विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों
छत्तीसगढ, हरियाणा एवं दिल्ली से एक साथ प्रकाशित होने वाले दैनिक समाचार पत्र हरिभूमि के क्षेत्रीय पन्ने पर रविवार को “बढते घोटाले टूटती उम्मीदें” नाम से एक लेख छपा हैं । नवोदित राज्य छत्तीसगढ में हुए प्रमुख घोटालों पर प्रकाश डालते हुए अपने विस्तृत लेख में वरिष्ठ पत्रकार सुकांत राजपूत जी नें कहा है कि –
“छत्तीसगढ अब देश में अपनी धाक जमाने लगा है । वह किसी भी बडे प्रदेश से पीछे नहीं हैं । अगर आप सोंच रहे हैं यह बात किसी विकास सूचकांक के आधर पर कही जा रही है तो आप गलत हैं । दरअसल यह मुल्यांकन उन प्रदेशों की तुलना के आधार पर है जो घोटालों में डूबे हुए हैं । एक नये प्रदेश का नीला आकास इन घोटालों की काली घटनाओं में घिर गया । देश के तमाम दूसरे राज्यों की तरह यहां के घोटालों की जांच अधर में अटकी है . . . ।“
“प्रदेश के अब तक के सबसे प्रमुख घोटाले - पी डब्लू डी का डामर घोटाला, फर्नीचर घोटाला, टाटपट्टी घोटाला, बारदाना घोटाला, नमक घोटाला, पी एच ई का पाईप घोटाला, कनकी घोटाला, राज्य लोक सेवा आयोग में गडबडी, सहकारी बैंक घोटाले, दलिया आबंटन में गडबडी, धान घोटाला, कम्प्यूटर घोटाला, फर्जी मार्कशीट और जाति प्रमाण पत्र में गडबडियों का मामला, कंडम वाहन घोटाला, दवा खरीदी घोटाला _ _ _ !”
“. . . अविभजित मघ्य प्रदेश के समय से ही यहां कई प्रकार के घेटाले उजागर होते रहे हैं । लेकिन राज्य पुर्नगठन के बाद भ्रष्टाचार नें सीमा पार कर दी है । नवोदित राज्य में सत्ता के लोगों के हाथ ताकत थी, इस ताकत का जमकर दुरूपयोग किया गया । जिसका नतीजा कुछ सालों में सामने हैं, सबले बढिया – छत्तीसगढिया का नारा देने वालों नें यह दर्शा दिया कि वे वाकई में अन्य किसी राज्य की तुलना में घोटाले के क्षेत्र में काफी आगे है ।“
“. . . जो रोल विधायिका और कार्यपालिका को करना चाहिए वह भूमिका अब देश का जनमानस न्यायपालिका में तलाशने लगा है ।“
इस लेख पर मेरी प्रतिक्रिया – सुकांत राजपूत जी नें यहां पर छत्तीसगढ सहित देश के अन्य घोटालों का भी उल्लेख किया है एवं इस पर राजनीतिज्ञों व जनता का विचार भी प्रकाशित किया है । लेख का सार घोटालों पर जनता का घ्यान आकृष्ट करना प्रतीत होता है । लेखक न्यायपालिका के बदले रूख पर आश्वस्थ नजर आते हैं, यदि सुशांत जी क्षेत्रीय घोटालों का स्पष्ट विवरण देते तो लेख और रोचक हो सकता था ।
क्षेत्रीय घोटालों पर मेरी सोंच - यह बात हमें भरपूर दिलासा दिलाती है कि पिछले दिनों न्यायपालिका नें अपने दायित्वों का बेहतर निर्वहन किया है एवं उसने राजनैतिक व अफसरशाही के बल पर भ्रष्टाचार को दबाने, छुपाने एवं पनपने से रोकने के सारे दरवाजे जनता के लिए खोल दिये हैं । 6 दिसम्बर 2006 को न्यायाधीश अरिजित परसायत व न्यायाधीश एस एच कपाडिया के न्याय निर्णय के आधार पर भारतीय दण्ड संहिता की धारा 197 व भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम 19 1 के तहत अब वो सारे बंधन समाप्त हो गये हैं जो दिग्गजों के द्वारा किए गये भ्रष्टाचार के विरूद्ध कानूनी लडाईयों में आडे आते थे । अब कोई भी मंजूरी व इजाजत का बहाना नहीं चलेगा राजनेताओं व अफसरशाहों की गिरफ्तारी के लिए, और न्यायपालिका ऐसे मामलों में अग्रिम जमानत देने में भी पूरी सावधानी बरतेगी । हम सबने यह मान लिया है कि ऐसा ही होने वाला है ।
तो क्या हम यह खुशफहमी पाल लें कि अब वे दिन लद गये जब घोटालेबाज मजे से हमारा धन लूटते थे और हम खून का आंसू लिए मुंह बंद किये जीते थे ? पर ऐसा बिल्कुल नहीं है । न्यायपालिका में आज भी ढेरों मुकदमे लंबित हैं । भारतीय न्यायिक परंपरा, न्यायाधीशों की कमी, लंबित मुकदमों का भारी बोझ और अधिवक्ताओं के मानवीय खेलों नें त्वरित न्याय में नित नये रोडे अटकाये हैं और देश व प्रदेश की घोटालों की सूची निरंतर बढती रही है दो चार मुकदमों के फैसलों से हमें अतिउत्साहित नहीं होना है । हर चुनाव में राजनीति, आरोपी व अपराधी का भेद जनता को समझाती है और अबोध जनता सफेद झक कपडों के पीछे छुपे दानव को मानव का भगवान मान कर सर आंखों में बिठा लेती है ।
हमने छत्तीसगढ के उच्च न्यायालय में देखा है यहां के पूर्व मुख्य न्यायाधीश नायक के समय में जो न्यायिक परंपरा छत्तीसगढ में कायम हुई थी वह राज्य के सात सालों में अपना एक अलग स्थान बनाती है । न्यायाधीश नायक के काल में अधिवक्ता रिट व पब्लिक लिटिगेशन को उच्च न्यायालय में पंजीकृत कराने में घबराने लगे थे क्योंकि वो ही एक ऐसे न्यायाधीश थे जो तथ्यहीन व बेबजह परेशान करने एवं पब्लिसिटी स्टंट के लिए दायर मुकदमों के विरूद्ध भारी से भारी जुर्माना, मुकदमा दायर करने वाले पर लगाते थे वहीं जनता से जुडे व भ्रष्टाचार के मामलों को तत्काल पंजीकृत करवाते थे फलत: उस समय में जनता से जुडे मामले जल्द निबटने लगे थे । पर क्या इन सात सालों में छत्तीसगढ के घोटालों से जुडे मामलों में कोई निर्णय आया है ? बिल्कुल नहीं । बमुश्कल इनकी फाइलें जांच समितियों से निकल कर डायस में आ पाई हों । ऐसे ही एक घोटाले से जुडे जांच समिति के प्रमुख का मैं निजी सचिव रह चुका हूं मैं इनकी सारी प्रक्रिया से वाकिफ हूं । उच्च न्यायालय में लंबित मुकदमों की फेहरिश्त इतनी लंबी है कि जब तक आरोप सिद्ध होने की स्थिति आयेगी तब तक सारे घोटालेबाज दस पंद्रह साल और मोटे मोटे घोटाले करते रहेंगें, उसके बाद अपील का अधिकार संविधन नें उन्हें दिया है उस अधिकार का प्रयोग करने से उन्हें इस जीवन काल तक का समय मिल ही जायेगा । और हम लेख पे लेख पोस्ट पे पोस्ट लिखते जायेंगे कहते जायेंगें – छत्तीसगढिया सबले बढिया ।
“छत्तीसगढ अब देश में अपनी धाक जमाने लगा है । वह किसी भी बडे प्रदेश से पीछे नहीं हैं । अगर आप सोंच रहे हैं यह बात किसी विकास सूचकांक के आधर पर कही जा रही है तो आप गलत हैं । दरअसल यह मुल्यांकन उन प्रदेशों की तुलना के आधार पर है जो घोटालों में डूबे हुए हैं । एक नये प्रदेश का नीला आकास इन घोटालों की काली घटनाओं में घिर गया । देश के तमाम दूसरे राज्यों की तरह यहां के घोटालों की जांच अधर में अटकी है . . . ।“
“प्रदेश के अब तक के सबसे प्रमुख घोटाले - पी डब्लू डी का डामर घोटाला, फर्नीचर घोटाला, टाटपट्टी घोटाला, बारदाना घोटाला, नमक घोटाला, पी एच ई का पाईप घोटाला, कनकी घोटाला, राज्य लोक सेवा आयोग में गडबडी, सहकारी बैंक घोटाले, दलिया आबंटन में गडबडी, धान घोटाला, कम्प्यूटर घोटाला, फर्जी मार्कशीट और जाति प्रमाण पत्र में गडबडियों का मामला, कंडम वाहन घोटाला, दवा खरीदी घोटाला _ _ _ !”
“. . . अविभजित मघ्य प्रदेश के समय से ही यहां कई प्रकार के घेटाले उजागर होते रहे हैं । लेकिन राज्य पुर्नगठन के बाद भ्रष्टाचार नें सीमा पार कर दी है । नवोदित राज्य में सत्ता के लोगों के हाथ ताकत थी, इस ताकत का जमकर दुरूपयोग किया गया । जिसका नतीजा कुछ सालों में सामने हैं, सबले बढिया – छत्तीसगढिया का नारा देने वालों नें यह दर्शा दिया कि वे वाकई में अन्य किसी राज्य की तुलना में घोटाले के क्षेत्र में काफी आगे है ।“
“. . . जो रोल विधायिका और कार्यपालिका को करना चाहिए वह भूमिका अब देश का जनमानस न्यायपालिका में तलाशने लगा है ।“
इस लेख पर मेरी प्रतिक्रिया – सुकांत राजपूत जी नें यहां पर छत्तीसगढ सहित देश के अन्य घोटालों का भी उल्लेख किया है एवं इस पर राजनीतिज्ञों व जनता का विचार भी प्रकाशित किया है । लेख का सार घोटालों पर जनता का घ्यान आकृष्ट करना प्रतीत होता है । लेखक न्यायपालिका के बदले रूख पर आश्वस्थ नजर आते हैं, यदि सुशांत जी क्षेत्रीय घोटालों का स्पष्ट विवरण देते तो लेख और रोचक हो सकता था ।
क्षेत्रीय घोटालों पर मेरी सोंच - यह बात हमें भरपूर दिलासा दिलाती है कि पिछले दिनों न्यायपालिका नें अपने दायित्वों का बेहतर निर्वहन किया है एवं उसने राजनैतिक व अफसरशाही के बल पर भ्रष्टाचार को दबाने, छुपाने एवं पनपने से रोकने के सारे दरवाजे जनता के लिए खोल दिये हैं । 6 दिसम्बर 2006 को न्यायाधीश अरिजित परसायत व न्यायाधीश एस एच कपाडिया के न्याय निर्णय के आधार पर भारतीय दण्ड संहिता की धारा 197 व भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम 19 1 के तहत अब वो सारे बंधन समाप्त हो गये हैं जो दिग्गजों के द्वारा किए गये भ्रष्टाचार के विरूद्ध कानूनी लडाईयों में आडे आते थे । अब कोई भी मंजूरी व इजाजत का बहाना नहीं चलेगा राजनेताओं व अफसरशाहों की गिरफ्तारी के लिए, और न्यायपालिका ऐसे मामलों में अग्रिम जमानत देने में भी पूरी सावधानी बरतेगी । हम सबने यह मान लिया है कि ऐसा ही होने वाला है ।
तो क्या हम यह खुशफहमी पाल लें कि अब वे दिन लद गये जब घोटालेबाज मजे से हमारा धन लूटते थे और हम खून का आंसू लिए मुंह बंद किये जीते थे ? पर ऐसा बिल्कुल नहीं है । न्यायपालिका में आज भी ढेरों मुकदमे लंबित हैं । भारतीय न्यायिक परंपरा, न्यायाधीशों की कमी, लंबित मुकदमों का भारी बोझ और अधिवक्ताओं के मानवीय खेलों नें त्वरित न्याय में नित नये रोडे अटकाये हैं और देश व प्रदेश की घोटालों की सूची निरंतर बढती रही है दो चार मुकदमों के फैसलों से हमें अतिउत्साहित नहीं होना है । हर चुनाव में राजनीति, आरोपी व अपराधी का भेद जनता को समझाती है और अबोध जनता सफेद झक कपडों के पीछे छुपे दानव को मानव का भगवान मान कर सर आंखों में बिठा लेती है ।
हमने छत्तीसगढ के उच्च न्यायालय में देखा है यहां के पूर्व मुख्य न्यायाधीश नायक के समय में जो न्यायिक परंपरा छत्तीसगढ में कायम हुई थी वह राज्य के सात सालों में अपना एक अलग स्थान बनाती है । न्यायाधीश नायक के काल में अधिवक्ता रिट व पब्लिक लिटिगेशन को उच्च न्यायालय में पंजीकृत कराने में घबराने लगे थे क्योंकि वो ही एक ऐसे न्यायाधीश थे जो तथ्यहीन व बेबजह परेशान करने एवं पब्लिसिटी स्टंट के लिए दायर मुकदमों के विरूद्ध भारी से भारी जुर्माना, मुकदमा दायर करने वाले पर लगाते थे वहीं जनता से जुडे व भ्रष्टाचार के मामलों को तत्काल पंजीकृत करवाते थे फलत: उस समय में जनता से जुडे मामले जल्द निबटने लगे थे । पर क्या इन सात सालों में छत्तीसगढ के घोटालों से जुडे मामलों में कोई निर्णय आया है ? बिल्कुल नहीं । बमुश्कल इनकी फाइलें जांच समितियों से निकल कर डायस में आ पाई हों । ऐसे ही एक घोटाले से जुडे जांच समिति के प्रमुख का मैं निजी सचिव रह चुका हूं मैं इनकी सारी प्रक्रिया से वाकिफ हूं । उच्च न्यायालय में लंबित मुकदमों की फेहरिश्त इतनी लंबी है कि जब तक आरोप सिद्ध होने की स्थिति आयेगी तब तक सारे घोटालेबाज दस पंद्रह साल और मोटे मोटे घोटाले करते रहेंगें, उसके बाद अपील का अधिकार संविधन नें उन्हें दिया है उस अधिकार का प्रयोग करने से उन्हें इस जीवन काल तक का समय मिल ही जायेगा । और हम लेख पे लेख पोस्ट पे पोस्ट लिखते जायेंगे कहते जायेंगें – छत्तीसगढिया सबले बढिया ।
ये देश है महा घोटालों का, ये देश है धीरे धीरे खिसकती फ़ाईलों का, इस देश का यारों क्या कहना……ये देश है भ्रष्टाचारियों का गहना!!!
जवाब देंहटाएंछत्तीसगढिया सबले बढिया ।
जवाब देंहटाएं---
उम्मीद का साथ मत छोडो. लगे रहो.
वाह क्या बात है लगता है आपके पास तमाम घोटालो की रपट है...सरकारी काम तो एसे ही होते है...जब तक कोई कोर्ट का फ़रमान आयेगा..घोटाले बाज के अन्तकाल का फ़रमान आ जायेगा...ठीक ही लिखा है..मुझे लगता है सभी घोटालो की फ़ाईल भी भोलाराम का जीव अपनी फ़ाईल में कैद करके बैठा है...चलिये फ़िर भी कहे देते हैं...छत्तीसगढिया सबले बढिया :)
जवाब देंहटाएंसुनीता(शानू)