मेरे गांव की होली और फाग

छत्‍तीसगढ सहित भारत के सभी गांवों में होली का पहले जैसा माहौल अब नहीं रहा, विकास की बयार गांवों तक पहुच गई है किन्‍तु उसने समाज में स्‍वाभाविक ग्रामीण भाईचारा को भी उडा कर गांवों से दूर फेंक दिया । इसके बावजूद रंगों के इस त्‍यौहार का अपना अलग मजा है और गांव में तो इस पर्व का उल्‍लास देखने लायक रहता है । गांव मेरे रग-रग में बसा हैं इसलिए मेरे 13 वर्षीय पुत्र के ना-नुकुर के बावजूद हम छत्‍तीसगढ के शिवनाथ नदी के तीर बसे अपने छोटे से गांव में चले गये होली मनाने ।

मुझे अपने बीते दिनों की होली याद आती है जब हम सभी मिलजुल कर गांव के चौपाल में होली के दिन संध्‍या नगाडे व मांदर के थापों के साथ फाग गाते हुए होली मनाते थे । समूचा गांव उडते रंग-अबीर के साथ नाचता था । तब न ही हमारे गांव में बिजली के तारों नें प्रवेश किया था और न ही ध्‍वनिविस्‍तारक यंत्रों का प्रयोग होता था । गांव में प्रधान मंत्री पक्‍की सडक के स्‍थान पर ‘गाडा रावन’ व एकपंइया (पगडंडी) रास्‍ता ही गांव पहुचने का एकमात्र विकल्‍प होता था फिर भी इलाहाबाद, आसाम, जम्‍मू, कानपूर, लखनउ और पता नहीं कहां कहां से कमाने खाने गए गांव के मजदूर होली के दिन गांव में इकत्रित हो जाते थे । अद्भुत भाईचारे व प्रेम के साथ एक दूसरे के साथ मिलते थे और ‘फाग’ गाते हुए रंग खेलते थे । नशा के नाम पर भंग के गिलास बंटते थे और अनुशासित उमंग व मस्‍ती छाये लोगों का हूजूम मिलजुलकर होली खेलता था ।

अब गांव में वो बात नहीं रही, आधुनिकता नें परंपराओं को पछाड दिया, बडे बुजुर्ग अपने गिर चुके दांतों और ढीली पड गई लगाम का रोना रोते हुए इसे त्‍यौहार के रूप में स्‍थापित करने पर तुले हुए हैं पर गांवों में गली-गली खुले शराब के अवैध दुकान के प्रभाव से गांव के लोगों को अब यह लगने लगा है कि होली, शराब के बिना अधूरी है । शराब से मदमस्‍त गांव में होली का मतलब सिर्फ हुडदंग रह गया है । रंग में सराबोर गिरते-पडते, उल्टिंयां करते, लडते-झगडते लोगों का अमर्यादित नाट्य प्रदर्शन ।

इन सब का दंश झेलते होली के दिन संध्‍या तीन बजे मेरे चौपाल पहुंचने से अंधेरे घिर आने तक तीन जोडी सार्वजनिक नगाडे फूट चुके थे । शराब में धुत्‍त लोग ‘फाग’ के नाम पर नगाडों पर, अपनी शक्ति आजमाइश कर रहे थे । शिकायतों व लडाईयों में समय सरकता जा रहा था । सार्वजनिक चौपाल में ‘फाग’ सुनने को उद्धत मन को तब सुकून मिला जब मित्रों नें मौखिक शक्ति प्रदर्शन किया और ईश्‍वर नें भी शराबियों को पस्‍त किया । और सभी रंजों को भुलाकर धुर ग्रामीण ‘फाग’ का मजा हमने लिया । 

उडि उडि चलथे खंधेला अब गोरि के उडि उडि चलथे खंधेला रे लाल SSSSS
पवन चले अलबेला अब गोरि के
उडि उडि चलथे खंधेला रे लाल SSSSS
(बसंत में गोरी के बाल कंधों से उड-उड रहे हैं क्‍योंकि अलबेला पवन चल रहा है)

पिछले कुछ वर्षों से हर वर्ष बहुत इंतजार व उदासी के बाद प्राप्‍त इन्‍हीं क्षणों से बार-बार साक्षातकार के बाद सोंचता हूं कि अब अगले साल गांव नहीं आउंगा । पर जडों को पकडे रहना पता नहीं क्‍यूं अच्‍छा लगता है और हर साल गांव पहुच जाता हूं । 

(हमने गांव के फोटो और फाग की क्लिपिंग ली थी पर होली के रंगों नें हमारे कैमरे को भी रंगीला बना दिया, सो सभी चित्र दैनिक छत्‍तीसगढ से साभार )

संजीव तिवारी

12 टिप्‍पणियां:

  1. इस बात से सहमत हूँ कि होली पर्व पहले की तरह नहीं मनाया जाता है . वो उत्साह नजर नहीं आता है . आपको होली पर्व की हार्दिक शुभकामना .

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  2. एक सही और सच्ची रपट। गांवों की संस्कृति का तेजी से क्षरण हो रहा है। सामूहिकता नष्ट होती जा रही है। इस सामूहिकता को फिर से स्थापित करना होगा। लेकिन कैसे?

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  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  4. हम फिर फिर मुड़कर अपने बचपन के दिन जीना चाहते हैं परन्तु समय तो द्रुत गति से सबको बदलता आगे जाता जा रहा है। तब एक रिक्तता ही महसूस होती है। मैं शायद ही पीछे छूटी जगहों पर कभी लौटकर जा पाई हूँ। उस समय व उन जगहों को बस मन में ही जीती हूँ।
    आप अतीत में थोड़ी सी डुबकी तो लगा आए।
    घुघूती बासूती

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  5. सही कहा आपने. आपने यह नहीं बताया की शिवनाथ के किनारे कौन सा गाँव आप का है. क्या वो लवण है?

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  6. आदरणीय सुब्रमण्‍यम जी, शिवनाथ नदी के किनारे खारून शिवनाथ संगम से लगभग डेढ किलोमीटर नीचे दुर्ग जिले की सीमा में मेरा गांव है नाम है 'खम्‍हरिया' । सिमगा से पश्चिम की ओर बेमेतरा-जबलपुर रोड पर पुल के दूसरे किनारे में नदी की उल्‍टी दिशा की ओर बढने से गांव लगभग सात किलोमीटर पर है ।

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  7. बढ़िया लिखा और बढ़िया चित्र।

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  8. बहुत अच्छा लगा पढकर । संस्कृति का पतन चारो ओर हो रहा है । आप कि चिन्ता स्वभाविक है ।

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  9. हम सब का यही हाल है, जैसा घुघुती जी ने कहा हम बचपन की तरफ़ लौटना चाहते हैं लेकिन लौट नहीं सकते सिर्फ़ मन में जी सकते हैं उसे।

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  10. sanjeeva bhaiyya" aapla holi ke gada gada badhai " abhi UAE me fandaye haw kampani ke nam baD jaldi aap se aapake blag me milabo ""

    Deepak.

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  11. संजीव जी!
    बहुत ही सजीव चित्रण .....
    आज-कल गावों में भी संस्कृति का ह्रास हो रहा है ,इसे हम सभी को बचाना होगा ...अपने स्तर पर ही सही .आपका अपने गाँव की मिटटी से जुड़े होना भला लगा .
    मेरी शुभकामनाएं ......

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आपकी टिप्पणियों का स्वागत है. (टिप्पणियों के प्रकाशित होने में कुछ समय लग सकता है.) -संजीव तिवारी, दुर्ग (छ.ग.)

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