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छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

रायपुर का नाम बदल कर ‘रैपुर’ किया जाए


जब से शेक्सपियर ने कहा है कि नाम में क्या रखा है! तब से लोग शेक्सपियर के इस कथन पर समय-समय पर बहस करते रहते हैं। अधिकांश लोगों का मत है कि नाम में बहुत कुछ रखा है, नाम से ही व्यक्ति या स्थान की पहचान है। हमारे बहुत से मित्रों का यह चाहना हैं कि अन्य नगरों व राज्यों के बदले जा रहे नामों के बाद अब हमारे प्रदेश की राजधानी रायपुर का नाम भी बदला जाए।

भारत में नगरों के नामों को बदलने का आगाज महानगर मुम्बई की जनता ने किया था। मुम्बई का नामकरण स्थानीय देवी मुंबा के नाम पर एवं स्थानीय मराठी भाषा के आधार पर किया गया है। कोलकाता का नाम देवी काली और स्थानीय बाग्ला भाषा के आधार पर बदला गया। मद्रास को भी स्थानीय तमिल भाषा के कारण चेन्नई नाम से बदल दिया गया। बैंगलोर को भी स्थानीय भाषा के अनुरूप बेंगलुरू कर दिया गया, त्रिवेंद्रम को तिरुवनंतपुरम एवं पॉन्डिचेरी अब पुडुचेरी हो गया है। इसके साथ ही देश के विभिन्न नगरों के नाम बदले जाने का प्रस्ताव भी है जिसमें देल्ही को दिल्ली या इंद्रप्रस्थ, अहमदाबाद को कर्णावती, इलाहाबाद को प्रयाग या तीर्थराज प्रयाग, पटना को पाटलिपुत्र, मुगलसराय को दीनदयालनगर, औरंगाबाद को सांभाजीनगर, लखनऊ को लक्ष्मणपुरी या लखनपुर या लखनावती, ओस्मानाबाद को धराशिव, फैजाबाद को साकेत, मध्य प्रदेश में जबलपुर का जाबालिपुरम, भोपाल का भोजपाल, उज्जैन का उज्जयिनी या अवन्तिका, अवंतिपुर, इंदौर का इंदुरधार या धारा नगरी, महेश्वर का माहिष्मति, मंदसौर का दशपुर, अमरकंटक का आम्रकुट, माडू का माडवगढ़, विदिशा का भिलसा या देश नगर, ओंकारेश्वर का माधाता और ग्वालियर का गोपगिरिया करने का प्रस्ताव है। इन नगरों के निवासियों नें अपनी दलीलों की तथ्यात्मक प्रस्तुति शासन के समक्ष रखी थी तभी शासन नें बरसों से चलते नामों को बदलने का प्रस्ताव मंजूर किया था।

रायपुर को ‘रइपुर’ या ‘रैपुर’ करने की हमारी मांग के पीछे हमारी भाषा की ताकत है कि हम इसे तब से ‘रइपुर’ या ‘रैपुर’ ही कहते आ रहे हैं जब से इस नगर को बसाया गया। ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार दक्षिण कोसल की इस बस्ती की स्थापना लगभग सन् 1405 में रतनपुर के हैहय राजवंश के लहुरी शाखा के राय ब्रह्मदेव ने की थी। राय ब्रम्‍हदेव ने इसे राजधानी बनाया, राय ब्रम्हदेव की राजधानी के कारण इस नगर का नाम पड़ा ‘राय का पुर - रायपुर’। राय ब्रम्हदेव के यहां राजधानी बनाने के पूर्व रायपुर के पास कोई बस्ती रही हो, इस बात के प्रमाण उपलब्ध नहीं है। ऐतिहासिक व पुरातात्विक तथ्यों के अतिरिक्त प्रो. डी.एस. मिश्र की कृति ‘बेमेतरा से बैरन बाजार’ से रायपुर के क्रमिक विकास को समझा जा सकता है।

देश में स्‍थानीय भाषा के आधार पर नगरों के नाम बदले गए है इस लिए हम और हमारे मित्र स्थानीय भाषा की प्राथमिकता के आधार पर रायपुर को ‘रइपुर’ (‘रैपुर’) व नया रायपुर को ‘नवा रइपुर’ किये जाने की मांग करते हैं। आप इस संबंध में अपना सुझाव हमें टिप्प णियों के माध्यरम से अवश्य देवें ताकि हम अग्रिम कार्यवाही हेतु अग्रजों से संपर्क कर रणनीति तय कर सकें।

संजीव तिवारी

उपर दिया गया चित्र - मित्र प्रमोद अचिन्‍त के द्वारा नाम बदलने के लिए मांग उठाने की याद दिलाने के लिए भेजा गया एसएमएस

टिप्पणियाँ

  1. रायपुर के नाव ला भले रइपुर, रैपुर धर दव, फ़ेर नवा राजधानी के नाम अभनपुर होना चाही :)

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  2. इस बात पर विवाद की महती संभावना है। जब बुद्ध और तुलसीदास ने उनके समय में प्रचलित बोली और शब्दों का उपयोग किया। जब एक शब्द अपना दृश्य बना लेता है तो दूसरा शब्द उस दृश्य को वैसा नहीं बना पाता। जो स्वीकार्य लम्बे समय में अपनी जगह जमाता है वैसा दूसरा नहीं। जैसा आगरा का नाम बदलकर रखा गया था जो अब किसी को भी याद नहीं....

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  3. रायपुर ही रहन दे एला भाई अउ फ़ेर नामकरण करनाच हे तो भ्रष्टाचारधानी करवा दे

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  4. नाम से एक सम्बन्ध स्थापित हो जाता है।

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  5. रायपुर ही सठिक लग रहा है !

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  6. इसके बाद सारे घर के बदल डालियेगा जैसे जगदलपुर को जगदुगुडा :)

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  7. भाई संजय तिवारी को जन्मदिन की ढेर सारी बधाइयाँ .

    आज ग्राम चौपाल www.ashokbajaj.com में आपके जन्मदिन पर फोटोग्राफी का विशेष उपहार .

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  8. नाम बदलने से काम बदल जाएं तो सब कुछ चलेगा

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  9. इस विषय पर कोई जानकारी नहीं ... पर रायपुर से ही सब परिचित हैं .. मुंबई को आज भी लोंग बौम्बे या बम्बई कहते हैं

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  10. आप ही ने लिखा है कि नगर का नाम राय ब्रह्मदेव के कारण रायपुर पड़ा। फिर रायपुर ही रहे तो क्या परेशानी है? ऐसे लोगों की भी संख्या कम नहीं जो इसे 'रायपुर' ही कहते हैं। नाम परिवर्तन से क्या मिलेगा?
    -हितेन्द्र

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  11. रायपुर के इतिहास के बारे में अच्‍छी जानकारी दी है आपने।

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  12. रायपुर के नाम हा सहीं हे गा, काबर के राय का पुर होवय के सेती रायपुरे हा बने लागथे । अब रायपुर ला रैपुर नइते रयपुर कबो तो सबो जगा के नाम ला घलो निमारे ल परही गुंण्डरदेही गुररदही अउ बालोद के नाम ह बलउद हो जाही।

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