पागल हो गया है क्या ….?

ठांय ! ठांय ! ठांय !, बिचांम ! करती हुई वह बच्ची मेरे बाईक के आगे बैठी सडक से गुजरने वालों पर अपनी उंगली से गोली चलाने का खेल खेल रही थी । अपनी तोतली बोली में उन शव्दों को नाटकीय अंदाज में दुहराते जा रही थी । मैंनें उससे पूछा-
‘क्या कर रही हो ?’
‘गोली चला रही हूं !’
‘किसे ?’
‘तंकवादी को !’ उसने अपनी तोतली जुबान में कहा । मैं हंस पडा, ‘ये तंगवादी कौन हैं ?’
‘जो मेरे पापा को तंग करते हैं !’ उसने बडे भोलेपन से कहा । मैं पुन: हंस पडा । तब तक चौंक आ गया, चौंक में उसके मम्मी-पापा खडे थे । मैं उसे उनके पास उतारकर आगे बढ गया, वो दूर तक मुझे टाटा कहते हुए हाथ हिलाते रही ।

आज लगभग चार साल बाद उससे मेरी मुलाकात हई थी, वह रिजर्व पुलिस बल के मेन गेट पर सडक में टैम्पू का इंतजार करते अपनी पत्नी व चार साल की बच्ची के साथ खडा था । मैं अपनी धुन में उसी रोड से आगे बढ रहा था, दूर से ही मुझे पहचान कर वह हाथ हिलाने लगा, ‘सर ! सर !’ मैं उसे अचानक पहचान नहीं पाया । हमेशा गार्ड की वर्दी में उसे देखा था, यहां वह टी शर्ट व जींस में खडा था । मैं किसी परिचित होने के भ्रम में उसके पास ही गाडी रोक दिया । उसने मेरा पैर छूकर प्रणाम किया, साथ ही अपनी पत्नी और बच्ची को ऐसा करवाया । उसके चेहरे में जो खुशी झलक रही थी उसे देखकर मैं आश्चर्यचकित हो रहा था । वह मुझसे मिलकर इस कदर प्रसन्न था जैसे मैं उसका खोया हुआ रिश्तेशदार हूं । मैं भी प्रसन्नता के भावों को मुखमंडल में थोपते हुए उससे मिला । बातें हुई उसने बतलाया कि वह बस्तर में संतरी वाहन चालक के पद पर पदस्थ है और भिलाई में बटालियन के क्वाटर में बच्चे रहते हैं । बातों का सिलसिला जब चला तो बस्तर की वर्तमान परिस्थितियों पर चर्चा करते हुए उसने बतलाया कि ‘सर जब भी मैं छुट्टी के बाद ड्यूटी जाता हूं, इसकी आंखों के आंसू को देखकर कलेजा मुंह को आ जाता है, अपनी आंखों में नमी ना आ जाये इसके लिए हंसते हुए कहता हूं, पगली मौत आनी होगी तो अभी यहां इसी वक्त ‘अपट’ के मर जाउंगा । दुख क्यों करती है, मैं तो अभी जिंदा हूं फिर लौट के आउंगा ।‘ माहौल कुछ गमगीन हो रहा था इसलिए मैनें बात बदली और पूछा कहां जा रहे हो, उसने बतलाया आगे चौंक तक, बाजार में कुछ खरीददारी करनी है, टैम्पू का इंतजार कर रहे हैं । हमारी बातों के बीच उसकी नन्हीं गुडिया मुझसे घुल मिल गई थी, मैंने घडी देखते हुए कहा ‘चलूं खुमान मुझे आफिस के लिए देर हो रही है ।‘ तब तक उसकी बच्ची मेरे बाईक पर बैठ गई थी । मैंनें उसे बाईक से उतारने के लिए गोद में ले लिया पर वह जिद करने लगी बाईक में बैठने के लिए । मैंनें सोंचा इसे अगले चौंक तक बाईक में ही बैठाकर ले चलू क्योंकि खुमान को टैम्पू मिल गई थी और उन्हें आगे उसी तरफ जाना था जिधर मुझे । बच्ची को गाडी में बैठाकर अगले चौंक तक के लिए बढ चला, खुमान भी अपनी पत्नीं के साथ टैम्पू से बढा ।

खुमान सिंह नाम था उसका, उंचा पूरा गठीले बदन का हलबा आदिवासी था वह । यही कोई चार साल पहले वह मेरी कम्पनी में बतौर सुरक्षा गार्ड प्रशासकीय कार्यालय के मुख्य द्वार पर नियुक्त हुआ था । कुछ ही दिनों में अपनी प्रतिभा व मिलनसारिता के बल पर कार्यालय के सभी कर्मचारियों का प्रिय बन गया था । मेरा तो वह परम भक्त था । पर्सनल डिपार्टमेंट मेरे नियंत्रण में था, शायद इसलिये या फिर यह भी हो सकता है कि वह मेरे प्रदेश का था ।

उस दिन उसने मेरा बैग उपर आफिस में ले जाते हुए मुझे रोमांचित होते हुए बताया था । ‘सर मेरी शादी तय हो चुकी है, मेरा ससुर एएसएफ में है यहीं भिलाई में !’ बातें आई गई हो गई । कुछ दिन नदारद रहने के बाद एक दिन वह आया और उसने बतलाया कि उसकी भी भर्ती एएसएफ में हो गई है और वह एक दो दिन बाद वहां ज्वाईन कर लेगा अत: उसे यहां से हिसाब किताब चुकता करना है । मैंने बातों को सामान्य लेते हुए उसे रिलीव कर दिया ।

इन यादों को कई माह गुजर गए एक दिन लंच टाईम में रिशेप्शन से फोन आया ‘कोई खुमान आपसे मिलना चाहता है ।‘ मेरे स्मृति से खुमान नाम तेजी से भागती जिन्दगी और संबंधों के मकडजाल में गुम सा हो गया था । मैनें अनमने से कहा ‘भेज दो ।‘ अगले तीन मिनट में खुमान पुलिस वर्दी में मेरे सामने खडा था । ‘अरे तुम ।‘ मैनें उत्सुकता से उसका स्वामत किया वह पुन: अपने चितपरिचित अंदाज में मेरा पैर छूकर प्रणाम किया । मैनें उसे बैठने के लिए कहा और पूछा ‘क्या हाल चाल है खुमान ‘ उसने कहा ‘बढिया है सर, मजे में हूं आजकल एंटी लैण्डमाईन चलाने लगा हूं, मेरी पत्नी की चिंता अब दूर हो गई है ।‘ कहते हुए वह हंसने लगा । मैंने भी उसका साथ दिया । वह पुन: बोला ‘सर कमाल की गाडी है, अब सडकों में गाडी चलाते हुए उबड खाबड स्थान पर दिल धक से नहीं करता, फर्राटे मारती है अब मेरी गाडी ।‘ मैंनें कहा ‘भगवान का शुक्र है कि तुम्हारी पत्नी की बात उन तक पहुच गई ।‘ पर ऐसा कहकर मैं उन सभी पुलिस कर्मियों के प्रति अपनी संवेदनाओं को भूल गया जिन्हें एंटीलैण्डीमाईन व्हीकल नसीब नहीं हुआ । ‘कैसा माहौल है वहां का ‘ मैनें पूछा । ‘मत पूछो सर बहुत खतरनाक है, हम लोगों की हालत .......? कब कौन सी गोली मौत का पैगाम लेकर आयेगी कहा नहीं जा सकता । अभी पिछले दिनों ही जंगल के बीच में मेरी गाडी एक जगह फंस गई थी हम गाडी से उतरकर गाडी को धक्का दे रहे थे कि गोलीबारी चालू हो गई एक गोली तो मेरे टखने के पास पैंट को चीरती हुई निकल गई, मेरे दो साथी वहीं ढेर हो गए, हम लोग आनन फानन में गाडी व अन्य जगह से पोजीशन लिये तब तक वे भाग गए । क्या बताये, शव्दों में बयां नहीं किया जा सकता .....।‘ मैंनें ठंडी सांस भरी । बात चल ही रही थी कि मेरे बॉस का बुलावा आ गया और हम विदा लेकर अलग अलग चले गए ।

सुबह चाय की चुस्कियां लेते हुए समाचार पत्र को अपने सामने फैलाया, हेडलाईन को देखकर चश्में को ठीक करते हुए समाचार को आंखें गडा कर पढने लगा ।हेडिंग था ‘विष्फोट से एंटीलैण्ड माईन व्हीकल चालीस फीट उछला, 12 जवान मारे गए’ तुरत खुमान का मुस्कुवराता चेहरा ध्यान में आ गया । दिल धक धक करने लगा, पूरा समाचार पढा । मारे गए जवानों में खुमान का भी नाम था । बहुत देर तक टकटकी लगाए पेपर के मुख्य, पृष्ट पर ही ठहरे रहने को देखकर पत्नी बोली ‘अजी चाय तो ठंडी हो रही है ।‘ मैंनें अनमने से ‘हां’ कहा, चाय पी नहीं सका, नास्ता भी करते नहीं बना, आंखों में खुमान बार बार आ जा रहा था जैसे मेरा कोई नजदीकी रिश्तेदार हो । पुलिस, सरकार और पत्रकार के लिए और कुछ हद तक रोज रोज ऐसे शीर्षों को पढकर संवेदनहीन हो गई जनता के लिए भी यह सिर्फ समाचार था ।

आफिस से छुट्टी लेकर तीन बजे दोपहर तक मैं उसके गांव पहुच गया, सरकारी गाडियों का हुजूम गांव में मौजूद था । मुझे उसका घर पूछना नहीं पडा, कच्ची झोपडी के इर्द-गिर्द भीड उमड पडी थी । उसके बूढे मा बाप बिलख रहे थे, उसकी पत्नी का बुरा हाल था, वह रूक रूक कर जब आर्तनाद करती तो भीड का कलेजा फटकर आंखों में पानी के रूप में उभर उभर आता था । मैं भीड का हिस्सा बना खडा रहा । मेरी आंखें उसकी बच्ची को ढूंढती रही, अब तो वह बडी हो गई होगी ........, मुझे वह नहीं दिखी । राजकीय सम्मान के साथ अंतिम यात्रा आरंभ हुई और उसके गांव के बडे मैदान में जाकर समाप्त हो गई । लाश चिता में लिटा दिया गया, अग्नि प्रज्वलित कर दी गई, लपटों से झांकता खुमान मुझे पल पल मुस्कुराता दीख पडता । सम्मान में गारद आसमान की ओर बंदूक की नली कर गोलियां चलाने लगे । गोलियों की आवाज के सिवा वातावरण निस्तब्ध था । जैसे सागर में मिलने के लिए विशालकाय नदी मंथिर गति से आगे बढ रही हो । अचानक भीड में दबा सिकुडा मैं जोरों से पागलों की भांति चिल्लाने लगा, ठांय ! ठांय ! ठांय !, बिचांम ! पूरी भीड मुझे भौंचक देखने लगी और मैं चारो ओर हाथ की अंगुलियों से गोलियां चलाते हुए चीखता रहा ठांय ! ठांय ! ठांय !, बिचांम ! एक पुलिस वाले नें मुझे झकझोरते हुए मेरे पीठ पर धौल जमाई ‘पागल हो गया है क्या ?‘

संजीव तिवारी

15 टिप्‍पणियां:

  1. पढ़ कर मन भर आया. बने लिखे हस भाई. आभार.

    जवाब देंहटाएं
  2. मार्मिक प्रस्तुति !!आभार

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सन्न कर देने वाली पोस्ट संजीव।

    जवाब देंहटाएं
  4. दिल सहम सा गया संजीव जी, ऎसा लगा सब कुछ आँखों के सामने घटित हो रहा है।

    जवाब देंहटाएं
  5. इस पोस्ट के लिए शुक्रिया. नमन है उन्हें जो चुपचाप देश के लिए रोज़ अपनी जान दे रहे हैं. काश कुछ संगठन उनके पीछे छूटे परिवार और विशेषकर बच्चों की देखरेख के लिए सामने आयें.

    जवाब देंहटाएं
  6. कभी-कभी सत्य को परिमार्जित करके, तो कभी परिमार्जन को ही सत्य बनाकर प्रस्तुत किया जाता है...और पता नहीं इनको क्या क्या नाम दिया जाता है. पर आपने जो प्रस्तुत किया है....मेरे ख्याल से उसे मिसाल कहते है. सीध सपाट दिल से रिपोर्ट. आपको पहले नमस्कार..फ़िर आभार.

    जवाब देंहटाएं
  7. संजीव भाई ! शहीद जवानों, पाठकों, दीवाली, चुनाव और छत्तीसगढ़ के वर्तमान परिदृश्य से मुझे इसका एक सामयिक शीर्षक- ठांय !! ठांय !!! बिचांम !! होना चाहिए ऐसा.. कुरेद रहा है.

    जवाब देंहटाएं
  8. आपका लेख संवेदनहीन होते हुये समाज में संवेदना का संचार करता है/मार्मिक लेख/देश के लिये हुये शहीदों को नमन/

    जवाब देंहटाएं
  9. आप तो बहुत अच्छा लिखते है भाई !
    ============================
    शुभकामनाएँ
    डॉ.चन्द्रकुमार जैन

    जवाब देंहटाएं
  10. aapka post bahut hi marmik hai ... is pal ko mai bhi nahi bhool sakta kyaonki maine bhi ek shahid ko dekha tha , maa-bap ke aansu tham nahi rahe the.... hamara bhi man bahut dukhi tha, to eaik taraph bahut hi phakra masoos kar raha tha ki dhanya hai maa-bap jisne aise shahid bete ko janma diya......

    जवाब देंहटाएं
  11. आपने मेरे ख़िलाफ़ अच्छी कविता लिखी है । बधाई । पर यह तो बतायें यह जो तल्ख है किस कारण से है भाई (पुलिस महानिदेशक)

    जवाब देंहटाएं
  12. bahut sahi likhe has bhaiyya, sahi me khuman ha hamar company me rihis he ka ?

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणियों का स्वागत है. (टिप्पणियों के प्रकाशित होने में कुछ समय लग सकता है.) -संजीव तिवारी, दुर्ग (छ.ग.)

लेबल

संजीव तिवारी की कलम घसीटी समसामयिक लेख अतिथि कलम जीवन परिचय छत्तीसगढ की सांस्कृतिक विरासत - मेरी नजरों में पुस्तकें-पत्रिकायें छत्तीसगढ़ी शब्द Chhattisgarhi Phrase Chhattisgarhi Word विनोद साव कहानी पंकज अवधिया सुनील कुमार आस्‍था परम्‍परा विश्‍वास अंध विश्‍वास गीत-गजल-कविता Bastar Naxal समसामयिक अश्विनी केशरवानी नाचा परदेशीराम वर्मा विवेकराज सिंह अरूण कुमार निगम व्यंग कोदूराम दलित रामहृदय तिवारी अंर्तकथा कुबेर पंडवानी Chandaini Gonda पीसीलाल यादव भारतीय सिनेमा के सौ वर्ष Ramchandra Deshmukh गजानन माधव मुक्तिबोध ग्रीन हण्‍ट छत्‍तीसगढ़ी छत्‍तीसगढ़ी फिल्‍म पीपली लाईव बस्‍तर ब्लाग तकनीक Android Chhattisgarhi Gazal ओंकार दास नत्‍था प्रेम साईमन ब्‍लॉगर मिलन रामेश्वर वैष्णव रायपुर साहित्य महोत्सव सरला शर्मा हबीब तनवीर Binayak Sen Dandi Yatra IPTA Love Latter Raypur Sahitya Mahotsav facebook venkatesh shukla अकलतरा अनुवाद अशोक तिवारी आभासी दुनिया आभासी यात्रा वृत्तांत कतरन कनक तिवारी कैलाश वानखेड़े खुमान लाल साव गुरतुर गोठ गूगल रीडर गोपाल मिश्र घनश्याम सिंह गुप्त चिंतलनार छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग छत्तीसगढ़ वंशी छत्‍तीसगढ़ का इतिहास छत्‍तीसगढ़ी उपन्‍यास जयप्रकाश जस गीत दुर्ग जिला हिन्दी साहित्य समिति धरोहर पं. सुन्‍दर लाल शर्मा प्रतिक्रिया प्रमोद ब्रम्‍हभट्ट फाग बिनायक सेन ब्लॉग मीट मानवाधिकार रंगशिल्‍पी रमाकान्‍त श्रीवास्‍तव राजेश सिंह राममनोहर लोहिया विजय वर्तमान विश्वरंजन वीरेन्‍द्र बहादुर सिंह वेंकटेश शुक्ल श्रीलाल शुक्‍ल संतोष झांझी सुशील भोले हिन्‍दी ब्‍लाग से कमाई Adsense Anup Ranjan Pandey Banjare Barle Bastar Band Bastar Painting CP & Berar Chhattisgarh Food Chhattisgarh Rajbhasha Aayog Chhattisgarhi Chhattisgarhi Film Daud Khan Deo Aanand Dev Baloda Dr. Narayan Bhaskar Khare Dr.Sudhir Pathak Dwarika Prasad Mishra Fida Bai Geet Ghar Dwar Google app Govind Ram Nirmalkar Hindi Input Jaiprakash Jhaduram Devangan Justice Yatindra Singh Khem Vaishnav Kondagaon Lal Kitab Latika Vaishnav Mayank verma Nai Kahani Narendra Dev Verma Pandwani Panthi Punaram Nishad R.V. Russell Rajesh Khanna Rajyageet Ravindra Ginnore Ravishankar Shukla Sabal Singh Chouhan Sarguja Sargujiha Boli Sirpur Teejan Bai Telangana Tijan Bai Vedmati Vidya Bhushan Mishra chhattisgarhi upanyas fb feedburner kapalik romancing with life sanskrit ssie अगरिया अजय तिवारी अधबीच अनिल पुसदकर अनुज शर्मा अमरेन्‍द्र नाथ त्रिपाठी अमिताभ अलबेला खत्री अली सैयद अशोक वाजपेयी अशोक सिंघई असम आईसीएस आशा शुक्‍ला ई—स्टाम्प उडि़या साहित्य उपन्‍यास एडसेंस एड्स एयरसेल कंगला मांझी कचना धुरवा कपिलनाथ कश्यप कबीर कार्टून किस्मत बाई देवार कृतिदेव कैलाश बनवासी कोयल गणेश शंकर विद्यार्थी गम्मत गांधीवाद गिरिजेश राव गिरीश पंकज गिरौदपुरी गुलशेर अहमद खॉं ‘शानी’ गोविन्‍द राम निर्मलकर घर द्वार चंदैनी गोंदा छत्‍तीसगढ़ उच्‍च न्‍यायालय छत्‍तीसगढ़ पर्यटन छत्‍तीसगढ़ राज्‍य अलंकरण छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंजन जतिन दास जन संस्‍कृति मंच जय गंगान जयंत साहू जया जादवानी जिंदल स्टील एण्ड पावर लिमिटेड जुन्‍नाडीह जे.के.लक्ष्मी सीमेंट जैत खांब टेंगनाही माता टेम्पलेट डिजाइनर ठेठरी-खुरमी ठोस अपशिष्ट् (प्रबंधन और हथालन) उप-विधियॉं डॉ. अतुल कुमार डॉ. इन्‍द्रजीत सिंह डॉ. ए. एल. श्रीवास्तव डॉ. गोरेलाल चंदेल डॉ. निर्मल साहू डॉ. राजेन्‍द्र मिश्र डॉ. विनय कुमार पाठक डॉ. श्रद्धा चंद्राकर डॉ. संजय दानी डॉ. हंसा शुक्ला डॉ.ऋतु दुबे डॉ.पी.आर. कोसरिया डॉ.राजेन्‍द्र प्रसाद डॉ.संजय अलंग तमंचा रायपुरी दंतेवाडा दलित चेतना दाउद खॉंन दारा सिंह दिनकर दीपक शर्मा देसी दारू धनश्‍याम सिंह गुप्‍त नथमल झँवर नया थियेटर नवीन जिंदल नाम निदा फ़ाज़ली नोकिया 5233 पं. माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकार परिकल्‍पना सम्‍मान पवन दीवान पाबला वर्सेस अनूप पूनम प्रशांत भूषण प्रादेशिक सम्मलेन प्रेम दिवस बलौदा बसदेवा बस्‍तर बैंड बहादुर कलारिन बहुमत सम्मान बिलासा ब्लागरों की चिंतन बैठक भरथरी भिलाई स्टील प्लांट भुनेश्वर कश्यप भूमि अर्जन भेंट-मुलाकात मकबूल फिदा हुसैन मधुबाला महाभारत महावीर अग्रवाल महुदा माटी तिहार माननीय श्री न्यायमूर्ति यतीन्द्र सिंह मीरा बाई मेधा पाटकर मोहम्मद हिदायतउल्ला योगेंद्र ठाकुर रघुवीर अग्रवाल 'पथिक' रवि श्रीवास्तव रश्मि सुन्‍दरानी राजकुमार सोनी राजमाता फुलवादेवी राजीव रंजन राजेश खन्ना राम पटवा रामधारी सिंह 'दिनकर’ राय बहादुर डॉ. हीरालाल रेखादेवी जलक्षत्री रेमिंगटन लक्ष्मण प्रसाद दुबे लाईनेक्स लाला जगदलपुरी लेह लोक साहित्‍य वामपंथ विद्याभूषण मिश्र विनोद डोंगरे वीरेन्द्र कुर्रे वीरेन्‍द्र कुमार सोनी वैरियर एल्विन शबरी शरद कोकाश शरद पुर्णिमा शहरोज़ शिरीष डामरे शिव मंदिर शुभदा मिश्र श्यामलाल चतुर्वेदी श्रद्धा थवाईत संजीत त्रिपाठी संजीव ठाकुर संतोष जैन संदीप पांडे संस्कृत संस्‍कृति संस्‍कृति विभाग सतनाम सतीश कुमार चौहान सत्‍येन्‍द्र समाजरत्न पतिराम साव सम्मान सरला दास साक्षात्‍कार सामूहिक ब्‍लॉग साहित्तिक हलचल सुभाष चंद्र बोस सुमित्रा नंदन पंत सूचक सूचना सृजन गाथा स्टाम्प शुल्क स्वच्छ भारत मिशन हंस हनुमंत नायडू हरिठाकुर हरिभूमि हास-परिहास हिन्‍दी टूल हिमांशु कुमार हिमांशु द्विवेदी हेमंत वैष्‍णव है बातों में दम

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को ...