संपूर्ण विश्व में हिन्दी ब्लॉगों की लोकप्रियता दिन ब दिन बढ़ती जा रही है. अन्य प्रदेशों की भांति छत्तीसगढ़ में भी हिन्दी ब्लॉगिंग बहुत लोकप्रिय हो चुकी है. प्रदेश में सक्रिय ब्लॉग लेखकों एवं अब्लॉगर पाठकों की संख्या निरंतर बढ़ रही है। इस विधा को प्रोत्साहन देने के लिए छत्तीसगढ़ के प्रथम हिन्दी ब्लागर जयप्रकाश मानस द्वारा पिछले वर्षों से पुरस्कार व सम्मान प्रदान किया जा रहा है।
जयप्रकाश मानस जी द्वारा संपादित राज्य की पहली वेब पत्रिका तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित, साहित्य, संस्कृति, विचार और भाषा की मासिक पोर्टल सृजनगाथा डॉट कॉम (www.srijangatha.com) के चार वर्ष पूर्ण होने पर चौंथे सृजनगाथा व्याख्यानमाला का आयोजन 6 जुलाई, 2010 दिन मंगलवार को स्थानीय प्रेस क्लब, रायपुर में दोपहर 3 बजे किया गया है ।
इस अवसर पर चौंथे सृजनगाथा डॉट कॉम सम्मान से श्री सनत चतुर्वेदी (पत्रकारिता), श्री नरेन्द्र बंगाले (फोटो पत्रकारिता), श्री संतोष जैन (इलेक्ट्रानिक मीडिया), श्री संदीप अखिल (रेडियो पत्रकारिता), श्री अशोक शर्मा (वेब-विशेषज्ञ), श्री संजीत त्रिपाठी (हिन्दी ब्लॉगिंग), श्री त्र्यम्बक शर्मा (कार्टून) और श्री कैलाश वनवासी, दुर्ग (कथा लेखन) श्री देवांशु पाल, बिलासपुर (लघुपत्रिका ) को सम्मानित किया जायेगा।
फरवरी 2007 से नियमित हिन्दी ब्लॉग में सक्रिय आवारा बंजारा वाले संजीत त्रिपाठी हिन्दी ब्लॉगरों के बीच जाना पहचाना नाम है। सहज सरल व्यक्तित्व के धनी संजीत त्रिपाठी अपने प्रोफाईल में स्वयं कहते हैं 'एक आम भारतीय, जिसकी योग्यता भी सिर्फ़ यही है कि वह एक आम भारतीय है जिसे यह नहीं मालूम कि आम से ख़ास बनने के लिए क्या किया जाए फ़िर भी वह आम से ख़ास बनने की कोशिश करता ही रहता है…।'
अपने एक पोस्ट में वे कहते हैं -
नाम मेरा संजीत त्रिपाठी है, जन्मा रायपुर, छत्तीसगढ़ मे। यहीं पला-बढ़ा,पढ़ा-लिखा और एक आम भारतीय की तरह जिस शहर में जन्मा और पला-बढ़ा वहीं ज़िन्दगी गुज़र रही है।
पैदा हुआ मैं एक स्वतंत्रता सेनानी परिवार में, दादा व पिता जी दोनो ही स्वतंत्रता सेनानी थे, दादाजी को देखा भी नही पर राष्ट्र और राष्ट्रीयता की बातें एक तरह से मुझे घुट्टी में ही मिली। घर में पिता व बड़े भाई साहब को पढ़ने का शौक था सो किताबों से अपनी भी दोस्ती बचपन से ही हो गई। आज भी पढ़ना ही ज्यादा होता है, लिखना बहुत कम।
मेरे बारे मे जितना कुछ मैं कह सकता हूं उस से ज्यादा और सही तो मुझसे जुड़े लोग ही कह पायेंगे…समझ नही पाता कि अपने बारे में क्या कहूं क्योंकि अपने आप को जानने समझने की प्रक्रिया जारी ही है…निरंतर फ़िर भी…
भीड़ मे रहकर भी भीड़ से अलग रहना मुझे पसंद है……कभी-कभी सोचता हूं कि मैं जुदा हुं दुसरों से,पर मेरे आसपास का ताना-बाना जल्द ही मुझे इस बात का एहसास करवा देता है कि नहीं, मैं दुसरों से भिन्न नहीं बल्कि उनमें से ही एक हूं…!
और हां,अक्सर जब कभी अपने अंदर कुछ उमड़ता-घुमड़ता हुआ सा लगता है,लगता है कि अंदर दिलो-दिमाग में कुछ है जिसे बाहर आना चाहिए,तब पेन अपने-आप कागज़ पर चलने लगता है और यही बात मुझे एहसास दिलाती है कि मैं कभी-कभी कुछ लिख लेता हूं…
"शब्द और मैं"
शब्दों का परिचय,
जैसे आत्मपरिचय…
मेरे शब्द!
मात्र शब्द नही हूं,
उनमें मैं स्वयं विराजता हूं,
बसता हूं
मैं ही अपना शब्द हूं,
शब्द ही मैं हूं !
निःसन्देह !
मैं अपने शब्द का पर्याय हूं,
मेरे शब्दों की सार्थकता पर लगा प्रश्नचिन्ह,
मेरे अस्तित्व को नकारता है…
मेरे अस्तित्व की तलाश,
मानो अर्थ की ही खोज है॥
अपने एक पोस्ट में वे कहते हैं -
नाम मेरा संजीत त्रिपाठी है, जन्मा रायपुर, छत्तीसगढ़ मे। यहीं पला-बढ़ा,पढ़ा-लिखा और एक आम भारतीय की तरह जिस शहर में जन्मा और पला-बढ़ा वहीं ज़िन्दगी गुज़र रही है।
पैदा हुआ मैं एक स्वतंत्रता सेनानी परिवार में, दादा व पिता जी दोनो ही स्वतंत्रता सेनानी थे, दादाजी को देखा भी नही पर राष्ट्र और राष्ट्रीयता की बातें एक तरह से मुझे घुट्टी में ही मिली। घर में पिता व बड़े भाई साहब को पढ़ने का शौक था सो किताबों से अपनी भी दोस्ती बचपन से ही हो गई। आज भी पढ़ना ही ज्यादा होता है, लिखना बहुत कम।
मेरे बारे मे जितना कुछ मैं कह सकता हूं उस से ज्यादा और सही तो मुझसे जुड़े लोग ही कह पायेंगे…समझ नही पाता कि अपने बारे में क्या कहूं क्योंकि अपने आप को जानने समझने की प्रक्रिया जारी ही है…निरंतर फ़िर भी…
भीड़ मे रहकर भी भीड़ से अलग रहना मुझे पसंद है……कभी-कभी सोचता हूं कि मैं जुदा हुं दुसरों से,पर मेरे आसपास का ताना-बाना जल्द ही मुझे इस बात का एहसास करवा देता है कि नहीं, मैं दुसरों से भिन्न नहीं बल्कि उनमें से ही एक हूं…!
और हां,अक्सर जब कभी अपने अंदर कुछ उमड़ता-घुमड़ता हुआ सा लगता है,लगता है कि अंदर दिलो-दिमाग में कुछ है जिसे बाहर आना चाहिए,तब पेन अपने-आप कागज़ पर चलने लगता है और यही बात मुझे एहसास दिलाती है कि मैं कभी-कभी कुछ लिख लेता हूं…
"शब्द और मैं"
शब्दों का परिचय,
जैसे आत्मपरिचय…
मेरे शब्द!
मात्र शब्द नही हूं,
उनमें मैं स्वयं विराजता हूं,
बसता हूं
मैं ही अपना शब्द हूं,
शब्द ही मैं हूं !
निःसन्देह !
मैं अपने शब्द का पर्याय हूं,
मेरे शब्दों की सार्थकता पर लगा प्रश्नचिन्ह,
मेरे अस्तित्व को नकारता है…
मेरे अस्तित्व की तलाश,
मानो अर्थ की ही खोज है॥
संजीत त्रिपाठी भाई को सृजन सम्मान के लिए 'काबा भर परेम अउ गाड़ा गाड़ा बधई.'
सप्रेम शुभकामनांए .......
संजीत को बहुत बहुत बधाई.
जवाब देंहटाएंवाह, बधाई!
जवाब देंहटाएंहमारी ओर से भी संजीत जी को बहुत बहुत बधाई !
जवाब देंहटाएंसंजीत भाई को बहुत बहुत बधाई!
जवाब देंहटाएंवाह, संजीत जी को हमारी बहुत बहुत बधाई.
जवाब देंहटाएं- विजय तिवारी 'किसलय '
बधाई हो संजीत जी
जवाब देंहटाएंसंजीत के साथ जानकारी देने के लिए आपको भी बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई !!
जवाब देंहटाएंसंजीत भाई को बहुत बहुत बधाई.
जवाब देंहटाएंसंजीत भइया ल कोपरा कोपरा पर्रा पर्रा बधाई!
जवाब देंहटाएंसंजीत जी को ढेरों शुभकामनाएं....
जवाब देंहटाएंसंजीत को बहुत बहुत बधाई!!
जवाब देंहटाएंसंजीत अपना ही बंदा है... बहुत-बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंयह जानकारी मुझे कल ही पुलिस महानिदेशक विश्वरंजन जी के करीबी समझे जाने वाले देश के प्रसिद्ध साहित्यकार जयप्रकाश मानस साहब ने दी है।
संजीत भाई को ढेरों मुबारक बाद!!.
जवाब देंहटाएंहमज़बान की नयी पोस्ट पढ़ें.
बहुत बहुत बधाई संजीत जी को
जवाब देंहटाएंसंजीत भाई को बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंसंजीव जी क्या कहने साहब। मेरी भी बधाई स्वीकार कर लीजिए। आप यूं ही तरक्की के पथ पर अग्रसर रहें, यही दुआ है। एक बार फिर बधाई।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद पंकज भाई, आपकी बधाई संजीत त्रिपाठी जी को हस्तांतरित करता हूँ.
जवाब देंहटाएंबज में प्राप्त टिप्पणी -
जवाब देंहटाएं1. मेरी भी शुभकामनाएं : देने और लेने वालों को।
अविनाश वाचस्पति
2. बधाई ........
सतीश भिलाई
बहुत-बहुत बधाई संजीत जी को, २००७ में हम भी जब ब्लॉगिंग की दुनिया में आये थे आवारा-बंजारा को बहुत पढ़ा था। आज भी उनका लेखन काबिले तारीफ़ है।
जवाब देंहटाएंबधाई हो । बहुत अच्छी कविता ।
जवाब देंहटाएंअतिसुन्दर।
जवाब देंहटाएंमैं समझ नहीं पाया राजकुमार सोनी जी की टिप्पणी से कि डीजीपी विश्वरंजन जी के करीबी शब्द से उनका क्या आशय है ? मैं विश्वरंजन साहब के बग़ैर भी जयप्रकाश मानस हूँ । मानस रहूँगा । और सच तो यह है कि मैं डीजीपी से नहीं सिर्फ़ विश्वरंजन जी जैसे गंभीर इंसान और संवेदनशील साहित्यकार के करीब हूँ । वैसे काड़ी करना सोनी जी की आदत है... चलता रहता है । संजीत को तहेदिल से बधाई...
जवाब देंहटाएंसंजीत त्रिपाठी ला गाड़ा गाड़ा बधाई,सृजनगाथा के जयप्रकाश भाई ला घलो गाड़ा-गाड़ा बधाई।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आप सभी का, स्नेह बनाएं रखें.
जवाब देंहटाएं