छत्तीसगढ समाचार के २७ अप्रेल के अंक में शुभ्राशु चौधरी ने एक सार्गर्भित व जन मानस को झकझोर देने वाला आलेख लिखा है “क्या छत्तीसगढ दोयम दर्जे का राज्य है” उसी के अंश व दूसरे साईट के जुगाड खोज कर छत्तीसगढ के सुधियो के लिये प्रस्तुत कर रहे हैं, छत्तीसगढ समाचार सांध्य दैनिक होने के कारण सबेरे के अखबार से कम पढा जाता है जिसके कारण इतना गम्भीर लेख सब के सम्मुख प्रस्तुत करने के उद्देश्य से हम इसे इस चिठ्ठे मे पेश कर रहें हैं
छत्तीसगढ उच्च न्यायालय में एक नये न्यायाधीश की नियुक्ति से बहुत सारे सवाल उठ खडे हुए हैं क्योंकि इस न्यायाधीश को लेकर पहले से काफी विवाद चल रहे थे औरा उन विवादों को वजन इस बात से आंका जा सकता है कि इस न्यायाधीश को पदोन्नति देने की फाईल राष्ट्रपति नें वापस कर दी थी । वे इस पदोन्नति से सहमत नही थे । लेकिन सर्वोच्च न्यायालय में इन प्रशासनिक कार्यों के लिए जो कमेटी है उसने राष्ट्रपति की आपत्ति से असहमति जताते हुए फिर से इस जज का नाम भेजा है - शुभ्राशु चौधरी का आलेख प्रस्तुत करते हुए सांध्य दैनिक छत्तीसगढ, रायपुर नें लिखा है । सम्पुर्ण लेख छत्तीसगढ समाचार के २७ अप्रेल के अंक में देखा जा सकता है “क्या छत्तीसगढ दोयम दर्जे का राज्य है - शुभ्राशु चौधरी”
ज्ञात हो कि शुभ्राशु चौधरी बी बी सी के पूर्व पत्रकार एवं छत्तीसगढ के एकमात्र अंतरजाल सिटिजन जर्नलिस्ट के प्रयोगधर्मी साईट http://www.cgnet.in/ से जुडे हैं । सीजी नेट मे अनूप साहा के साईट का लेख है
शुभ्राशु चौधरी नें लिखा है “इन दिनों केरल और दिल्ली में छत्तीसगढ की बडी चर्चा है पर आश्चर्य की बात यह है कि जिस छत्तीसगढ को लेकर चर्चा जोरों पर है वह स्वयं खामोश है . . .”
किस्सा है लखनउ उच्च न्यायालय बेंच के न्यायाधीश जगदीश भल्ला का ।
क्या हैं चर्चा -
१. २१ जुलाई २००३ को जस्टिस भल्ला की पत्नी श्रीमती रेणु भल्ला नें नोएडा में ५ लाख रूपये में एक प्लाट खरीदा जिसका बाजार भाव ७.२ करोड रूपये था ।
२. दिल्ली के समीप दादरी में जहां रिलायंस एनर्जी का प्लांट लगने वाला है जिसके विरूद्ध रैली, घरना, प्रदर्शन पूर्व प्रधान मंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व में किया जाना था. इस कार्य को रोकने हेतु रिलायंस एनर्जी के दवारा कार्यालयीन समय के बाद लखनउ बेंच में ७ जुलाई को गैर तारांकित मामले की सुनवाई एक जज के घर में हुई जबकि वह मामला लखनउ बेंच की अधिकारिता में नही आता । देर रात हुए फैसले के जोर पर ही पुलिस नें प्रदर्शनकारी किसानों पर जमकर लाठियां भांजी, वी पी सिंह को भी सभा स्थल पर पहुंचने नही दिया गया । उक्त दमनकारी फैसले में रिलायंस एनर्जी के वकील आरोही भल्ला नें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और वकील आरोही भल्ला जस्टिस जगदीश भल्ला के पुत्र हैं ।
३. जुलाई ०५ में ग्रेटर नोएडा में भू आबंटन की लाटरी में जस्टिस जगदीश भल्ला के बेटे आरोही भल्ला के नाम आबंटन एवं उसके उपरांत उत्तर प्रदेश उच्च न्यायालय के उक्त आबंटन पर रोक लगाने के आदेश को सर्वोच्च न्यायालय नें खारिज कर दिया इस पर भी विवाद हैं जबकि इस आबंटन एवं प्रक्रियाओं में जस्टिस सबरवाल की बहू श्रीमती शीबा सबरवाल का भी नाम है ।
११ जुलाई २००६ को सर्वोच्च न्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश वाई के सबरवाल को प्रख्यात वकील रामजेठमलानी, वर्तमान मुख्य न्यायाधीश बालकृष्णन सहित दो पूर्व केन्द्रीय मंत्रियों की समिति कोजा (कमेटी आन जुडिसियल एकाउंटिबिलिटी) नें जस्टिस जगदीश भल्ला के विरूद्ध गंभीर अनियमितता का आरोप लगाते हुए उन पर महाभियोग चलाने की अपील की थी । छ: माह बाद भी उस अपील पर कोई कार्यवाही नही की गयी तब इस समिति नें जस्टिस जगदीश भल्ला के विरूद्ध एफ आई आर दायर करने की अनुमति की मांग भी की थी ।
तहलका से उपलब्ध जानकारी के अनुसार बताया जाता है कि जस्टिस जगदीश भल्ला के संबंध में सीबीआई से रिपोर्ट भी मंगाई गयी थी जिसके बाद ही राष्ट्रपति नें उनकी फाईल वापस कर दी थी ।
इधर अपने रिटायरमेंट के समय मुख्य न्यायाधीश वाई के सबरवाल नें पत्रकारों द्धारा पूछे गये सवाल के जवाब में जस्टिस जगदीश भल्ला को क्लीन चिट दे दिया था – “जस्टिस भल्ला के खिलाफ लगे आरोपों में कोई दम नही है ।“
अस्तु जस्टिस जगदीश भल्ला को केरल उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश बनाये जाने की कवायद शुरू हो गयी इस बीच केरल के ही एक न्यायाधीश बालकृष्णन जो जस्टिस भल्ला के विरूद्ध शिकायत करने वाली कमेटी कोजा के सदस्य थे, सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश बनाये गये। तदैव जस्टिस जगदीश भल्ला को केरल के बजाय छत्तीसगढ भेजा जाना तय हो गया, अब राष्ट्रपति जी को फाईल पुन: प्रेषित की गयी है जिसमें उन्हे हस्ताक्षर करना ही है यही हमारा संविधान कहता है । ईसी सम्बंध में परंजय गुहा की भी बातें देखिये ।
न्यायाधीशों की कमी व लंबिंत मामलों से जूझते छत्तीसगढ उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश का तबादला केरल कर दिया गया और यहां मुख्य न्यायाधीश का पद रिक्त हो गया सो जस्टिस भल्ला के लिए छत्तीसगढ का रास्ता साफ हो गया ।
डा सुकुमार ओझिकोड, (पूर्व उप कुलपति, कालिकट विश्वविद्यालय, कालम लेखक) देशाभिमानी, सीपीएम का आमुख अखबार में लिखा जिसका अनुवाद शुभ्राशु चौधरी नें बासी में उबाल में लिखा है – “जस्टिस भल्ला को केरल न भेजा जाना एक अच्छा फैसला है । . . . क्या इस देश में दो तरह के प्रदेश हैं यदि जस्टिस भल्ला को केरल न भेजना एक उचित फैसला है तो उन्हे छत्तीसगढ का मुख्य न्यायाधीश कैसे बनाया जा सकता है ।“
छत्तीसगढ उच्च न्यायालय में एक नये न्यायाधीश की नियुक्ति से बहुत सारे सवाल उठ खडे हुए हैं क्योंकि इस न्यायाधीश को लेकर पहले से काफी विवाद चल रहे थे औरा उन विवादों को वजन इस बात से आंका जा सकता है कि इस न्यायाधीश को पदोन्नति देने की फाईल राष्ट्रपति नें वापस कर दी थी । वे इस पदोन्नति से सहमत नही थे । लेकिन सर्वोच्च न्यायालय में इन प्रशासनिक कार्यों के लिए जो कमेटी है उसने राष्ट्रपति की आपत्ति से असहमति जताते हुए फिर से इस जज का नाम भेजा है - शुभ्राशु चौधरी का आलेख प्रस्तुत करते हुए सांध्य दैनिक छत्तीसगढ, रायपुर नें लिखा है । सम्पुर्ण लेख छत्तीसगढ समाचार के २७ अप्रेल के अंक में देखा जा सकता है “क्या छत्तीसगढ दोयम दर्जे का राज्य है - शुभ्राशु चौधरी”
ज्ञात हो कि शुभ्राशु चौधरी बी बी सी के पूर्व पत्रकार एवं छत्तीसगढ के एकमात्र अंतरजाल सिटिजन जर्नलिस्ट के प्रयोगधर्मी साईट http://www.cgnet.in/ से जुडे हैं । सीजी नेट मे अनूप साहा के साईट का लेख है
शुभ्राशु चौधरी नें लिखा है “इन दिनों केरल और दिल्ली में छत्तीसगढ की बडी चर्चा है पर आश्चर्य की बात यह है कि जिस छत्तीसगढ को लेकर चर्चा जोरों पर है वह स्वयं खामोश है . . .”
किस्सा है लखनउ उच्च न्यायालय बेंच के न्यायाधीश जगदीश भल्ला का ।
क्या हैं चर्चा -
१. २१ जुलाई २००३ को जस्टिस भल्ला की पत्नी श्रीमती रेणु भल्ला नें नोएडा में ५ लाख रूपये में एक प्लाट खरीदा जिसका बाजार भाव ७.२ करोड रूपये था ।
२. दिल्ली के समीप दादरी में जहां रिलायंस एनर्जी का प्लांट लगने वाला है जिसके विरूद्ध रैली, घरना, प्रदर्शन पूर्व प्रधान मंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व में किया जाना था. इस कार्य को रोकने हेतु रिलायंस एनर्जी के दवारा कार्यालयीन समय के बाद लखनउ बेंच में ७ जुलाई को गैर तारांकित मामले की सुनवाई एक जज के घर में हुई जबकि वह मामला लखनउ बेंच की अधिकारिता में नही आता । देर रात हुए फैसले के जोर पर ही पुलिस नें प्रदर्शनकारी किसानों पर जमकर लाठियां भांजी, वी पी सिंह को भी सभा स्थल पर पहुंचने नही दिया गया । उक्त दमनकारी फैसले में रिलायंस एनर्जी के वकील आरोही भल्ला नें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और वकील आरोही भल्ला जस्टिस जगदीश भल्ला के पुत्र हैं ।
३. जुलाई ०५ में ग्रेटर नोएडा में भू आबंटन की लाटरी में जस्टिस जगदीश भल्ला के बेटे आरोही भल्ला के नाम आबंटन एवं उसके उपरांत उत्तर प्रदेश उच्च न्यायालय के उक्त आबंटन पर रोक लगाने के आदेश को सर्वोच्च न्यायालय नें खारिज कर दिया इस पर भी विवाद हैं जबकि इस आबंटन एवं प्रक्रियाओं में जस्टिस सबरवाल की बहू श्रीमती शीबा सबरवाल का भी नाम है ।
११ जुलाई २००६ को सर्वोच्च न्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश वाई के सबरवाल को प्रख्यात वकील रामजेठमलानी, वर्तमान मुख्य न्यायाधीश बालकृष्णन सहित दो पूर्व केन्द्रीय मंत्रियों की समिति कोजा (कमेटी आन जुडिसियल एकाउंटिबिलिटी) नें जस्टिस जगदीश भल्ला के विरूद्ध गंभीर अनियमितता का आरोप लगाते हुए उन पर महाभियोग चलाने की अपील की थी । छ: माह बाद भी उस अपील पर कोई कार्यवाही नही की गयी तब इस समिति नें जस्टिस जगदीश भल्ला के विरूद्ध एफ आई आर दायर करने की अनुमति की मांग भी की थी ।
तहलका से उपलब्ध जानकारी के अनुसार बताया जाता है कि जस्टिस जगदीश भल्ला के संबंध में सीबीआई से रिपोर्ट भी मंगाई गयी थी जिसके बाद ही राष्ट्रपति नें उनकी फाईल वापस कर दी थी ।
इधर अपने रिटायरमेंट के समय मुख्य न्यायाधीश वाई के सबरवाल नें पत्रकारों द्धारा पूछे गये सवाल के जवाब में जस्टिस जगदीश भल्ला को क्लीन चिट दे दिया था – “जस्टिस भल्ला के खिलाफ लगे आरोपों में कोई दम नही है ।“
अस्तु जस्टिस जगदीश भल्ला को केरल उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश बनाये जाने की कवायद शुरू हो गयी इस बीच केरल के ही एक न्यायाधीश बालकृष्णन जो जस्टिस भल्ला के विरूद्ध शिकायत करने वाली कमेटी कोजा के सदस्य थे, सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश बनाये गये। तदैव जस्टिस जगदीश भल्ला को केरल के बजाय छत्तीसगढ भेजा जाना तय हो गया, अब राष्ट्रपति जी को फाईल पुन: प्रेषित की गयी है जिसमें उन्हे हस्ताक्षर करना ही है यही हमारा संविधान कहता है । ईसी सम्बंध में परंजय गुहा की भी बातें देखिये ।
न्यायाधीशों की कमी व लंबिंत मामलों से जूझते छत्तीसगढ उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश का तबादला केरल कर दिया गया और यहां मुख्य न्यायाधीश का पद रिक्त हो गया सो जस्टिस भल्ला के लिए छत्तीसगढ का रास्ता साफ हो गया ।
डा सुकुमार ओझिकोड, (पूर्व उप कुलपति, कालिकट विश्वविद्यालय, कालम लेखक) देशाभिमानी, सीपीएम का आमुख अखबार में लिखा जिसका अनुवाद शुभ्राशु चौधरी नें बासी में उबाल में लिखा है – “जस्टिस भल्ला को केरल न भेजा जाना एक अच्छा फैसला है । . . . क्या इस देश में दो तरह के प्रदेश हैं यदि जस्टिस भल्ला को केरल न भेजना एक उचित फैसला है तो उन्हे छत्तीसगढ का मुख्य न्यायाधीश कैसे बनाया जा सकता है ।“
संजीव तिवारी जी; आपकी प्रस्तुति वाकई झकझोर देने वाली है.
जवाब देंहटाएंछत्तीसगढ़ या कोई भी राज्य दोयम दर्जे का नहीं है. मुझे पूरा विश्वास है कि भल्ला छत्तीसगढ़ में नहीं सिकेंगे.
यह जस्टिस भल्ला को पिछले दरवाजे से मुख्य न्यायाधीश बनाए जाने की कवायद है जिसका कई समाचार पत्रों ने भी खुलासा किया है. इसका पुरजोर विरोध किया जाना चाहिए.
जवाब देंहटाएंचाहे वाह केंद्र सरकार हो या फ़िर नई दिल्ली में बैठी अन्य उच्च स्तरीय संस्थाएं, ना जानें क्यों इन के मानस में यही बैठा हुआ है कि छत्तीसगढ़ को जो भी दे दें वह बिना किसी प्रतिवाद के ले ही लेगा, चाहे वह अच्छा हो या बुरा। छत्तीसगढ़ बनने के बाद से यहां की राजनीति मे एक शब्द बहुत चला था वह था " छत्तीसगढ़ से सौतेला व्यवहार"। लेकिन क्या न्याय पालिका भी सौतेला व्यवहार कर रही है। जिसे केरल ना भेजा गया उसे छत्तीसगढ़ भेज दो, यह सौतेला व्यवहार नही है तो क्या है।
जवाब देंहटाएंसंजीव भैया,इस बात को चिट्ठे के माध्यम से सबके सामने लाकर आपने यह एक सराहनीय कार्य किया है ।
भल्ला जी के िनयुकि्त के उपर िलखने के िलए शुक्िरया । हम सभी को कलाम साहब के नाम एक सामुिहक पत्र िलखना चािहए । शाॅत रहना नाइॅसाफी होगी ।
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