज दिनकर जी को ही पढ़इये .... इन शब्द वाणों कि तरफ मत जाईये.
जवाब देंहटाएंBina lakshya ke divya stro ka prayog sab nirarthak gaya na.
जवाब देंहटाएंdivyastro
जवाब देंहटाएंसही है...
जवाब देंहटाएंबाकी सब ठीक...
जवाब देंहटाएंश्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाये..
निशाना दुरूस्त है :)
जवाब देंहटाएंश्रीकृ्ष्ण जन्मोत्सव की अशेष शुभकामनाऎँ!!!
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई........
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंहिन्दी भारत की आत्मा ही नहीं, धड़कन भी है। यह भारत के व्यापक भू-भाग में फैली शिष्ट और साहित्यिक भषा है।
आपको एवं आपके परिवार को श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया ! उम्दा प्रस्तुती!
सुन्दर प्रस्तुति ,महानगरीय संसकर्ति का वीभत्स चेहरा है यह,हैरानी अब नहीं होती पर डर लगता है
जवाब देंहटाएंश्री कृष्ण जन्माष्ठमी की सभी साथियों को बहुत-बहुत बधाई, ढेरों शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएं"कृष्ण... कृष्ण... कृष्ण की लीला कृष्ण ही जाने...."
जवाब देंहटाएंआपको बधाई..... जन्माष्टमी की.