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परदेशीराम वर्मा जी की कहानियों में माटी की गंध सर्वत्र व्याप्त रहती है, इसी माटी की खुशबू से सराबोर कहानी संग्रह ‘माटी पुत्र’ में 19 कहानियां संग्रहित है, इन कहानियों के शव्द-शव्द में गांव जीवंत है। कथा संग्रह ‘माटी पुत्र’ के बरछाबारी से भिनसार तक की सभी कहानिंयां औद्यौगीकरण के साथ गांवों में आए बदलाव का चित्र खींचती हैं। जिनमें एक नये ग्रामीण परिवेश का परिचय सामने आता है। इन कहानियों में समाज का खोखलापन उजागर होता है। छत्तीसगढ में व्याप्त दाउ, मालगुजार, गौंटिया के द्वारा किए गए सामंती अत्याचार, शोषण व भेदभाव सहित सभी सामाजिक विद्रूपों के विरूद्ध बहुसंख्यक शोषित वर्ग के आवाज को संग्रहित कहानियों में बुलंद किया गया है। वर्मा जी अपने इन्हीं चितपरिचित शैली में कथा रचते हैं और मोह लेते हैं। वे हमारे बीच के कथा पात्रों और परिवेश को एकाकार कर संदेश देते हैं, उनके संदेश हृदय में गहरे से अंकित होते चले जाते हैं। बासी खाने वालों की सहृदयता के साथ ही इनकी पीतल बंधी लाठियों के शौर्य को रेखांकित करती इन कहानियों में अनुभूति की प्रामाणिकता और अभिव्यक्ति की सहजता मुखरित होती है। सभी वादों-विचारधाराओं को नंगा कर दलित, शोषित व पीडित वर्ग के मर्म का साक्षातकार कराती संग्रहित कहानियां बेबाकी से संपूर्ण व्यवस्था की पोल खोलती है और समय के विद्रूप से टकराने का माद्दा रखती है।
कहानी संग्रह - माटी पुत्र
लेखक - डॉ. परदेशीराम वर्मा
प्रकाशक - भारतीय साहित्य प्रकाशन, मेरठ
मूल्य - 200 रूपये
फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ नें कहा था कि ‘हर व्यक्ति में एक चिंगारी छिपी होती है जिसे महसूस करने की जरूरत है।‘ वर्मा जी नें छत्तीसगढ के परिवेश में यत्र-तत्र छुपे चिंगारियों को महसूस किया और इस कथा संग्रह में बखूबी उकेरा है। विकास के अंधे दौड में शामिल होने के लिए छटपटाते छत्तीसगढ के वर्तमान को तौलते हुए कथाकार नें भविष्य को भी साधा है, कहानी भिनसार में कथाकार स्वयं लिखता है
‘भूत को याद कर वर्तमान को संभालना और दूसरों की चिंता करते हुए भविष्य को गढना बहुत बडे लोगों से ही सधता है।‘ हमें विश्वास है कि ‘माटी पुत्र’ इन्हीं अर्थों में भविष्य में भी लम्बे समय तक अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने में समर्थ होगा।
संजीव तिवारी
बने बने गा सियान,जोहार ले, पुस्तक के कलेवर ता बने सुग्घ्रर बने हवय,सामन्त शाही के खिलाफ़ बहुसन्ख्यक मन के आक्रोश हा पुस्तक के पहिली पन्नाच मा दिखत हवय,ओ बेरा अऊ ऐ बेरा मा थोकिने फ़रक हवय,"दारु उहि्च हे बाटल बदलगे हवय" सामन्त शाही कई जुग ले चलत हवय अऊ कई जुग ले चलत रही,आप मन मोर गवैईहा के बधई स्वीकार करव,सन्जीव भाई जनकारी देय बर आपो ला धन्यवाद,
जवाब देंहटाएंइस पुस्तक की जानकारी के लिये धन्यवाद्
जवाब देंहटाएंहमन बासी खाथन बढिया कईसे छ्त्तीसगढिया
जवाब देंहटाएंबासी खवैइया भैइया मन
अईसनेच नाव कमाते सन्जीव भैइया
SHUKRIYA IS PSTK KI JAANKAARI KA.... AAPNE INTEREST JAGA DIY HAI PADHNE KO ......
जवाब देंहटाएंपुस्तक के बारे में जानकर अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएं( Treasurer-S. T. )
परदेशीराम वर्माजी और उनकी पुस्तक के बारे में जानकारी के लिये धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंवर्मा जी बह्त अच्छे कथाकार हैं । छत्तीसगढ़ के जीवन का मर्म उनकी कहानियों मे दिखाई देता है और इनमे कही अतिरेक नही है ।
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