छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के सिविल लाइन स्थित न्यू सर्किट हाउस में रविवार को "नक्सल हिंसा, लोकतंत्र और मीडिया" पर राष्ट्रीय परिचर्चा का आयोजन किया गया। इस अवसर पर मीडियाकर्मी, समाजसेवी, साहित्यकार, नक्सली वार्ताकारों ने हिस्सा लिया। परिचर्चा के विषय पर उन्होंने बेतकल्लुफी से अपने विचार रखें।
नक्सल मामलों के विशेषज्ञ प्रकाश सिंह ने भी कहा कि प्रशासन की विफलता के कारण नक्सली समस्या पैदा हुई है। शांतिवार्ता के लिए नक्सलियों के साथ कभी भी कोई गंभीर पहल नहीं की गई। इस समय वार्ता नहीं हो सकती। उन्होंने कहा कि यह कैसा लोकतंत्र है जहां अपराधी और करोड़पति ही सांसद के रूप में चुने जा रहे हैं। भ्रष्टाचार एक सीमा तक ही बर्दाश्त किया जा सकता है। विकास का यह पैमाना दोषपूर्ण है। असमान विकास को कारण बतलाते हुए इंडियन ब्रोडकास्ट एसोसिएशन के महासचिव एनके सिंह ने कहा कि मीडिया के लिए मानक और कायदे बनाने की दिशा में काम हो रहा है। बड़े मुद्दों पर चर्चा करने की परंपरा समाप्त हो गई है। मध्यवर्ग डांस इंडिया डांस देखने में मस्त है। सार्थक मुद्दों पर चर्चा की परंपरा बंद हो गई है। हमारे देश में विकास का गलत मॉडल चल रहा है। लगभग 84 करोड़ लोग 20 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से अपना गुजारा करते हैं, वहीं 25 हजार लोग ऐसे भी हैं जिनके पास 2 करोड़ की गाड़ियाँ हैं। इस तरह के असमान विकास से नक्सली समस्या पैदा होना लाजिमी है।
साहित्यकार रमेश नैयर ने कहा कि आदिवासी अंचलों का शोषण पहले पुलिस व फॉरेस्ट रेंजरों ने किया अब नक्सली उन्हें लूट रहे है। यह व्यवस्था बदलनी होगी। हमें विकास का कोई दूसरा उपाय ढूँढ़ने की जरूरत है। मीडिया की बेबाकी ही उसकी सफलता और लोकतंत्र की सेवा है। स्वामी अग्निवेश ने लिंकन की परिभाषा बाई दी पीपुल, फॉर दी पीपुल, आफ दी पीपुल के बाई दी रिप्रजेंटेटिव, फॉर दी रिप्रजेंटेटिव और आफ दी रिप्रजेंटेटिव में परिवर्तित होने पर जानकारी दी। नक्सल वार्ताकर स्वामी अग्निवेश ने नक्सलियों से बातचीत का समर्थन किया। उन्होंने कहा केन्द्र सरकार व नक्सली बातचीत करने के पक्ष में है। इसके लिए माहौल नहीं बन पा रहे हैं। दुनिया की हर समस्या बात से ही सुलझी है, गोली चलाने से किसी भी समस्या का हल नहीं निकाला जा सकता है। इससे केवल हिंसा की प्रवृति बढ़ती है। आनंद प्रधान ने हिंसा के सवाल पर राजनैतिक-सामाजिक-आर्थिक ढांचे में होने वाली हिंसा को समझने की जरूरत पर बल दिया। गृहमंत्री ननकीराम कंवर ने कहा कि मीडिया मध्यस्थता की भूमिका निभा सकता है। नक्सलवाद केवल प्रदेश की नहीं, वरन् पूरे देश की समस्या है।
नंद कुमार साय ने पुलिस को नक्सलवाद का जनक बताते हुए कहा कि पुलिस, पब्लिक और प्रशासन को एक लाइन में खड़ा करने से आदिवासियों में विश्वास पैदा होगा। अरविंद मोहन ने आदिवासियों के साथ हिंसा के इतिहास को लंबा बताते हुए कहा कि विकास के मॉडल और हिंसा पर लंबी चर्चा होनी चाहिए। छापामार लड़ाई से प्रदेश या देश पर काबिज करने की बात बेमानी है। लोकतंत्र सशक्त माध्यम है।
इस अवसर पर आईबीएन 7 के एमडी आशुतोष ने कहा कि नक्सली समर्थक कभी किसी के हितैषी नहीं हो सकते। इतिहास गवाह है कि उन्होंने अपने परिवार के लोगों को ही नहीं बख्शा, तो देश का क्या भला करेंगे। उन्होंनें कहा समाज की सोच परिवर्तन में मीडिया की अहम भूमिका है, जनता मीडिया से इन्सपार हो समाज की कुरीतियों को खत्म करने के अभियान में संलग्न हैं। देश के लोकतंत्र के लिए यह शुभ संकेत है। ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के बाद भी यदि गरीबी है, तो सोचना होगा कि यह क्यों है। उन्होंनें आगे कहा कि आज देश अपने पैरों पर खड़ा है और इसका भविष्य अत्यंत उज्ज्वल है। लोकतंत्र की विफलता और स्टेट की विफलता को सिरे से खारिज करते हुए उन्होंने कहा कि हमें भारत को पश्चिमी संस्कृति के हिसाब से देखना बंद करना चाहिए। अमर उजाला के संपादक अरविंद मोहन ने कहा कि मीडिया से लोग काफी अपेक्षा रखते हैं, लेकिन नक्सली या सरकार मीडिया से दोहरा व्यवहार करते हैं। युद्ध क्षेत्र में सेना बल अपनी कस्टडी में पत्रकारों को लेकर जाते हैं। वे वही छपवाते हैं, जो चाहते हैं। उस पर कोई सवालिया निशान खड़ा नहीं करता, लेकिन यदि नक्सली पत्रकारों को अपने साथ ले जाते हैं और पत्रकार कुछ लिखता है तो उसके चरित्र व मंशा पर सवाल खड़े किए जाते हैं। इतनी स्वतंत्रता होनी चाहिए कि पत्रकार खुद जाकर सच जाने या पत्रकार पर आरोप लगाना बंद करें। आनंद प्रधान ने हिंसा के सवाल पर राजनैतिक-सामाजिक-आर्थिक ढांचे में होने वाली हिंसा को समझने की जरूरत पर बल दिया। समाज में 30 करोड़ लोग भूखे हैं, आर्थिक विषमता की खाई गहरी हो गई है। नक्सलवाद को रोग का लक्षण बताते हुए इसे राज सत्ता की विफलता का परिणाम बताया। हरिवंश ने समस्या के समाधान के लिए राजनीतिक पहल न होने को समस्या का कारण बताया। पार्टियां प्राइवेट लिमिटेड कंपनी और राजनीतिक कार्यकर्ता पेड वर्कर बन गए हैं। मीडिया इस समस्या को समाप्त नहीं कर सकता। पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने कहा कि भारतीय संस्कृति पाश्चात्य देशों से अलग है, इसकी तुलना नहीं होनी चाहिए। स्कूलों, पुलों और सड़कों को उड़ाना कौन सी विचारधारा है। सात राज्यों की सीमाओं से घिरे होने के कारण छत्तीसगढ़ में नक्सली समस्या अधिक है। कार्यक्रम में मंच संचालन पत्रकार राजकुमार सोनी ने किया। इस कार्यक्रम में ब्लॉगर ललित शर्मा जी भी विशेष रूप से उपस्थित थे ।
साधना न्यूज चैनल की इस परिचर्चा में सांसद नंद कुमार साय, गृहमंत्री ननकीराम कंवर, लोक निर्माण मंत्री बृजमोहन अग्रवाल, बीएसफ के पूर्व डीजी और पद्मश्री प्रकाश सिंह, प्रभात खबर के समूह संपादक हरिवंश, सामाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश, आईबीएन 7 के प्रबंध संपादक आशुतोष, अमर उजाला के वरिष्ठ संपादक अरविंद मोहन, इंडियन ब्रॉडकास्ट एसोसिएशन के महासचिव एनके सिंह, आईआईएमसी (दिल्ली) के प्रोफेसर आनंद प्रधान सहित सामाजिक कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों ने हिस्सा लिया।
३जी धारी गुमनाम रिपोर्टर नें बढ़िया रिपोर्ट पेश की है बड्डे बड्डे लोगों से पहले छोटे छोटे लोगों की बातों पर भरोसा है जी हमारा :)
जवाब देंहटाएंआपको लगता है कि इस बहस / परिचर्चा से कुछ हासिल होगा ? ये ज़रूर है कि अब हम साधना न्यूज चैनल का नाम भी जान गये हैं :)
विचार मंथन की सार्थक पहल।
जवाब देंहटाएं३जी धारी गुमनाम रिपोर्टर नें बढ़िया रिपोर्ट पेश की है.सार्थक पहल.
जवाब देंहटाएंविषय विशेष पर अच्छी पोस्ट....!
जवाब देंहटाएंअब ये 3जी धारी गुमनाम रिपोर्टर की रिपोर्ट तो सचमुच जोरदार है लेकिन इसे इस पटल पर प्रस्तुत करना तो भाई संजीव का ही काम है। बहुत सुंदर। और हां, जहां तक इसकी तस्वीर जो प्रस्तुत की गई है, उसमे भाई ललित तो हैं ही सामने सोफ़े पर बीच मे हमारे सहपाठी कहें, या रिश्ते मे भतीजे या हमारे मामा श्वसुर भी बैठे हुए हैं उन्हे देख हम गदगद हो गये। संजीव भाई आपका आभार………॥
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रयास
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