दुर्ग में ब्लागरों की चिंतन बैठक में हावर्ट् फ़्रास्ट के ‘आदि विद्रोही’ भी

दुर्ग में ब्लागरों की मैथरान बैठक के बीच शरद कोकाश जी से हावर्ट् फ़्रास्ट के ‘आदि विद्रोही’ पर भी चर्चा हुई, हमने बतलाया कि यह किताब हमारे ब्लागर साथी फुरसतिया अनूप शुक्ल जी को बहुत पसंद है तो शरद जी नें बतलाया कि यह किताब भोपाल के अजित वडनेरकर जी को भी बहुत पसंद है और स्वयं उन्हें शरद जी को भी पसंद है. हमने मायूसी जाहिर की कि हम अपनी उत्सुसकता के बावजूद इसे पढ नहीं पाये हैं तो शरद जी नें अपने विशाल लाईब्रेरी में से ‘आदि विद्रोही’ निकाल कर दिखाया और हमने अपना कैमरा चमकाया.




मैथरान बैठक की रपट शीध्र ही आपको मिलने वाली है अभी चित्रों का मजा लीजिये





मालवीय नगर चौक पर अनिल पुसदकर जी से गुफ्तगू


ब्‍लागों को कम्‍प्‍यूटर में निहारते हुए गहन चर्चा में मशगूल ब्‍लागर






महू फोटू इंचा लेतेव भईया,
किताब मन के संग फोटू
बने पढईया-लिखईया दिखहूं,
कोन जनी
इही ला देख के
टिप्‍पणी के
बढोतरी हो जाए.


11 टिप्‍पणियां:

  1. आदि विद्रोहि...हमें भी फुरसतिया जी ही दिये थे...



    शानदार फोटुआ!!

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  2. हावर्ड फास्ट की आदि विद्रोही अमर पुस्तक है। जो भी पढ़ता है वही इस का फैन हो जाता है। फुरसतिया क्यों न हों?

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  3. पता नहीं क्यों ब्लागरों का समूह देख कर बहुत अच्छा लगता है
    महसूस होता है कि यही भावी शासक और नीति निर्धारक होंगे

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  4. संजीव जी,

    जय हो!

    इतने ब्लॉगर्स एकसाथ, एक ही जगह जरूर कुछ ना कुछ तो हुआ होगा।

    बहुत सुखद लगा आपके ब्लॉग से गुजरना, अभी तो रिपोर्टस पढ़ना बाकी है।

    सादर,


    मुकेश कुमार तिवारी

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  5. आदि विद्रोह में स्पार्टकस की कहानी है, एक गुलाम से ग्लेडिएटर बने स्पार्टकस की। इस पुस्तक की खासियत यह है कि इसमें स्पार्टकस सीधे तौर पर कहीं नहीं आता है...इस किताब में विभिन्न चरित्र स्पार्टकस को याद करते हैं..और फिर धीरे धीरे वह एक महानायक के तौर पर स्थापित हो जाता है...पत्थरों के बीच अंधरे खोह में वर्गेनिया उसके सामने नंगी पड़ी होती है, लेकिन वह उसकी ओर देखता भी नहीं है...लुट मरती है वर्गेनिया...स्पार्टक व्यवस्था को चुनौती देता है...वह खुद तो लड़ता ही है और साथ में लोगों को लड़ने के लिेए तैयार भी करता है...बल्कि खुद लोग लड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं ..सब कुछ स्वत होता जाता है...शायद दुनिया की सभी महान घटनाएं स्वत ही होती है... अब अल्का सारस्वत के शब्दों की गुंज कितनी अच्छी है...पता नहीं क्यों ब्लागरों का समूह देख कर बहुत अच्छा लगता है महसूस होता है कि यही भावी शासक और नीति निर्धारक होंगे....अब ब्लौगरों की बैठकों में स्पार्टकस खुल रहा है...अलका सारस्वत की बातों पर यकीन करने की इच्छा हो रही है....ब्लौगरों की बैठक में सहजता के साथ एक मजबूत पदचाप तो सुनाई दे ही रही है...

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  6. अलका जी को ब्लागरों का समूह देख कर बहुत अच्छा लगता है!? यहाँ तो कईयों की धुकधुकी बढ़ जाती है भई :-)

    आलोक जी का अनुमान बिल्कुल ठीक है कि एक मजबूत पदचाप तो सुनाई दे ही रही है..

    बी एस पाबला

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  7. भैया संजीव, आदि विद्रोही आपको भेज देंगे। अपना पोस्ट पता भेजो। सुन्दर पोस्ट!

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  8. यह मेरा स्ट्रॉंग रूम है मस्तिष्क को स्ट्रोंग बनाने का रूम यहीं मै स्पार्टाकस जैसे जाने कितने विद्रोहियों के साथ रहता हूँ । मेरी किताबे कम्प्यूटर और सी.डी. कैसेट .. । अब ब्लॉगर बन्धु यहाँ प्रवेश तो कर गये हैं उनमें से किस किस को इंफेक्शन लग गया है मुझे नही पता । संजीव तिवारी तो अपनी हालत यहाँ बयान कर गये हैं ।

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  9. शरद भाई, मेरा नाम भी लिस्ट में जोड़ लीजिए...

    जय हिंद...

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  10. yeh kitab ke prakshak kaun hai humein leni hai yeh ..kripya poora adress or website batayein publisher ki

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  11. kripya iss pustak ke publisher ki website aur adrees batayien humein kharidni hai yeh pustak..
    thanks in advance

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आपकी टिप्पणियों का स्वागत है. (टिप्पणियों के प्रकाशित होने में कुछ समय लग सकता है.) -संजीव तिवारी, दुर्ग (छ.ग.)

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