बाबा आमटे सन् 1936 में नागपुर से बेमेतरा आए तब उनकी उम्र 22 वर्ष थी । सहज सरल और सादगी के धनी बाबा का नगर में काफी सम्मान था । यहां रहकर न सिर्फ उन्होंने वकालत की बल्कि समाजसेवा में भी पूरे तीन साल गुजारे ।
आज जब इस समाचार को भिलाई भास्कर नें प्रमुखता से प्रकाशित किया तो चारो तरफ यह चर्चा होती रही, बार एसोसियेशन नें आज महाकवि निराला की याद एवं बसंत पंचमी के अवसर पर एक कार्यक्रम रखा था वहां भी बाबा को याद किया गया एवं भावभीनि श्रद्धांजली दी गई । वरिष्ठ व बुजुर्ग अधिवक्ता मित्रों से हमने जब इस संबंध में पूछा तो वे बाबा के संबंध में अपने-अपने अनुभव बताये ।
यहां के कई अधिवक्ता बाबा से मिलने यदा कदा उनके आश्रम जाते रहते थे तब वे यहां के अधिवक्ताओं एवं अन्य व्यक्तियों के संबंध में कुशलक्षेम पूछते थे । उन्हें दुर्ग से बेमेतरा के बीच एक कस्बे की खोये की जलेबी बहुत पसंद थी, दुर्ग या बेमेतरा से कोई भी जब उनसे मिलने जाता था तो वे देवकर की खोये की जलेबी की याद जरूर करते थे ।
शुरूआती दिनों की यादे मनुष्य के मानस पटल पर गहरे से पैठती हैं, दुर्ग स्थित अपने किराये के घर से कोर्ट तक के रास्ते के सभी रोड, बिल्डिंगों यहां तक कि मुनगा के पेड की भी याद अपने दिल में संजोये बाबा नें छत्तीसगढ की सेवा के लिए अपने छोटे पुत्र प्रकाश व पुत्रवधु डॉ. मंदाकिनी को बस्तर के आदिवासियों के लिए दिया है एवं रायपुर-बिलासपुर मार्ग स्थित बैतलपुर में कुष्ट अस्पताल का भी निर्माण कराया है ।
भारत के सच्चे सपूत बाबा आमटे को छत्तीसगढ की अंतिम श्रद्धांजली ।
11/02/08 कतरने काम की : बात पते की
बाबा आमटे विलक्षण थे। उनके जीते जी विश्वास नहीं होता था उनके व्यक्तित्व पर। अब नहीं रहे तो शायद लोग उन्हें मिथक मानने लगें।
जवाब देंहटाएंश्रद्धांजलि उन्हें!!
जवाब देंहटाएंबाबा आमटे आज हमारे बीच नही है लेकिन उनके समाजसेवी विचारो को आगे बढाना ही उनको सच्ची श्रध्दांजली होगी
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