विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों
अमेरिका के कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय में भारत के लोकतंत्र पर केन्द्रित दो दिन का सेमीनार आयोजित किया गया है जिसमें छत्तीसगढ की नक्सल हिंसा और उससे जुडे हुए सभी पहलुओं पर चर्चा के लिये एक विशेष सत्र रखा गया है । इस सेमीनार में पूरे देश से विभिन्न व्यक्तियों को वक्ता के रूप में आमंत्रित किया गया है जिसमें छत्तीसगढ के दो लोग शामिल हैं, इनमें एक प्रदेश के पुलिस महानिदेशक विश्वरंजन जी और लोकप्रिय समाचार पत्र छत्तीसगढ के संपादक सुनील कुमार जी हैं । इनका व्याख्यान भी वहां उक्त सत्र में होगा ।
इन दो वक्ताओं के अलावा दिल्ली की एक समाज शास्त्री और जन मुद्दों को लेकर अदालती लडाई लडने वाली प्राध्यापिका नंदिनी सुन्दर सर्वोच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत न्यायाधीश बी.एन.श्रीकृष्णा भी वक्ता हैं । यह महत्वपूर्ण सेमीनार पिछले वर्ष से शुरू हुआ है और इसमें भारत के करीब एक दर्जन प्रमुख लोग वक्ता रहे हैं । जिनमें केन्द्रीय मंत्री, प्रमुख उद्योगपति, प्रमुख पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता और सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख वकील शामिल थे । पिछले वर्ष की तरह इस समय भी भारत के अलग अलग क्षेत्रों से लगभग एक दर्जन लोगों को वहां आमंत्रित किया गया हैं और इसके अलावा पूरी दुनिया से भारतीय लोकतंत्र में दिलचस्पी रखने वाले दर्जनों अन्य विद्वानों को भी इस सेमीनार में आमंत्रित किया गया है ।
इन दो वक्ताओं के अलावा दिल्ली की एक समाज शास्त्री और जन मुद्दों को लेकर अदालती लडाई लडने वाली प्राध्यापिका नंदिनी सुन्दर सर्वोच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत न्यायाधीश बी.एन.श्रीकृष्णा भी वक्ता हैं । यह महत्वपूर्ण सेमीनार पिछले वर्ष से शुरू हुआ है और इसमें भारत के करीब एक दर्जन प्रमुख लोग वक्ता रहे हैं । जिनमें केन्द्रीय मंत्री, प्रमुख उद्योगपति, प्रमुख पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता और सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख वकील शामिल थे । पिछले वर्ष की तरह इस समय भी भारत के अलग अलग क्षेत्रों से लगभग एक दर्जन लोगों को वहां आमंत्रित किया गया हैं और इसके अलावा पूरी दुनिया से भारतीय लोकतंत्र में दिलचस्पी रखने वाले दर्जनों अन्य विद्वानों को भी इस सेमीनार में आमंत्रित किया गया है ।
आभार जानकारी के लिए.
जवाब देंहटाएंअच्छा भला नाम था। क्या किये हो भैया; बौद्ध हो गये हो क्या?
जवाब देंहटाएं" interetsing artical to read, "
जवाब देंहटाएंRegards
sundar si jankari di aapne ki yahan ki kis tarah ki baton pe charcha bidesho me hoti hai..iske liye aabhar..........
जवाब देंहटाएंregards
Arsh
अब अपनी बदनामी विदेश मे भी पहुंच गयी !
जवाब देंहटाएंSamachar ke liye aapko dhnyavad.
जवाब देंहटाएंविश्वरंजन जी और सुनील कुमार जी ko shubhkamaye.n dijiyega.