स्व. श्री मोतीलाल त्रिपाठी जी का जन्म 24 जुलाई 1923 को छत्तीसगढ के एक छोटे से ग्राम धमनी में हुआ । इनके पिता स्व . श्री प्यारेलाल त्रिपाठी सन् 1930 के स्वतंत्रता आंन्दोलन में पं.सुन्दरलाल शर्मा व नंदकुमार दानी जी के साथ अपनी सक्रिय भूमिका निभा रहे थे । बालक मोतीलाल उस अवधि में अपनी प्राथमिक शिक्षा ग्राम पलारी में ले रहे थे तभी गांधी जी के स्वागत का अवसर इन्हें प्राप्त हो गया था । प्राथमिक शिक्षा के बाद माता श्रीमति जामाबाई त्रिपाठी एवं स्वतंत्रता संग्राम के कर्मठ सिपाही पिता प्यारेलाल का संस्कार लिये बालक मोतीलाल हाईस्कूल की शिक्षा लेने सेंटपाल हाईस्कूल रायपुर आ गए । इस अवधि में इनके पिता छत्तीसगढ के स्वाधीनता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभा रहे थे जिसके कारण किशोर मोतीलाल के मन में भी देश के लिए कुछ कर गुजरने का जजबा धीरे धीरे जागृत होने लगा था ।
पिता के राहों में चलते हुए मोतीलाल जी के हृदय में गांधी जी के दर्शन के बाद से सुसुप्त देश प्रेम की चिंगारी 1936 में फूट कर बाहर आ निकली जब 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाने का आहवान पं.नेहरू और सरदार पटेल नें किया और युवा छात्रों के दल का नेतृत्व् करते हुए युवा मातीलाल नें रायपुर के गलियों में शानदार जुलूस लिकाला । अपनी कुशल नेतृत्व क्षमता से श्री त्रिपाठी जी युवाओं के दिलों पर छा गए । इसके बाद से गांधी जी के सत्याग्रह का झंडा इन्होंनें थाम लिया । सन् 1939 के प्रथम विश्वयुद्ध के समय अंग्रेजों द्वारा युद्ध में सहयोग करने के आहवान को गांधी जी नें ठुकरा दिया और मोतीलाल जी नें गांधी जी के इस विरोध को पूरे छत्तीगसगढ में फैलाने के लिए पैदल यात्रायें की और उनका संदेश जन जन में पहुचाया इस पदयात्रा के कारण छत्तीसगढ में आंदोलन को संगठनात्मक स्वरूप प्राप्त हुआ ।
देश में 11 फरवरी 1941 को गांधी जी द्वारा सत्याग्रह आंदोलन आरंभ कर दिया गया, इस आंदोलन के छत्तीसगढ में नेतृत्व के लिए एकमात्र कर्मठ सत्यायग्रही युवा मोतीलाल को चुना गया । सत्याग्रह आंदोलन का नेतृत्व सम्हालने के बाद मोतीलाल जी नें अपने नेटवर्क को फैलाते हुए छत्तीसगढ में इस आंदोलन का अलख गांव गांव में जगा दिया । हजारों की संख्या में सत्याग्रहियों का हुजूम अंग्रेजी हूकूमत के खिलाफ मौन प्रदर्शन करने लगे, फलत: इनके साथियों के साथ इन्हें अंग्रेजी सरकार के द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया और 2 अप्रैल 1941 को नागपुर जेल भेज दिया गया । 5 दिसम्बर 1941 को गांधी जी एवं अंग्रेजों के मध्य हुए एक समझौते के तहत् राजनैतिक बंदियों को आजाद कर दिया गया तब मोतीलाल जी भी नागपुर से रायपुर वापस आकर सत्याग्रह एवं स्वदेशी आंदोलन व खादी के प्रचार प्रसार में जुट गए । कुछ दिन रायपुर में रह कर वे खादी वस्त्र भंडार नरसिंहपुर चले गए और खादी की सेवा देश सेवा की भांति करने लगे ।
9 अगस्त 1942 को भारत छोडो आंदोलन की रण भेरी बजने लगी, स्वातंत्रता संग्राम सेनानी अंग्रेजों को भारत से उखाड फेंकने के लिए जगह जगह रैली व सत्याग्रह करने लगे । स्वाभाविक तौर पर त्रिपाठी जी का देश प्रेम नरसिंहपुर में भी अंग्रेजों के आंखों में खटकने लगा और उन्हें गिरफ्तार करने का फरमान जारी कर दिया गया । इस गिरफ्तारी से बचने एवं भारत छोडो आंदोलन को हवा देने के उद्देश्य से वे फरारी में रायपुर आ गए । रायपुर में रह कर वे देश प्रेम, खादी प्रसार व भारत छोडो आंदोलन संबंधी अपनी वैचारिक अभिव्यक्ति को परचा लिख लिख कर परचे के माध्याम से जनता तक पहुचाने लगे । 26 जनवरी सन् 1943 को वे रायपुर में परचा बांटते हुए पकड लिये गये और इन्हें छ: माह की सजा हुई, इन्हें बिलासपुर जेल भेज दिया गया जहां से वे 14 जुलाई 1943 को छूटे ।
खादी एवं गांधी को अपना सर्वस्वा मान चुके श्री त्रिपाठी जी स्वतंत्रता प्राप्ति तक एवं उसके बाद भी रायपुर के विचारकों के अग्र पंक्ति में रहकर गांधी जी की विचारधारा को पुष्पित व पल्ल्वित करते रहे । स्वतंत्रता प्राप्त के बाद इनकी नेतृत्व क्षमता व सहृदयता के कारण ये स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का नेतृत्व छत्तीसगढ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी संगठन के महामंत्री के रूप में करते रहे और उनके सुख दुख में सदैव साथ रहे । साहित्तिक प्रतिभा इनमें आरंभ से ही थी जिसके कारण वे प्रदेश के साहित्तिक आयोजनों में जीवन पर्यन्तत सहभागी बनते रहे । इनकी लेखन क्षमता नें तत्कालीन प्रदेश के एकमात्र समाचार पत्र ‘महाकोशल’ के सह संपादक के पद को गरिमामय रूप में सुशोभित भी किया और इन्होंनें पत्रकारिता के माध्यम से जनता के प्रति अपने कर्तव्यों को बखूबी निभाया । गांधी जी की सत्य, अहिंसा, कुष्ठ सेवा व खादी के ध्वज वाहक व सच्चे् अर्थों में मानवतावादी स्व. श्री मोतीलाल त्रिपाठी जी को हमारा प्रणाम ।
(स्व. श्री मोतीलाल त्रिपाठी जी हमारे हिन्दी ब्लागर साथी संजीत त्रिपाठी, आवारा बंजारा के पिता थे । संजीत जी नें स्वयं अपने एक पोस्ट में उनको श्रद्धासुमन अर्पित किया है देखें - यहां)
संजीव तिवारी
"Hatts Off to Lt SH Moteelal jee, and thanks to the writer to make this article availabe for us to read and know about him" Great efforts.
जवाब देंहटाएंRegards
badhai sanju,us itihaas ko yaad rakhne ke liye jo humare khushhaal wartamaan ki neev hai.mera bhi unse sampark tha aur sanjeet to mer chhota bhai hi hai,aaj agar main blog likh raha hun to sirf aur sirf sanjeet ki wajah se.ek baar fir aapko bahut bahut badhai ek nek kaam ke liye
जवाब देंहटाएंमेरा सादर नमन स्वीकार करें। संजीत भाई में जो उच्च संस्कार उतरे हैं वह इन महान आत्मा के कारण ही हैं…
जवाब देंहटाएंस्व. श्री मोतीलाल त्रिपाठी जी को मैं भी श्रद्धा के सुमन अर्पित करती हूँ। संजीत जी सचमुच में बहुत भाग्यशाली हैं जो ऐसे पिता पाये। आज मैं देवनागरी में लिख पा रही हूँ तो सिर्फ़ उनके कारण।
जवाब देंहटाएंश्रद्धांजली.
जवाब देंहटाएंस्व. श्री मोतीलाल त्रिपाठी जी को मेरी श्रद्धांजली. संजीत हमारे साथी हैं, इस बात पर हमें गर्व है.
जवाब देंहटाएंसंजीत ने एकाध बार अपने पिताजी के बारे में चर्चा जरूर की लेकिन वे इतनी संजीदगी से स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े थे यह बात पता नहीं थी.
जवाब देंहटाएंवैसे इस तरह की प्रस्तुति का एक महत्व यह भी है स्वतंत्रता संग्राम में ऐसे गुमनाम हो चुके लोगों के बारे में भी जानकारी मिलती है.
उनके जज्बे और कार्य को सलाम और आपकी प्रस्तुति के लिए धन्यवाद.
पित्र तुल्य त्रिपाठी जी को मेरी हार्दिक श्रद्धांजलि एवं नमन. संजीत जी से बहुत कुछ सुना है आपके बारे में. सही दिन याद दिलाने के लिए धन्यवाद..
जवाब देंहटाएंस्वर्गीय मोतीलाल जी को भावभीनी सादर श्रद्धांजलि ।
जवाब देंहटाएंश्रधांजलि श्री मोतीलाल जी को, और आपका भी आभार संजीव भाई...
जवाब देंहटाएंaati uttam lekh.
जवाब देंहटाएंVery nice to know about him. My regards.
जवाब देंहटाएंसंग्रहणीय पोस्ट । पूज्यवर की स्मृतियों को नमन् ।
जवाब देंहटाएंसंजीत इस थाती को अपने व्यक्तित्व में संजोते रहेंगे ऐसा विश्वास है , साथ ही उसे अपने परिवेश में भी प्रवाहित करते रहें यह कामना है।
शुक्रिया....
सर्वप्रथम उन महामना को मेरा प्रणाम
जवाब देंहटाएंआपने अत्यंत प्रशंश्नीय कार्य किया है !!
आपकी यही गहन संवेदनशीलता आपको भीड मे भी अलग पहचान देती है ! संजीत जी के साथ हमे भी ऐसे महान छ्त्तीसगढी सियान पर गर्व है !!
आपने संजीत के पिताजी के बारे में यह विस्तार बताया, उसके लिये बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंआदरणीय मोतीलाल त्रिपाठी जी को श्रद्धांजलि।
स्वतंत्रता संग्राम के सिपाही त्रिपाटी जी को श्रद्धा सुमन...
जवाब देंहटाएंतिवारी जी, इस दिन इस प्रस्तुति को हमसे बाँटने का आभार..
संजीत की बुरी आदत यह है कि काम की बात बताना भूल जाते हैं। इतना अरसा बीता उनसे बात करते हुए मगर पता नहीं था कि उनके पिता ऐसे स्वतंत्रता सेनानी थे। अब समझ में आता है उनमें जो दृड़ता दिखती है उसका स्रोत कहाँ है। ऐसी पुण्यात्मा को नमन।
जवाब देंहटाएंशुभम।
आप सभी के स्नेह के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंकोशिश यही होती है कि स्वर्गीय पिता की छवि के दशांश तक भी पहुंच सकूं तो बहुत है।
श्री त्रिपाठी को नमन. संजीत की पोस्ट में उन्होंने अपने पिताजी के बारे में बहुत अच्छे तरह से बताया था. और आज आपने. पढ़कर बहुत अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंस्वतंत्रता सग्राम सेनानी स्व . श्री मोतीलाल त्रिपाठी जी को मेरी हार्दिक श्रंद्धाजंली। इस लेख को हम तक लाने के लिए आपका धन्यवाद। संजीत जी भाग्यवान हैं जो उन्हें इतनी बढ़िया विरासत मिली।
जवाब देंहटाएंघुघूतीबासूती
bahut dhanyavaad jaankaari ke liye aur hame mahaan hasti ke baare mein batane ke liye..
जवाब देंहटाएंswargiya tripathi ji ko meri shradhanjali aur shat shat naman
स्व. श्री मोतीलाल त्रिपाठी जी को मेरी श्रद्धांजली.
जवाब देंहटाएंsahitya geet kavitaa gazal tho har koi liktha hai magar apne sahar ki sanskriti ko explain karna it is very good
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