संबंधों की प्रगाढ़ता मानव जीवन का माधुर्य है। जहां मानवीय संबंधों में मिठास होगा, वही परिवार समुन्नत और संपन्न होगा। नागर जीवन में लोग संयुक्त परिवार से कट रहे हैं, और एकाकी जीवन व्यतीत कर रहे हैं। पर गांवों में हमें आज भी संयुक्त परिवार देखने को मिलते हैं। परस्पर प्रेम, अनुशासन, साहचर्य, सहयोग और समरसता संयुक्त परिवार व मानवीय संबंधों के रक्षा कवच हैं। लोक जीवन की यह विशेषता नाचा की साखी परंपरा से पृथक नहीं है। एक बानगी-
एक बाप के बारा बेटा, छै झन बहू बिहाय।
एक लुगरा पहिरा के ओला, खारन खार कुदाय।
इसका उत्तर है बैलगाड़ी का चक्का जिसमें बारह आरे, छ:पुठा और एक बांठ होता है स्थूल रूप में इसमें संयुक्त परिवार का दृष्य प्रतिबिंबित होता है।
आगू-आगू तैं रेंगस, पाछू म तोर भाई।
मुंडा तोर ददा, दांत निपोरे तोर दाई।।
प्रस्तुत साखी कपास पर केंद्रित है जिसका फल गोल और चिकना होता है और पककर फटने पर उसमें कपास मुस्कुराते हुए व्यक्ति के दांत की तरह झांकता है।
एक माई के दू पीला, दूनो के एके रंग जी।
एक दउंडे एक बईठे, तभो नई छूटे संग जी।।
एक मां के दो बच्चे हैं दोनों का रंग एक जैसा ही है,एक दौडता रहता है, दूसरा बैठा रहता है। फिर भी दोनों का साथ नहीं छूटता। दोनों का अनन्य प्रेम है। एकबारगी इस साखी का अर्थ नहीं लगाया जा सकता, लेकिन मानसिक व्यायाम से इसका सरलार्थ सामने आ जाता है वह है- चक्की- लोककलाकार अपने आसपास की वस्तुओं को भी कितनी सहजता व सरलता से मानवीय संबंधों का जामा पहनकर साहित्य रच लेता है। नाचा के कलाकार तो होते ही है, व्युत्पन्न मति और हास्य के जनक।
क्रमश: ....
डॉ. पीसीलाल यादव
संपर्क: 'साहित्य कुटीर`
गंडई पंडरिया जिला- राजनांदगांव (छ.ग.)
वाह यादव जी बने गोठियाएस गा लेकिन एक मलाल है कि अब मानव हि कम हो गये है इस कारण मांनवीय सम्बन्ध भी कम देख्नने मिलते है.
जवाब देंहटाएंpawan upadhyay
वाह कितनी सुंदर पहेलियां है और इसके साथ ही जन जन में जुडी सद्भावना । बहुत दिनों बाद आपके ब्ल़ाग पर आई और आना सार्थक हुआ ।
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