तथाकथित मानवाधिकार वादियों बस्‍तर के आदिवासियों को मुहरा बनाना बंद करो

पिछले दिनों छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के गलियारों से एवं समाचार पत्रों से प्राप्‍त जानकारी छत्‍तीसगढ़ के लिए तो चौंकाने वाला नहीं है किन्‍तु यह उन तथाकथित वनवासियों के शुभचिंतकों के लिए अवश्‍य चौंकाने वाला है. इस समाचार से यह स्‍पष्‍ट हो गया है कि तथाकथित मानवाधिकार वादी बस्‍तर के आदिवासियों को मुहरा बनाकर किस प्रकार से सरकार के विरूद्ध खेल खेल रहे हैं. इस समाचार नें उन सभी याचिकाओं की पोल खोल दी है जो तथाकथित मानवाधिकार वादियों के द्वारा हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक विभिन्‍न न्‍यायालयों में दायर की गई हैं. यह समाचार छत्‍तीसगढ़ के विभिन्‍न समाचार पत्रों में प्रकाशित हुआ है जिसे हमने अपने ब्‍लॉग जूनियर कौंसिल में भी प्रकाशित किया है. समाचार यह है -

नक्‍सल क्षेत्र दंतेवाड़ा जिले के एर्राबोर थाने का मामला

छत्तीसगढ हाईकोर्ट के १० वर्षों के न्यायालयीन इतिहास में यह पहला मामला है जब याचिकाकर्ता ने कोर्ट में उपस्थित होकर किसी तरह की याचिका दायर करने से ही इनकार कर दिया। जिस याचिका पर हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच में सुनवाई हो रही है उसमें एर्राबोर पुलिस पर आरोप लगाया है कि उसके पिता व बहन को गायब कर दिया गया है। पिछले सात महीने से इस याचिका पर डिवीजन बेंच में सुनवाई चल रही थी।

  • कोर्ट में आया अनुवादक

सिन्ना चूंकि हिंदी न तो बोल पाता है और न ही समझ पाता है। वह गोडी बोली बोलता और समझता है। इसे देखते हुए कोर्ट ने अनुवादक की व्यवस्था करने के निर्देश शासन को दिए थे। लिहाजा, अनुवादक के माध्यम से कोर्ट ने अपना सवाल किया। इस दौरान उन्होंने इस तरह का खुलासा किया।
यह चर्चित मामला दंतेवाड़ा जिले के एर्राबोर थाने की लेदरा ग्राम पंचायत के ग्राम दरभागुड़ा का है। यहां के निवासी विंगोसिन्ना ने १८ सितंबर २००९ को अपने वकील के जरिए बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की थी। याचिका में पुलिस पर आरोप लगाते हुए कहा था कि अप्रैल-मई २००८ को उसके पिता वेकोदुल्ला व बहन वेको बजरे को पुलिस बलात्‌ उठाकर ले गई। याचिकाकर्ता ने कहा कि जिस वक्त पुलिस वहां पहुंची तो उसके परिवार के अन्य सदस्य जंगल की ओर भाग गए। लिहाजा, पुलिस उसे पकड़ नहीं पाई। याचिका में पिता व बहन को पुलिस के चंगुल से छुड़ाने के लिए पुलिस महानिदेशक व पुलिस अधीक्षक से शिकायत करने पर कोई कार्रवाई नहीं करने का आरोप भी लगाया गया है। इस मामले की सुनवाई डिवीजन बेंच में चल रही थी। इसी बीच १ फरवरी २०१० को याचिकाकर्ता के वकील ने हाईकोर्ट में इस बात की जानकारी दी कि याचिकाकर्ता से उसका कोई संपर्क नहीं हो पा रहा है।

  • चेतना परिषद पर लगाया आरोप

सिन्ना ने आदिवासी चेतना परिषद के पदाधिकारियों पर आरोप लगाते हुए कहा कि उसके अलावा कई और आदिवासियों को चेतना परिषद के पदाधिकारी दो बार बिलासपुर लेकर आए थे। इसी दौरान कई दस्तावेजों पर उसके हस्ताक्षर लिए गए थे। किस बात के लिए हस्ताक्षर लिए गए थे इसकी जानकारी उसे नहीं है।
वकील की शिकायत को गंभीरता से लेते हुए डिवीजन बेंच ने याचिकाकर्ता की खोजबीन करने व कोर्ट में उपस्थित करने के लिए शासन को नोटिस जारी किया था। डिवीजन बेंच के निर्देश के बाद पुलिस ने २३ मार्च २०१० को याचिकाकर्ता विंगोसिन्ना को डिवीजन बेंच के समक्ष पेश किया। याचिकाकर्ता के वकील ने अपने मुवक्किल के रूप में उसकी पहचान की। डिवीजन बेंच द्वारा पूछताछ के दौरान याचिककर्ता ने कोर्ट के समक्ष सनसनीखेज खुलासा करते हुए कहा कि उसने किसी तरह की कोई याचिका हाईकोर्ट में दायर ही नहीं की है। और न ही पुलिस पर किसी तरह का आरोप लगाया है। विंगोसिन्ना ने इस बात की जानकारी कोर्ट को दी कि उसके पिता व बहन पिछले कुछ दिनों से गायब हैं। इस पर जस्टिस धीरेंद्र मिश्रा व जस्टिस आरएन चंद्राकर की डिवीजन बेंच ने दंतेवाड़ा एसपी को सिन्ना के पिता व बहन की खोजबीन करने के निर्देश दिए। साथ ही याचिका को निराकृत कर दिया है।

इस समाचार की सत्‍यता जानने के बाद सुप्रीम कोर्ट में लगाए गए बस्‍तर संबंधी विभिन्‍न याचिकाओं पर भी मन में शंका हो रही है कि वे इसी तरह से फर्जी तो नहीं हैं. हांलांकि इस समाचार के विरोध में तथाकथित मानवाधिकार वादी यह भी कहने से नहीं चूकेंगें कि सरकार व पुलिस किसी अन्‍य व्‍यक्ति को न्‍यायालय में प्रस्‍तुत कर याचिकाकर्ता के रूप में प्रस्‍तुत कर रही है, या याचिकाकर्ता को धमकाया गया है. 6/4 के निर्मम घटना के बाद भी  विदेशों में व दिल्‍ली में बैठे बुद्धजीवी इन फर्जी मानवों के खून चूसने वालों पर विश्‍वास करती है तो बौद्धिकता पर शर्म आती है.

संजीव तिवारी

8 टिप्‍पणियां:

  1. हालात अच्छे तो नहीं हैं यहां !

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  2. संजीव जी, सब से पहले तो उस वकील से पूछा जाना चाहिए कि उस की पिटिशन पर हस्ताक्षर किस ने किए थे? यदि उस ने बिना याचिकाकर्ता की सहमति के और उस के हस्ताक्षरों के बिना याचिका पेश कर दी थी तो यह एक प्रोफेशनल मिसकंडक्ट है और इस की शिकायत खुद अदालत बार कौंसिल को कर सकती है।

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  3. hmm sahi mudda aapne blog jagat par laaya hai, ye khabar maine kisi akhbar me padhi thi aur usme saf saf vanvasi chetna parishhad wale himanshu kumar ka naam tha ki unhone dastkhat karwaye the is bande se... to ye hal hai, bastar ya aadiwasi ilako se lagi yachikao ka sahi parikshhan karwaya jaye to aadhe se jyada me to yahi haal nikalega

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  4. Sanjeev ji,

    Sanjeet ji ki baato se lag raha hai ki jis sansatha ka aapane ullekh kiya hai vo "Aadivasi Chetana Parishad" nahi hai balki "Vanvasi Chetana Ashram" hai ..

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  5. गुजरात में गोधरा कांड के बाद हुए दंगों के मामलों में बेस्ट बेकरी में कई लोगों को जिंदा जला दिया गया था, लेकिन वहां के उच्च न्यायालय ने इस मामले में सभी 21 आरोपियों को सबूत न होने के आधार पर रिहा कर दिया था राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और मुंबई की मानवाधिकार कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड ने उच्चतम न्यायालय में बेस्ट बेकरी मामले को अन्यत्र स्थानांतरित करने का आवेदन किया था जिसे मान्य करते हुए माननीय उच्चतम न्यायालय ने मामले को मुंबई में सुनवाई के लिए स्थानांतरित कर दिया ज़ाहिरा शेख बेस्ट बेकरी केस में प्रमुख गवाह थी गौरतलब है कि ज़ाहिरा शेख ने बेस्ट बेकरी कांड की सुनवाई के दौरान कई बार अपने बयान बदले थे और इस मामले में मदद करने वाली सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड पर आरोप लगाया था कि उन्होंने उससे झूठे बयान दिलवाये और उसे धमकाया था । इस वजह से तीस्ता सीतलवाड को अग्रीम जमानत लेनी पड़ी जाहिरा शेख द्वारा तीस्ता सीतलवाड पर लगाये गये आरोपों की जाँच के लिए माननीय उच्चतम न्यायालय ने एक समिती बनाई समिति के अध्यक्ष तथा सर्वोच्च न्यायालय के महापंजीकार बी.एम गुप्ता द्वारा दिये गए तीन प्रमुख निष्कर्षों को पढ़ा । समिति ने श्रीमती तीस्ता सीतलवाड पर ज़ाहिरा द्वारा लगाए गए आरोपों को खारिज कर दिया । समिति ने 150 पेज की रिपोर्ट अदालत में पेश की, जिसे देखने के बाद खंडपीठ ने कहा कि समिति इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि कुछ लोगों ने बेस्ट बेकरी कांड की गवाह ज़ाहिरा शेख को लालच दिया था और उसके बयान बदलवाते रहे थे तीस्ता सीतलवाड को फसाया जा सके किन्तु वे अपने चाल में कामयाब नहीं हो सके । अतः संजीव जी, बिंगोसिन्ना के मामले को "बेस्ट बेकरी की गवाह जाहिरा शेख झूठ कांड" के समकक्ष क्यों नहीं देखना चाहिए ?

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  6. अच्छा काम किया संजीव।इन लोगों की सच्चाई सामने लाना जरूरी है।इन लोगों को जब मैने प्रेस क्लब मे जगह देने से इंकार किया तो उन लोगों के गिरोह ने बवाल मचा दिया था।और कर क्या रहे हैं ये लोग्।कोर्ट को धोका देने लगे है अब तो,जनता को और दुनिया को तो पहले से ही दे रहे थे।इनके खिलाफ़ तो मुकदमा दर्ज़ होना चाहिये।शाबास संजीव शाबास्।

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  7. छत्तीसगढ़ के सामाजिक परिवेश के बारे में आपके माध्यम से जानकारियाँ मिलती रहती हैं । धन्यवाद ।

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आपकी टिप्पणियों का स्वागत है. (टिप्पणियों के प्रकाशित होने में कुछ समय लग सकता है.) -संजीव तिवारी, दुर्ग (छ.ग.)

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