जनवरी 2008 में हमने अपने आरंभ में किस्सानुमा छत्तीसगढ़ के इतिहास के संबंध में संक्षिप्त जानकारी की कड़ी प्रस्तुत की थी तब छत्तीसगढ़ के इतिहास पर कुछ पुस्तकों का अध्ययन किया था। हमारी रूचि साहित्य में है इस कारण इतिहास के साहित्य पक्ष पर हमारा ध्यान केन्द्रित रहा। तीन कडियों के सिरीज में हमने एक किस्सा सुनाया था उसमें कवि गोपाल मिश्र और ग्रंथ खूब तमाशा का जिक्र आया था। तब से हम कवि गोपाल मिश्र के संबंध में कुछ और जानने और आप लोगों को जनाने के उद्धम में थे। पहले पुन: उस किस्से को याद करते हुए आगे बढ़ते हैं।
कलचुरी नरेश राजसिंह का कोई औलाद नहीं था राजा एवं उसकी महारानी इसके लिए सदैव चिंतित रहते थे। मॉं बनने की स्वाभविक स्त्रियोचित गुण के कारण महारानी राजा की अनुमति के बगैर राज्य के विद्वान एवं सौंदर्य से परिपूर्ण ब्राह्मण दीवान से नियोग के द्वारा गर्भवती हो गई और एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नामकरण कुंवर विश्वनाथ हुआ, समयानुसार कुंवर का विवाह रीवां की राजकुमारी से किया गया।
राजा राजसिंह को दासियों के द्वारा बहुत दिनो बाद ज्ञात हुआ कि विश्वनाथ नियोग से उत्पन्न ब्राह्मण दीवान का पुत्र है, तो राजा अपने आप को संयत नहीं रख सका। ब्राह्मण दीवान को सार्वजनिक रूप से इस कार्य के लिए दण्ड देने का मतलब था राजा की नपुंसकता को आम करना। नपुंसकता को स्वाभाविक तौर पर स्वीकार न कर पाने की पुरूषोचित द्वेष से जलते राजा राजसिंह नें युक्ति निकाली और ब्राह्मण पर राजद्रोह का आरोप लगा दिया, उसके घर को तोप से उडा दिया गया, ब्राह्मण भाग गया।
दीवान जैसे महत्वपूर्ण ओहदे पर लगे कलंक पर कोसल में अशांति छा गई। ब्राह्मण दीवान एवं महारानी के प्रति राजा की वैमनुष्यता की भावना नें राजधानी में खूब तमाशा करवाया। इस पर छत्तीसगढ़ के आदि कवि गोपाल मिश्र नें एक किताब लिखा जिसका शीर्षक भी ‘खूब तमाशा’ ही था। इस तमाशे से व्यथित कुंवर विश्वनाथ नें आत्महत्या कर ली, वृद्ध राजा राजसिंह की मृत्यु भी शीध्र हो गई।
हमने कवि गोपाल मिश्र और खूब तमाशा के संबंध में स्थानीय और नेट के स्तर पर और जानकारी प्राप्त करनी चाही तो इंटरनेट में विकीपीडिया से ज्ञात हुआ कि इनके उपलब्ध ग्रंथ हैं - 1. खूब तमाशा, 2. जैमिनी अश्वमेघ , 3. सुदामा चरित, 4. भक्ति चिन्तामणि, 5. रामप्रताप। घासीदास विश्वविद्यालय के द्वारा इंटरनेट के लिए तैयार किए गए पेजों में भी कवि गोपाल मिश्र के संबंध में कोई जानकारी नहीं मिल पाई। स्थानीय तौर पर कुछ किताबों में कवि गोपाल मिश्र के संबंध में जो जानकारी प्राप्त हुई उसे अगली पोस्ट में आप सबके लिए प्रस्तुत करूंगा। आपके पास कवि गोपाल मिश्र एवं उनकी कृतियों के संबंध में कोई जानकारी हो तो कृपया हमसे टिप्पणियों के माध्यम से शेयर करने की कृपा करें।
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कवि गोपाल मिश्र : हिन्दी काव्य परंपरा की दृष्टि से छत्तीसगढ़ के वाल्मीकि
संजीव तिवारी
सन्जीव अभी सिविक सेन्टर मा किताब के मेला लगे हे। उंहा मै गे त नई आँव एको पइत तैं जाके देख लेते।
जवाब देंहटाएंjankari ke liye to aapko follow karte hain janab. main to aap par hi aashrit rahunga aur agale lekh ka intjar karta rahunga.
जवाब देंहटाएंकेवल नियोग था या विवाहेतर प्रेम ? रहस्य से पर्दा हटाइये ! इस ससुरे सेक्स ने दुनिया में बहुत उलट पलट की है ! जिंदगियां बनाई भी...उजाड़ी भी !
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लिखा है आपने! उम्दा प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंइतिहास के पन्नों में डूबो रहे हैं आप तो,
जवाब देंहटाएंप्रतीक्षा रहेगी अगली कड़ी की।
..प्रभावशाली !!!
जवाब देंहटाएंऐतिहासिक लेख...
जवाब देंहटाएंहा हा हा
हमारी रूचि साहित्य में है इस कारण इतिहास के साहित्य इस रूचि के लिए ब्लॉग जगत और नेट प्रेमी आपके आभारी है
जवाब देंहटाएंपक्ष पर हमारा ध्यान केन्द्रित रहा।
कवि गोपाल मिश्र की खूब तमाशा को लेकर आपका आलेख दो क़िस्तों का पढ़ा। ऐसा लगता है कि यदि कवि गोपाल मिश्र की कृति खूब तमाशा यदि उपलब्ध कराया जाए तो यह क्रम पूरा लगेगा। खूब तमाशा की अनुपस्थिति में भी यह आलेख उत्तम है।
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