कविता का उद्देश्य : गंगा
जमुना प्रसाद कसार
एक संत नें तुलसीदास से पूछा कि कविता का उद्देश्य क्या होना चाहिए ? तुलसीदास जी नें कहा कि काव्य को गंगा के समान सर्वहितकारी होना चाहिए –
कीरति भनिति भूति भलि सोई ।
सुरसरि सम सब कहुँ हित होई ।।
कीर्ति, कविता और सम्पत्ति वही उत्तम है जो गंगा की तरह सबका हित करने वाली हो । गोस्वामी जी नें गंगा की धारा की परंपरा को मानस में स्वीकार किया है । भारतीय संस्कृति में दो परंपरायें हैं । एक है मंदिर की परंपरा और दूसरी है गंगा की परंपरा । मंदिर में प्रवेश करने के पूर्व हमें स्नान करके पवित्र होना पडता है और गंगा के पास हम जाते हैं, स्नान करके पवित्र होने के लिए । इसे हम प्रकारांतर से यों कह सकते हैं कि मंदिर की परंपरा पिता की प्रकृति की है और गंगा की परंपरा माता की शैली की ।
पिता अपने बालक को अपने साथ घुमाने ले जाना चाहता है । पिता बालक को गंदा देखकर कहता है अरे, तुम जाओ अपनी मॉं के पास । पिता के इस कथन को मॉं भी सुनती है । वह उस गंदे बालक को बुलाती है, गोद में बिठाती है, बिना इसकी परवाह किये कि उसके स्वत: के कपडे गंदे हो जायेंगें । मॉं उसे साफ सुथरा कर अच्छे कपडे पहनाकर बाप के पास भेज देती है । अब यदि मॉं भी बच्चे से कहे कि तुम गंदे हो, मेरे पास मत आओ, तब तो हो गया काम । इसीलिये हमें किसी पात्र के संबंध में गंगा की धारा का ध्यान रखना होगा जो गन्दगी तो स्वत: स्वीकार कर लेता है और अन्य व्यक्तियों को पावन बना देता है ।
अच्छा लगा इसको पढ़ना शुक्रिया
जवाब देंहटाएंकविता को गंगा के समान सर्वहितकारी और सर्वसुखंत होना चाहिए बढ़िया विचार प्रस्तुत करने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुखकर वाचन रहा-प्रस्तुति का बहुत आभार..यह आपका कार्य भी सर्वहितकारी ही कहलायेगा. और लाईये ऐसी प्रस्तुतियाँ.
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