शब्द संपदा के संग्रहकर्ता : अजय चंद्राकर
डॉ.परदेशीराम वर्मा
डॉ.परदेशीराम वर्मा
छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद हुए चुनाव में भाजपा के तीन दाढ़ीधारी उर्जावान नौजवान विधायक बने । तीनों ही महत्वपूर्ण पद पर आसीन हुए । भिलाई के विधायक श्री प्रेमप्रकाश पाण्डे विधान सभाध्यक्ष बने । दुर्ग के विधायक श्री हेमचंद यादव तथा कुरूद के विधायक श्री अजय चंद्राकर केबिनेट मंत्री बने । बाद में हेमचंद यादव दाढ़ी से मुक्त हो गए मगर शेष चेहरों पर आज भी दाढ़ी है । खिचखिची दाढ़ी, रौबदार आवाज, त्वरित निर्णय और स्पष्टवादिता के लिए विख्यात ।
४४ वर्षीय श्री अजय चंद्राकर कुर्मी पारा कुरूद के बांशिदे हैं मगर इनके पुरखों का गांव अर्जुन्दा भी है । अपने समय के बेहद अध्ययनशील जनप्रतिनिधि श्री भागवत चंद्राकर अजय जी के चाचा हैं । अजय चंद्राकर विधान सभा सदस्यों में सर्वाधिक पढ़ाकू व्यक्ति माने जाते हैं । पढ़ने लिखने और ज्ञानार्जन की सतत भूख उनमें आज भी है । वे इन दिनों बाकायद अंग्रेजी के विद्वान से रोज घंटे भर आंग्ल भाषा की दीक्षा ले रहे हैं । पूछने पर उन्होंने सटीक कारण बताया कि राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार में जाने पर अंग्रेजी की अल्पज्ञता आड़े आती है । अंग्रेजी पर अधिकार जरूरी है यह जिस पल उन्होंने महसूस किया उसी क्षण अंग्रेजी पढ़ने का उन्होंने संकल्प ले लिया । वे नियमित अंग्रेजी पढ़ रहे हैं । उनके शिक्षक को शुरू में तो थोड़ा तनाव हुआ कि मंत्री हैं पता नहीं किस तरह के विद्यार्थी सिद्ध होंगे लेकिन धीरे-धीरे गुरू को लगा कि अजय जी गुरू शिष्य परंपरा की मर्यादा को जानते और मानते हैं । पढ़ते समय वे जिज्ञासु विद्यार्थी के सिवाय कुछ नहीं होते । प्राय: मंत्री जैसे बड़े पदों की मसरूफियत के मारे लोगों को सुस्ताने और सांस लेने की फुरसत नहीं मिलती, हालत चचा गालिब की तरह हो जाती है ...
हम वहां हैं जहां से हमको भी
कुछ हमारी खबर नहीं आती.
लेकिन अध्ययनशील अजय चंद्राकर जी पढ़ने के लिए समय निकाल लेते हैं । लगातार अध्ययन से बढ़ती रूचि के कारण ही वे यह निर्णय ले पाये । आजकल वे नियमित रूप से गुरूजी से अंग्रेजी पढ़ रहे हैं ।
हन्दी साहित्य में एम.ए. करने के बाद उन्होंने ३विष्णु प्रभाकर के नाटकों का अनुशीलन४ विषय शोध के लिए चुना । लेकिन उन्हीं दिनों राजनैतिक सरगर्मी बढ़ गई और शोध पर अवरोध आ गया । लेकिन पढ़ने लिखने की गति यथावत् रही ।
अजय चंद्राकर १९९८ में पहली बार विधायक बने लेकिन इसके पूर्व वे अनेकों जन आंदोलनों का नेतृत्व कर चुके थे ।
१९८७ में आंदोलन के चलते वे सात दिन जेल में भी रहे । इस एक सप्ताह के जेल जीवन को वे अपनी विशेष उपलब्धि मानते हैं । यह है भी एक विशिष्ट अनुभव । वे भाजपा विधायक दल के सचेतक ९८ में भी थे और आज भी हैं । पंचायत एवं ग्रामीण विभाग तथा संसदीय कार्य मंत्री के रूप में वे २००३ में वे छत्तीसगढ़ सरकार में शामिल हुए । २००४ में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तकनीकी शिक्षा एवं जनशक्ति नियोजन का काम भी जुड़ गया । २००७ में श्री अमर अग्रवाल जब पुन: मंत्रीमंडल में शामिल हुए तब कुछ विभागों की अदला-बदली हुई । वे पंचायत एवं ग्रामीण विकास संसदीय कार्य तथा स्कूल शिक्षा मंत्री हैं । कुरूद के दाऊ श्री कलीराम चंद्राकर के इस सपूत ने अपनी जाति को पूर्ण सम्मान देते हुए भी सभी जातियों को एक समान महत्व दिया है । इन चार वर्षो में अजय चंद्राकर अपनी जाति के आयोजनों में बहुत रूचि लेते हुए नहीं दिखे । यह चंदूलाल चंद्राकर की विशिष्ट शैली है । वे भी लाख प्रयत्न के बावजूद जातीय संगठन से जुड़े ध्वजधारकों के प्रभाव में कभी नहीं आये । बल्कि कई अवसरों पर वे झिड़क भी देते थे कि संकीर्णता ठीक नहीं है । सांसद सबका होता है । सबसे प्राप्त वोट से जीतने के बाद जातिवादी पहल शोभा नहीं देता । मगर है यह कठिन साधना । इसे चंदूलाल चंद्राकर के बाद श्री अजय चंद्राकर ने सफलतापूर्वक साधा है ।
अजय चंद्राकर पारिवारिक रिश्तेदारी के कलात्मक फंदों को भी तोड़ने में सफल रहे हैं । परिवार का वास्ता देकर वरिष्ठ जनों ने भी अगर अजय चंद्राकर को प्रभावित करने का प्रयास किया तो उन्हें रंचमात्र सफलता नहीं मिली । इस दृष्टि से एक किस्सा चंद्राकर पट्टी में बहुत मशहूर है । अजय चंद्राकर परिवार के एक कांग्रेसी बुजुर्ग ने उन्हें कुछ पढ़ाने का प्रयत्न किया । कुछ देर हां-हूँ कहने के बाद अजय जी ने लगभग उखड़ते हुए कहा कि अब मैं भी काफी उम्र का हो गया हूँ । आप निरा बच्चा ही मत समझिए । ऊंच नीच मैं भी खूब समझता हूँ । अपनी अपनी यात्रा है । आप अधिक पढ़ाने का प्रयत्न मत करिए । बुजुर्ग उनके अंदाज से हक्के-बक्के रह गये । खिचखिची दाढ़ी वाले अजय चंद्राकर यूं तो अट्टहासों के लिए भी मित्रों में बेहद लोकप्रिय हैं मगर मंद मंद मुस्कारने की अपनी विशेष अदा से वे माहौल को तनावमुक्त बनाये रखते हैं ।
अनुशासन प्रिय अजय चंद्राकर को गुस्सा दबाना पड़ता है । गुस्से को बार-बार दबाने का प्रयत्न अंतत: शरीर पर असर दिखाता है । खेल एवं मंच के प्रेमी अजय चंद्राकर किशोरावस्था में दुबले पदले थे, आज भी शारीरिक सधाव के प्रति सचेत हैं लेकिन स्वास्थ्य थोड़ा ढ़ीला भी हुआ है ।
वे स्वयं स्कूली जीवन से ही नेतृत्व के गुणों से लबालब थे । स्कूली जीवन काल में ही तत्कालीन मंत्री से उन्होंने साहस के साथ कुछ मांग लिया था । सार्वजनिक हित की मांग एक किशोर के द्वारा संभवत: पहली बार मिली थी । मंत्री ने भी सहर्ष उनकी मांग को स्वीकार कर लिया था । संभवत: उसी घटना से अजय चंद्राकर के व्यक्तित्व में नया मोड़ आया हो । मित्रों से उन्हें तब खूब शाबाशी मिली ।
कुरूद क्षेत्र की नहरें विशाल हैं । मित्र मंडली के साथ नहरों के विराट फालों में नहाने का सुख उन्हें आज भी भुलाये नहीं भूलता । जो देहाती बच्चे बड़े नहर के गोदगोदा में गिर रहे पानी के भीतर जाकर छुपने का सुख जानते हैं वही नहर में नहाने का आनंद समझ सकते हैं । पानी उपर से जब नीचे गिरता है तब बीच धारा और दीवार के बीच जगह बच जाती है जहां घटों खड़ा रहा जा सकता है । पानी की पर्देदारी क्या है यह नहर में नहाकर की समझा जा सकता है । पर्दे के अंदर शरीर और संवेदना की अनगिनत कथाएं होती हैं । हर देहाती नौजवान जो बाद में शहर आकार बस जाता है, जब कभी नहरों के करीब पहुंचता है - नहर के कगारों में सर पटकती फिर रही नाजुक कहानियां उसे कई दशक पीेछे ले चलती हैं ।
अखिल भारतीय कवि सम्मेलनों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन कर्ता अजय चंद्राकर स्थानीय मीडिया से शुरू से ही सहजता पूर्वक बातचीत करते थे ।
कबीर पंथी डॉ. चरणदास महंत ने कबीर पर पुस्तिका का प्रकाशन किया उसमें मोरपंख धारी कबीर का चित्र है । यह मोरपंख कबीर को श्री कृष्ण से भी जोड़ता है । कबीर ने खुद को राम की बहुरिया कहा । कबीर साहित्य में श्री कृष्ण से जुड़ी कम चर्चित पदावलियां होंगी । लेकिन वह कमी मोरपंख से पूरी होती है । श्रीकृष्ण के सिर पर भी मोरपंख है और कबीर की पगड़ी में भी यह शोभित है । उस दौर में सगुण भक्ति के उपासक कवि राम और कृष्ण भक्ति शाखा में विभाजित थे । कबीर ने निराकर ब्रम्ह और सर्वव्यापी ईश्वर की महिमा का गान किया और इन दोनों से अलग अपनी विशिष्ट शैली में चिंतन का प्रतिपादन किया । उन्होंने हिन्दु-मुस्लिम, राम-कृष्ण, राजा-रंक, ऊंच-नीच के आधार पर समाज को बांटने की प्रवृत्ति पर चोट करते हुए कहा - अरे, इन दोनों राह न पाई ।
निर्गुनिया कबीर ने भी श्री जगन्नाथ जी का यशगान किया और उसे छत्तीसगढ़ ने समझा । छत्तीसगढ़ी लोकमंच पर यह भजन सर्वाधिक चर्चित रहा है ।
उड़ीसा और छत्तीसगढ़ में श्री जगन्नाथ जी समान रूप से समाद्य्त हैं । सारंगढ़, रायगढ़ क्षेत्र के गांवों में श्री जगन्नाथ जी के मंदिर हैं तो पाटन, रायपुर और भिलाई जैसे बड़े कस्बों और शहरों में भी जगन्नाथ मंदिर की भव्यता और श्रृंखला देखते ही बनती है । पाटन क्षेत्र में श्री जगन्नाथ मंदिर का संचालन मनवा कूर्मि समाज द्वारा होता है । हर जाति के व्यक्ति को श्री जगन्नाथ अपने पास बुलाते हैं । वे सबके हैं । छत्तीसगढ़ के गांवों में रथयात्रा के दिन दो बैलगाड़ी को जोड़कर रथ बना लेने की परंपरा हम देखते आये हैं । उस रथ में बैठकर पंडित जी गजामुंग का प्रसाद बांटते हैं । मितान बदने वाले गजामूंग के आदान प्रदान से भी जीवन भर की मितानी का संकल्प लेते हैं । भोजली, जवांरा की तरह गजामूंग भी मितानों को जोड़ता है । छत्तीसगढ़ में रथयात्रा के दिन को रथदूज भी कहते हैं ।
छत्तीसगढ़ से छोटे बड़े सभी जगन्नाथ की यात्रा के लिए जाते हैं । अपने छत्तीसगढ़ी उपन्यास “आवा” में छत्तीसगढ़ के स्वामी जगन्नाथ जी के महात्म्य पर मैंने एक पूरा परिच्छेद लिखा है ।
पहले भजन गाते हुए, छेना लकड़ी, चावल, दाल लेकर पैदल ही लोग पुरी की यात्रा के लिए निकलते थे । फिर रेलगाड़ी सुलभ हुई । १९५२ में अंगुल में एक चमत्कारी बाबा के प्रागट्य की कथा छत्तीसगढ़ में कुछ इस तरह पहुँची कि समूचा छत्तीसगढ़ उड़ीसा में स्थित अंगुल की ओर चल पड़ा । तब भीषण हैजा के कारण लाखों लोग काल कवलित भी हुए थे । तब अंगुल का मतलब था श्री जगन्नाथ जी के करीब पहुंचना । एक पंथ दो काज ।
लेकिन इस सबके बावजूद वर्तमान समय में जिन जन-प्रतिनिधियों की पकड़ अपने क्षेत्र में जगजाहिर है उसमें अजय चंद्राकर अग्रगण्य हैं । कुरूद क्षेत्र के लोग उन्हें बेहद प्यार करते हैं और यह प्यार इन्हीं गुणों के कारण है । अजय चंद्राकर चलने के लिए तैयार होते हैं तो रास्ता कांटों भरा है या सुगम यह नहीं सोचते । वे समझते हैं कि....
राह में कांटे बिछे होंगे कि फूल,
जिसको थी यह फ्रिक वह बैठा रहा ।
वरिष्ठ, कनिष्ठ के पचड़ों से दूर अजय चंद्राकर दिये हुए दायित्वों को पूरा कर महत्व प्राप्त कर लेते हैं । २००२ के बाद दो बार विभाग कम ज्यादा हुए लेकिन एक छोटी सी टिप्पणी भी उनके द्वारा नहीं की गई । स्कूली शिक्षा मिलने पर मीडिया ने उन्हें छोटे गुरूजी कहकर उकसाया मगर वे मुस्कारते रहे । जवाब देने का यह ढ़ंग हमेशा अमोघ अस्त्र की तरह कारगर सिद्ध होता है ।
डॉ.परदेशीराम वर्मा
आप सभी को विक्रम संवत् 2065 वर्ष प्रतिपदा की हार्दिक शुभकामनायें : संजीव तिवारी
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अजय चंद्राकर जी को अंग्रेजी के साथ मीडिया रिलेशन मैनेजमेण्ट और क्रोध पर लगाम पर भी ध्यान देना चाहिये - शायद।
जवाब देंहटाएंअभी दोपहर दो बजे से मंत्री जी के एक खांटी समर्थक पांच बजे तक चर्चा कर गए हैं।
जवाब देंहटाएंउनके कहने का लब्बो लुआब यह था कि मंत्री जी की आदत नही है अन्य मंत्रियों की तरह मीडिया वालों को भाव देने की , इसलिए सारा लोचा हुआ!!
वैसे समझ में आ गया है कि मंत्री जी का इमेज मैनेजमेंट अमला सक्रिय हो चुका है।
सही है।
सो अपन ज्ञानदत्त जी से सहमत हैं!!
शुक्रिया, शुभकामनाएं आपको भी!
जवाब देंहटाएंआप भी बिक गये तिवारी जी। क्या रेट रहा आपका?
जवाब देंहटाएंअनजान साहब यह लेख मैने नहीं लिखा है इसे परदेशीराम वर्मा नें लिखा है और पूर्व प्रकाशित है । इसमें बिकने की क्या बात हर पहलू के पक्ष और विपक्ष होते हैं । वक्त और नजरिया अलग अलग हो सकते हैं । हम फक्कडों को कौन खरीद सकता है, हम तो सरकार के विराध में सदैव खडे रहने वाले हैं चाहे वह किसी भी की सरकार हो ।
जवाब देंहटाएंपर आपने हमारी कीमत तो आंक ही दी, हिन्दी ब्लाग पर एक मंत्री का इमेज बनाने के लिए कितना लिया जा सकता है आप ही बतायें, रेट तय कर हिन्दी चिट्ठाजगत में एक पोस्ट लिख दूंगा चरन्नी-अठन्नी कमाई के लिए एड सेंस तो सभी नें लगाया है ।
जो भी लिखा है वह सत्य हो ,हो भी सकता है !!लेकिन इससे उनके द्वारा यह टिप्पणी कि बच्चे सरकार ने पैदा नही किये है झूठी नही हो जाती !! आप जिस पद पर है ,उस पद कि एक मर्यदा और उत्तरदायित्त्व है!!इससे आप इंकार नही कर सकते "
जवाब देंहटाएंखैर इन्सान से गलती संभाव्य है पर उस गलती पर माफ़ी तो माँगी हि जा सकती है !!
तिवारी जी, चन्द्राकार जी ने उच्च शिक्षा मंत्री रह्ते अच्छे कार्य किये है. लेकिन उनमे सामंतवादी सोच(दाउगिरी) अभी भी विद्यमान है. उनको समक्षना चाहिये कि अब प्रजातंत्र है और प्रजा वे द्वारा हि वो चुने गये है. चुकी वो मंत्री है इसलिये उनका कार्य क्षेत्र अब केवल कुरूद ही नहि अपितु संपुर्ण छ ग है. सबसे अच्छा बात है कि वे अपने चाचा प्रो. भागवत चंद्राकर जैसे नही हैं, जो जातिवाद के प्रणेता है. तिवारी जी, लगता है आपके लेखक भी सामंतवादी सोच से प्रभावित है ("खिचखिची दाढ़ी, रौबदार आवाज" ) ये सब सामंतवाद के देन है. प्रजातत्र मे शासक को विनम्र और व्यावहार कुशल होना चाहिये. क्योकि वे प्रजा के द्वारा, प्रजा के लिये और प्रजा का हि प्रतिनिधी होता है.
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